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Updated: 18 मई, 2022 06:07 PM
रमेश ठाकुर
रमेश ठाकुर
  @ramesh.thakur.7399
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दिल्ली के मुंडका अग्निकांड (Mundka Fire) के दो दिनों में हुई प्रारंभिक जांच में चौंकाने वाले तथ्य पूर्ववर्ती घटनाओं जैसी ही निकले. जैसी लापरवाही पिछली पांच घटनाओं में हुई. वैसी, ही मानवीय हिमाकत मौजूदा घटना में सामने आई जो प्रशासनिक अफसरों की घोर अनियमितता के चलते हुई. फैक्टरी बिना लाइसेंस के थी और पूरी तरह से मानक विरूद्व. शासन-प्रशासन के इन रवैयो ने दिल्ली को हादसों का शहर बना डाला है. इसलिए जरा संभल कर चलिए? क्योंकि यहां हर गली, हर चौराहे पर मौत के सौदागर घात लगाए बैठे हैं? मुंडका अग्निकांड में कई जिंदगियां इन्हीं की लापरवाही से भेंट चढ़ गईं. नाकामी किसी एक की नहीं, कई गुनहगार इसमें सामूहिक रूप से शामिल हैं. पर, उनमें किसी पर आंच की तपिश नहीं पहुंचेगी, सारे बेदाग बच निकलेंगे. क्योंकि गुनाहगार सिस्टम के हिस्से जो हैं. यही कारण है, एक और भीषण अग्निकांड से दिल्ली को सामना करना पड़ा है. घटना भी ऐसी जिसने पास से देखा, उनकी रूहें तक कांप उठी. घटना के दिन 27 की मौते हुई, अस्पताल में उपचार के दौरान 3 लोगों ने दम तोड़ा. आंकड़ा 30 हो गया है, बढ़ भी सकता है. बहरहाल, हादसे की जीवंत तस्वीरें भयाभय थीं. सामना सबसे पहले सुरक्षाकर्मियों और फायरकर्मियों का हुआ. कमरों में बिखरे पड़े अधजले क्षत-विपक्ष शवों को देखकर दमकलकर्मी भी कुछ क्षणों के लिए सहम गए. शव किसका है, कहां का है, पहचाने भी नहीं जा रहे थे.

Fire, Mundka Fire, Delhi, Death, Safety, Injured, Compensation, Prime Minister, Narendra Modi, Arvind Kejriwalदिल्ली के मुंडका में जो हादसा हुआ है वो दिल को दहलाकर रख देने वाला है

घटना के बहाने मौत जिस अंदाज से तांड़व करती दिखी, उसके सामने किसी का कोई बस नहीं चला. तबाही के आलम को देखकर चारों ओर सिर्फ चीखें और पुकारें थीं. माहौल गमगीन, आंसुओं के सैलाब में बह रहा था. देखने वालों के दिल बैठ रहे थे. घटना बीते शुक्रवार शाम को घटी. शुरुआत में 27 लोग एक साथ अकाल मौत के मुंह में समाए, दर्जनों झुलसे जिन्हें पास के विभिन्न अस्पतालों में उपचार के भेजा गया. वैसे, दिल्ली में पहली मर्तबा ऐसी घटना नहीं हई, इसे रूटीन और नियमित कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.

आदी हो चुके हैं दिल्लीवासी. समय-समय पर ऐसे दर्दनाक अग्निकांड़ होते रहते हैं और शायद आगे भी होंगे? आगे इसलिए होंगे, क्योंकि ऐसे हादसों को रोकने को हमारे पास कोई मुकम्मल इंतजाम नहीं हैं और ना ही उस दिशा में कोई प्रयासरत हैं. दिल्ली के अधिकांश प्रतिष्ठान दशकों से भगवान भरोसे चल रहे हैं. हादसों के निशान कुछ समय तक सरकारी फाइलों में जांच के नाम पर जिंदा रहते हैं, उसके बाद दराजों में धूल फांकते हैं.

हादसों में जिसका अपना कोई जाता है, वह कुछ दिनों हंगामा काटता है, जहां-तहां भागता है, चिल्लाता है आवाज उठाता है, जब थक जाता है तो उन्हें चुप कराने के लिए हमारी हुकूमतों के पास एक बेहतरीन कारगर विधि होती है, उस विधि को हम मुआवजा कहते हैं. मुंडका घटना में भी वही तरीका अपनाया गया है. मृतकों के परिजनों का 10-10 लाख दिए गए हैं और घायलों को पचास हजार मुआवजा दिया गया है.

