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Updated: 26 अगस्त, 2021 04:21 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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अमेठी की ही तरह राहुल गांधी (Rahul Gandhi) शुरुआती नाराजगी के बाद ट्विटर पर भी लौट आये हैं. राहुल गांधी अकाउंट अनलॉक होने के बावजूद कोई ट्वीट नहीं कर रहे थे तो तरह तरह की बातें भी होने लगी थीं - विशेष रूप से तब जब 20 अगस्त को अपने पिता राजीव गांधी के बर्थडे पर भी राहुल गांधी ने कोई ट्वीट नहीं किये जबकि बीते बरसों में पुण्यतिथि पर भी ऐसा करते रहे हैं.

6 अगस्त के बाद सीधे 24 अगस्त को जब 8.58 PM पर राहुल गांधी का ट्वीट आया तो घंटे भर बाद संबित पात्रा ने भी ट्विटर पर ही एक पोस्ट किया - "राहुल ने “Twitter” से माफ़ी माँगा।" फिर क्या था, लोग संबित पात्रा को ही समझाने लगे 'माफी मांगा' नहीं 'माफी मांगी' होता है. 20 अगस्त को एक ट्विटर अकाउंट से पोस्ट किया गया कि राहुल गांधी चाहते हैं कि ट्विटर के सीईओ जैक माफी मांगे तभी वो अपना हैंडल इस्तेमाल करेंगे.

बहरहाल, ट्विटर का इस्तेमाल शुरू करने के बाद राहुल गांधी ने सीधे केंद्र की मोदी सरकार को निशाना बनाया है. असल में, मोदी सरकार ने 6 लाख करोड़ रुपये की राष्ट्रीय मोनेटाइजेशन योजना की घोषणा की है, जिसके तहत रेल, सड़क और बिजली क्षेत्र में मोनेटाइजेशन किया जाएगा. राहुल गांधी का इल्जाम है कि देश ने 70 साल में जो पूंजी कमाई थी, बीजेपी सरकार उसे बेचने पर तुली हुई है. अब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ साथ राहुल गांधी की जानी सियासी दुश्मन स्मृति ईरानी भी पूछने लगी हैं कि क्या राहुल गांधी को मालूम है कि मोनेटाइजेशन क्या होता है?

दिल्ली की रेप पीड़ित बच्ची के परिवार को इंसाफ देने की लड़ाई को लेकर राहुल गांधी की तरफ से नये सिरे से कुछ नहीं कहा गया है, लेकिन अपने संसदीय क्षेत्र वायनाड से लौटने के बाद वो फिर से कांग्रेस के अंदरूनी कलह से पैदा समस्याओं से जूझने लगे हैं.

अंदरूनी कलह का ताजा मामला छत्तीसगढ़ का है. पंजाब और राजस्थान के बाद अब छत्तीसगढ़ का झगड़ा भी बाकी फसलों की तरह पूरी तरह पक गया लगता है - और इसी बीच पंजाब में फिर से उबाल आया है. मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt. Amrinder Singh) के खिलाफ बागी नेता पंजाब कांग्रेस प्रभारी हरीश रावत से मिलने देहरादून में ही धावा बोल दिये.

छत्तीसगढ़ में भी झगड़ा बाकी राज्यों की तरह है, लेकिन अभी तक वहां थोड़ी संजीदगी देखने को मिल रही है - क्योंकि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (Bhupesh Baghel) या उनके विरोधी नेता और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव किसी ने भी राजस्थान और पंजाब की तरह सड़क पर झगड़े का भांगड़ा नहीं किया है.

लेकिन राहुल गांधी के सामने जैसी चुनौतियां एक के बाद एक धावा बोलती जा रही हैं, जैसे कांग्रेस में अंदर की कलह पर कोई वेबसीरिज चल रही हो. एक सीजन खत्म नहीं होता कि आखिरी एपिसोड में 'कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा?' जैसे सवाल पॉप-अप की तरह फूट पड़ते हैं - और अब तो ये समझ पाना काफी मुश्किल हो चुका है कि कांग्रेस की कलह के वेबसीरिज के कितने सीजन चलने वाले हैं?

