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Updated: 28 दिसम्बर, 2018 07:08 PM
अरविंद जयतिलक
अरविंद जयतिलक
  @arvind.jaiteelak.9
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28 दिसंबर 1885. कांग्रेस का स्थापना दिवस. दिन के 12 बजे थे और मुंबई का गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कालेज कांग्रेसजनों से खचाखच भरा था. अंग्रेज अधिकारी एलन आक्टेवियम ह्यूम ने व्योमेश चंद्र बनर्जी के सभापतित्व का प्रस्ताव रखा और एस सुब्रमण्यम अय्यर और काशीनाथ त्रयंबक तैलंग ने उसका समर्थन किया. इस तरह कांग्रेस का जन्म हुआ और साथ ही पहला अधिवेशन भी संपन्न हो गया. कांग्रेस ने इस अधिवेशन में अपना उद्देश्य सुनिश्चित करते हुए कहा कि वह देशवासियों के बीच जाति संप्रदाय तथा प्रांतीय पक्षपातों की भावना को दूर कर उनमें राष्ट्रीय एकता की भावना का संचार करेगी. इस अधिवेशन में कुल नौ प्रस्ताव पारित हुए और सभी का सरोकार देश व समाज के कल्याण से जुड़ा था.

congress28  दिसंबर 1885 को कांग्रेस की स्थापना की गई

समय के साथ कांग्रेस की प्रासंगिकता बढ़ती गयी और देश का जनमानस उससे जुड़ता गया. कांग्रेस के नेतृत्व में ही आजादी की लड़ाई लड़ी गयी और देश स्वतंत्र हुआ. आजादी के तत्काल बाद ही गांधी जी ने कांग्रेस को भंग करने की सलाह दी. उनका तर्क था कांग्रेस की स्थापना का उद्देश्य आजादी हासिल करना था और वह लक्ष्य पूरा हुआ. अब इसे बनाए रखने की कोई जरुरत नहीं. लेकिन गांधी जी के अनुयायिओं ने उनकी एक नहीं सुनी और कांग्रेस को भंग नहीं होने दिया. उनका मकसद कांग्रेस के मंच के जरिए सत्ता तक पहुंचना था और वे इसमें सफल भी रहे. यानी जिस कांग्रेस संगठन के तले आजादी की जंग लड़ी गयी वह सत्ता का सोपान बन गयी. कांग्रेस के प्रति आमजन की असीम श्रद्धा ने कांग्रेस पार्टी को दीर्घकाल तक सत्ता में बनाए रखा. लेकिन गौर करें तो आजादी के बाद कांग्रेस का मूल चरित्र बदल गया.

...और आजादी के बाद ऐसे बदली कांग्रेस

लेकिन बिडंबना है कि कांग्रेस के मौजूदा नेताओं द्वारा अब भी यह मुनादी पीटा जाता है कि उसकी कांग्रेस गांधी की ही कांग्रेस है. कांग्रेस के सफर पर नजर दौड़ाएं तो 1947 से लेकर 1964 तक देश की बागडोर पंडित जवाहर लाल नेहरु के हाथ में रहा. निःसंदेह वे एक महान राजनेता थे और उन्होंने देश की प्रगति में अहम योगदान दिया. उन्होंने भारत की आर्थिक समृद्धि के लिए पंचवर्षीय योजनाएं बनायी. सिंचाई के उचित प्रबंध के लिए बहुउद्देश्यीय परियोजनाओं का शुभारंभ किया. इन योजनाओं को आधुनिक भारत का तीर्थ कहा. रोजगार सृजन और तरक्की के लिए कल-कारखानों की स्थापना की. निर्गुटता और पंचशील जैसे सिद्धांतों का पालन कर विश्व बंधुत्व एवं विश्वशांति को एक सूत्र दिया.

congressआजादी के बाद गांधी जी ने कांग्रेस को भंग करने की सलाह दी जो किसी ने नहीं मानी

मार्शल टिटो और अब्दुल गमाल नासिर के साथ मिलकर एशिया और अफ्रीका मंज उपनिवेशवाद के खात्मे के लिए एक गुटनिरपेक्ष आंदोलन की जमीन तैयार की. इसके अलावा उन्होंने कोरियाई युद्ध का अंत करने, स्वेज नहर विवाद सुलझाने और कांगो समझौते को मूर्तरुप देने जैसे अन्य अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान की दिशा में शानदार पहल की. लेकिन उनसे कुछ भूलें भी हुई जिसका खामियाजा आज देश भुगत रहा है.

