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Updated: 19 जून, 2018 07:05 PM
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राजस्थान में शुरू से ही दो पार्टियों के बीच राजनीति होती रही है, लेकिन तीसरा मोर्चा गाहे-बगाहे अपनी मौजूदगी दर्ज कराता रहा है. कभी-कभी यह तीसरा मोर्चा बीजेपी और कांग्रेस दोनों का ही खेल बिगाड़ता रहा है. पूर्व राष्ट्रपति भैरव सिंह शेखावत ने जनता दल की मदद से सरकार चलाई है तो अशोक गहलोत ने बीएसपी के सहारे पांच साल तक सरकार चलाई है. राजस्थान में नवंबर में विधानसभा के चुनाव होने हैं और इस बार फिर से एक तीसरी ताकत चुनावी मैदान में अपनी मौजूदगी का अहसास कराने लगी है.

hanuman beniwalहनुमान बेनीवाल खिंवसर से निर्दलीय विधायक हैं

राजस्थान में पिछले एक साल में किसी भी पार्टी के किसी बड़े नेता ने सबसे बड़ी रैली की है तो वो हैं निर्दलीय विधायक हनुमान बेनीवाल. हनुमान बेनीवाल खिंवसर से निर्दलीय विधायक हैं. जोधपुर के इलाके में खास करके नागौर बेल्ट में हनुमान बेनीवाल की छवि फायरब्रांड नेता की रही है. हनुमान बेनीवाल जाट युवाओं में खासा लोकप्रिय हैं. राजस्थान की राजनीति में हमेशा से ही जाटों का खासा दबदबा रहा है. राज्य में बहुत लंबे समय तक एक न एक जाट नेता का दबदबा रहा है. कुंभाराम आर्य, नाथूराम मिर्धा, रामनिवास मिर्धा, परसराम मदरेणा, शीशराम ओला, सुमित्रा और कमला बेनीवाल जैसे नेता राजस्थान की राजनीति में कद्दावर जाट नेता रहे हैं. लेकिन पिछले कुछ सालों से राजस्थान की राजनीति में कोई बड़ा जाट नेता नहीं आया है.

हनुमान बेनीवाल की रैलियों में जिस तरह से युवाओं की भीड़ उमर रही है उसे देख कर ऐसा लगता है बेनिवाल उस जगह को भर रहे हैं. भीड़ वोट में बदली तो इस बार कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए हनुमान बेनीवाल मुश्किल पैदा करने वाले हैं. बीकानेर की रैली हो, बाड़मेर की रैली हो या फिर सीकर की रैली, हनुमान बेनीवाल को सुनने के लिए युवाओं की भारी भीड़ इकट्ठा हो रही है. माना जा रहा है कि राजस्थान के युवाओं की भीड़ जाट नौजवानों की है जो राज्य की राजनीति में अपनी पहचान बनाने के लिए छटपटा रहे हैं. कांग्रेस और बीजेपी दोनों दलों में यह बेचैनी है कि हनुमान बेनीवाल की सभाओं में कौन लोग आ रहे हैं और कहां से आ रहे हैं. आखिर क्या वजह है कि हनुमान बेनीवाल को सुनने के लिए इतनी बड़ी तादाद में लोग इकट्ठा हो रहे हैं.

hanuman beniwalहनुमान बेनीवाल को सुनने के लिए युवाओं की भारी भीड़ इकट्ठा होती है

बेनीवाल अब तक नागौर जिले के नेता माने जाते रहे हैं लेकिन जिस तरह से नागौर से बाहर निकलकर बाड़मेर और सीकर और बीकानेर में अपना दबदबा दिखाया है उसे देखकर लगता है कि एक बार फिर राजस्थान में तीसरी ताकत दोनों बड़ी पार्टियों बीजेपी और कांग्रेस के लिए मुश्किल पैदा करने वाली है. गुजरात के हार्दिक पटेल की तरह बेनीवाल किसी आरक्षण की मांग नही कर रहे हैं. इसके बावजूद बढ़ती लोकप्रियता सवाल उठाती है कि हनुमान बेनीवाल कौन है और ये नेता कैसे बने.

