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Updated: 24 मई, 2022 05:44 PM
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साल 1669 की जनवरी में ज्ञानवापी परिसर आखिरी बार प्रत्यक्ष और भयानक हमले का शिकार हुआ. तब से मई 2022 तक कमोबश वही स्थिति थी जो 353 साल पहले बनी थी. हालांकि काशी के विश्वेश तीर्थ से भगवान विश्वेश्वर को तो 1669 से भी 475 साल पहले 1194 में ही विस्थापित कर दिया गया था.लेकिन अब 21 मई 2022 को शायद समय का चक्र घूम गया. पिछले साढ़े तीन सौ सालों से चली आ रही ठसक ठिठक गई. गुजरी साढ़े तीन सदियों से लगातार बेरोकटोक मस्जिद में आने जाने वजू नमाज पर मानों पहरा लग गया. मस्जिद के लाउड स्पीकर से एलान करना पड़ा कि ज्ञानवापी में अब बस करें! मस्जिद में जगह भर गई है. वजू करने की जगह सील है. घरों से वजू करके आएं. बेहतर होगा कि मोमिन अपने घरों के आसपास गली मुहल्लों की मस्जिदों में ही जुमे की नमाज अदा करें. अल्लाह के सभी घर एक से ही हैं. अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है की इतिहास जब करवट लेता है तो शाही और हुक्मरानी ठाठ की ठसक भी ऐसे ही ठिठक जाती है. अब बेरोकटोक आवाजाही पर विश्वेश्वर का पहरा है. विश्वेश्वर अकेले नहीं सौ डेढ़ सौ गणों के साथ वहां चौबीस घंटे रहेंगे. सीसीटीवी कैमरों जी निगहदारी में बाबा के गण चाक चौबंद रहेंगे वहीं सुरक्षा कर्मियों यानी पीएसी, सीआईएसएफ, सीआरपीएफ की वर्दी पहने.

Gyanvapi Mosque, Kashi, Supreme Court, Hindu, Muslim, Allahabad High Court, Judge, Verdictज्ञानवापी मस्जिद परिसर में मुस्लिमों ने मांग की है कि वजू के लिए भी सरोवर के आसपास लगे नल खुलवा दिए जाएं

सुप्रीम कोर्ट से लेकर जिला अदालत तक के आदेश के मुताबिक 'शिवलिंग' की जटिल सुरक्षा होगी. जब 'वापी' भी सील हो गई तो सबके ज्ञान चक्षु भी खुल गए. क्योंकि सुरक्षाकर्मियों में से कई तिलक शिखाधारी भी हो सकते हैं. इस भीषण गर्मी और ऊमस में तरबतर वर्दी के ऊपर गले में गमछा डाले पुलिस वाले!

अदालत में भी मस्जिद के पैरोकारों ने माई लॉर्ड से गुहार लगाई कि जब नमाजियों को इजाजत मिल ही गई है पांच वक्त नमाज अदा करने की तो वजू के लिए भी सरोवर के आसपास लगे नल खुलवा दिए जाएं.

वाक्य पूरा होने से पहले ही यूपी सरकार की पैरवी कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कड़ी आपत्ति करते हुए कहा कि इंतजाम तो डीएम साहब ने तीन दिन पहले ही करा दिए हैं. अब साहब वापी नल तो सब कल की बात हो गए. अब तो बाद ड्रममें भरे पानी और टोंटीदार लोटे या मग का ही सहारा है. अब तो टोंटीवाले बधना से ही लगना पड़ेगा.

अब कल्पना कीजिए कि कोई ' आगंतुक' या ' नमाजी' उत्सुकता या चिढ़ से 'वापी या शिवलिंग' की ओर घूर कर भी देखेगा तो सुरक्षा कर्मी घुड़क देंगे - आगे बढ़ो यहां क्या है? तुम्हारे काम का कुछ नहीं है यहां! आगे चलिए.. चलिए... पहले पूरा अहाता अपना था अब ठसक से कानूनी तौर पर वहां जगह घिर गई है.

किलेबंदी भी हो गई. अदालतों और कानूनी प्रक्रिया की रफ्तार के बारे में तो सुप्रीम कोर्ट के एक जज ने ही एक मुकदमे की सुनवाई के दौरान टिप्पणी की थी कि कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं पर पैर छोटे होते हैं. हमारे तो ज्ञान चक्षु तभी खुल गए थे और साफ साफ दिख गया और दिमाग में छप गया कि यही वजह है कि एक बार मामला अदालत में चला जाए तो फिर इतना धीरे धीरे शनै: शनै: क्यों चलता है बिलकुल शनि की चाल से!

तो साहब बाबा का पहरा कितने सालों चलेगा किसी को नहीं मालूम. निचली अदालत, हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट, तारीख पर तारीख, सुनवाई, नोटिस, जवाब, हलफनामा, फैसला, रिव्यू, क्यूरेटिव न जाने कितने मोड़ आएंगे... समय का चक्र न जाने कितनी बार कभी तेज और कभी मंथर चलेगा.

लेकिन ठसक को ठेस लग गई है तो ये चोट कब सही होगी ये कोई नहीं बता सकता. हो सकता है जितने साल रामलला टेंट में रहे कम से कम उसी अनुपात में बाबा अपनी धूनी वहीं रमा लें! और अगर औघड़ की ध्यान समाधि वहीं लग गई तो? हमारा लोकतंत्र और इस के स्तंभ भी तो कई बार ऐसे ही समाधि में चले जाते हैं!

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लेखक

संजय शर्मा संजय शर्मा @sanjaysharmaa.aajtak

लेखक आज तक में सीनियर स्पेशल कॉरस्पोंडेंट हैं.

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