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Updated: 19 नवम्बर, 2017 02:40 PM
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अंग्रेजी में एक कहावत का मतलब है - अच्छी शुरुआत हो तो समझो आधा काम हो गया. अमेरिका में राहुल गांधी ने अच्छी शुरुआत की और गुजरात पहुंच कर उन्होंने आधा काम भी कर लिया है. और कुछ हो न हो, ये तो मानना ही पड़ेगा कि गुजरात चुनाव ने फिलहाल 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी' का रूप तो ले ही लिया है.

राहुल गांधी थोड़ी देर से तो आये लेकिन दुरूस्त होकर आ रहे हैं. कांग्रेस उपाध्यक्ष का पद उनके लिए इंटर्नशिप की तरह रहा लेकिन उसमें चार साल लग गये. 2013 में राहुल गांधी कांग्रेस के उपाध्यक्ष बनाये गये थे - और अब उन्हें अध्यक्ष पद पर बैठाने की प्रक्रिया औपचारिक तौर पर शुरू होने जा रही है.

राहुल गांधी के लिए सोशल मीडिया से होते हुए 'पप्पू' शब्द बीजेपी के कैंपेन में भी घुस चुका था, लेकिन चुनाव आयोग के ऐतराज पर बदलना पड़ा. बीजेपी अब राहुल गांधी के लिए कैंपेन में 'युवराज' कहती है - और वो अब नये अवतार में आने वाले हैं.

अब तक

माना जाता रहा है कि प्रधानमंत्री के पद का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इसी राह पर चलते हुए पहले जड़ें मजबूत करने के लिए अमित शाह को भेजा और फिर वाराणसी को खुद के लिए चुनावी क्षेत्र बनाया. यूपी का रुख करने से पहले मोदी सारे सियासी एक्सपेरिमेंट गुजरात में कर चुके थे.

rahul gandhiकैसी होगी नवसर्जन यात्रा के आगे की राह...

राहुल गांधी तो यूपी से सांसद ही हैं, लेकिन मोदी की तरह लगता है उन्हें भी गुजरात की उतनी ही जरूरत थी, एक्सपेरिमेंट के लिए. गुजरात पहुंच कर राहुल ने भी वे सारे प्रयोग किये जो अब तक नरेंद्र मोदी करते आये हैं. गुजरात के मुख्यमंत्री रहते नरेंद्र मोदी भी चुनाव प्रचार के दौरान मंदिरों में खूब जाते रहे - राहुल गांधी ने भी अपने नवसर्जन यात्रा के दौरान रास्ते के सभी प्रमुख मंदिरों में दर्शन किया. राहुल गांधी अपनी नवसर्जन यात्रा में लोगों के बीच गये. किसानों, कारोबारियों, महिलाओं और युवाओं के बीच पहुंच कर उनसे बात की. कुछ अपने मन की कुछ उनके मन की. उन्हें सेल्फी का मौका दिया. यूपी की तरह खाट सभा तो नहीं की, लेकिन गांव गांव पहुंच कर चौपाल जरूर लगाये - और जी भर बातें की.

अब तक राहुल गांधी पर तोहमत रही कि उन्हें न तो राजनीति में दिलचस्पी है और न ही किसी कार्यकर्ता या नेता से मुलाकात में. एक नेता ने तो यहां तक इल्जाम लगाया था कि मिलने पर राहुल गांधी कार्यकर्ताओं से ज्यादा अपने पालतू कुत्तों में दिलचस्पी लेते थे. राहुल गांधी ने गुजरात दौरे में इस धारणा को भी बदलने की पूरी कोशिश की. वो जगह जगह नेताओं के साथ ढाबों पर पकौड़े और चाय पीते हुए बातचीत करते नजर आये. तेजस्वी यादव उनसे मिलने पहुंचे तो वो लंच करने बाहर लेकर गये.

rahul gandhiबदले बदले राहुल गांधी

बीजेपी विरोध के नाम पर ही सही, हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर जैसे युवा नेताओं ने कांग्रेस में जो दिलचस्पी दिखाई उसमें राहुल गांधी की मौजूदगी भी अहम रही. गुजरात की लड़ाई में इन नेताओं को सहयोगी बनाकर राहुल ने भी एक तरीके से युवाओं को संदेश देने की कोशिश की है. तेजस्वी यादव के साथ लंच के लिए बाहर जाने का फैसला भी राहुल गांधी की इसी रणनीति का हिस्सा समझा जाना चाहिये.

अब आगे

राहुल गांधी वैसे तो प्रधानमंत्री मोदी की जब कभी नकल उतारते हैं तो वो उनके तंज कसने का तरीका होता है. लेकिन उससे इतर भी देखें तो कई मौकों पर वो मोदी की कॉपी करते दिखते हैं. राहुल गांधी पहले भी लोगों से सवाल जवाब करते थे लेकिन अक्सर खुद ही सवाल करते और जवाब भी खुद ही देते. अब उनकी पब्लिक मीटिंग में लोगों से सीधे संवाद और सवाल जवाब करते देखने को मिलता है.

