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Updated: 09 जून, 2022 05:12 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) तो नुपुर शर्मा के मामले ने संघ, बीजेपी और मोदी सरकार पर हमले का अच्छा मौका दे दिया है - और वो उसका फायदा उठाने की कोशिश भी कर रहे हैं. ये अलग मसला है कि राहुल गांधी ऐसे गंभीर मुद्दे पर बीजेपी को किस हद तक घेर पाते हैं, जिस पर वो खुद कठघरे में खड़ी हो गयी है.

अब इससे गंभीर बात क्या होगी कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को सफाई पेश करने के साथ कार्रवाई को लेकर आश्वस्त करना पड़ रहा है. ईरान के विदेश मंत्री हुसैन आमिर अब्दुल्लाहियन के भारत दौरे के दरम्यान भी ये मामला उठा है - और एक बयान जारी करके ईरान ने बताया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने जोर देकर कहा है कि ऐसा करने वालों से इतनी सख्ती से निपटा जाएगा जो दूसरों के लिए सबक होगा.

नुपुर शर्मा और नवीन जिंदल को कतर के राजदूत के फ्रिंज एलिमेंट बताये जाने पर राहुल गांधी का कहना है कि ये सत्ताधारी बीजेपी की जड़ से जुड़ा हुआ है. राहुल गांधी ने ट्विटर पर मिलती जुलती हेडलाइन वाली कुछ अखबारों की खबरें भी पोस्ट की है.

कांग्रेस का ये भी इल्जाम है कि भारतीय दूतावास का इस्तेमाल भारतीय जनता पार्टी के लिए किया जाने लगा है. कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा का सवाल है कि आखिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मुद्दे पर चुप्पी क्यों साधे हुए हैं?

ये सब ऐसे वक्त हो रहा है जब प्रवर्तन निदेशालय (ED Deposition) ने राहुल गांधी को मनी लॉन्ड्रिंग केस में 13 जून को पूछताछ के लिए बुला रखा है. ईडी की तरफ से पहले 2 जून को पूछताछ के लिए नोटिस दिया गया था, लेकिन देश से बाहर होने की वजह से राहुल गांधी ने नयी तारीख की मांग की थी, जिसे मंजूर कर लिया गया. ऐसे ही ईडी ने सोनिया गांधी को 8 जून को ही पेश होने के लिए नोटिस दे रखा है, लेकिन कोविड से संक्रमित होने की वजह से उनकी तरफ से तीन हफ्ते की मोहलत मांगी गयी है.

दिसंबर, 2015 में भी गांधी परिवार को ऐसे ही मुश्किल वक्त से गुजरना पड़ा था, जब नेशनल हेराल्ड केस में जमानत के लिए अदालत में हाजिरी लगानी पड़ी थी. तब तो कांग्रेस नेताओं की बयानबाजी से ज्यादा कुछ नहीं दिखा, लेकिन इस बार व्यापक विरोध प्रदर्शन (Congress Show of Strength) की तैयारी चल रही है - क्या कांग्रेस के शक्ति प्रदर्शन का कोई खास असर हो सकता है? क्या कांग्रेस इसका गुजरात और हिमाचल प्रदेश चुनावों में कुछ फायदा उठा सकती है?

राहुल गांधी की ED के सामने पेशी

13 जून को कांग्रेस के सभी सांसदों को दिल्ली में पार्टी मुख्यालय अकबर रोड पहुंचने का फरमान मिला है. सभी से आशय लोक सभा और राज्य सभा दोनों सदनों के सदस्यों से है. साथ ही, सीनियर नेताओं को भी कांग्रेस दफ्तर पहुंचने को कहा गया है.

rahul gandhi, robert vadra, priyanka gandhiराहुल गांधी की पेशी की तैयारी सिर्फ बचाव के मकसद से है या कांग्रेस के लिए राजनीतिक फायदे की भी कोई उम्मीद है?

समझा जाता है कि कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी के समर्थन में पार्टी मुख्यालय से एपीजे अब्दुल कलाम मार्ग पर प्रवर्तन निदेशालय के दफ्तर तक मार्च निकालने की तैयारी चल रही है. सूत्रों के हवाले से न्यूज एजेंसी पीटीई ने खबर दी है कि कांग्रेस के प्रदेश इकाइयों को भी जगह जगह मुहिम के रूप में विरोध प्रदर्शन की तैयारी करने को कहा गया है.

