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Updated: 05 जुलाई, 2021 03:48 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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कोरोना महामारी को दुनियाभर में फैले हुए करीब डेढ़ साल हो चुका है. कोरोना संक्रमण में कमी आने के साथ चीजें फिर से नॉर्मल होने लगी हैं. सभी देशों में टीकाकरण अभियान जोरों पर है. लेकिन, इसके उलट पाकिस्तान (Pakistan) में वैक्सीनेशन अभियान की हालात खराब होती जा रही है. हाल ही में वैक्सीनेशन न होने की वजह से इस्लामाबाद में प्रधानमंत्री इमरान खान (Imran Khan) के खिलाफ प्रदर्शन भी हुए हैं. माना जा रहा है कि ये प्रदर्शन आने वाले समय में उग्र रूप भी ले सकते हैं. दरअसल, पाकिस्तान में टीकाकरण के लिए बड़े पैमाने पर चीन की वैक्सीन का इस्तेमाल हो रहा है. और, चीन की वैक्सीन को दुनियाभर के कई देशों ने 'वैक्सीन पासपोर्ट' में जगह नहीं दी है.

इसकी वजह से पाकिस्तान में लाखों की संख्या में खाड़ी देशों में काम करने वाले और छात्रों के लिए समस्या पैदा हो गई है. दरअसल, दुनिया के कई देशों ने 'वैक्सीन पासपोर्ट' में फाइजर, एस्ट्राजेनेका, मॉडर्ना और जॉनसन एंड जॉनसन की कोविड वैक्सीन (Covid Vaccine) को ही मंजूरी दी है. वहीं, पाकिस्तान ने इन वैक्सीन की खरीद के लिए अभी तक कोई करार नहीं किया है. पाकिस्तान की मजबूरी ये है कि उसे ये सभी वैक्सीन विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की कोवैक्स पहल के तहत ही मिलेंगी. पाकिस्तान की सरकार लोगों से लगातार कह रही है कि वैक्सीन की उपलब्धता होते ही विदेशों में काम करने वालों और छात्रों को प्राथमिकता के आधार पर वैक्सीन लगाई जाएगी. लेकिन, 'खैरात' का इंतजार कर रहे इमरान खान के सामने परेशानी ये है कि लाखों की संख्या के मुकाबले पाकिस्तान को बहुत कम वैक्सीन डोज ही उपलब्ध हो पा रही हैं.

पाकिस्तान में कुल आबादी के लिहाज से अभी तक करीब पांच फीसद लोगों का ही टीकाकरण किया जा सका है.पाकिस्तान में कुल आबादी के लिहाज से अभी तक करीब पांच फीसद लोगों का ही टीकाकरण किया जा सका है.

पाकिस्तान के अखबार Dawn के मुताबिक पाकिस्तान में कुल आबादी के लिहाज से अभी तक करीब पांच फीसद लोगों का ही टीकाकरण किया जा सका है. इनमें से भी ज्यादातर लोगों को चीनी वैक्सीन की ही डोज दी गई है. वैसे, चीन की दोनों एंटी कोविड वैक्सीन सिनोफार्मा और सिनोवैक को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से मंजूरी मिल चुकी है. लेकिन, सऊदी अरब और खाड़ी देशों के साथ ही दुनिया के कई अन्य देश भी चीनी वैक्सीन पर भरोसा नहीं कर रहे हैं. और, इसके वैक्सीन सर्टिफिकेट को मान्यता नहीं दी है. दरअसल, दुनियाभर में कोरोना संक्रमण के हालात काबू में आने के बाद कोई भी देश नहीं चाहता है कि उसके देश में फिर से कोरोना के मामले बढ़ जाएं. जिसकी वजह से कोरोना वायरस से लड़ने में प्रभावी वैक्सीन को ही 'वैक्सीन पासपोर्ट' में जगह दी जा रही है.

