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Updated: 09 सितम्बर, 2018 06:58 PM
विकास त्रिपाठी
विकास त्रिपाठी
  @vikas.tripathi.18488
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20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट के दुरुपयोग की बात करते हुए कई नियमों में बदलाव कर दिए. गिरफ्तारी से पहले प्रारंभिक जांच और अग्रिम जमानत जैसे नियमों के जरिये कानून के दुरुपयोग को रोकने के आदेश दिए. सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के खिलाफ देश में एक तीखी प्रतिक्रिया हुई. एससी/एसटी समाज, इस समाज के तमाम नेता, देश की तमाम विपक्षी पार्टियों ने केंद्र सरकार पर हमला बोल दिया. खुद भाजपा के इस समाज के सांसदों, विधायकों और भाजपा की सहयोगी पार्टियों के नेताओं ने भी अपनी चिंता जाहिर करते हुए सरकार को गंभीर कदम उठाने को कहा. विपक्षी नेताओं का आरोप था कि सरकार ने कोर्ट में सही तरीके से पक्ष नही रखा, क्योंकि केंद्र सरकार एससी/एसटी विरोधी है. चौतरफा हमले से घबराई सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपने आदेश पर फिर से विचार करने को कहा, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय को पलटने के लिये केंद्र सरकार संसद मे बिल लेकर आई जो मानसून सत्र के दौरान दोनों सदन में सभी पार्टियों के सहयोग से पास हो गया.

सवर्ण, दलित, लोकसभा चुनाव 2019, भाजपा, कांग्रेसदेश में 84 लोकसभा सीटें एससी और 47 सीटें एसटी के लिए सुरक्षित हैं.

अब सवाल ये उठता है कि सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से सभी राजनैतिक दल इतने बेचैन क्यों हो गए, जिसमें भाजपा भी शामिल है. सभी दलों ने एकजुटता दिखाते हुए क्यों संसद में बिल के जरिये कोर्ट के इस निर्णय को पलट दिया. दरअसल एससी/एसटी इस देश की जनसंख्या का लगभग 25 प्रतिशत हैं. देश में 84 लोकसभा सीटें एससी और 47 सीटें एसटी के लिए सुरक्षित हैं. यानी लोकसभा में कम से कम 131 सांसद इस वर्ग से ही होंगे. जहां भाजपा ने 2014 में इसमें से 66 सीटें जीती, वहीं कांग्रेस को सिर्फ 12 सीटें मिलीं और बसपा को एक भी सीट नहीं मिली. आइए अब जरा पिछले 4 लोकसभा चुनाव में एससी वोट पैटर्न पर एक नजर डालते हैं.

 वर्ष/पार्टी  1999  2004  2009  2014
 कांग्रेस  30  26  27  19
 भाजपा  14  13  12  24
 बसपा  18  22  20  14

इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि देश में एससी वोटों की लड़ाई इन 3 पार्टियों के बीच है. 2014 में भाजपा ने 24 प्रतिशत वोट हासिल कर सुरक्षित सीटों में 50 प्रतिशत (66 सीटें) जीत ली. वहीं 19 प्रतिशत वोट पाकर कांग्रेस को सिर्फ 12 सीटें मिलीं. 2009 में 27 प्रतिशत वोट पाकर कांग्रेस ने इन 131 सीटों में से 50 सीटों जीती थीं और 12 प्रतिशत वोट पाकर भाजपा ने सिर्फ 26 सीटें जीती थीं. सिर्फ 12 प्रतिशत वोट ज्यादा पाकर भाजपा 2014 में 40 ज्यादा सीटें जीतने में सफल रही. दरअसल सभी पार्टियां जानती हैं कि एससी/एसटी वोटों को साधकर दिल्ली की सत्ता को साधा जा सकता है. कोई भी पार्टी इस वर्ग की नाराजगी मोल लेकर उसकी राजनैतिक कीमत नहीं चुकाना चाहती. इसलिए सभी पार्टियां सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के खिलाफ मुखर रहीं और संसद में बिल पास करने में सहयोग किया.

सवर्ण, दलित, लोकसभा चुनाव 2019, भाजपा, कांग्रेसएससी/एसटी एक्ट पर फैसले के बाद सोशल मीडिया पर भाजपा सरकार के खिलाफ अभियान चलने लगा.

