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Updated: 22 नवम्बर, 2017 02:26 PM
आलोक रंजन
आलोक रंजन
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राहुल गांधी का कांग्रेस अध्यक्ष बनने का रास्ता साफ हो गया है. कुछ ही दिनों में, संभवत वे 4 दिसंबर को ही आधिकारिक रूप से पार्टी प्रमुख बन जाएं. कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए होने वाले चुनाव के कार्यक्रम की घोषणा कर दी गई. घोषित कार्यक्रम के अनुसार, चुनाव की अधिसूचना 1 दिसंबर को जारी होगी, और नामांकन पत्र भरने की अंतिम तारीख 4 दिसंबर रखी गयी है. यदि एक से अधिक नामांकन दाखिल होते हैं तो चुनाव की नौबत आ सकती है. चुनाव की तिथि 16 दिसंबर रखी गयी हैं और अगर चुनाव हुआ तो रिजल्ट 19 दिसंबर को आएगी.

हालांकि ये बिलकुल तय हैं की राहुल गांधी के खिलाफ कोई भी नेता खड़ा नहीं होगा और इसलिए 4 दिसंबर को बिना किसी विरोध के उनका चुना जाना निश्चित है. कांग्रेस का अध्यक्ष बन जाने के बाद राहुल गांधी को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. एक तरफ उन पर दबाव रहेगा कि आने वाले विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा इलेक्शन में कांग्रेस की जीत को सुनिश्चित करना, तो दूसरी और एक नए कोर टीम का गठन करना जो उनके सिद्धांतो और विज़न को भारत की जनता से कनेक्ट कर सके, साथ ही साथ कांग्रेस के पुराने और बुजुर्ग सिपासलाहकारो और युवा नेताओं में सामंजस्य बैठाना भी एक कड़ी चुनौती होगी.

राहुल गांधी, कांग्रेस, अध्यक्ष  मौजूदा परिदृश्य को देखकर कहा जा सकता है कि राहुल के लिए संघर्षों के दिन शुरू होने वाले हैं

राहुल गाँधी अगर कांग्रेस के अध्यक्ष बनते हैं तो वो नेहरू परिवार की पांचवीं पीढ़ी के अध्यक्ष होंगे. मोतीलाल नेहरू इस पद पर रह चुके हैं. उसके बाद जवाहरलाल नेहरू भी इस पद की गरिमा को बढ़ा चुके हैं. जवाहरलाल नेहरू के बाद इंदिरा गांधी और राजीव गांधी भी कांग्रेस के इस सर्वाच्च पद पर रहे हैं. राहुल गांधी अब भारत की सबसे पुरानी पार्टी के सर्वोच्च पद पर बैठने जा रहे हैं. जहाँ एक और उनपर गांधी परिवार की विरासत को बचाने और आगे बढ़ने का दबाव रहेगा तो दूसरी और गांधी परिवार की परछाई से बाहर आकर अपना एक मुकाम तलाशने की चुनौती होगी. राहुल गांधी के कुछ मुख्य चुनौतियों पर गौर करते हैं.

कांग्रेस की असफलता के लिए उत्तरदायी वे खुद होंगे

कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद जीत और हार, सफलता और असफलता के लिए डायरेक्ट तौर पर वे खुद उत्तरदायी होंगे. कांग्रेस जिस दौर से गुजर रही हैं उसमे कांग्रेस को जहाँ चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने का प्रेशर रहेगा तो विपक्ष के खिलाफ रणनीतिक चक्रव्यूह बनाने का सारा दारोमदार उनपर ही रहेगा.

आने वाले चुनावों में कांग्रेस की साख बचाने का प्रेशर

राहुल गाँधी की संगठनात्मक क्षमता का टेस्ट अगले साल यानि 2018 में पता चलेगा जब 8 राज्यों में विधानसभा के चुनाव होंगे. जिन 8 राज्यों में चुनाव होना है उनमे नार्थ-ईस्ट के 4 राज्य मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा के अलावा 4 अन्य राज्य राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक हैं. इन चारों राज्य में पिछले दो दशक से कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी चुनावी लड़ाई होती आयी है. राहुल गांधी पर जहाँ दारोमदार रहेगा कर्नाटक में सत्ता बचाने का तो अन्य तीनों राज्य से बीजेपी सरकार को बेदखल करने का भी प्रेशर रहेगा. साथ ही साथ 2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का नेतृत्व राहुल गांधी खुद करेंगे और वो ऑटोमेटिकली प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार कहलायेंगे. मतलब साफ हैं कांग्रेस का परचम ऊँचा उठाने और गिराने की सारी जवाबदेही उन पर खुद रहेगी.

नई टीम तैयार करने का चैलेंज

राहुल गांधी को अध्यक्ष बनने के बाद नए सलाहकारों की टीम तैयार करना होगा. उनके लिए ये चैलेंज से कम नहीं होगा की अपने टीम में वो नए चेहरों को किस तरह जगह देते हैं. साथ में दबाव यह भी रहेगाकि पुराने पीढ़ी के नेता और वर्तमान युवा नेताओं में वो किस तरह सामंजस्य बैठाते हैं. गांधी परिवार से जुड़े पुराने नेताओ का उनकी टीम में क्या स्थान रहता हैं यह देखने वाली बात है.

एंटी-मोदी एलायंस को कायम रखना

2014 के बाद से विपक्षी पार्टियां एंटी-मोदी एलायंस को लेकर सोनिया गांधी के इर्द-गिर्द लामबंद रही हैं. एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार, डीएमके चीफ करूणानिधि, तृणमूल चीफ और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव, बसपा की मायावती और राष्ष्ट्रीय जनता दल के लालू यादव सबको सोनिया गांधी स्वीकार्य थी. राहुल गांधी राजनीती के इन धुरंधरों से कैसे डील करते हैं ये देखने वाली बात है.

राजनीतिक विज़न

अभी तक ज्यादातर वक्त उनका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अटैक करने में ही गया है. नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पिछले कई सालों से लगातार बढ़ोतरी में है. राहुल गांधी का मोदी को अटैक करने का गैम्बल कांग्रेस के लिए फायदेमंद साबित नहीं हो पाया है. मोदी को काउंटर करने और कांग्रेस को ऊंचाई में पहुंचने के लिए नए विज़न और रणनीति की कल्पना करनी होगी.

अनुभवहीनता

राहुल गांधी के लिए एक और बाधा प्रशासक के रूप में उनकी अनुभवहीनता है. उन्होंने पिछली कांग्रेस सरकारों में कोई पद नहीं संभाला है और यही कारण है कि कोई भी नहीं जानता कि वह सत्ता में निर्वाचित होने पर कैसा प्रदर्शन करेंगे. उनकी पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती जनता को समझाना है कि वो नरेंद्र मोदी की तुलना में प्रधानमंत्री पद के लिए एक बेहतर विकल्प हो सकते हैं.

जनता से कनेक्ट स्थापित करना

राहुल द्वारा पिछले वर्षो में जनता से कनेक्ट के तमाम संवादों को प्रोपोगंडा या कहे तो photo-ops ठहराया गया है. पिछले चुनावों में मतदाताओं ने उनको इस कारण से नकार दिया था. देखना है कि आने वाले समय में वो जनता से कैसा संवाद स्थापित करते हैं.

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लेखक

आलोक रंजन आलोक रंजन @alok.ranjan.92754

लेखक आज तक में सीनियर प्रोड्यूसर हैं.

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