सेंट्रल विस्टा परियोजना पीएम मोदी का बंगला नहीं, देश की होने वाली धरोहर है
महामारी के दौरान निरंतर आलोचना झेल रही सरकार और प्रधानमंत्री मोदी को आज दिल्ली हाईकोर्ट के इस परियोजना पर रोक लगाने वाली याचिका के ख़ारिज होने से कुछ राहत मिली होगी. साथ ही आपदाकाल में जनता के असंतोष की भावना को अपनी तरफ़ मोड़ने के कांग्रेस और अन्य विपक्ष के दलों को निश्चित रूप से निराशा मिली होगी.
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केंद्र सरकार की सेंट्रल विस्टा परियोजना पर सोशल मीडिया से लेकर मेन स्ट्रीम मीडिया पर विपक्ष सरकार की कोरोना महामारी के दौरान लगातार आलोचना और घेराबंदी कर रहा था. महामारी के दौरान निरंतर आलोचना झेल रही सरकार और प्रधानमंत्री मोदी को आज दिल्ली हाईकोर्ट के इस परियोजना पर रोक लगाने वाली याचिका के ख़ारिज होने से कुछ राहत मिली होगी. साथ ही आपदाकाल में जनता के असंतोष की भावना को अपनी तरफ़ मोड़ने के कांग्रेस और अन्य विपक्ष के दलों को निश्चित रूप से निराशा मिली होगी. राहुल गांधी इस प्रोजेक्ट के कोरोना महामारी के दौरान चालू रखने को लेकर केंद्र की सरकार और प्रधानमंत्री मोदी पर लगातार आक्रामक रहे है और अपने ट्वीट के जरिए तीखे हमले भी किए थे. वहीं दूसरी ओर केंद्र सरकार के लिए यह राहत की बात है कि अब उसका नैतिक पक्ष मजबूत रहेगा. क्योंकि हाईकोर्ट द्वारा याचिकाकर्ता पर जुर्माना करना इसके उन विशिष्ट उद्देश्यों से प्रेरित होने की तरफ इंगित करता है जो इस परियोजना में अड़ंगा लगाने के और सरकार को घेरने के उद्देश्य से दायर की गई है.
हालंकि दिल्ली हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता ने कोरोना महामारी को आधार बनाकर रोक लगाने की मांग याचिका में की थी. हाईकोर्ट के द्वारा यह फैसला चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस ज्योति सिंह की बेंच द्वारा किया गया. साथ हाईकोर्ट ने इस मामले में याचिकाकर्ता पर यह टिप्पणी करते हुए एक लाख का जुर्माना भी लगाया कि यह जनहित याचिका परियोजना के निर्माण को रोकने की मांग करने वाली याचिका 'कानून की प्रक्रिया का सरासर दुरुपयोग है और परियोजना को रोकने के लिए एक और प्रयास है.'
दिल्ली हाई कोर्ट ने सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर आई जनहित याचिका को ख़ारिज कर एक नयी बहस का आगाज कर दिया है
केंद्र द्वारा सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट को बताया गया कि डीडीएमए आदेश के अनुसार, कर्फ्यू के दौरान उन निर्माण कार्यों की अनुमति है जहां मजदूर निर्माण स्थल पर ही रहते हैं. गौरतलब है कि सेंट्रल विस्टा एवेन्यू में काम नवंबर 2021 तक पूरा होना है. केंद्र ने आगे कहा, 'परियोजना पर काम करने वाले श्रमिक सोशल डिस्टेंसिंग के साथ अन्य सभी कोविड नियमों का पालन कर रहे है.
केंद्र सरकार की सेंट्रल विस्टा परियोजना पर सोशल मीडिया पर भी महामारी के दौरान कुछ लोगों द्वारा काफी तल्ख टिप्पणी भी की जा रही थी. जिसमें राजनीतिक कारणों के अलावा नैतिक आधार पर आलोचकों द्वारा इसे रोकने की मांग की गई. कुछ लोगों का यह मानना था कि ऐसे समय जब देश महामारी की आपदा से जूझ रहा है इस वक्त केंद्र सरकार द्वारा ऐसे प्रोजेक्ट को जारी रखना फिजूलखर्ची है.