कांग्रेस का ये विरोध प्रदर्शन रामलीला मैदान और जंतर मंतर की भारत बचाओ या लोकतंत्र बचाओ रैली जैसा भले न हो, लेकिन मिलता जुलता ही रहने वाला लगता है. पी. चिदंबरम और डीके शिवकुमार की गिरफ्तारी के दौरान भी कांग्रेस कार्यकर्ताओं को नारेबाजी के साथ प्रदर्शन करते देखा गया है, लेकिन वैसा ही लगा जैसे टीवी पर आने के लिए लोग किसी भी मुद्दे पर जगह जगह हवन-पूजन का कार्यक्रम किया करते हैं.

अभी तक तो कांग्रेस के एक सांसद के मार्च में शामिल न होने की संभावना लग रही है, वो हैं - कांग्रेस अध्यक्ष और यूपी के रायबरेली से लोक सभा सांसद सोनिया गांधी. बेटे की ही तरह पूछताछ के लिए पेश तो सोनिया गांधी को भी होना है, लेकिन कोविड संक्रमण के चलते वो तीन हफ्ते की मोहलत ले चुकी हैं.

सोनिया गांधी को भी पेश होना है: राहुल गांधी और सोनिया गांधी से पहले ही ईडी की जांच के तहत कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़्गे और पवन बंसल से पूछताछ हो चुकी है.

राहुल गांधी और सोनिया गांधी को मिले नोटिस पर कांग्रेस की तरफ से पहले ही कहा जा चुका है कि छिपाने के लिए कुछ तो है नहीं, फिर पेशी और पूछताछ से डर किस बात का. कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा का कहना रहा, 'हम कानून को मानने वाले हैं... हम नियमों का पालन करते हैं... हमारे पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है.'

बताते हैं कि लेटेस्‍ट टेस्‍ट रिपोर्ट से मालूम हुआ है कि सोनिया गांधी अब भी कोविड पॉजिटिव हैं... रिपीट टेस्ट तय समय पर फिर से होना है. डॉक्टरों ने सोनिया गांधी को आराम करने की सलाह दी है.

कांग्रेस के शक्ति प्रदर्शन से क्या फायदा?

2019 के आम चुनाव से पहले प्रवर्तन निदेशालय ने ठीक ऐसे ही रॉबर्ट वाड्रा को भी एक केस के सिलसिले में पूछताछ के लिए बुलाया था - और अपना पूरा सपोर्ट जताने के लिए कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा पति को ईडी दफ्तर तक छोड़ने भी गयी थीं. जाहिर है कांग्रेस सांसदों के साथ साथ सीनियर नेता भी राहुल गांधी को छोड़ने ईडी दफ्तर जाते हैं तो प्रियंका गांधी वाड्रा भी फिर से जाएंगी ही.

कार्यकर्ताओं में एक मैसेज तो भेजा ही जा सकता है: बहुत ज्यादा फायदा हो न हो, कांग्रेस कार्यकर्ताओं तक एक मैसेज तो पहुंचाया ही जा सकता है. कांग्रेस से लोगों के मोहभंग हो जाने की वजह से लगता नहीं कि कोई असर पड़ेगा, लेकिन अगर कांग्रेस कार्यकर्ता संघ के प्रचारकों की तरह लोगों से मिल कर अपनी बात समझाने की कोशिश करते हैं तो थोड़ा बहुत असर तो हो ही सकता है.

आम लोगों तक कांग्रेस का मैसेज पहुंचाने के लिए ही राज्यों में पार्टी इकाइयों को मुहिम चला कर विरोध प्रदर्शन की हिदायत दी गयी है. ऐसे में कांग्रेस कार्यकर्ताओं की तरफ से लोगों को ये समझाने की कोशिश तो हो ही सकती है कि राजनीतिक वजहों से गांधी परिवार को परेशान किया जा रहा है.

सहानुभूति बटोरी जा सकती है क्या: अगर कांग्रेस लोगों के सामने राहुल गांधी को एक 'बेकसूर और पीड़ित' के तौर पर नहीं पेश कर पायी तो बाकी कुछ भी करने से कोई भी फायदा नहीं होने वाला है. जब तक गांधी परिवार कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ साथ आम लोगों के बीच एनसीपी नेता शरद पवार जैसा मैसेज नहीं भेज पाता, फायदा तो होने से रहा.