और बिगड़ जाएगी पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था

'कंगाल' पाकिस्तान के हालात किसी से छिपे नहीं हैं. चीन के साथ ही दुनियाभर के कर्ज में डूबा पाकिस्तान मनी लांड्रिंग और आतंकी वित्तीय पोषण पर नजर रखने वाले फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की ग्रे लिस्ट से बाहर निकलने के लिए छटपटा रहा है. पाकिस्तान को 2018 के जून महीने में एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में डाला गया था. जिसकी वजह से पाकिस्तान को वर्ल्ड बैंक, आईएमएफ और यूरोपीय संघ से आर्थिक सहायता नहीं मिल पा रही है. यही कारण है कि पाकिस्तान पर चीन का कर्ज बढ़ता जा रहा है. वहीं, पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में विदेशों में काम करने वाले और छात्रों का भी सहयोग रहता है. इन लोगों द्वारा विदेश से भेजी गई रकम ही पाकिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार और अर्थव्यवस्था को संभाले हुए हैं. इन लोगों को वैक्सीन मिलने में जितनी देरी होगी. पाकिस्तान पर उतना कर्ज और बढ़ता जाएगा. पाकिस्तानी मीडिया के अनुसार, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान खुद खाड़ी देशों से चीनी वैक्सीन लगवाने वालों को रियायत देने की बात करने की कोशिशों में लगे हुए हैं.

अमेरिका और कोवैक्स से वैक्सीन के दान का इंतजार

पाकिस्तान में वैक्सीन की कमी के चलते स्थितियां बिगड़ रही हैं. देश के कई वैक्सीनेशन सेंटर्स पर ताला लटक रहा है और ज्यादातर पर केवल चीनी वैक्सीन ही उपलब्ध है. अन्य वैक्सीन लेने के लिए लोगों को इस्लामाबाद आना पड़ रहा है, जिससे लोगों में गुस्सा बढ़ता जा रहा है. समस्या ये भी है कि यहां लोग बड़ी संख्या में पहुंच रहे हैं और वैक्सीन की मात्रा इसके हिसाब से मौजूद नहीं है. बुरी तरह टूट हुई अर्थव्यवस्था के सहारे वैक्सीन खरीद पाना नामुमकिन है. हालांकि, पाकिस्तान सरकार ने वैक्सीन के कुछ ऑर्डर दिए हैं, लेकिन उनकी आपूर्ति इस साल शायद ही संभव हो पाएगी. इस स्थिति में उसे अमेरिका और कोवैक्स संस्था के सहारे वैक्सीन मिलने की उम्मीद है. यहां से आने वाली वैक्सीन भी विदेश में काम करने और पढ़ने वाले छात्रों के टीकाकरण के लिए पर्याप्त नहीं है.

चीन की वैक्सीन को क्यों नहीं मिल रही मंजूरी

'द वॉल स्ट्रीट जर्नल' की एक रिपोर्ट के अनुसार, मध्य-पूर्व के एक देश बहरीन में लोगों को बड़ी संख्या में चीन की वैक्सीन सिनोफार्मा दी जा रही है. बहरीन की करीब 60 फीसदी आबादी को सिनोफार्मा वैक्सीन लगाए जाने के बावजूद यहां अचानक से कोरोना संक्रमण के मामलों में तेजी आई है. जिसे देखते हुए बहरीन प्रशासन ने फैसला लिया है कि कोरोना संक्रमित होने के सर्वाधिक खतरे वाले लोगों को फाइजर या बायोएनटेक एसई की वैक्सीन का बूस्टर डोज दिया जाएगा. हालांकि, रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि संक्रमित होने वाले लोगों में से 90 फीसदी को वैक्सीन का डोज नहीं मिला था. बहरीन में टीकाकरण के लिए अभी भी सिनोफार्मा का इस्तेमाल किया जा रहा है.

क्या होता है वैक्सीन पासपोर्ट

एक देश से दूसरे देश में जाने के लिए लोगों को वैक्सीन पासपोर्ट या पास की जरूरत पड़ती है. ये वैक्सीन पासपोर्ट उन लोगों को जारी होता है, जिन्होंने एंटी कोविड वैक्सीन लगवा ली है. गौरतलब है कि ये गिनी-चुनी वैक्सीन (फाइजर, एस्ट्राजेनेका, मॉडर्ना, जॉनसन एंड जॉनसन और स्पूतनिक) के लिए ही जारी होता है. किसी अन्य देश की यात्रा के दौरान ये वैक्सीन पास सामान्य पासपोर्ट की तरह ही काम करता है. इसकी वजह से लोगों को कोविड से सुरक्षित माना जाता है और उन्हें यात्रा के दौरान क्वारंटीन जैसे नियमों का पालन करने की बाध्यता नहीं होती है. चीन, जापान, अमेरिका समेत कई देशों ने वैक्सीन पासपोर्ट को जरूरी बना दिया है. भारत में कोविशील्ड का टीका लगवा चुके लोगों को हाल ही में यूरोपियन यूनियन के 9 देशों में यात्रा करने की छूट मिली है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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