New

होम -> सियासत

 |  4-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 22 अगस्त, 2018 01:22 PM
आईचौक
आईचौक
  @iChowk
  • Total Shares

हाल के दिनों में पाकिस्तान और चीन का लव अफेयर पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना हुआ है. चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) के तहत चीन 55 अरब डॉलर का निवेश पाकिस्तान में कर रहा है. चीनी साम्राज्यवाद के चंगुल में पाकिस्तान का ग्वादर पोर्ट तो पहले ही बलि चढ़ चुका है, अब खबर आ रही है कि चीन सामरिक रूप से महत्वपूर्ण शहर ग्वादर में कॉलोनी बसाने की तैयारी कर रहा है. दक्ष‍िण एशिया में चीन की यह अपने तरह की पहली कॉलोनी होगी. आपको बतातें चलें कि पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के तटीय कस्बे ग्वादर और इसके आसपास के इलाके को 1958 में पाकिस्तान सरकार ने ओमान से ख़रीदा था.

चीन,ग्वादर पोर्ट, चीनी नागरिकग्वादर पोर्ट के रास्ते चीन अरब सागर तक पहुंचना चाहता है.

एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन 5 लाख चीनी नागरिकों को बसाने की तैयारी कर रहा है और इस पूरे प्रोजेक्ट की लागत 150 मिलियन डॉलर है. ये नागरिक चीन के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट सीपीईसी के लिए बतौर कामगार काम करेंगे. इस शहर में सिर्फ चीन के नागरिक होंगे और इसका सीधा मतलब है कि चीन अब पाकिस्तान को अपने उपनिवेश के रूप में इस्तेमाल करेगा. चीनी पैसे के लिए पाकिस्तान अपनी संप्रभुता को गिरवी रखने में भी कोई संकोच नहीं कर रहा है. पाकिस्तान की सरकार चीन को पाकिस्तान का सबसे बड़ा दोस्त बताती रही है लेकिन ये ये एक ऐसी दोस्ती प्रतीत होती है जिसमें चीन आका है और पाकिस्तान उसका गुलाम.

चीनी भाषा की घुसपैठ

हाल ही में पाकिस्तान की संसद ने एक प्रस्ताव पारित कर देश में चीनी भाषा पर आधारित पाठ्यक्रम पढ़ाए जाने की सिफारिश की थी. ग्वादर के स्कूलों में चीनी भाषा को पाठ्यक्रम में शामिल किया जा चुका है. लोगों को चीनी भाषा सिखाई जा रही है ताकि वो चीनी लोगों से बातचीत के दौरान सहज हो सकें. चीन का पैसा, भाषा और उसकी संस्कृति इस पूरे क्षेत्र को अपने गिरफ्त में ले चुकी है और आने वाले दिनों में ग्वादर से लेकर पूरे बलूचिस्तान पर चीन की आर्थिक घेरेबंदी का खतरा लटक रहा है.

ग्वादर का अंकगणित

चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर के तहत ग्वादर पोर्ट को भी विकसित किया जाना है. चीन का इसके राजस्व पर 91 फ़ीसदी अधिकार होगा और ग्वादर अथॉरिटी पोर्ट को महज 9 फ़ीसदी मिलेगा. ज़ाहिर है अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान के पास 40 सालों तक ग्वादर पर नियंत्रण नहीं रहेगा. सीक्यांग प्रांत को पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से जोड़कर चीन सीधा अरब सागर तक पहुंचना चाहता है. पहले उच्च दरों पर कर्ज मुहैया करवाना और कर्ज न चुका पाने की स्थिति में पूरे पोर्ट पर कब्जा करना चीन की फितरत बन चुका है. श्रीलंका का हम्बनटोटा बंदरगाह चीन के भारी कर्ज की भेट चढ़ चुका है और पाकिस्तान का ग्वादर पोर्ट भी उसी रास्ते पर आगे बढ़ रहा है.

हाल-फिलहाल में पाकिस्तान के कई इलाकों में चीनी नागरिकों और इंजीनियरों की गुंडागर्दी का मामला सामने आया है. आम जनता से लेकर पाकिस्तान की पुलिस भी इनका निशाना बन रहे हैं. चीन के लोग पाकिस्तानियों को उसी हीन भावना से देखते हैं जिस तरह से ब्रिटिश भारतीयों को देखते थे. चीन की कंपनियां भी नए जमाने की 'ईस्ट इंडिया कंपनी' प्रतीत हो रहीं हैं.

चीन 2015 के बाद सीपीईसी प्रोजेक्ट के तहत 18.5 अरब डॉलर खर्च कर चुका है. सुपरपावर बनने की सनक में चीन ने दक्षिण एशिया और सेंट्रल एशिया के उन देशों को अपना निशाना बनाया है जिनकी अर्थव्यवस्था गर्त में है. महंगे कर्ज और उसके बाद उनके प्राकृतिक संसाधनों की लूट चीन की नव उपनिवेशवाद की रणनीति का सुनियोजित हिस्सा है. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को जीवनदान देने के एवज में अपने नागरिकों को ग्वादर में बसाना पूरे पाकिस्तान का 'मेड इन चाइना' है.

कंटेंट- विकास कुमार (इंटर्न- आईचौक)

ये भी पढ़ें -

CPEC: पाकिस्तान खफा है, चीन बेवफा है !!

चीन के 'वन बेल्ट वन रोड' की हवा निकलनी शुरू हो गई है

पाकिस्तान को सर्जिकल स्ट्राइक की नहीं आर्थिक स्ट्राइक की जरूरत है

 

लेखक

आईचौक आईचौक @ichowk

इंडिया टुडे ग्रुप का ऑनलाइन ओपिनियन प्लेटफॉर्म.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय