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Updated: 26 सितम्बर, 2019 03:11 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र में अपना भाषण दिया. पूरे भाषण में उन्होंने अमेरिका और विश्व को लेकर तमाम बातें कीं. उन्होंने शांति की भी बात की और युद्ध की भी. दोस्त का जिक्र किया तो दुश्मन की बात करने से भी पीछे नहीं हटे. प्राथमिकताएं भी गिनाईं और उन बातों का भी जिक्र किया जो गैर जरूरी रहनी चाहिए. यानी सीधा-सीधा कहें तो डोनाल्ड ट्रंप में अपने करीब आधे घंटे के भाषण में बहुत सारी बातें कहीं, जिनमें से कई तो ऐसी थीं, जो एक-दूसरे की विरोधी लगीं. उनकी बातों विरोधाभास खूब झलका. शांति की बात से लेकर दोस्ती की बात तक तो उन्होंने की ही, युद्ध और दुश्मन का जिक्र भी किया. आइए एक नजर डालते हैं संयुक्त राष्ट्र में दिए गए ट्रंप के कुछ बयानों पर जो अपने बात में विरोधाभासी लगे.

राष्ट्रवाद और वसुधैव कुटुंबकम साथ कैसे

ट्रंप ने कहा कि भविष्य ग्लोबलिस्ट यानी उन लोगों का नहीं होगा, जो दुनिया भर की बात करते हैं. सीधे-सीधे कहें तो भविष्य वसुधैव कुटुंबकम वाले देशों का नहीं है. वह मानते हैं कि राष्ट्रवादी (पेट्रिओटिस्ट) यानी उन लोगों का होगा, जो अपने देशवासियों के हितों की रक्षा करते हैं, उनका ख्याल रखते हैं. उन्होंने कहा कि पेट्रिओटिस्ट देश न केवल अपने नागरिकों का ख्याल रखता है, बल्कि वह अपने पड़ोसियों से मिल-जुल कर रहता है. उन बातों का सम्मान करता है जो किसी दूसरे देश को औरों ले अलग बनाती है.

- एक ओर तो ट्रंप अपने पड़ोसियों से मिल जुल कर रहने की बात कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर वह बात कर रहे हैं कि सिर्फ अपने देश और देशवासियों के बारे में सोचा जाए. यही ट्रंप अमेरिका फर्स्ट की बात करते हैं, तो फिर पड़ोसी तो खुद-ब-खुद कमतर हो गया. वैसे भी, ट्रंप सिर्फ डील समझते हैं, इमोशन्स नहीं.

डोनाल्ड ट्रंप, संयुक्त राष्ट्र, अमेरिकाडोनाल्ड ट्रंप में अपने करीब आधे घंटे के भाषण में बहुत सारी बातें कहीं, जो एक-दूसरे की विरोधी लगीं.

वह कहते हैं- हम चाहते हैं कि शांति और समन्वय बना रहे. लेकिन मैं कभी अमेरिका के हितों का बचाव करने में फेल नहीं हुआ. हालांकि, ईरान की तरफ से शांति चाहने वाले देशों को खतरे का अंदेशा मिल रहा है. वहां कितनी तबाही हो रही है, सब जानते हैं. ईरान ना सिर्फ आतंकवाद प्रायोजित नंबर-1 देश है, बल्कि ईरान के लीडर्स यमन और सीरिया में युद्ध भड़काने का काम कर रहे हैं.

- एक ओर तो अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप शांति की बात करते हैं, वहीं दूसरी ओर ईरान पर हमले की धमकी भी देते हैं. वैसे भी, जिस देश की इकोनॉमी में हथियारों का एक बड़ा योगदान हो, उसके मुंह से शांति की बात अच्छी नहीं लगती.

डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी स्पीच में ये भी बात कही है कि वह स्थायी दुश्मनी में भरोसा नहीं रखता. यानी उनका ये कहना है कि अगर आज कोई अमेरिका का दुश्मन है, तो कल वह देश अमेरिका का दोस्त बन सकता है, जो ईरान के संदर्भ में सही है. उत्तर कोरिया इसका सबसे अच्छा उदाहरण है. कल तक वह अमेरिका का दुश्मन था, लेकिन आज वह दोस्त बन गया है, जिसके साथ ट्रंप डील तक करने वाले हैं.

- यहां सवाल ये है कि आखिर ये दोस्ती कैसे होगी? शांति के लिए या फिर अपने फायदे के लिए. ईरान को अमेरिका नंबर-1 आतंक प्रायोजित देश मानता है. चीन पर चोरी के आरोप लगाते हुए भारी भरकम टैरिफ लगा दिए. अमेरिका खुद अपने चुनावी वादे तक को पूरा करने के लिए चीन को दोस्त नहीं बना सका तो फिर दुश्मन ईरान से दोस्ती क्या खाक होगी. हां, उत्तर कोरिया से दोस्ती हो गई, लेकिन ध्यान दीजिएगा कि इसमें अमेरिका ने अपना फायदा देखा है, इसलिए दोस्ती की है.

ट्रंप ने चीन को फटकारते हुए कहा- चीन जब से वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन में आया है, अमेरिका को बहुत भारी नुकसान हो चुका है. चीन ने एक अमेरिकी कंपनी माइक्रोन टेक्नोलॉजी की तकनीक चुराई और फिर माइक्रोन को चीन में बैन कर दिया, जिसकी वजह से भी काफी नुकसान हुआ है. अमेरिका को 60 हजार फैक्ट्रियों का नुकसान हुआ, जब से चीन ने वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन में एंट्री की है. चीन की ओर से हो रही गलत प्रैक्टिस को पहले के लीडर्स ने नजरअंदाज कर दिया, लेकिन अब नहीं. इसीलिए मैंने चीन पर 500 अरब डॉलर का भारी भरकम टैरिफ लगा दिया है.

- डोनाल्ड ट्रंप ने चीन के साथ ट्रेड डील करने को एक चुनावी मुद्दा बनाया था. जिस मुद्दे के सहारे वह राजनीति में आए, उसे पूरा भी नहीं किया, उल्टा अपनी असफलता को एक बेहतर निर्णय साबित करते हुए चीन पर ही टैरिफ लगा दिए.

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