देश के मौजूदा राजनीतिक माहौल में संघ और बीजेपी के प्रभाव में लोग ये समझने को तैयार ही नहीं हैं कि गांधी परिवार के साथ राजनीतिक वजहों से कोई बुरा सलूक हो रहा है. बल्कि वे समझ रहे हैं कि सरकार चोरों को पकड़ कर सजा दिला रही है. चाहे वो बोफोर्स का मामला हो या फिर राफेल का - कांग्रेस ऐसे ही बचाव नहीं कर पाती है.

विधानसभा चुनावों में कोई फायदा मिलेगा क्या: एक साल के भीतर गुजरात, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में विधानसभा के लिए चुनाव होने वाले हैं. फिलहाल तीनों ही राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं. गुजरात में तो कांग्रेस को सत्ता से बाहर हुए अरसा हो गया, लेकिन हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में पिछले चुनावों में हार के चलते ऐसा हुआ.

यूपी चुनाव के समय से ही राहुल गांधी गुजरात चुनाव की तैयारी कर रहे हैं. नजर हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक पर भी टिकी है. उदयपुर में हुए कांग्रेस के चिंतन शिविर में तय हुए कुछ कार्यक्रम भी बनाये गये हैं, लेकिन जब ऐसे ही कानूनी पचड़ों से जूझना पड़े असर तो प्रतिकूल ही पड़ता है.

कांग्रेस प्रवक्ता का दांव उलटा न पड़ जाये: कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा का अमित शाह की गिरफ्तारी की याद दिलाने का भी कोई असर हो सकता है क्या? हाल ही में पवन खेड़ा का कहना था, 'हम बीजेपी की तरह नहीं हैं... हमें याद है जब अमित शाह 2002 से 2013 के दौरान भागते फिर रहे थे...'

ये याद दिला कर कांग्रेस प्रवक्ता ने कहीं बीजेपी समर्थकों के बीच ये मैसेज तो नहीं छोड़ दिया है कि कैसे कांग्रेस सरकार में अमित शाह को परेशान किया जाता रहा? पवन खेड़ा ने 2002 का जिक्र किया है. अपनी तरफ से वो गुजरात दंगों की याद दिलाने की कोशिश कर रहे हैं - जबकि सक्षम एजेंसियों और न्यायालय से मोदी-शाह को पहले ही क्लीन चिट दी जा चुकी है.

पवन खेड़ा ने 11 साल के पीरियड का उल्लेख किया है, जिसमें 2005 का सोराबुद्दीन एनकाउंटर केस भी शामिल है और अमित शाह उसमें भी बरी हो चुके हैं - कहीं कांग्रेस प्रवक्ता लोगों को गांधी परिवार के खिलाफ ही तो नहीं भड़का रहे हैं? अनजाने में ही सही! हो सकता है, ये एरर ऑफ जजमेंट का ही मामला हो.

कोई प्रोफेशनल एजेंसी ज्यादा कारगर हो सकती है: जो काम कांग्रेस अपने स्तर पर सांसदों और पार्टी पदाधिकारियों के भरोसे करने की सोच रही है, अगर कोई प्रोफेशनल एजेंसी हायर कर लेती तो लोगों में बेहतर संदेश भेजा जा सकता है.

करने को तो प्रशांत किशोर भी ये काम अच्छे से कर सकते हैं. उनके पास अच्छी टीम भी है. आखिर चुनाव कैंपेन में भी तो प्रशांत किशोर की टीम ऐसे ही काम करती है. दो कम या दो ज्यादा.

और ऐसा भी नहीं है कि कांग्रेस और प्रशांत किशोर की बातचीत हमेशा के लिए खत्म हो गयी है. अपने इंटरव्यू में प्रशांत किशोर कहते भी हैं, कि वो कौन होते हैं... जब भी बुलाया जाएगा... मिलने तो जाना ही पड़ेगा... 'मैं मना कैसे कर सकता हूं?' बात भी सही है, किसी क्लाइंट के साथ कोई ऐसा करने की सोच भी कैसे सकता है?

हां, चाहे ये काम प्रशांत किशोर करें या फिर कोई और एजेंसी - काम खर्चीला तो है. चुनाव कैंपेन जैसा ही खर्चीला हो सकता है, लेकिन गांधी परिवार के लिए कांग्रेस इतना तो वहन कर ही सकती है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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