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एकनाथ शिंदे का हश्र राज ठाकरे और नारायण राणे जैसा तो नहीं हो जाएगा!
एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) अपने लक्ष्य की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं. बढ़ना भी चाहिये, लेकिन एक बार ध्यान इस बात पर भी देना चाहिये कि राज ठाकरे (Raj Thackeray) और नारायण राणे (Narayan Rane) का शिवसेना छोड़ने के बाद क्या हाल हुआ - कैसे कदम कदम पर संघर्ष करने पड़े?
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एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) पर न तो उद्धव ठाकरे की इमोशनल अपील का कोई असर हुआ है, न ही शिवेसाना सांसद संजय राउत की धमकियों का - या फिर बागी विधायकों के दफ्तरों पर हुई तोड़फोड़ का ही. काउंटर करने के लिए शिंदे ने अपने इलाके ठाणे में अपने समर्थकों को झंडा, बैनर और पोस्टर के साथ मैदान में उतार जरूर दिया है.
ध्यान देने वाली बात है कि शिवसेना सांसद अनिल देसाई ने बागी विधायकों के यहां हिंसा और तोड़फोड़ को लेकर कहा है कि शिवसेना कार्यकर्ता अपनी भावनाएं जाहिर कर रहे हैं. शिंदे के बागी विधायकों के घर परिवार की सुरक्षा का मुद्दा उठाये जाने के बाद ठाणे में उनके घर पर सुरक्षा बढ़ा दी गयी है. आस पास पुलिस ने एहतियाती तौर पर बैरिकेडिंग भी कर रखी है, ताकि किसी भी हालत में कानून-व्यवस्था की स्थिति को काबू किया जा सके.
और इस बीच महाराष्ट्र विधानसभा के डिप्टी स्पीकर की तरफ से बागी विधायकों के खिलाफ एक्शन की भी तैयारी चल रही है. कुछ निर्दलीय विधायकों की तरफ से डिप्टी स्पीकर के अधिकार पर सवाल उठाये जाने के बावजूद 16 विधायकों को नोटिस भेज कर जबाव तलब करने की प्रक्रिया भी जारी है. बताते हैं कि डिप्टी स्पीकर नरहरि जिरवाल कानूनी राय लेने के बाद विधायकों के खिलाफ अयोग्यता की कार्यवाही बढ़ाने की कोशिश करेंगे. डिप्टी स्पीकर जिरवाल एनसीपी के विधायक हैं.
वैसे तो एकनाथ शिंदे की तरफ से 40 विधायकों के साथ होने का दावा किया गया है, लेकिन शिवसेना की तरफ से अभी सिर्फ 16 बागी विधायकों के खिलाफ विधानसभा के डिप्टी स्पीकर से कार्रवाई की मांग की गयी है.
महाराष्ट्र के बागी विधायकों के नेता शिंदे की टीम की तरफ से अब ये भी बताया जाने लगा है कि कैसे वे लोग नयी पार्टी बनाने की तैयारी में हैं. साथ में ये भी जानकारी दी गयी है कि शिंदे की पार्टी में शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे का नाम भी जुड़ा रहेगा - और शिवसेना की तरफ से इस पर कड़ी आपत्ति जतायी गयी है.
ये तो हर कोई जान और समझ रहा है कि एकनाथ शिंदे ने जितना बड़ा कदम उठाया है, अकेले उनके वश की बात तो बिलकुल नहीं है - और एक बार तो वो बता भी चुके हैं कि किस महाशक्ति का उनके पीछे हाथ है. हालांकि, अपने बयान को लेकर बीजेपी की भूमिका पर सवाल उठाये जाने को लेकर एकनाथ शिंदे ने सफाई भी दे दी है. अमूमन ऐसी सफाई तो लीपापोती की कोशिश ही लगती है.
फिर भी एकनाथ शिंदे को एक मुफ्त की सलाह जरूर दी जा सकती है क्योंकि अब भी बहुत कुछ बिगड़ा नहीं है - और कागजी कार्यवाही पूरी होने के मामले में आखिर तक बागी विधायकों के जरूरी नंबर का सपोर्ट उनके साथ बना रहेगा, शायद उनको भी इल्म न हो.