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने लिखा है कि ‘निःसंदेह बेहतर होता यदि नेहरु को विदेश मंत्री और सरदार पटेल को प्रधानमंत्री बनाया जाता. तब भारत में कश्मीर, तिब्बत, चीन और अन्यान्य विवादों की कोई समस्या नहीं रहती.’ 1964 में पंडित नेहरु के निधन के बाद कांग्रेस का शीराजा बिखरने लगा. उसका मूल कारण यह रहा कि जिस कांग्रेस ने देश को जाग्रत किया, समाज में समरसता घोली, बहुधर्मी और बहुविविधतापूर्ण भारतीय समाज के विभिन्न संप्रदायों के बीच समरसता के फूल उगाए उस कांग्रेस ने सत्ता में बने रहने के लिए देश को जाति, धर्म, पंथ और संप्रदायों में बांट दिया. आजादी से पूर्व जिस कांग्रेस के अखिल भारतीय चरित्र में संपूर्ण जाति, धर्म और पंथ का प्रतिनिधित्व समाहित था वह वंशवाद में विलीन होकर रह गया.

इंदिरा कांग्रेस ने ही बदल दिया था पार्टी का चरित्र

इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री बनी और उनके चापलूसों ने कांग्रेस की परिभाषा बदल दी. कांग्रेस मायने इंदिरा और इंदिरा मायने कांग्रेस हो गया. उसका घातक परिणाम यह हुआ कि इंदिरा गांधी की सरकार ने देश में आपातकाल थोप दिया. सत्ता के बूते संविधान और न्यायभावना को मसल दिया. जानना आवश्यक है कि आपातकाल का कारण 12 जून, 1975 का इलाहाबाद उच्च न्यायालय का वह फैसला था जिसमें न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिंहा ने श्रीमती गांधी के रायबरेली चुनाव को यह कहकर रद्द कर दिया था कि चुनाव भ्रष्ट तरीके से जीता गया. न्यायमूर्ति सिंहा ने श्रीमती गांधी पर छः साल चुनाव न लड़ने का प्रतिबंध लगाया.

indira gandhiकांग्रेस मायने इंदिरा और इंदिरा मायने कांग्रेस

इस फैसल से श्रीमती गांधी तिलमिला गयीं और उनका सत्ता अहंकार जाग उठा. उनके सामने दो रास्ते बचे. एक, या तो वह न्यायालय के फैसले का सम्मान करते हुए अपने पद से इस्तीफा दें या संविधान का गला घोंट दें. उन्होंने दूसरे रास्ते को चुना और संविधान का गला घोंट दिया. उन्होंने आंतरिक सुरक्षा को मुद्दा बनाकर बगैर कैबिनेट की मंजूरी लिए ही देश पर आपातकाल थोप दिया. फिर क्या था इंदिरा की सरकार अत्याचार की सारी सीमाएं लांघने लगी. जयप्रकाश नारायण समेत तमाम आंदोलनकारियों को मीसा और डीआइआर कानूनों के तहत जेल में ठूंस दिया.

