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Updated: 01 मई, 2022 07:15 PM
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नीतीश कुमार और चिराग पासवान (Chirag Paswan) की दो इफ्तार पार्टियों में मुलाकात हो चुकी है - और दोनों ही में चिराग पासवान ने नीतीश कुमार का दो-दो बार अभिवादन किया. पहली बार जब दूर से नजरें मिलीं. दूसरी बार जब करीब पहुंचे. दूर से तो चिराग पासवान ने बस हाथ जोड़ कर प्रणाम कर लिये थे, लेकिन पास पहुंचे तो दोनों बार नीतीश कुमार के पैर भी छूए.

ऐसा करके चिराग पासवान ने कथनी और करनी में फर्क न होने की मिसाल पेश की है. वो लाख हमले करते रहे, लेकिन अक्सर ये भी कहते थे कि अगर नीतीश कुमार (Nitish Kumar) उनके सामने पड़ेंगे तो वो पैर छूकर ही अभिवादन करेंगे.

चिराग पासवान ने कथनी और करनी में फर्क तो तब भी नहीं किया जब 2020 के विधानसभा चुनावों में वो नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू उम्मीदवारों के खिलाफ लोक जनशक्ति पार्टी के उम्मीदवार मैदान में खड़े कर दिये थे. तब तो इतने आक्रामक देखे गये कि नीतीश कुमार को जेल तक भेज देने की बातें करने लगे थे.

चुनाव नतीजे आने के बाद मनहूसियत तो जेडीयू खेमे में भी छायी रही, लेकिन चिराग पासवान को एक ही सीट पर जीत मिलने पर भी ज्यादा मलाल नहीं रहा. मलाल तो तब भी उतना नहीं हुआ होगा जब नीतीश कुमार ने चिराग पासवान के एकमात्र विधायक को अपने पाले में कर लिया था - मलाल तो चिराग पासवान को तब हुआ जब बीजेपी नेतृत्व ने उनके पिता की राज्य सभा सीट उनकी मां के लिए नहीं छोड़ी - और फिर दुश्मनी पर उतर आये उनके चाचा को कैबिनेट मिनिस्टर बना डाला.

जो रही सही कसर बची थी, चिराग पासवान को उनके पिता रामविलास पासवान को मिले बंगले से बेदखल कर के पूरा कर दिया गया. भले ही लोक जनश्कित पार्टी की टूट के पीछे नीतीश कुमार का हाथ माना गया, लेकिन बिहार बीजेपी के नेताओं के एक्टिव होने का नतीजा ये हुआ कि चिराग पासवान के पास से संसदीय दल के नेता का पद भी चला गया. जिंदगी भर बिहार के नाम पर दिल्ली की राजनीति करने वाले रामविलास पासवान की विरासत संभालने उतरे चिराग पासवान बीजेपी नेतृत्व से निराश हो चुके हैं - और ऐसे में कोई तो सहारा चाहिये?

चुनावों के दौरान चिराग पासवान खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान तक बताया करते थे, लेकिन अब तो ये बात कभी जबान पर आती भी नहीं. आये भी तो कैसे, जब सब कुछ लुट जाता है तो श्रद्धा-भाव सब खत्म हो जाते हैं या फिर बदले जाते हैं. अभी तो चिराग पासवान के साथ ऐसा ही हुआ है - और जरूरत के हिसाब से चिराग पासवान से श्रद्धा भाव बदल लिया है.

चिराग पासवान ने अभी नीतीश कुमार को मोदी वाली जगह तो नहीं दी है, लेकिन जब भी मुलाकात हो रही है पैर छूना नहीं भूलते - और इफ्तार पार्टियों (Bihar Iftar Politics) से निकले शिगूफे में वैसी ही संभावनाएं जताने लगे हैं जैसी तेजप्रताप यादव के बयानों में मालूम होता है, लेकिन ये बात भी है कि तेज प्रताप यादव और चिराग पासवान में फर्क तो है ही.

नीतीश कुमार के इर्द गिर्द घूमती बिहार की इफ्तार पॉलिटिक्स

बिहार की राजनीति में फिलहाल नीतीश कुमार के लिए ये समझना मुश्किल हो रहा होगा कि वो अपना दुश्मन नंबर 1 किसे मानें - बीजेपी को या आरजेडी को?