एकनाथ शिंदे को कोई भी कदम आगे बढ़ाने से पहले एक बार उन नेताओं के कॅरियर ग्राफ पर नजर जरूर डाल लेनी चाहिये जो अलग अलग दौर में शिवसेना छोड़ने का फैसला किये थे - कम से कम राज ठाकरे (Raj Thackeray) और नारायण राणे (Narayan Rane) के संघर्षों पर तो उनको गौर फरमाना ही चाहिये.
बालासाहेब के नाम पर दावेदारी की तैयारी
एकनाथ शिंदे ने 'शिवसेना बालासाहेब' नाम से नयी पार्टी बनाने का फैसला किया है. गुवाहाटी में एकनाथ शिंदे के साथ रह रहे बागी शिवसेना विधायक बालाजी किनिकर ने न्यूज एजेंसी से बातचीत में खबर को कंफर्म भी किया है.
एकनाथ शिंदे के भविष्य का अंदाजा दो तरीके से लगाया जा सकता है - एक मिसाल तो ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं, दूसरी पायदान पर एक साथ राज ठाकरे और नारायण राणे हैं.
महाराष्ट्र की अंबरनाथ विधानसभा क्षेत्र से MLA दीपक केसरकर कहते हैं, "हम बालासाहेब की विचारधारा को लेकर प्रतिबद्ध हैं... हमने एक इंडिपेंडेंट ग्रुप बनाया है... हम किसी के साथ विलय नहीं करेंगे... ग्रुप का एक अलग अस्तित्व होगा... किसी ने भी शिवसेना नहीं छोड़ी है."
एकनाथ शिंदे की मंशा जानने के बाद शिवसेना में मुंबई के शिवसेना भवन में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में तय किया गया कि पार्टी ऐसी कोशिशों के खिलाफ चुनाव आयोग का रुख करेगी. बागी विधायकों के नेता को लेकर कटाक्ष भी किया गया कि शिंदे पहले 'नाथ' हुआ करते थे, लेकिन अब वो 'दास' बन चुके हैं.
एकनाथ शिंदे से बुरी तरह खफा उद्धव ठाकरे ने यहां तक कह डाला कि अगर शिंदे में हिम्मत है तो वो अपने पिता के नाम पर वोट मांग कर दिखायें. उद्धव ठाकरे ने आगाह किया है कि न तो वो किसी को अपने पिता के नाम का इस्तेमाल करने देंगे, न ही शिवसेना का.
शिवसेना कार्यकारिणी की बैठक में एक प्रस्ताव भी पास किया गया है जिसमें कहा गया है कि शिवसेना और बालासाहेब ठाकरे के नाम का इस्तेमाल कोई नहीं कर सकता है. शिवसेना नेताओं की ये भी राय रही कि चाहे वो शिंदे हों या कोई और, किसी के भी नयी पार्टी बनाने पर कोई ऐतराज नहीं है - लेकिन शिवसेना और बालासाहेब के नाम के इस्तेमाल की इजाजत नहीं दी जाएगी.
वीडियो पर शिंदे की सफाई: अपने मिशन में बीजेपी के सपोर्ट की बात सरेआम कर देने के बाद एकनाथ शिंदे पीछे हट गये हैं. असल में शिंदे के एक समर्थक की तरफ से एक वीडियो जारी किया गया था - और उसे लेकर एनसीपी नेता शरद पवार ने प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर रिएक्ट किया था.
वीडियो में एकनाथ शिंदे कह रहे हैं, 'चाहे कुछ भी हो, हम जीतेंगे... जैसा कि आपने कहा, वो एक राष्ट्रीय पार्टी है... एक महाशक्ति है... पाकिस्तान... आप जानते हैं कि क्या हुआ था.'
शरद पवार ने देश की राष्ट्रीय पार्टियों का नाम गिनाया और फिर सवाल किया कि बीजेपी के अलावा ये काम कोई और कर भी नहीं सकता. बाद में तो ये सवाल भी उठा कि गुवाहाटी के होटल का खर्च कौन उठा रहा है? तब असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का जबाव आया कि बीजेपी कोई बिल पेमेंट नहीं कर रही है.
