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Updated: 08 सितम्बर, 2018 11:51 AM
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धर्म की राजनीति जैसे तोहमत से जूझती बीजेपी फिलहाल उससे बड़े धर्मसंकट में फंस गयी है. कभी ब्राह्मण-बनिया पार्टी के तौर पर मशहूर रही बीजेपी को हर तबके के वोट मिलने जरूर लगे हैं, लेकिन एससी-एसटी एक्ट को लेकर सवर्ण समाज उससे हद से ज्यादा नाराज नजर आ रहा है. सवर्ण समाज को मनाने के साथ ही बाकी तबकों को भी जोड़े रखना बीजेपी के लिए टेढ़ी खीर होने लगा है.

मुश्किल ये है कि SC/ST एक्ट के खिलाफ 'भारत बंद' का सबसे ज्यादा असर जिन इलाकों में देखा गया वहां छह महीने के भीतर विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं - मध्यप्रदेश और राजस्थान.

sawarna senaसवर्ण सेना ने तो पूरा बिहार बंद करा दिया

सवर्ण तबके में गहरी नाराजगी की वजह है एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा उठाया गया कदम. ये कानून अब फिर से पुराने फॉर्म में लौट आया है. सवर्णों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश कानून का फर्जी इस्तेमाल रोकना था, लेकिन वोट बैंक के चक्कर में मोदी सरकार ने उसे पलट दिया है.

वैसे सुप्रीम कोर्ट का आदेश पलटने वाले मोदी सरकार के फैसले को फिर से चुनौती दी गयी है - और सरकार को नोटिस भेजकर अदालत ने छह हफ्ते में जवाब मांगा है.

एक तरफ बीजेपी सवर्णों की नाराजगी की काट ढूंढने में जुटी है और दूसरी तरफ लोकसभा स्पीकर के बयान से एक नया बखेड़ा खड़ा हो सकता है. इस राजनीतिक पेंच की गुत्थी सुलझाने के लिए सुमित्रा महाजन ने एक मनोवैज्ञानिक मिसाल दे डाली है - और ये समझना मुश्किल हो रहा है कि वो किसके पक्ष में है?

सुप्रीम कोर्ट सब देख रहा है

एससी/एसटी कानून का मामला फिर से सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. सर्वोच्च अदालत के आदेश की काट में केंद्र सरकार ने जो विधेयक पास किया है उसी पर नोटिस देकर सुप्रीम कोर्ट ने छह हफ्ते में जवाब तलब किया है.

मोदी सरकार के कदम को चुनौती देते हुए वकील पृथ्वी राज चौहान और प्रिया शर्मा की ओर से दायर याचिका में संशोधित कानून को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है. एससी-एसटी संशोधन कानून 2018 को लोकसभा और राज्यसभा ने पास कर दिया था - और फिर उसे अधिसूचित भी कर दिया गया है.

वैसे चॉकलेट किससे छीना जाना है

लोक सभा स्पीकर सुमित्रा महाजन का सुझाव है कि सभी राजनीतिक दलों को मिलकर इस मामले पर विचार-विमर्श करना चाहिये. सुमित्रा महाजन ने इस मामले में राजनीति न करने की सलाह देते हुए याद दिलायी है कि कानून का मूल स्वरूप बरकरार रखने के लिये संसद में सभी पार्टियों ने मतदान किया था.

सुमित्रा महाजन बीजेपी की पृष्ठभूमि से आयी हैं और इंदौर से पार्टी के टिकट पर लोक सभा की सांसद चुनी गयी हैं. स्पीकर का पद तटस्थ माना जाता है लेकिन विरोधी सत्ताधारी पार्टी के साथ पक्षपात के आरोप लगाते रहते हैं. एससी-एसटी एक्ट को लेकर सुमित्रा महाजन ने जो ताजा बयान दिया है वो पूरी तरह बीजेपी के फेवर में है, लेकिन ये समझना मुश्किल हो रहा है कि वो किसके पक्ष में है - सवर्णों के या एससी-एसटी समुदाय के?

sumitra mahajanबच्चे से 'चॉकलेट' लेने की तरकीब!

एक कार्यक्रम में लोकसभा स्पीकर ने कहा कि इस मुद्दे पर अपनी बात वो एक छोटी सी मनोवैज्ञानिक कहानी के जरिये समझाना चाहेंगी. सुमित्रा महाजन ने कहा, "मान लीजिये कि अगर मैंने अपने बेटे के हाथ में बड़ी चॉकलेट दे दी और मुझे बाद में लगा कि एक बार में इतनी बड़ी चॉकलेट खाना उसके लिए अच्छा नहीं होगा. अब आप बच्चे के हाथ से वह चॉकलेट जबर्दस्ती लेना चाहें, तो आप इसे नहीं ले सकते... ऐसा किये जाने पर वह गुस्सा करेगा और रोएगा... मगर दो-तीन समझदार लोग बच्चे को समझा-बुझाकर उससे चॉकलेट ले सकते हैं."

सवाल ये उठता है कि बेटा कौन है? और चॉकलेट किससे छीनी जानी है?

साथ ही, सुमित्रा महाजन चेतावनी भी दे रही हैं, "किसी व्यक्ति को दी हुई चीज अगर कोई तुरंत छीनना चाहे, तो विस्फोट हो सकता है." सुमित्रा महाजन कहती हैं, "ये सामाजिक स्थिति ठीक नहीं है कि पहले एक तबके पर अन्याय किया गया था, तो इसकी बराबरी करने के लिये अन्य तबके पर भी अन्याय किया जाये."

सुमित्रा महाजन जहां पुचकार कर समझाने बुझाने की पक्षधर हैं, वहीं यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या सरेआम धमका रहे हैं - "अगर किसी दलित ने एससी-एसटी एक्ट के जरिये पिछड़े वर्ग के लोगों को परेशान किया तो वो भी बचेगा नहीं."

बहुजन समाज को रिझाने नया प्लान

सवर्णों की नाराजगी के बावजूद, बीजेपी अब बहुजन समाज को रिझाने में जुट गयी है. वैसे भी इस मामले में बड़ा खतरा तो मायावती के कारण ही है. बीजेपी ने इसके लिए दो टीमें बनाई हैं. पहली टीम में डॉ. लालजी प्रसाद निर्मल, कांता कर्दम और विद्या सागर सोनकर हैं. दूसरी टीम में अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष बृजलाल, राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग की सदस्य मंजू दिलेर और राज्यसभा सांसद राम सकल शामिल किये गये हैं.

बीजेपी के ये नेता छोटे-छोटे सम्मेलन कर लोगों को बताएंगे कि बीजेपी शासन में इन समुदायों के लोग महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त हुए हैं. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद तो इस मामले में ट्रंप कार्ड ही हैं.

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