लेकिन देश की दो बड़ी पार्टियों - भाजपा और कांग्रेस - की मुश्किलें यहीं पर खत्म नही हुईं. एससी/एसटी के हितों की रक्षा को लेकर पार्टियों की इस सक्रियता से अब सवर्ण इन दोनों पार्टियों से नाराज हो गए हैं. सोशल मीडिया पर भाजपा सरकार के खिलाफ अभियान चलने लगा. 2019 में भाजपा को हराकर सबक सिखाने को लेकर सवर्ण कमर कसने लगा. सवर्णों के इस अप्रत्याशित अभियान से भाजपा असमंजस में पड़ गई. 28 अगस्त को दिल्ली में भाजपा के मुख्यमंत्रियो की बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने सभी मुख्यमंत्रियों को सवर्ण समाज से बात करके इसे सुलझाने की जिम्मेदारी दी. लेकिन 6 सितंबर को सवर्णों ने भारत बंद का आयोजन किया. उनकी मांग थी कि एससी/एसटी एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को बरकरार रखा जाए. मौके की नजाकत को भांपते हुए कांग्रेस के सुरजेवाला ने कहा कि कांग्रेस के डीएनए में ब्राह्मणों का खून है. कांग्रेस की मंशा भाजपा के खिलाफ सवर्णों की नाराजगी को अपने वोट में तब्दील करने की थी. दरअसल सवर्ण पिछले कई चुनावों से परंपरागत तैर पर भाजपा का वोट बैंक रहे हैं. आइए पिछले 4 चुनावों में सवर्णों के वोटिंग पैटर्न पर एक नजर डालें.

वर्ष/पार्टी 1999 2004 2009 2014
भाजपा 40 35 29 47
कांग्रेस 21 23 26 13

पिछले 4 चुनावों में कांग्रेस का सबसे बेहतर प्रदर्शन 2009 में रहा, जब कांग्रेस ने 206 सीटों जीतीं. इस चुनाव में कांग्रेस को सबसे ज्यादा सवर्णों का वोट मिला और भाजपा-कांग्रेस का अंतर सिर्फ 3 प्रतिशत था. लेकिन 2014 में भाजपा को 47 प्रतिशत सवर्णों का वोट मिला. भाजपा सवर्णों के वोट की अहमियत को समझती है इसलिए वो इनकी नाराजगी को गंभीरता से ले रही है. दिल्ली में 8-9 सितंबर को हो रही राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भी इस मसले को लेकर चर्चा हुई.

अब सवाल उठता है कि नवंबर में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों में अपर कास्ट का वोट किसके पाले में जाएगा. कांग्रेस मौके का फायदा उठाकर इस वोट बैंक को साधने की कोशिश कर रही है. रामजन्म भूमि आंदोलन के पहले सवर्णो का वोट मुख्यतः कांग्रेस को ही जाता था. इसलिए कांग्रेस को उम्मीद है कि वर्तमान में एससी/एसटी एक्ट की वजह से भाजपा से नाराजगी और पुराने इतिहास की बदौलत वो इस वोट बैंक को साध सकती है.

सवर्ण, दलित, लोकसभा चुनाव 2019, भाजपा, कांग्रेसभाजपा अपर कास्ट की तमाम नाराजगी के बावजूद भी पहली पसंद रहेगी.

भाजपा जानती है कि पिछले 6 चुनावों में कांग्रेस को भाजपा की तुलना में सवर्णो का ज्यादा वोट मिला है और भाजपा अपर कास्ट की तमाम नाराजगी के बावजूद भी पहली पसंद रहेगी. जो थोड़ी बहुत नाराजगी होगी भी वो चुनाव के वक्त तक दूर कर ली जाएगी. दूसरे भाजपा ये भी मानकर चल रही है कि अगर मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ चुनाव में कांग्रेस बसपा से गठबंधन करती है तो सवर्ण अपने आप भाजपा को ही वोट देगा. 2019 लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस की बसपा से नजदीकी के चलते फायदा भाजपा को ही होगा. यही नहीं भाजपा को ये भी उम्मीद है कि अगर वो सवर्णों के एससी/एसटी एक्ट के विरोध के बावजूद भी बिल पर कायम रहती है तो वो एससी-एसटी समाज को भी ये संदेश देने में सफल रहेगी कि पार्टी ने उनके हितों की रक्षा के लिए अपने परंपरागत वोट बैंक को भी दांव पर लगा दिया था. जातिगत वोट बैंक की इस रस्साकशी में कौन बाजी मारेगा ये तो वक्त ही बतायेगा, लेकिन जिस तरह से पार्टियां खुलेआम जातिगत राजनीति कर रही हैं वो सोचने का विषय है.

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लेखक

विकास त्रिपाठी विकास त्रिपाठी @vikas.tripathi.18488

लेखक आजतक में पत्रकार हैं

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