ये झगड़ा ज्वालामुखी का रूप तो नहीं लेने वाला है

2018 में कांग्रेस ने तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव जीते थे और खास बात ये रही कि तीनों ही जगह बीजेपी को शिकस्त मिली थी - मध्य प्रदेश. राजस्थान और छत्तीसगढ़.

मुख्यमंत्री को लेकर तीनों ही राज्यों में डबल दावेदारी की स्थिति पैदा हो गयी थी, लेकिन सबसे पहले छत्तीसगढ़ का ही मामला सुलझ गया और भूपेश बघेल मुख्यमंत्री बन गये. मध्य प्रदेश तो करीब सवा साल बाद ही कांग्रेस के आपसी झगड़े की भेंट चढ़ गया लेकिन राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकारें बची हुई हैं.

कुछ दिनों से धीरे धीरे छत्तीगढ़ में भी उबाल आने लगा है. एक बात सामने आ रही है कि तब मध्य प्रदेश और राजस्थान से अलग छत्तीसगढ़ में ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री का फॉर्मूला तैयार किया गया था - और यही कारण रहा कि ज्यादा मान मनौव्वल की जरूरत नहीं देखने को मिली थी.

rahul gandhi, bhupesh baghel, ts singh deoसब इतने जो मुस्कुरा रहे हैं - क्या गम है जो छुपा रहे हैं?

अब छत्तीसगढ़ में भी ढाई साल चुपचाप इंतजार कर चुके टीएस सिंहदेव का धैर्य जवाब देने लगा है. कोरोना संकट में बतौर स्वास्थ्य मंत्री काम करते आये टीएस सिंहदेव अब अपनी मुख्यमंत्री की पारी शुरू करना चाहते हैं. जुलाई से ही वो कई कई दिनों तक दिल्ली में डेरा डाल कर कांग्रेस नेताओं के साथ लॉबिंग कर रहे हैं, लेकिन अभी तक मामला आगे नहीं बढ़ सका है.

जुलाई के शुरू में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल दिल्ली आते ही कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलने पहुंचे थे. लौट कर बताये कि मुलाकात तो हुई लेकिन सोनिया गांधी से नहीं बल्कि प्रियंका गांधी से. लगे हाथ ये भी बताया था कि छत्तीसगढ़ कांग्रेस प्रभारी पीएल पुनिया और कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल से मिलना है - मतलब ये कि सोनिया गांधी से पहले प्रियंका गांधी मिलीं और फिर पीएल पुनिया और केसी वेणुगोपाल से मिल कर अपनी बात रखने को बोल दिया गया.

कांग्रेस आलाकमान के बुलावे पर भूपेश बघेल 23 अगस्त की शाम को फिर दिल्ली पहुंचे. अगले दिन भूपेश बघेल की मुलाकात राहुल गांधी से हुई. राहुल गांधी ने बघेल के अलावा टीएस सिंहदेव और पीएलपुनिया से भी मुलाकातें की, लेकिन अलग अलग. ये मुलाकातें करीब तीन घंटे तक चलीं जिसमें डेढ़ घंटे तो राहुल गांधी भूपेश बघेल से ही बात करते रहे.

अमूमन भूपेश बघेल कांग्रेस नेतृत्व से मिलने के बाद मीडिया से भी मुखातिब होते रहे हैं, लेकिन इस बार सीधे रायपुर लौट गये और वहीं जाकर बोले. दिल्ली में टीएस सिंहदेव ने कहा, 'राहुल गांधी ने तमाम विषयों पर बातचीत की और कहा कि पार्टी को 2023 की तैयारी में एकजुटता से मेहनत करनी चाहिये... कांग्रेस पार्टी को अपना परफॉर्मेंस बेहतर करना है क्योंकि 2023 के बाद सीधे 2024 की लड़ाई है. ऐसे में संगठित होकर काम करने की जरूरत है.'