हाल ही में हुए यूपी विधानसभा चुनावों के दौरान तो वीआईपी नेता मुकेश सहनी भी नीतीश कुमार के खिलाफ आक्रामक अंदाज में ही देखे गये थे. अपनी रैलियों में याद दिलाना नहीं भूलते थे कि अगर वो सपोर्ट वापस ले लें तो नीतीश कुमार की सरकार गिरते देर नहीं लगेगी. मुकेश सहनी से गलती ये हो गयी कि वो नीतीश कुमार की ही तरह योगी आदित्यनाथ को भी निशाना बना कर बीजेपी से भी दुश्मनी मोल लिये - फिर क्या था बीजेपी ने उनके तीनों विधायकों को छीन कर मुकेश सहनी को पैदल कर दिया.

nitish kumar, chirag paswanतेजस्वी यादव से मिल कर नीतीश कुमार बीजेपी को वॉर्निंग साइन भेज रहे हैं तो चिराग पासवान और मुकेश सहनी के जरिये ट्रोल कर रहे हैं

मुकेश सहनी को मंत्रिमंडल से बाहर तो नीतीश कुमार ने ही किया, लेकिन वो ये अच्छी तरह समझ गये थे कि मुख्यमंत्री तो बस मोहरा हैं, कमांड तो बीजेपी की तरफ से आ रहे थे. अब मुकेश सहनी भी नीतीश कुमार के शरणागत वैसे ही हो चुके हैं, जैसे घाट घाट का पानी पीने के बाद जीतनराम मांझी. मांझी का तो हाल ये है कि कई बार वो नीतीश कुमार का पक्ष लेने में जेडीयू प्रवक्ताओं को भी टक्कर देने लगते हैं. नीतीश महिमा के बखान में कई बार तो मांझी में बिहार के डीजीपी रहे गुप्तेश्वर पांडे का भी अक्स नजर आने लगता है.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जो हनक जीतनराम मांझी की इफ्तार पार्टी में दिखी, करीब करीब वैसी ही विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव की कांग्रेस के इफ्तार पार्टी में महसूस की गयी. बिहार में हाल में हुए उपचुनावों और विधान परिषद चुनावों में कांग्रेस और आरजेडी के बीच टकराव के बाद ये नजारा अलग ही इशारे कर रहा था.

जीतनराम मांझी की इफ्तार पार्टी में एक खास वाकये ने भी सबका ध्यान खींचा - नीतीश कुमार तो शामिल हुए ही, वीआईपी नेता मुकेश सहनी और चिराग पासवान का एक ही गाड़ी से पहुंचना भी लोगों के खास आकर्षण का केंद्र रहा.

असल में चिराग पासवान और मुकेश सहनी दोनों ही एनडीए का हिस्सा रहे हैं - और उसमें भी दोनों ही बीजेपी कोटे से एनडीए में शामिल रहे, लेकिन अब दोनों ही एक साथ बीजेपी विरोधी खेमे में जा मिले हैं. मजबूरी भी है, बीजेपी ने ठुकराया तो कहीं नया ठिकाना तो ढूंढना ही पड़ेगा.

जीतनराम मांझी से पहले चिराग पासवान और मुकेश सहनी दोनों ही तेजस्वी यादव की इफ्तार पार्टी में भी शामिल हुए थे - जब राबड़ी देवी के आवास तक पैदल चल कर पहुंचे नीतीश कुमार ने बिहार की राजनीति में नये समीकरओं को लेकर बहस की नींव रख दी है.

दुश्मन तो दुश्मन हैं, बस कहीं स्थायी भाव नहीं है: राजनीति में दुश्मन और दोस्त स्थायी स्वरूप ले लें तो पॉलिटिक्स का स्कोप ही नहीं रह जाएगा. सरवाइवल का संकट खड़ा हो जाएगा.

धीरे धीरे नीतीश कुमार समझ ये भी समझ गये हैं कि बिहार में चाहे बीजेपी हो या फिर आरजेडी, दोनों ही के निशाने पर वो बराबर दूरी पर ही रहते हैं - अगर थोड़ा बहुत फर्क देखने को मिलता है तो वो बस वक्त की बात होती है. यही वजह है कि नीतीश कुमार ने मौके के हिसाब से एक को साधने के लिए दूसरे का इस्तेमाल करना सीख लिया है.