एकनाथ शिंदे ने कहा था, 'मुझसे कहा है कि हमारे द्वारा लिया गया फैसला ऐतिहासिक है... आपके पास हमारी सारी ताकत है... अगर आपको कुछ चाहिये तो हम आपको निराश नहीं करेंगे... जब भी हमें किसी मदद की आवश्यकता होगी, इसका अनुभव किया जाएगा.'
बवाल मचने पर शिंदे कहने लगे हैं, 'जब मैंने कहा कि एक बड़ी शक्ति हमारा समर्थन कर रही है... तो मेरा मतलब बालासाहेब ठाकरे और आनंद दिघे की शक्ति से था.'
सही बात है, लेकिन दलील में लोचा ये है कि आखिर दिवंगत हो चुके बालासाहेब ठाकरे और आनंद दिघे, एकनाथ शिंदे को ये भरोसा किस माध्यम से दिला रहे थे. त्रिपुरा में बीजेपी के मुख्यमंत्री रहे बिप्लब देब की बातें भी मान लें कि महाभारत काल में इंटरनेट की सुविधा थी, लेकिन अब तक तो किसी ने नहीं बताया कि दिवंगत आत्माओं से बात करने की इंटरनेट पर कौन सी सुविधा है - और वो एकनाथ शिंदे जैसे नेताओं को ही मिल पा रही है?
बहुत कठिन है डगर आगे की
अलग अलग दौर में शिवसेना छोड़कर राजनीतिक जमीन की तलाश में निकले नेताओं में सिर्फ दो ही नाम हैं जो ठीक ठाक पोजीशन में हैं - और उसकी एक वजह उनका एक खूंटा को पकड़ कर बने रहना भी लगता है.
राज ठाकरे ने अपनी नयी पार्टी बनायी और नारायण राणे पाला बदलते रहे, लेकिन छगन भुजबल एक बार जो शरद पवार की शरण में गये तो अब तक बने हुए हैं. ठीक ऐसा ही हाल सुरेश प्रभु का है. मंत्री पद न सही, लेकिन केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी के साथ बने हुए तो हैं ही.
कभी शिवसेना के ओबीसी फेस रहे छगन भुजबल ने 1991 में 18 विधायकों के साथ शिवसेना छोड़ी थी, लेकिन तब 12 वापस चले गये. फिर भी छगन भुजबल ने अपने वादे के साथ कांग्रेस ज्वाइन कर लिया और अपना योगदान देते रहे. बाद में करीब आठ साल बाद जब शरद पवार ने कांग्रेस से अलग होकर एनसीपी बनायी तो छगन भुजबल भी साथ हो लिये. फिलहाल, संकट में घिरी महाराष्ट्र की महाविकास आघाड़ी सरकार में वो मंत्री हैं.
राज ठाकरे अब भी धक्के खा रहे हैं: हाल ही में राज ठाकरे को खासा एक्टिव देखा गया था. मस्जिदों से लाउडस्पीकर के खिलाफ मुहिम शुरू की थी और अल्टीमेटम दे दिया था. अल्टीमेटम की मियाद पूरी होने के बाद भी कहे थे कि महाराष्ट्र की मस्जिदों से सारे लाउडस्पीकर उतारे जाने तक उनकी मुहिम जारी रहेगी.
उसी दौरान मातोश्री के सामने हनुमान चालीसा पढ़ने को लेकर पुलिस ने अमरावती से सांसद नवनीत राणा और उनके विधायक पति को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था - और फिर राज ठाकरे के खिलाफ भी वैसी ही कार्रवाई की आशंका जतायी जाने लगी थी.
फिर अचानक एक दिन रैली में राज ठाकरे ने अपनी अयोध्या यात्रा तक रद्द करने की घोषणा कर डाली. कह रहे थे वो किसी के जाल में नहीं फंसना चाहते. बताया कि उनके खिलाफ साजिशें रची जा रही हैं.
राज ठाकरे की अयोध्या यात्रा की घोषणा पर ही बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने वहां घुसने न देने का ऐलान कर दिया था. बीजेपी सांसद का कहना रहा कि जब तक राज ठाकरे अपनी पुरानी हरकतों के लिए उत्तर भारतीय लोगों से माफी नहीं मांग लेते - उनको अयोध्या में नहीं घुसने देंगे. हालांकि, उद्धव ठाकरे की अयोध्या यात्रा तय हुई तो वैसा कुछ नहीं हुआ. 15 जून को उद्धव ठाकरे तो नहीं लेकिन आदित्य ठाकरे जरूर अयोध्या गये थे.