जिस कांग्रेस ने देश को आजादी दिलायी उस कांग्रेस ने ब्रिटिश हुकुमत और खुद के फर्क को मिटा दिया. यही नहीं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रेस की आजादी पर प्रतिबंध लगा दिया. सभी लोकतांत्रिक संस्थाओं पर ताला झुला दिए गए. मोरारजी देसाई के शासन में गठित शाह आयोग की रिपोर्ट में सरकारी निरंकुशता का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि आपातकाल के दौरान गांधी जी के विचारों के साथ-साथ गीता से भी उद्धरण देने पर पाबंदी थी. लेकिन भारतीय जनमानस ने आगामी आमचुनाव में इंदिरा गांधी को सत्ता-सिंहासन से उखाड़ फेंका.

rajiv gandhiइंदिरा गांधी के निधन के बाद कांग्रेस की कमान राजीव गांधी के हाथ में आई

श्रीमती इंदिरा गांधी के निधन के बाद वंशवाद की पर्याय बन चुकी कांग्रेस की कमान राजीव गांधी के हाथ में आई और वे देश के प्रधानमंत्री बने. उनके प्रधानमंत्री बनते ही तीन हजार से अधिक सिखों का नरसंहार हुआ जिसके गुनाहगार आज भी कांग्रेस पार्टी में बने हुए हैं. राजीव गांधी की सरकार पर घपले-घोटाले और भ्रष्टाचार के भी ढ़ेरों आरोप लगे. बोफोर्स तोप घोटाले में उनका नाम खूब उछला और उन्हें सत्ता से हाथ धोना पड़ा. राजीव गांधी के बाद कांग्रेस की कमान उनकी पत्नी सोनिया गांधी के हाथ में आई. उन्होंने डा. मनमोहन सिंह के हाथ देश की बागडोर सौंपी लेकिन रिमोट अपने हाथ में रखा. मनमोहन सरकार ने दस साल के शासन में भ्रष्टाचार के कीर्तिमान रच दिए.

congressदस साल के शासन में घोटालों की भरमार

कांग्रेस के नेता कांग्रेस को चाहे जितना साफ-सुथरा बताएं और दुहाई दें तथा गांधी जी के नाम का माला जपे लेकिन सच तो यह है कि आज की कांग्रेस गांधी की कांग्रेस नहीं है. आज के कांग्रेस का चेहरा टू-जी स्पेक्ट्रम, कोयला आवंटन, कॉमनवेल्थ गेम्स, हेलीकॉप्टर खरीद और आदर्श हाऊसिंग जैसे घोटालों से रंगा पुता है. उस पर संवैधानिक संस्थाओं के क्षरण और न्यायालय की आंख में धूल झोंकने का संगीन आरोप हैं. माथे पर तुष्टीकरण का दाग है. सच तो यह है कि आज की कांग्रेस में देश व समाज को सहेजने, न्यायिक भावना का आदर करने और संसदीय लोकतंत्र को जीवंत बनाने की क्षमता ही नहीं बची है.

13 मई 1952 को जब संसद की पहली बैठक संपन्न हुई थी तब देश के पहले राष्ट्रपति डा0 राजेंद्र प्रसाद ने कहा था कि संसद जनभावनाओं की अपेक्षा की सर्वोच्च पंचायत है. प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु ने संसदीय लोकतंत्र को जवाबदेही से जोड़ते हुए कहा था कि भारत की सेवा का अर्थ लाखों-करोड़ों पीड़ित जनों की सेवा करना है. लोकसभा के पहले अध्यक्ष गणेश वासुदेव मावलंकर ने जनता और जनप्रतिनिधियों को आगाह करते हुए कहा था कि सच्चे लोकतंत्र के लिए व्यक्ति को केवल संविधान के उपबंधों अथवा विधानमंडल में कार्य संचालन हेतु बनाए गए नियमों और विनियमों के अनुपालन तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए बल्कि विधानमंडल के सदस्यों में लोकतंत्र की सच्ची भावना भी विकसित होनी चाहिए.

क्या आज की कांग्रेस राजेंद्र प्रसाद, पंडित नेहरु और मावलंकर के आदर्शों पर चल रही है? कांग्रेस पार्टी को आत्म परीक्षण करना चाहिए. सच तो यह है कि कांग्रेस के नेता देश तोड़ने वाले नक्सलियों और अलगाववादियों को क्रांतिकारी बता उनकी हौसला आफजाई कर देश को कमजोर कर रहे हैं. दुश्मन देश पाकिस्तान की नेताओं की तारीफ कर रहे हैं. क्या आज की कांग्रेस गांधी और सरदार पटेल की कांग्रेस कही जा सकती है?  

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