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Updated: 21 दिसम्बर, 2018 03:52 PM
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Sohrabuddin Shaikh fake encounter case verdict: 2005 में गुजरात की राजनीति को झकझोर देने वाले सोहराबुद्दीन फेक एनकाउंटर केस को 2012 में महाराष्ट्र ट्रांसफर कर दिया गया. ऐसा तब हुआ जब सुप्रीम कोर्ट को लगा कि गुजरात में केस को प्रभावित किया जा रहा है.

13 साल तक चले इस केस में सारे आरोपी छूट चुके हैं. सीबीआई कोर्ट में किसी के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिल सका. सीबीआई की चार्जशीट में अमित शाह सहित 38 लोगों को आरोपी बनाया गया था. अमित शाह सहित 16 लोगों को 2014 में ही बरी कर दिया गया था - बाकी बचे 22 लोग 21 दिसंबर को छूट गये.

इस केस में राजनीतिक विवाद की वजह अमित शाह रहे और केस की सुनवाई कर रहे सीबीआई कोर्ट के जज बीएच लोया की मौत को लेकर भी सवाल उठे. वैसे शाह के अलावा इसमें गुजरात के तत्कालीन गृहमंत्री गुलाब चंद्र कटारिया भी थे.

1. अमित शाह 2014 में बरी हुए, लेकिन विवाद जारी रहे

नवंबर, 2005 में सोहराबुद्दीन फर्जी एनकाउंटर केस ने गुजरात की राजनीति में भूचाल ला दिया था. इस एनकाउंटर में तीन लोगों की मौत हुई थी - सोहराबुद्दीन शेख, कौसरबी और तुलसीराम प्रजापति. 13 साल चले इस केस के ट्रायल के बाद आखिरी बहस 5 दिसंबर को खत्म हुई थी.

जुलाई, 2010 में सीबीआई ने अमित शाह, राजस्थान के गृह मंत्री गुलाबचंद कटारिया और कई पुलिस अफसरों सहित 38 लोगों के खिलाफ चार्जशीट फाइल की थी और उसके दो दिन बाद ही 25 जुलाई को अमित शाह को गिरफ्तार कर लिया गया.

जब ये एनकाउंटर हुआ तब मौजूदा बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह गुजरात के गृह मंत्री थे. अमित शाह को तो इस केस से 30 दिसंबर, 2014 को ही बरी कर दिया गया था, लेकिन मुश्किलों और विवाद ने उनका पीछा नहीं छोड़ा. नवंबर, 2015 में सोहराबुद्दीन के भाई रबाबुद्दीन और सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर ने अमित शाह को बरी किये जाने के फैसले को चुनौती दी थी.

sohrabuddin sheikh encounter caseसोहराबुद्दीन शेख केस में 13 साल चले ट्रायल में सभी 38 आरोपी बरी

हाल तक सीबीआई कोर्ट के जज बीएच लोया की संदिग्ध परिस्थियों में मौत के आरोप को लेकर भी सवाल उठे - जिसमें अमित शाह को टारगेट किया गया.

2. जज लोया की मौत पर सवाल

जब सुप्रीम कोर्ट ने सोहराबुद्दीन केस को महाराष्ट्र ट्रांसफर किया तो उसकी सुनवाई जज उत्पत कर रहे थे. जज उत्पत ने अमित शाह के सुनवाई में पेश न होने पर नाराजगी जतायी थी. तभी जज उत्पत का तबादला हो गया. तबादले के बाद केस की सुनवाई जस्टिस बीएच लोया ने शुरू की. दिसंबर, 2014 में जज लोया की मौत हो गयी. उसके बाद सुनवाई शुरू हुई और उसमें अमित शाह और 15 अन्य लोगों को बरी कर दिया गया.

एक मैगजीन में जज लोया की मौत की परिस्थितियों को संदिग्ध बताया गया तो अमित शाह फिर से निशाने पर आ गये. सवाल उठाने वालों ने सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दी लेकिन अदालत को आरोपों में दम नजर नहीं आया.

3. गुलाबचंद कटारिया और उनकी राजनीति

अमित शाह के अलावा सोहराबुद्दीन केस में फंसने वाले दूसरे बड़े नेता रहे गुलाबचंद कटारिया. गुलाबचंद कटारिया एनकाउंटर के वक्त राजस्थान के गृहमंत्री रहे. शाह की तरह कटारिया को भी इस केस के चलते राजनीतिक तौर पर काफी नुकसान उठाना पड़ा था.

मौजूदा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने उदयपुर से कटारिया के खिलाफ अपनी सीनियर नेता गिरिजा व्यास को उम्मीदवार बनाया था. गुलाबचंद कटारिया जीवन में दो ही चुनाव हारे हैं और उनमें से एक बार 1985 में गिरिजा व्यास ने ही शिकस्त दी थी. इस बार गुलाबचंद कटारिया ने गिरिजा व्यास को हरा कर हिसाब बराबर कर लिया है.

4. पहले 16, अब 22 - बरी तो हुए लेकिन बेदाग नहीं

सीबीआई कोर्ट के जज ने सबूतों के अभाव में बाकी बचे 22 आरोपियों को भी बरी कर दिया. हालांकि, कोर्ट का कहना रहा, 'सरकारी मशीनरी और अभियोजन पक्ष ने काफी प्रयास किया और 210 गवाहों को सामने लाया गया, लेकिन उनसे कोई संतोषजनक सबूत नहीं मिल पाया - और कई गवाह अपने बयान से पलट गए. इसमें अभियोजक की कोई गलती नहीं है अगर गवाह नहीं बोलते हैं.'

5. जज की टिप्पणी महत्वपूर्ण है

सीबीआई कोर्ट के जज एसजे शर्मा ने फैसला सुनाते हुए खुद को असहाय पाया. अपने आदेश में जज ने कहा कि हमें इस बात का दुख है कि तीन लोगों ने अपनी जान खोई है. कानून और सिस्टम को किसी आरोप साबित करने के लिए सबूतों की आवश्यकता होती है. सीबीआई ये साबित नहीं कर पायी कि पुलिसवालों ने सोहराबुद्दीन को अगवा किया था.

राजस्थान में बीजेपी की हार के बावजूद गुलाबचंद कटारिया चुनाव जीतने में कामयाब रहे - और अमित शाह के लिए भी ये बड़ी राहत की बात है कि केस के सभी आरोपी बरी हो चुके हैं.

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