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Updated: 24 नवम्बर, 2017 02:44 PM
अनंत कृष्णन
अनंत कृष्णन
  @ananthkrishnan
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भारत के किसी भी नेता के अरुणाचल प्रदेश यात्रा और चीन का उसपर रोष व्यक्त करना अब एक नियम हो गया है. इस हफ्ते भी ऐसा ही हुआ. रविवार को भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अरुणाचल की यात्रा की और वहां की विधानसभा को संबोधित किया. उधर से चीन ने बयान जारी कर कह दिया कि भारत के राष्ट्रपति की इस यात्रा की वो 'कड़ी निंदा' करता है और कहा कि- 'अरुणाचल प्रदेश को कभी मान्यता नहीं दी'.

चीन के बयान मुख्यत: भारत के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और दलाई लामा के अरुणाचल दौरे के लिए रिजर्व होते हैं. हालांकि इस महीने के शुरुआत में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण के दौरे पर भी उसने अपना रोष जताया था. लेकिन ये अपेक्षित नहीं था. शायद ये वक्तव्य ऑफिस ब्रीफिंग के दौरान एक भारतीय मीडिया द्वारा दौरे से संबंधित सवाल पूछने के दवाब की वजह से दिया गया था.

चीन की आधिकारिक न्यूज एजेंसी शिन्हुआ ने सोमवार को इस दावे को दोहराया कि "तथाकथित अरुणाचल प्रदेश, बड़े पैमाने पर चीनी-तिब्बत के तीन क्षेत्रों पर स्थापित किया गया था-मोन्यूल, लोयूल और लोअर सायूल. ये तीनों ही क्षेत्र अभी भारत के अवैध कब्जे में हैं. ये तीनों क्षेत्र अवैध 'मैकमोहन लाइन' और भारत-चीन के परंपरागत सीमा पर स्थित हैं." इसमें ये भी जोड़ा कि- "1914 में ब्रिटिश उपनिवेशवादियों ने गुप्त रूप से 'मैकमोहन लाइन' में चीनी क्षेत्र के उपरोक्त तीनों क्षेत्रों को भारत में शामिल किया. चीन की सरकार में से कोई भी इस रेखा को कभी मान्यता नहीं देता है."

china, arunachal pradeshचीन की दाल यहां नहीं गलने वाली

चीन के मानचित्र में अभी भी अरुणाचल के 90,000 किलोमीटर हिस्से को चीन का भाग दिखाया जाता है. हालांकि चीन के इस दावे के बारे में भारतीय अधिकारी कहते हैं कि इतिहास में इनका कोई आधार नहीं है. वहीं दूसरी तरफ भारत, चीन के कंट्रोल वाले अक्साई चीन के 38,000 किलोमीटर हिस्से को अपना बताता है.

इस उदाहरण में, बीजिंग का वक्तव्य नए प्रतिनिधिमंडल के विशेष प्रतिनिधि (एसआर) अजित डोवाल और यांग जीईची के बीच सीमा वार्ता के 20वें दौर से पहले के सप्ताह आया है. यांग जीईची का ये एसआर के रूप में आखिरी राउंड हो सकता है. उन्हें अक्टूबर में 25 सदस्यीय पोलितब्यूरो में पदोन्नत किया गया था और मार्च में चीनी संसद की शुरुआत होने के साथ उन्हें कोई बड़ा पद सौंपा जा सकता है.

चीन की रणनीति हैरान करने वाली है. ऐसा लगता है चीन इन दौरों को राज्यों पर अपने क्षेत्रीय दावों को दोहराने के लिए उपयोग करना चाहता है. लेकिन बीजिंग को पता नहीं है कि कोई भी भारतीय नेता किसी ऐसे राज्य की यात्रा को समाप्त नहीं करेगा जो भारत का अभिन्न अंग है. चीन के पीएलए जनरल हर साल अक्साई चिन में जाते हैं, भारत ने कभी इन यात्राओं का सार्वजनिक रूप से विरोध नहीं किया है.

भारत और चीन दोनों ने वार्ता के जरिए विवाद सुलझाने के लिए सार्वजनिक रूप से प्रतिबद्ध हैं. उन्होंने एक अनुकूल माहौल बनाने के लिए प्रतिबद्धता जाहिर की है. लेकिन चीन के सार्वजनिक बयान इस माहौल को बिगाड़ते हैं.

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अनंत कृष्णन अनंत कृष्णन @ananthkrishnan

लेखक चीन में इंडिया टुडे के संवाददाता हैं.

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