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Updated: 27 फरवरी, 2022 11:02 AM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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यूपी चुनाव में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की एंट्री 2021 के पश्चिम बंगाल चुनाव जैसी ही है. तराजू पर तौलें तो कुछ ज्यादा या कम भी हो सकता है. पश्चिम बंगाल की ही तरह उत्तर प्रदेश में भी राहुल गांधी आधा चुनाव बीत जाने के बाद कांग्रेस के कैंपेन का हिस्सा बने हैं.

बाकी राज्यों से तुलना की जाये तो पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में राहुल गांधी ने कम से कम ढाई दर्जन रैलियां की हैं. चुनाव प्रचार के लिए यूपी में राहुल गांधी ने अमेठी को ही चुना और लोगों से पारिवारिक फीलिंग का एहसास कराते हुए हमले का पसंदीदा निशाना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही बनाया.

जैसे पिछले साल के विधानसभा चुनावों में राहुल गांधी का ज्यादा फोकस केरल पर रहा, इस बार पंजाब में दिखा. शायद इसलिए भी क्योंकि प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ मिल कर भाई-बहन की ज्वाइंट लीडरशिप में प्रयोग भी खूब हुए हैं. कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाने के बाद नवजोत सिंह की पीठ पर हाथ रखा और फिर दलित नेता चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बना दिया. जब सिद्धू ज्यादा उछलने लगे तो चुप करा दिये और चन्नी को कांग्रेस का सीएम चेहरा घोषित कर दिये.

हो सकता है, राहुल गांधी ने यूपी में प्रियंका गांधी को ज्यादा स्पेस देने की कोशिश की हो. ये भी हो सकता है प्रियंका गांधी ने खुद ज्यादा स्पेस ले लिया हो. प्रियंका गांधी यूपी की प्रभारी कांग्रेस महासचिव हैं और चुनावों में 'लड़की हूं... लड़ सकती हूं' स्लोगन के साथ काफी एक्सपेरिमेंट भी किये हैं.

एक बड़ी वजह ये भी हो सकती है कि राहुल गांधी को यूपी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी घेर लेते हैं. केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो अलग ही हैं. प्रधानमंत्री मोदी तो अखिलेश यादव और जयंत चौधरी की जोड़ी के बहाने भी राहुल गांधी को पिछले चुनाव की याद दिला कर निशाने पर लेते रहे हैं.

प्रियंका गांधी वाड्रा को मोर्चे पर भेज देने से कांग्रेस को फायदा ये होता रहा है कि योगी आदित्यनाथ भी सीधे सीधे टकराने से बचते हैं. वैसे भी सोनभद्र के उभ्भा और हाथरस से लेकर लखीमपुर खीरी तक जिस तरीके से प्रियंका गांधी वाड्रा ने योगी के अफसरों को छकाया है, बचाव ही बेहतर लगता होगा.

स्मृति ईरानी भी प्रियंका गांधी वाड्रा से सीधे सीधे दो-दो हाथ करने से बचने की कोशिश करती हैं. अगर प्रियंका गांधी के बयान या किसी एक्शन पर रिएक्ट करना होता है तब भी राहुल गांधी ही आसान शिकार बन जाते हैं - 'घर पर लड़का है, पर लड़ नहीं सकता!'

यूपी चुनाव में हाजिरी लगाने के बाद राहुल गांधी ने सीधे गुजरात का रुख किया है. साल के आखिर में गुजरात (Gujarat Election 2022) और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं - ये स्वाभाविक भी है कि राहुल गांधी गुजरात पर अभी से फोकस करें.

2017 का गुजरात चुनाव राहुल गांधी के लिए काफी अच्छा भी रहा. ये चुनाव के दौरान का ही फीडबैक रहा जो राहुल गांधी ने नतीजे आने से पहले ही ताजपोशी की मंजूरी दे दी - और सोनिया गांधी से कांग्रेस अध्यक्ष का कार्यभार थाम लिया था.

rahul gandhiराहुल गांधी ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को खूब समझाया, लेकिन वे आखिर तक नहीं समझ पाये कि अगर गुजरात कांग्रेस के लिए कुरुक्षेत्र है तो वो किस भूमिका में होंगे - कृष्ण या अर्जुन की भूमिका में?

