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Updated: 22 दिसम्बर, 2018 11:47 AM
आशिका सिंह
आशिका सिंह
 
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हर बार की तरह लोकसभा चुनाव के पहले ‘तीसरा मोर्चा’ नामक काठ की हंडी में बेमेल खिचड़ी पकने लगी है, तरह-तरह के चावल इस हंडी में बुदबुदा रहे हैं. देखना है कि भाजपा और खासकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ एकजुट होने के प्रयास में किस दल की दाल गलती है. देश को भाजपा मुक्त करने के ध्येय से लामबंध हुए विपक्षी दलों के बीच अपनी रस्साकशी थमने का नाम नहीं ले रही है. एक तरफ कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी विपक्षी दलों के सहारे सत्ता का सुख भोगने के ख़्वाब देख रहे हैं तो दूसरी ओर विपक्षी दल अपने फायदे के लिए अपना-अपना दांव चल रहे हैं.

कभी भाजपा नेताओं की छोटी बहन रही बंगाल की दीदी आज भानुमती के इस कुनबे को जोड़ने में लगी हैं, लेकिन इस बेमेल के गठबंधन की गांठ कहीं न कहीं से खुलती ही जा रही है. पश्चिम बंगाल में भाजपा के बढ़ते प्रभाव के चलते ममता बनर्जी विरोधी लेफ्ट और कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने को भी तैयार हो गयीं. लेकिन लेफ्ट और कांग्रेस ने संकेत दे दिया है कि बंगाल में सब कुछ ठीक नहीं है.

mamata-banerjeeममता बनर्जी तीसरे मोर्चे को मजबूत बनाना के लिए 19 जनवरी को देश भर के नेताओं को कोलकाता में जुटाने की कोशिश कर रही हैं

एक तरफ कांग्रेस के पश्चिम बंगाल अध्यक्ष सौमेन मित्रा ने साफ कर दिया है कि कांग्रेस आने वाले लोकसभा चुनाव में राज्य में अकेले लड़ेगी तो दूसरी ओर लेफ्ट ने भी ममता के साथ मंच साझा करने से परहेज़ जताया है. ममता जहां तीसरे मोर्चे को मजबूत बनाना के लिए 19 जनवरी को देश भर के नेताओं को कोलकाता में जुटाने की कोशिश कर रही हैं, वहीं लेफ्ट फ्रंट चेयरमैन विमान बोस ने साफ कर दिया है कि लेफ्ट पार्टियां ममता के इस मेगा शो में शामिल नहीं होंगी.

भाजपा को सत्ता से हटाने के लिए जोरदार प्रयासों में ममता बनर्जी ने नवंबर में ही घोषणा कर दी थी कि तृणमूल कांग्रेस पश्चिम बंगाल की सीमा से सटे झारखंड, ओडिशा और असम के कई सीटों पर भी लोकसभा चुनावों में उम्मीदवार उतारेगी.

एमके स्टैलिन ने राहुल गांधी को पीएम पद के लिए योग्य बताया तो ममता बनर्जी और अखिलेश यादव सहित तीसरे मोर्चे की कावयद में जुटे कई दलों ने इस विचार से असहमती जतायी है. तृणमूल कांग्रेस ने राहुल के नाम पर कहा कि चुनाव के बाद ही किसी का नाम तय किया जायेगा.

राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में जीत के ज़रिए कांग्रेस ने शानदार वापसी ज़रूर की लेकिन न्योते के बाद भी किसी भी मुख्यमंत्री के शपथग्रहण समारोह में समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव, बसपा प्रमुख मायावती और पश्चिम बंगाल की दीदी ममता बनर्जी किसी ने भी शिरकत नहीं की.

शरद यादव, तेजस्वी यादव, बाबूलाल मारंडी, हेमंत सोरेन और कनिमोझी जैसे नेता तो कांग्रेस के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्रियों के शपथग्रहण में शामिल हुए लेकिन जिनपर सबकी निगाहें टिकी थीं यानी माया, ममता और अखिलेश इस आयोजन से दूर ही रहे. माना जा रहा है कि तीसरे मोर्चे की कमान अकेले कांग्रेस के हाथ में नहीं है ये संदेश देने के लिए तीनों नेताओं ने शपथग्रहण समारोह से दूर रहने का निर्णय लिया.

छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी के साथ गठबंधन कर मायावती ने पहले ही कांग्रेस को झटका दे दिया है. ममता भी पास के राज्यों में उम्मीदवार उतारने की घोषणा कर चुकी हैं. राफेल मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद कांग्रेस की जेपीसी(ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी) बनाने की मांग पर सुर में सुर न मिलाकर अखिलेश यादव ने भी कांग्रेस को झटका दिया है.

उधर उत्तर प्रदेश में चर्चा है कि बिना कांग्रेस के ही सपा और बसपा ने लोकसभा की सीटों का बंटवारा कर लिया है जिसमें केवल रायबरेली और अमेठी ही कांग्रेस के हिस्से में आई हैं. हालांकि अभी आधिकारिक तौर पर किसी दल ने इस समझौते को स्वीकार नहीं किया है लेकिन उत्तर प्रदेश के ज़रिए दिल्ली की गद्दी तक पहुंचने का सपना देखने वाली कांग्रेस में इससे खलबली ज़रूर मच गयी है.

ऐसे में लगने लगा है कि तीसरे मोर्चे का सपना कहीं सपना ही न रह जाये. पहले भी चुनाव के पहले तीसरे मोर्चे के विचार के सक्रिय होने की ख़बरें सामने आती रही हैं लेकिन सीटों के बंटवारे और नेता के नाम का चयन करने के मुद्दे पर सभी दल अलग हो जाते हैं.

उधर राफेल, माल्या और मिशेल मामलों को भुनाने में लगी भाजपा राम मंदिर के वादे पर अब तक खरी न उतर पाने के चलते बैकफुट पर आने लगी है. एससी/एसटी एक्ट के ज़रिए दलितों को अपने पाले में करने की कवायद में भाजपा ने अपने वोटों को भी दांव पर लगा दिया है. देखना है कि तीसरे मोर्चे के जिन्न का सामना भाजपा विकास के रथ पर सवार होकर करती है या राम मंदिर नामक तुरुप का इक्का चलती है.

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लेखक

आशिका सिंह आशिका सिंह

लेखिका 10 साल से अधिक समय पत्रकारिता में बिताने के बाद, एक निजी कंपनी में जनसंपर्क सलाहकार हैं.

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