छत्तीसगढ़ के कांग्रेस प्रभारी पीएल पुनिया ने भी यही समझाने की कोशिश की कि राहुल गांधी के साथ बैठक में छत्तीसगढ़ सरकार के कामकाज को लेकर चर्चा हुई - लेकिन रायपुर पहुंच कर भूपेश बघेल के जो कुछ कहा उससे तो लगता है कि टीएस सिंहदेव और पीएल पुनिया दोनों ही असली सवाल टाल गये.

भूपेश बघेल के रायपुर पहुंचने से पहले ही बड़ी संख्या में उनके समर्थक एयरपोर्ट पर जमा हो चुके थे - और वे बघेल के समर्थन में नारेबाजी भी कर रहे थे. ये तो ऐसा ही लगता है जैसे भूपेश बघेल ने भी ताकत दिखाने का मन बना लिया हो, लेकिन बातचीत में पहले की ही तरह संयम बरत रहे हैं.

भूपेश बघेल ने अपने इलाके में दाखिल होने के बाद कहा कि वो कांग्रेस आलाकमान के निर्देश पर ही मुख्यमंत्री बने थे - जब तक राहुल गांधी और सोनिया गांधी का आदेश होगा, वो मुख्यमंत्री के पद पर बने रहेंगे.

बोले, 'जब वे कहेंगे, मैं पद छोड़ दूंगा.' लेकिन ढाई साल के मुख्यमंत्री के सवाल पर वो नया स्टैंड लेने लगे हैं - जो लोग ये राग अलाप रहे हैं, वे राजनीतिक अस्थिरता फैलाने की कोशिश कर रहे हैं.'

भूपेश बघेल नाम भले न ले रहे हों, लेकिन निशाने पर तो टीएस सिंहदेव ही हैं. कह भले रहे हों कि आलाकमान का आदेश मिलते ही मुख्यमंत्री की कुर्सी खाली कर देंगे, लेकिन लग तो नहीं रहा है कि वास्तव में वो ऐसा ही करने का मन भी बना चुके हों.

अब खबर ये आ रही है कि राहुल गांधी ने अपने भरोसेमंद केसी वेणुगोपाल को छत्तीसगढ़ कांग्रेस का मामला सुलझाने की जिम्मेदारी सौंपी है - तो क्या पीएल पुनिया के दायरे से मामला आगे बढ़ चुका है?

ऐसा लग रहा है जैसे किसी नतीजे पर पहुंचने की बजाये, छत्तीसगढ़ के मामले को टालने की कोशिश हो रही है. हो सकता है ऐसा पंजाब के अनुभव से सोचा जा रहा हो, लेकिन अब ये आशंका भी बढ़ती जा रही है कि ऊपर से शांत दिखने वाला छत्तीसगढ़ कांग्रेस का झगड़ा अचानक विस्फोटक रूप न धारण कर ले.

जैसे घर घर की कहानी हो

कांग्रेस की जब केंद्र में सरकार थी तो राहुल की सत्ता की राजनीति में दिलचस्पी नहीं नजर आती थी. राहुल गांधी चाहते थे कि पहले सिस्टम को दुरूस्त करें, लेकिन वो काम अब तक नहीं हो पाया.

कांग्रेस 2014 के बाद जब विपक्ष में आ गयी तो राहुल गांधी की विपक्षी राजनीति में दिलचस्पी कम नजर आने लगी - और 2019 की हार के बाद तो वो कांग्रेस अध्यक्ष के पद से भी इस्तीफा दे बैठे, जो अब तक फिर से संभालने को तैयार नहीं हो पाये हैं.

लेकिन अब तो ऐसा लग रहा है जैसे राहुल गांधी की राज्यों की सत्ता की राजनीति से भी मन भर चुका है - और अब उनकी इस बात में भी दिलचस्पी नहीं बची है कि जहां भी कांग्रेस सत्ता में है वो चुनावों बाद वापसी करे या नहीं - मंशा जो भी हो, लेकिन सक्रियता तो यही बता रही है.