चुनावी तैयारियों को गति देने के लिए राहुल गांधी गुजरात के द्वारका में कांग्रेस के चिंतन शिविर पहुंचे तो कार्यकर्ताओं के बीच मोटिवेशनल स्पीकर नजर आये - ये संकेत भी दिया कि चुनावों में वो लोहे से लोहा काटने वाला फॉर्मूला अपनाने वाले हैं - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Modi and Shah) को उनके अपने इलाके में घेरने के लिए किसी और की नहीं बल्कि महात्मा गांधी और उनके हथियार सच को ही हथियार बनाने वाले हैं.

कांग्रेस के चिंतन शिविर के लिए द्वारका को क्यों चुना गया राहुल गांधी के भाषण से स्पष्ट हो जाता है - क्योंकि सारा ताना-बाना कृष्ण, अर्जुन और कौरवों की लड़ाई यानी महाभारत को लेकर ही बुना गया है.

1. "कांग्रेस ही असली गुजराती है"

यूपी चुनाव के लिए वोटिंग से ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक इंटरव्यू में 'गुजरात के दो गधों' का जोर देकर जिक्र किया था. असल में प्रधानमंत्री मोदी 2017 के चुनावों में अखिलेश यादव और राहुल गांधी के बयानों की बात कर रहे थे - और याद दिला रहे थे कि हश्र कितना बुरा हुआ. वैसे मोदी ऐसा बताकर कर ये भविष्यवाणी करने की कोशिश कर रहे थे कि अखिलेश यादव और जयंत चौधरी का भी वैसा ही हाल होने वाला है.

गुजरात में ये नौबत न आये और राहुल गांधी को वैसे ही बाहरी बोल कर टारगेट किया जाने लगे जैसे मोदी-शाह को बिहार, बंगाल या राजनीतिक विरोधी यूपी में कर चुके हैं, राहुल गांधी ने खुद को ही असली गुजराती साबित करने वाली बहस शुरू कर दी है.

राहुल गांधी समझाते हैं कि कांग्रेस पार्टी गुजरात से शुरू हुई और फिर पूरे देश में खड़ी हो गयी, लेकन जो विचारधारा थी और जिसने दिशा तय की वो एक गुजराती था.

फिर समझाते हैं. कांग्रेस में तब नेहरू थे, सरदार पटेल थे, सुभाष चंद्र बोस थे. और भी बहुत सारे लोग थे - लेकिन जिसे रणनीतिक दिशा कहते हैं, वो तो महात्मा गांधी ने ही दी थी.

और फिर राहुल गांधी नेहरू और नेल्सन मंडेला का नाम लेकर गांधीगिरी शुरू कर देते हैं. नेहरू की एक चिट्ठी का हवाला देते हैं - और समझाते हैं कि सच के साथ बने रहना कितना महत्वपूर्ण होता है, "इस मामले पर मेरी गांधीजी के साथ बातचीत हुई, लेकिन मेरा मन कह रहा है कि इस मामले में गांधीजी गलत बोल रहे हैं, मैं सही बोल रहा हूं - मगर, मैं जानता हूं कि वो सही हैं, मैं गलत हूं."

किस्सा सुनाते हैं. "मंडेला जी ने हमें बताया कि मैं 26 साल जेल में रहा, 26 साल वो मुझे तंग करते थे. मैंने कहा कि आप 26 साल जेल में अकेले रहे... आपको शक्ति कहां से मिली?"

मंडेला के जरिये राहुल गांधी समझाते हैं कि गांधीगिरी कहते किसे हैं - पूछे जाने पर मंडेला ने राहुल गांधी से कहा था, "मैं अकेला नहीं था... मेरे साथ जेल में महात्मा गांधी जी बैठे थे."

2. "ये गुजरात नहीं कुरुक्षेत्र है"

राहुल गांधी कांग्रेस कार्यकर्ताओं को महाभारत का किस्सा सुनाते हैं. शुरू से. श्रीकृष्ण अर्जुन संवाद से. कृष्ण कैसे अर्जुन को ऑप्शन देते हैं और पहले ही अलर्ट कर देते हैं कि सच के साथ लड़ना है या झूठ के सहारे - खुद तय कर लो.