हालांकि जनहित याचिका में मुद्दा मजदूरों के स्वास्थ्य का था. बहस के दौरान केंद्र सरकार की तरफ से याचिकाकर्ता की नीयत पर सवाल उठाते सॉलिसिटर तुषार मेहता का कहना था कि इस प्रोजेक्ट पर काम करने के दौरान सभी कोरोना प्रोटोकॉल्स का पालन किया जा रहा है. वहीं उन्होंने यह भी तर्क दिया कि जनहित बहुत ही सिलेक्टिव है. मेहता ने कहा कि, 'उन्हें दूसरे प्रोजेक्ट पर काम कर रहे मजदूरों की कोई परवाह नहीं है, जो शायद इससे 2 किलोमीटर दूरी पर ही चल रहे हैं.'
फ़िलहाल तात्कालिक रूप से दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा दिए निर्णय से पिछले कई दिनों से केंद्र सरकार निरंतर आलोचना से राहत मिलेगी. साथ इस परियोजना को 2021 की निश्चित समय सीमा के भीतर पूरा होने की उम्मीद भी बढ़ गई है. गौरतलब है कि केंद्र द्वारा प्रस्तावित सेंट्रल विस्टा परियोजना के तहत एक नए संसद भवन और नए आवासीय परिसर का निर्माण किया जाएगा. इसमें प्रधानमंत्री और उप राष्ट्रपति के आवास के साथ कई नए कार्यालय भवन और मंत्रालय के कार्यालयों के लिए केंद्रीय सचिवालय का निर्माण किया जाना है.
सेंट्रल विस्टा परियोजना की सितंबर 2019 में घोषणा की गई थी. 10 दिसंबर 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने परियोजना की आधारशिला रखी थी. इस पुनर्विकास परियोजना में एक नए संसद भवन का निर्माण प्रस्तावित है. इसके अलावा एक केंद्रीय सचिवालय का भी निर्माण किया जाएगा. इसके साथ ही इंडिया गेट से राष्ट्रपति भवन तक तीन किलोमीटर लंबे ‘राजपथ’ में भी परिवर्तन प्रस्तावित है. सेंट्रल विस्टा क्षेत्र में नॉर्थ और साउथ ब्लॉक को संग्रहालय में बदल दिया जाएगा और इनके स्थान पर नए भवनों का निर्माण किया जाएगा.
इसके अलावा इस क्षेत्र में स्थित ‘इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र’ को भी स्थानांतरित करने का प्रस्ताव है. इस क्षेत्र में विभिन्न मंत्रालयों व उनके विभागों के लिए कार्यालयों का निर्माण किया जाएगा. ज़ाहिर है लगभग 20 हजार करोड़ की इस परियोजना की तमाम आलोचनाएं की जाती रही है. पूर्व में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने ट्वीट किया, सेंट्रल विस्टा- जरूरी नहीं. तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता और राज्यसभा सदस्य डेरेक ओ ब्रायन ने इस परियोजना को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर कटाक्ष किया.
उन्होंने कहा, हम विपक्ष के लोग सेंट्रल विस्टा परियोजना की आलोचना क्यों कर रहे हैं? यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण परियोजना है. मोदी के नए कार्यालय के बगल में मोर का एक बगीचा होना चाहिए. कांग्रेस नेता पी चिदंबरम द्वारा भी केंद्रीय विस्टा परियोजना का मुद्दा उठाते हुए ट्वीट्स की एक श्रृंखला में, उन्होंने कहा, 'भाजपा प्रवक्ता स्वास्थ्य ढांचे में सुधार के लिए धन का उपयोग किए बिना विज्ञापनों पर करोड़ों रुपये खर्च करने के साथ दिल्ली सरकार पर आरोप लगाते हैं. ये आलोचना उचित है.
उन्होंने एक अन्य ट्वीट में कहा, 'भाजपा सरकार विस्टा के लिए सिर्फ 20,000 करोड़ रुपये खर्च कर रही है, जिससे प्रधानमंत्री का घर बनेगा.' इसी प्रकार 69 पूर्व नौकरशाहों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम खुला पत्र लिखकर सवाल उठाए हैं. अधिकारियों ने कहा है कि 'ऐसे समय में जब हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश की जरूरत है तो ऐसे परियोजना को चालू रखना धन का अपव्यय है.' फ़िलहाल उम्मीद है कि दिल्ली उच्चन्यालय के इस निर्णय से इस परियोजना पर उठने वाले सवालों के जवाब इसके आलोचकों को मिल गए होंगे.
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