कांग्रेस अभी कांग्रेस तीन राज्यों में सत्ता में है और तीन राज्यों में सत्ता की हिस्सेदार है. छत्तीसगढ़ के अलावा पंजाब और राजस्थान में कांग्रेस की अपनी सरकार है. झारखंड, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में सत्ताधारी दल के साथ गठबंधन के चलते वो हिस्सेदार बन चुकी है.

2018 के आखिर में मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस की सरकार बनी थी, लेकिन कमलनाथ से पटरी न खाने के चलते ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में चले गये. गये तो कई विधायकों को भी लेते गये और कमलनाथ सरकार गिर गयी. राजस्थान में भी करीब करीब वैसी ही स्थिति कई महीनों से बनी हुई है.

पंजाब के मामले में कांग्रेस नेतृत्व ने थोड़ा सख्त रवैया अपनाया. मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के विरोध के बावजूद नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंप दी, लेकिन समस्या सुलझने की बजाय अब ज्यादा उलझी हुई नजर आने लगी है.

हाल फिलहाल तो सिद्धू के सलाहकार अपने बयानों से कहर बरपाये हुए थे, विधायकों का एक जत्था कैप्टन अमरिंदर सिंह को चुनावों में मुख्यमंत्री पद के चेहरे के तौर पर नहीं देखना चाहता. जाहिर है ये जत्था सिद्धू को मुख्यमंत्री चेहरा देखना चाहता है.

कांग्रेस में राज्यों में गुटबाजी खत्म कर झगड़े सुलझाने के लिए दूसरे राज्यों के नेताओं को प्रभारी बनाया जाता रहा है, लेकिन लगता है जैसे राज्यों के प्रभारी मैसेंजर भर बन कर रह गये हैं - जो हाल पंजाब में हरीश रावत का है, वही राजस्थान में अजय माकन और छत्तीसगढ़ में पीएल पुनिया का.

राजस्थान में तो और भी बुरा हाल देखने को मिल चुका है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने तो अजय माकन का फोन उठाना ही बंद कर दिया था. हो सकता है अशोक गहलोत के पैंतरे से सबक लेते हुए राहुल गांधी ने पंजाब में सिद्धू को पीसीसी अध्यक्ष बना कर कैप्टन को कमजोर करने की कोशिश की हो, ताकि वो भी अशोक गहलोत की तरह आंख न दिखाने लगें - लेकिन छत्तीसगढ़ में भी तो भूपेश बघेल वही रवैया अख्तियार करते देखे जाने लगे हैं.

राजस्थान और पंजाब का मामला तो लटका हुआ है ही, लेकिन छत्तीसगढ़ कांग्रेस के सामने अग्नि परीक्षा की घड़ी लाने वाला है. अगर सोनिया गांधी वास्तव में कांग्रेस का नेतृत्व कर रही हैं तो उनको भी सोचना होगा कि बच्चों की खुशी के हिसाब से फैसले लिये जायें या फिर कांग्रेस पार्टी के हित में.

पंजाब में अगर सोनिया गांधी कैप्टन अमरिंदर सिंह को ही फिर से मैंडेट दे दिया होता तो कम से कम सत्ता में वापसी की संभावना बनी रहती, लेकिन राहुल और प्रियंका के फेवरेट सिद्धू को उनके खिलाफ खड़ा करके वो मौका भी गंवा चुकी हैं. अब तो साफ है कि सिद्धू की नजर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर टिकी हुई है और चुनाव तक ही सही वो उसका भी मजा ले लेना चाहते हैं.

ठीक वैसे ही छत्तीसगढ़ में सोनिया गांधी ने थोड़ी थोड़ी पंजीरी सबको बांटने की कोशिश की, तो सूबे में कांग्रेस की अगली पारी का सपना देखना तो छोड़ ही देना चाहिये. ये भूपेश बघेल की मेहनत की बदौलत ही छत्तीसगढ़ में सरकार बनाना संभव हो पाया - और अब तक वो अपने ही बूते चला भी रहे हैं, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व को ये भी नहीं भूलना चाहिये कि पंजाब की तरह पसंद नापसंद छत्तीसगढ़ पर ज्यादा भारी पड़ेगी.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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