सब कुछ सुना हुआ होता है. फिर भी राहुल गांधी के हंसते मुस्कुराते सुनाने पर खूब ताली बजती है. कार्यकर्ता तालियों के बीच राहुल गांधी के पक्ष में नारेबाजी करते हैं.

कहते हैं, गुजरात हमें सिखाता है कि एक तरफ सत्ता हो, सीबीआई हो, ईडी हो... कौरव हों, कुछ फर्क नहीं पड़ता. सच्चाई बड़ी साधारण होती है.

तभी लगता है राहुल गांधी ऑडिएंस से कनेक्ट हो जाते हैं. मजे लेकर सुनाने लगते हैं - सीबीआई, ईडी, पुलिस, गुंडे, हर रोज कोई न कोई कपड़ा! गुजरात हमें सिखाता है... दोहराते हैं, एक तरफ सत्ता... फर्क नहीं पड़ता... और फिर ठहाकों के बीच बरबस ही बता डालते हैं - "सब माया है!"

सच में. श्रोता भाव विभोर हो जाते हैं. ब्रह्म सत्यम् जगत मिथ्या. सत्यम् शरणं गच्छामि. अचानक राहुल गांधी राजनीतिक को आध्यात्मिक बना देते हैं.

किसी मोटिवेशनल स्पीकर की तरह राहुल गांधी समझाते हैं. जैसे कह रहे हों, उठ जाग मुसाफिर भोर भयो... रणक्षेत्र में उतरना है... देर नहीं, बस अभी से.

3. "सबका कन्फ्यूजन क्लियर करना है"

कांग्रेस कार्यकर्ताओं को राहुल गांधी जगाने की कोशिश करते हैं. "गुजरात की जनता आपकी ओर देख रही है, आप सोच रहे हैं कि आप बीजेपी से तंग हो, लेकिन जितना आपका नुकसान किया है, उससे 10 गुना ज्यादा गुजरात की जनता का किया है."

पाइथागोरस के प्रमेय की तरह, ये भी समझाते हैं कि सिद्ध करने से पहले मानना होगा - और कहते हैं, "ये चुनाव आप जीत गये हो, बस अब इस बात को स्वीकार करना है."

ये बात अलग है कि सुनने वाला फील-गुड महसूस कर पाता है या नहीं. या फिर गुजरे जमाने की बीजेपी के शाइनिंग इंडिया स्लोगन का हाल हो जाता है.

यकीन मानिये. कुछ ऐसे ही अंदाज में राहुल गांधी का भाषण आगे बढ़ता है, "समस्या ये है कि जब गुजरात की जनता कांग्रेस की तरफ देखती है तो वो जान नहीं पा रही कि कांग्रेस क्या करना चाहती है... कैसे करना चाहती है? उसको कौन लोग करेंगे?"

अपनी ही तरफ से असली वजह भी बता देते हैं - "क्योंकि मीडिया ने कंफ्यूजन पैदा किया हुआ है."

एक एक बात समझाते हैं. "गुजरात की जनता कांग्रेस पार्टी को जिताना चाहती है... मगर, मीडिया ने कंफ्यूजन पैदा किया हुआ है... सारा मीडिया बीजेपी के बारे में बोलता है... हमारी बुराई करता है."

अब अगर सबको एक ही सब्जेक्ट पढ़ाया जाएगा तो कंफ्यूजन तो होगा ही. पाइथागोरस के प्रमेय की कल्पना और शेखचिल्ली के सपने का फर्क समझना भी काफी मुश्किल होता है.

फिर करना क्या है? निश्चित तौर पर सबके मन में यही सवाल होता है - और ये राहुल गांधी भी समझते हैं, लगे हाथ बता भी देते हैं, "तो हमको वो कन्फ्यूजन क्लीयर करना है."

राहुल गांधी के भाषण में एक तारीख का भी जिक्र हुआ है. ये तारीख इसी साल की है. कहते हैं, "लड़ाई खत्म होने से पहले हार कभी नहीं माननी चाहिये. 10 दिसंबर से पहले कोई भी कांग्रेस का नेता या कार्यकर्ता हार नहीं मानेगा."

क्या पांच साल बाद इतिहास दोहराने वाला भी है? मतलब, राहुल गांधी फिर से ताजपोशी के लिए तैयार हो चुके हैं क्या?

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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