जिस तरह की राजनीति नीतीश कुमार ने 2013 में एनडीए छोड़ कर की थी और फिर 2017 में महागठबंधन छोड़कर, एक बार फिर वैसी ही संभावनाएं तलाश रहे हैं, ऐसा लगता है. पहले ये देखा जाता रहा कि आरजेडी का कोई नेता मीडिया के जरिये नीतीश कुमार को पाला बदलने का न्योता दे दिया करता था - जब से नीतीश कुमार को लगा है कि बीजेपी जल्दी से जल्दी उनको बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी से बेदखल करने के लिए सही वक्त का इंतजार कर रही है, तभी से वो काउंटर करने के लिए नया सपोर्ट बेस तैयार करने में जुट गये हैं.

जैसे राबड़ी देवी के घर तेजस्वी यादव की इफ्तार पार्टी के बाद तेज प्रताप यादव सीक्रेट बात होने का दावा कर रहे थे, चिराग पासवान भी नीतीश कुमार की ताजा गतिविधियों को करीब करीब उसी नजर से देख रहे हैं, 'तेजस्वी यादव की इफ्तार दावत में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मौजूदगी एक संकेत है, जिसके गंभीर राजनीतिक असर हो सकते हैं.'

और तपाक से मुख्यमंत्री के बंगला शिफ्ट करने को भी राजनीतिक गतिविधियों से जोड़ देते हैं, लहजा सवालिया ही होता है - 'नवीनीकरण का कार्य तो हम सभी के घरों में होता ही रहता है... हम लोगों ने इसे लेकर अपनी गाय-भैंसों के साथ घर खाली कर दिया हो, ऐसा आमतौर पर होता नहीं है.'

जैसे सोनिया पासवान के घर पैदल पहुंची थीं: नीतीश कुमार के बंगला बदलने की ही तरह, राबड़ी देवी के आवास तक उनके पैदल पहुंचने के पीछे भी चिराग पासवान को नये राजनीतिक संकेत नजर आ रहे हैं.

अपना एक निजी अनुभव शेयर करते हुए चिराग पासवान 2004 के आम चुनावों और नतीजों के बाद की राजनीतिक गतिविधियों की याद दिलाते हैं. कहते हैं, 'मुझे याद है कि सोनिया गांधी जी एक बार मेरे पिता के घर पैदल चलकर आयी थीं - और उसके बाद 2004 में यूपीए की शुरुआत हुई थी.'

ये कतई जरूरी नहीं कि नीतीश कुमार ने बिलकुल वैसा की किया हो, लेकिन अलग अलग समय पर अगर राजनीतिक माहौल एक जैसा लगे तो ऐसी घटनाएं इशारों को मजबूत तो बनाती ही हैं. चिराग पासवान की बातें इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती हैं क्योंकि वो खुद भी उसी मुहिम का हिस्सा लगते हैं. भले ही अभी कोई चीज फाइनल न हुई हो, लेकिन रास्ता तो एक ही तरफ बढ़ रहा है, जिस पर नीतीश कुमार आगे आगे चल रहे हैं.

धीरे धीरे करीब आते चिराग और नीतीश: हफ्ते भर के भीतर ये दूसरा मौका था जब चिराग पासवान और नीतीश कुमार एक कॉमन ग्राउंड पर मिले थे. पहली बार 22 अप्रैल को ये संयोग या प्रयोग तब देखने को मिला था जब लालू परिवार की तरफ से इफ्तार की दावत दी गयी थी - बाकी चीजों के बीच चिराग पासवान के नीतीश कुमार के पैर छूने की घटना ने भी लोगों को ध्यान खींचा और कयासों के दौर शुरू हो गये थे.

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी की इफ्तार पार्टी में भी करीब करीब वैसा ही हुआ, लेकिन तब पहल नीतीश कुमार की तरफ से देखी गयी. हुआ ये कि नीतीश कुमार और चिराग पासवान दोनों ही एक ही तरफ सोफे पर बैठे थे लेकिन दोनों के बीच में पांच नेता बैठे हुए थे.