शिवसेना छोड़ने के बाद महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बना कर राज ठाकरे में तमाम कोशिशें की, लेकिन अब तक महाराष्ट्र में अपनी कोई अलग राजनीतिक जमीन खड़ा नहीं कर सके हैं. ये ठीक है कि राज ठाकरे के समर्थक काफी हैं और उनकी एक कॉल पर सड़कों पर उत्पात मचा सकते हैं, लेकिन चुनावी राजनीति में तो अब तक वो फेल ही रहे हैं. फिलहाल मनसे के पास एक विधायक है.
राज ठाकरे के अचानक शांत हो जाने की वजह साफ नहीं हो पायी थी, लेकिन एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद तस्वीर काफी हद तक साफ हो गयी - वैसे भी जब एकनाथ शिंदे जैसा बड़ा मोहरा बीजेपी के हाथ लग जाये तो राज ठाकरे की क्या जरूरत महसूस होगी?
नारायण राणे साल भर पहले मंत्री बने हैं: शिवसेना में रहते नारायण राणे की हैसियत ऐसे समझी जा सकती है कि बाल ठाकरे ने मनोहर जोशी से इस्तीफा दिलाकर उनकी जगह 1999 में नारायण राणे को महाराष्ट्र का सीएम बनाया था - ये बात अलग है कि तब भी राणे उद्धव ठाकरे को फूटी आंख नहीं सुहाते थे. जाहिर है नारायण राणे के मन में उद्धव ठाकरे के प्रति ऐसी ही भावना रही.
2005 में जब नारायण राणे ने शिवसेना छोड़ कर कांग्रेस ज्वाइन किया तब महाराष्ट्र विधानसभा में वो विपक्ष के नेता हुआ करते थे. जब कांग्रेस की भी राजनीति रास नहीं आयी तो 2017 में महाराष्ट्र स्वाभिमान पक्ष नाम से अपनी पार्टी बनायी थी - और 2019 में नारायण राणे ने अपनी पार्टी का बीजेपी में विलय करा दिया.
लेकिन ये सब भी मुमकिन तब हो पाया जब बीजेपी नेतृत्व और उद्धव ठाकरे में खटपट शुरू हो गयी. वरना, उद्धव ठाकरे की जब तक चलती रही, वो नारायण राणे को बीजेपी के आसपास नहीं फटकने देते थे.
2018 में जब उद्धव ठाकरे के विरोध के चलते नारायण राणे को राज्य सभा तक भेजना मुश्किल हो रहा था तो बीजेपी ने उनको निर्दल चुनाव लड़ने को कहा और बाहर से पार्टी ने सपोर्ट किया. आखिरकार, जुलाई 2021 में जब मोदी सरकार की दूसरी पारी में कैबिनेट में बदलाव हुआ तो नारायण राणे को भी मंत्री बनने का मौका मिला.
रही बात एकनाथ शिंदे की तो अभी तक न तो वो बीजेपी का भरोसा जीत पाये हैं, न ही हिमंत बिस्वा सरमा जैसी बीजेपी की मदद ही की है. देखा जाये तो एकनाथ शिंदे ने भी वही काम किया है जो ज्योतिरादित्य सिंधिया ने दो साल पहले मध्य प्रदेश में किया था - और सिंधिया को भी साल भर तक मंत्री बनने के लिए इंतजार ही करना पड़ा.
हो सकता है एकनाथ शिंदे के लिए बीजेपी सिंधिया जैसा ही कोई इनाम सोच रही है. महाराष्ट्र में अभी बीजेपी एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री तो बनाने से रही. ज्यादा से ज्यादा वो उनको डिप्टी सीएम बना सकती है, लेकिन उतनी हैसियत तो अब भी उनके पास है. महाराष्ट्र सरकार में वो मंत्री हैं - और डिप्टी सीएम की अलग से तो कोई वैल्यू होती नहीं सिवा नाम के. हां, सरकारी बैठकों में मुख्यमंत्री अगल बगल बैठने का मौका जरूर मिलता है.
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