दरअसल, हुकुमतें के लिए मुआवजा ऐसा मरहम होता है जो हादसों के बड़े से बड़े और गहरे से गहरे घावों को तुरंत भर देता है. मुआवजे की ठंडक पीड़ितों को भी शांत करवा देती हैं. उसके बाद हादसों की लापरवाही पर उठने वाले सवाल भी थम जाते हैं. गौरतलब है, बीते कुछ वर्षों के अंतराम में ही दिल्ली में घटी करीब दर्जनों घटनाओं में सैकड़ों लोगों ने अपनी जानें गंवाई.

घटना के बाद कुछ दिनों तक जांचें होती हैं, कमेटियां बैठती हैं, पकड़ धकड़ होती हैं, आरोपियों पर दिखावे के नाम पर सरकारी चाबुक चलता है और जैसे ही मीडिया का ध्यान हटता है या आम चर्चाओं से केस ओझल होता है जिंदगी फिर नए हादसे के इंतजार में पुराने धर्रे पर लौट जाती है. दिल्ली के मुंडका इलाके में जिस बिल्डिंग में अग्निकांड हुआ, वह पुरी तरह से अवैध बताई गई है. फायर एनओसी नहीं थी, मालिक ने नियम-कानून व मानकों के विपरित काम कर रहा था.

डर उसे इसलिए नहीं था, प्रत्येक विभाग को समय से मंथली चढ़ावा जो पहुंचाया जाता था. पुलिस, एमसीडी, फैक्ट्री, लाइसेंसिग विभाग, फायर ब्रिगेड, विभिन्न एनओसी महकमे व अन्य विभागों के हाथ गर्म किए जाते थे. फिर भी घटना के बाद तीन दिन बाद मालिक को पुलिस ने पकड़ा लिया है. गौर करें तो हादसे का शिकार हुई पांच मंजिला इमारत में आपातकालीन निकासी की भी कोई व्यवस्था नहीं थी, अगर कोई आपातकाल गेट या दरवाजा होता तो निश्चित रूप से कईयों की जान बचती.

ये सब सरकारी व्यवस्था की नाक के नीचे हुआ. इसके अलावा व्यावसायिक गतिविधियों के लिए मानकों के अनुरूप निर्माण भी नहीं हुआ था. कुल मिलाकर खामियां ही खामियां सामने आई हैं. फैक्ट्री या किसी प्रतिष्ठित के लिए सर्वप्रथम फायर ब्रिगेड से एनओसी लेनी होती है जिसमें विभाग अग्निशमन के जरूरी साधन मुहैया करवाता है. ज्यादातर लोग नहीं लेते, उसके बचने का रास्ता मालिक खोज लेते हैं.

दरअसल, एनओसी लेने के बाद मालिकों को सालाना लाखों रुपए विभाग को देना होता है. लेकिन उससे बचने के लिए मालिक मंथली देकर मामले को सेट कर लेते हैं. फायर ब्रिगेड इंस्पेक्टरों का फैक्ट्रियों से अवैध वसूली करने का पूरा धंधा है. घूस लेकर कारखाना मालिक को मरने का लाइसेंस दे देते हैं. दिल्ली में अग्निकांड ज्यादातर गर्मियों में होते हैं. चढ़ती गर्मी में बिजली के उपकरण जवाब दे जाते हैं. फिलहाल, हादसे के बाद राजनीति शुरू हो गई.

कांग्रेस, भाजपा, आप व अन्य दलों में जुबानी लड़ाईयां तेज हो गई हैं. हादसा स्थल पर नेताओं के पहुंचने का सिलसिला चालू है. कड़ी सुरक्षा-व्यवस्था के बीच भी प्रर्यटक स्पॉट बन गया है घटना स्थल. बीते एकाध दिनों से राजधानी का टेम्परेचर 47-48 तक रहा. बढ़ते पारे में शार्ट सर्किट की समस्याएं भी बढ़ती हैं. अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दिल्ली में बीते तीन वर्षों में दमकल विभाग को आग लगने के संबंध में 44576 शिकायतें मिलीं जिनमें ज्यादातर कॉल्स गंभीर थीं.

राजधानी में गगनचुंबी बिल्डिंगों की भरमार है. औघोगिक क्षेत्रों में बिजली चोरी भी बिजली कर्मचारियों की मिलीभगत से खूब होती है. बिल्डिंगों में चोरी छिपे इलेक्टिसिटी का अधिक लोड रहता है जिससे शॉर्ट सर्किट होने का अंदेशा हमेशा रहता है. बिजली कर्मचारी कारखाना मालिकों से घूस लेकर अतिरिक्त इलैक्टिटिसी की व्यवस्था करवाते देते हैं. अगर ये ईमानदारी से अपना कर्तव्य निभाए और सख्तियां-पाबंदियां रखें, तो ऐसे हादसों पर अंकुश लग सकता है. पर, गांधी जी के नोटों के सामने ये सब नतमस्तक हो जाते हैं. 

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