चिराग पासवान को भी मालूम था कि थोड़ी दूरी पर नीतीश कुमार बैठे हैं - और नीतीश कुमार को भी. हो सकता है चिराग पासवान के मन में भी वैसा ही कुछ चल रहा हो जो नीतीश कुमार के दिमाग में दौड़ रहा था, लेकिन पहले नीतीश कुमार ही आगे आये.

नीतीश कुमार और जीतनराम मांझी अगल बगल बैठे थे. जीतनराम मांझी मेजबान थे और नीतीश कुमार मुख्य मेहमान. नीतीश कुमार ने मांझी से इशारों में ही पूछा कि चिराग बैठे हुए हैं क्या? 'राणा की पुतली फिरी नहीं तब तक...' वाले अंदाज में मांझी के साथी नेता दानिश रिजवान ने कंफर्म भी कर दिया.

संयोग देखिये कि चिराग पासवान बीजेपी नेता सैयद शाहनवाज हुसैन की बगल में बैठे थे. हो सकता है, उनको अंदाजा भी न हो. वो समझ भी नहीं पाये थे कि अगल बगल चल क्या रहा है? तभी मुकेश सहनी की नजर नीतीश कुमार पर पड़ी और बीजेपी को धमका कर धोखा खाने के बाद से चौकन्ना रहने वाले मुकेश सहनी ने चिराग पासवान को इशारा किया - मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आपके बारे में पूछ रहे हैं.

चिराग पासवान पहले तो वहीं से मुखातिब हुए, हाथ जोड़ कर प्रणाम किया - और फिर पास पहुंच गये. पैर भी छूए. हो सकता है, ये भी नीतीश कुमार की किसी रणनीति का ही हिस्सा रहा हो - लेकिन नीतीश कुमार ने अपना मैसेज तो पहुंचा ही दिया. मैसेज जहां भी पहुंचना हो, बीजेपी नेतृत्व के पास या फिर लालू यादव तक.

इफ्तार की सियासत में आगे क्या है?

किसी भी मुद्दे पर नीतीश कुमार का स्टैंड उनके नजदीकी राजनीतिक भविष्य की तरफ मजबूत इशारा करता है. ये चीज नोटबंदी जैसे मोदी सरकार के फैसले से लेकर राष्ट्रपति चुनाव में उनके रुख से समझा जा सकता है - और ये तस्वीर भी जल्दी ही साफ हो जाएगी क्योंकि राष्ट्रपति चुनाव की तारीख भी बहुत दूर नहीं है.

बिहार के लिए विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से सरेआम झटका खाने के बावजूद नीतीश कुमार ने जनसंख्या कानून और पेगासस जैसे मुद्दों पर खुल कर बोला है. अभी अभी लाउडस्पीकर पर यूपी सरकार टाइप एक्शन की बीजेपी की मांग को फालतू बताने से पहले वो जातीय जनगणना के मसले पर अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज करा चुके हैं.

देखा जाये तो इफ्तार पार्टी के जरिये भी नीतीश कुमार बीजेपी को वही मैसेज देने की कोशिश कर रहे हैं जैसा जातीय जनगणना के मामले में किया था - ध्यान देने वाली बात ये है कि नीतीश कुमार की ताजा पहल में एक जगह न सही, लेकिन कहीं न कहीं बीजेपी विरोधी सभी राजनीतिक दलों का जमावड़ा तो हो ही रहा है.

अभी ये तो नहीं लगता कि नीतीश कुमार फिर से महागठबंधन का रुख कर चुके हैं या किसी नये गठबंधन की संभावना तलाश रहे हैं - क्योंकि बिहार में भी बीजेपी विरोधी गठबंधन में वैसे ही बड़े बड़े पेंच हैं जैसे राष्ट्रीय स्तर पर हैं.

घोषित तौर पर कांग्रेस महागठबंधन से अलग नहीं हुआ है, लेकिन आरजेडी और उसकी राह तो अलग अलग ही नजर आ रही है. ये सब हो रहा है लेफ्ट से कांग्रेस नेता बने कन्हैया कुमार के कारण. जब तक नीतीश कुमार ऐसी तमाम मुश्किलों से पार नहीं पा लेते, बीजेपी यूं ही फायदा उठाती रहेगी - और दिल्ली की ही तरह पटना में भी विपक्षी एकजुटता की कवायद चलती रहेगी.

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