हाल ही में मोदी के नौ हजार ट्वीट के अध्ययन पर एक रिपोर्ट आई है. इंटरनेशनल जर्नल ऑफ कम्युनिकेशन में प्रकाशित एक अध्ययन मे बताया गया है प्रधानमंत्री मोदी के ट्वीट में खास तौर पर नौ बातों पर जोर रहता है - क्रिकेट, राहुल गांधी, मनोरंजन, व्यंग्य, भ्रष्टाचार, विकास, विदेशी मामले, हिंदू धर्म, विज्ञान और तकनीक.

अगर गुजरात में कांग्रेस का कैंपेन - 'विकास पागल हो गया है' देखें तो उसमें भी मोदी शैली की छाप दिखती है. कांग्रेस ने अपने कैंपेन में मोदी पर निजी हमले से बचने का फैसला किया लेकिन बाकी तेवर तो बरकरार ही है. अगर चुनाव पूर्व असर के हिसाब से देखें तो कांग्रेस का ये कैंपेन बीजेपी के कांग्रेस मुक्त भारत की ही तरह प्रभाव जताने वाला रहा है. ये कैंपेन औ राहुल गांधी का एनडोर्समेंट बीजेपी को अलर्ट मोड में तो लाया ही बाद में उसे सत्ता बचाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाने पर मजबूर कर दिया. हालांकि, कांग्रेस ने ये कैंपेन अब वापस ले लिया है.

अब राहुल गांधी औपचारिक तौर पर कांग्रेस की कमान संभालने जा रहे हैं. वैसे उसकी भी औपचारिकता भर ही बाकी है. कई सीनियर कांग्रेस नेता तो पहले भी कह चुके हैं राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर ही काम कर रहे हैं. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अब तो नियुक्तियों में भी सोनिया गांधी की जगह खुद राहुल गांधी ही दस्तखत करने लगे हैं.

सोनिया गांधी इस साल हुए पांच विधानसभा चुनाव से दूर ही रहीं. अभी हो रहे गुजरात और हिमाचल चुनाव से तो दूर दूर तक नाता नहीं नजर आया. कहा तो यही गया कि सोनिया ने सेहत की वजह से दूरी बनायी, संभव है हालात के चलते ही सही कोई रणनीति भी छिपी हो. सेहत खराब होने के बावजूद राष्ट्रपति चुनाव के दौरान सोनिया को अस्पताल से ही विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश करते देखा गया. माना जा रहा है कि राहुल गांधी के अध्यक्ष बन जाने के बाद सोनिया गांधी गठबंधन के साथियों के साथ समन्वय और सत्ता के खिलाफ विपक्ष की मोर्चेबंदी का काम देख सकती हैं. अब तक यही माना जा रहा है कि गुजरात चुनाव के पहले चरण की वोटिंग से पहले ही राहुल गांधी की ताजपोशी हो चुकी होगी. गुजरात में पहले चरण का चुनाव 9 दिसंबर को है.

जिस तरह कांग्रेस के सीनियर नेता भी राहुल का नेतृत्व स्वीकार करने लगे हैं, गठबंधन की ओर से भी सपोर्ट आने लगा है. शरद पवार तक ने राहुल की तारीफ की है. वैसे तो शिवसेना और राज ठाकरे की ओर से राहुल के पक्ष में बयान आ चुके हैं, भले ही मोदी के प्रति कड़ा विरोध जताने का जरिया भर हो.

राहुल के सामने सोनिया जैसी चैलेंज तो नहीं हैं, लेकिन चुनौतियों का अंबार लगा है. सबसे जरूरी तो उन्हें कार्यकर्ताओं को भरोसा दिलाना होगा. अगर वो कार्यकर्ताओं से चुनाव जिताऊ होने की अपेक्षा रखते हैं तो उन्हें खुद के लिए भी ये बात साबित करनी होगी. राहुल गांधी को सीखना होगा कि युवाओं के साथ साथ सीनियर नेताओं के अनुभव का वो कैसे इस्तेमाल करें. कैसे कांग्रेस के अंदर हर स्तर पर घर बना चुकी गुटबाजी को खत्म करने का रास्ता निकालें?

कौन बनेगा करोड़पति में होस्ट अमिताभ बच्चन जब किसी प्रतियोगी से कहते हैं - 'आपका समय शुरू होता है अब' तो उसके पास महज तीस सेकंड का वक्त होता है. राहुल गांधी के वचन देने के बाद कांग्रेस पार्टी भी उनके लिए 'कौन बनेगा प्रधानमंत्री' प्रोग्राम की ही तैयारियों में जुटी है. अब राहुल गांधी के सामने जिस हिसाब से पार्टी को पूरे देश में स्थापित करने की चुनौती है. प्रदेश स्तर पर भयंकर गुटबाजी है, स्थानीय स्तर पर संगठन बिखरा पड़ा है. मौजूदा दौर में बगैर गठबंधन के काम नहीं चलने वाला.

जितनी चुनौतियां हैं उनके हिसाब से देखें तो राहुल गांधी के पास भी हरेक काम के लिए तीस सेकंड से ज्यादा वक्त शायद ही बचा हो - अगर 2019 के हिसाब से सोचें तो. अगर तैयारी आगे की है फिर तो कहना ही क्या पूरा टाइम है, शायद टाइमपास के लिए भी.

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