एक दौर था जब तीसरे मोर्चे और कांग्रेस में बड़े और कद्दावर जाट नेता हुआ करते थे. तब भैरोंसिंह शेखावत की वजह से बीजेपी राजपूतों की पार्टी मानी जाती थी. लेकिन बीजेपी ने अपनी रणनीति बदली और सीकर की रैली में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राजस्थान के जाटों को आरक्षण देने का ऐलान कर दिया. आरक्षण के लिए जाटों में अगुवाई करने वाले थे राजस्थान जाट महासभा के अध्यक्ष राजाराम मील, संरक्षक ज्ञानप्रकाश पिलानिया और दूसरे कई छोटे जाट नेता. जाटों को आरक्षण मिलते ही अचानक से जाट राजनीति में इन नेताओं का दबदबा बढ़ा. जाटों को आरक्षण दिलाने के नाम पर ज्ञानप्रकाश पिलानिया बीजेपी से राज्यसभा में पहुंच गए और उनके बेटे को बीजेपी से विधायक का टिकट मिल गया, हालांकि उनका उनके बेटा नवीन पिलानिया बीजेपी के टिकट पर चुनाव हार गए और बाद में एक छोटी पार्टी राजपा से विधायक बने.

hanuman beniwalजाट वोट बैंक अपनाने के लिए बीजेपी ने हनुमान बेनीवाल को टिकट दिया और बेनीवाल विधायक बन गए

दूसरी तरफ राजाराम मील ने कांग्रेस का दामन थामा और अपने भाई गंगाजल मील को कांग्रेस से विधायक बनवा दिया. कांग्रेस की राजनीति में अशोक गहलोत के दबदबे के बाद परसराम मदेरणा हाशिए पर आ गए थे और शीशराम ओला झुंझुनू के नेता बन कर रह गए थे. इन दोनों नेताओं ने अपने बेटे महिपाल मदेरणा और बृजेंद्र ओला को आगे बढ़ाने के लिए हालात से समझौता कर हाशिए पर चले गए. इस बीच राजस्थान यूनिवर्सिटी के लॉ कालेज में हनुमान बेनीवाल छात्र संघ के अध्यक्ष के रुप में एक फायर ब्रांड नेता के रूप में स्थापित हो चुके थे. जाट वोट बैंक अपनाने के लिए छटपटा रही बीजेपी ने हनुमान बेनीवाल को टिकट थमा दिया और बेनीवाल विधायक बन गए. लेकिन बेनीवाल की बीजेपी में पटरी नहीं बैठी और वह निर्दलीय विधायक के रुप में खींवसर विधानसभा क्षेत्र से विधानसभा पहुंचे. वसुंधरा राजे के लगातार विरोध ने उन्हें राजस्थान में एक नेता के रूप में स्थापित कर दिया. विपक्ष की खाली जगह को बेनीवल ने बखूबी भरा. इस बीच कांग्रेस का नेतृत्व कमजोर पड़ा और कांग्रेस पार्टी में जाट अपने आप को हाशिए पर पानी लगे.

महिपाल मदेरणा के जेल जाने के बाद से और कई जाट नेताओं के किनारे कर दिए जाने के अफवाहों के बीच जाट अपने आप को असहज पाने लगे. वसुंधरा राजे के पहली पारी में जाट सत्ता के करीब पहुंचे थे लेकिन बीजेपी में राजपूतों के दबदबे के आगे कभी भी वह खुद को पार्टी में सहज नहीं महसूस कर पाए. इस बीच बेनीवाल ने कांग्रेस और बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल के खुद को स्थापित किया. बेनीवाल को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका बढ़ती बेरोजगारी ने निभाई. राजस्थान में नौकरी नहीं मिलने से परेशान बेरोजगारों ने हनुमान बेनीवाल का हाथ थामा. बेनीवाल ने परेशान किसानों के दुखती नब्ज पर हाथ रखा. इस बीच राजपूतों के सम्मान के रूप में कुख्यात अपराधी आनंदपाल सिंह का नाम सामने आया तो आनंदपाल के सबसे बड़े दुश्मन के रूप में हनुमान बेनीवाल का भी नाम आया. इस वजह से जाट युवाओं में हनुमान बेनीवाल लोकप्रिय हुए.

hanuman beniwalअपनी भाषा से युवाओं को आकर्षित करते हैं हनुमान बेनीवाल

वसुंधरा राजे के सबसे करीबी माने जाने वाले मंत्री यूनुस खान को विधानसभा के अंदर और बाहर हनुमान बेनीवाल लगातार ललकारते रहे और इन सब ने हनुमान बेनीवाल की ऐसी इमेज बना दी जिसमें किसान और युवा बेरोजगार जुड़ते चले गए. हालात यह है कि बेनीवाल की रैलियों में भीड़ खुद अपने पैसे से आती है और इतनी बड़ी भीड़ अकेले कोई राजनेता राजस्थान में शायद इकट्ठा कर पाता हो. बीजेपी के कार्यवाहक प्रदेशअध्यक्ष अशोक परनामी कहते हैं कि हनुमान के साथ नागौर के लड़कों की भीड़ है जो सभी जगह की रैलियों में पहुंच जाती है. और बेनीवल जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल करते हैं उससे युवा आकर्षित होते हैं मगर उनको कोई वोट नहीं देगा. बेनिवाल कहते हैं कि इसबार सत्ता की चाबी वो अपने पास रखेंगे. किसानों से पूर्ण कर्जमाफी और बेरोजगारों को सरकारी नौकरी की गारंटी दे रहे हैं. कर्नाटक चुनाव में जनता दल सेक्यूलर के एच डी.कुमारस्वामी के मुख्यमंत्री बनने के बाद से ये खासे उत्साहित है. ऐसा हुआ तो नुकसान दोनों हीं पार्टियों को है. इसबार बीजेपी के परंपरागत वोटर राजपूत नाराज हैं और जाट भी छिटक गए तो भरपाई नहीं होगी. दूसरी तरफ जाट कांग्रेस के परंपरागत वोटर रहे हैं और साथ में वसुंधरा विरोधी वोटों का भी विभाजन पार्टी के लिए नुकसान पहुंचाएगी.

हालांकि बेनीवाल के साथ तीसरा मोर्चा बनाने की बात कहने वाले मीणा नेता किरोड़ी लाल मीणा बीजेपी में जा चुके हैं. इसी वजह से बेनीवाल को बार-बार ऐलान करना पड़ रहा है कि वह बीजेपी और कांग्रेस में नहीं जाएंगे. बल्कि दोनों के खिलाफ तीसरा मोर्चा बनाकर लड़ेंगे. जाट समाज के लोग बड़ी मात्रा में इन्हें पैसों का भी सहयोग कर रहे हैं. राजस्थान में जाट करीब 12 फीसदी है और दो सौ में से 75 सीटों पर अपना प्रभाव रखते हैं. बेनीवाल जानते हैं कि अकेले जाटों के दम पर सत्ता में नहीं आ सकते हैं, लिहाजा बहुजन समाज पार्टी और घनश्याम तिवाड़ी के दीन दायाल वाहिनी के साथ मिलकर तीसरा मोर्चा बनाने में लगे हैं. कहा जा रहा है कि गुजरात में जिस तरह से हार्दिक पटेल की अगुवाई में पटेलों ने बीजेपी के खिलाफ बड़ी संख्या में वोट किया, कुछ उसी तरह से हनुमान बेनीवाल जाटों को अपनी तरफ मोड़ सकते हैं.

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