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Updated: 18 सितम्बर, 2022 04:05 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt. Amrinder Singh) साल भर के भीतर ही राजनीति में अपनी तीसरी पारी शुरू करने जा रहे हैं. पंजाब के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के बाद कैप्टन ने पंजाब लोक कांग्रेस नाम से अपनी नयी राजनीतिक पार्टी बनायी थी - और अब वो भारतीय जनता पार्टी के साथ राजनीति की नयी पारी शुरू करने जा रहे हैं.

20 सितंबर तक पंजाब के मुख्यमंत्री रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह अपने इस्तीफे की सालगिरह की पूर्वसंध्या पर 19 सितंबर को बीजेपी ज्वाइन करने जा रहे हैं. कैप्टन अमरिंदर सिंह ने 2 नवंबर, 2021 को पंजाब लोक कांग्रेस बनायी थी - और वो एक साल की उम्र भी पूरी नहीं कर पायी है. बीजेपी ज्वाइन करने के साथ ही कैप्टन अमरिंदर सिंह अपनी पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस का भी बीजेपी में विलय करने का फैसला कर चुके हैं.

पंजाब विधानसभा चुनाव में कैप्टन अमरिंदर की पार्टी को तो कुछ भी नहीं मिल सका, लेकिन गठबंधन करने के बावजूद बीजेपी भी दो सीटों से आगे नहीं बढ़ सकी. कृषि कानूनों के विरोध में अकाली दल के एनडीए छोड़ने के बाद से ही बीजेपी पंजाब में अपने बूते पांव जमाने की कोशिश में लगी हुई है.

पंजाब लोक कांग्रेस अपनी उम्र पूरी कर चुकी है - और देखा जाये तो मकसद भी हासिल हो ही चुका है. ये बात अलग है कि जैसी अपेक्षा रही होगी, वैसा कुछ न हो सका. फिर भी कैप्टन ने सक्रिय राजनीति में बने रहने का फैसला किया है.

उम्र तो कैप्टन अमरिंदर सिंह की भी काफी हो चुकी है, लेकिन दुनिया के हर सिद्धांत और हर नियम के अपवाद भी तो होते ही हैं. 75 साल से ऊपर के मुख्यमंत्री होकर बीएस येद्दियुरप्पा तो उम्र की सीमा और बंधन दोनों ही तोड़ चुके हैं. हाल ही में बीएस येद्दियुरप्पा को बीजेपी के संसदीय बोर्ड में शामिल किया गया है.

चुनावों के वक्त तो आवाजाही लगी ही रहती है. कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2018 से करीब साल भर पहले कांग्रेस छोड़ कर एसएम कृष्णा ने बीजेपी ज्वाइन की थी. 90 साल के हो चुके एसएम कृष्णा जब 2017 में भगवा धारण किये तब वो 85 साल के हो चुके थे. मतलब, कैप्टन अमरिंदर सिंह से भी पांच साल ज्यादा उम्र के थे. कर्नाटक में एसएम कृष्णा को बीजेपी ने वोक्कालिगा वोट हासिल करने के मकसद से पार्टी में शामिल कराया था. येद्दियुरप्पा लिंगायतों के बड़े नेता माने रहे हैं, लेकिन बगैर ऑपरेशन लोटस के वो सत्ता हासिल ही नहीं कर पाते थे, लिहाजा एसएम कृष्णा को लाकर पार्टी ने प्रयास किये, लेकिन सब कुछ बेकार की कवायद साबित हुआ.

फर्ज कीजिये कैप्टन अमरिंदर सिंह 80 के नहीं होते, तो क्या हिमंत बिस्वा सरमा से उनकी तुलना नहीं की जाती? हिमंत बिस्वा सरमा कांग्रेस से बीजेपी में आकर मुख्यमंत्री बनने वाले पहले नेता के रूप में जाने जाते हैं.

कैप्टन अमरिंदर सिंह भले ही औपचारिक रूप से अब बीजेपी ज्वाइन करने जा रहे हों, लेकिन वो तो बहुत पहले ही बीजेपी के हो गये थे. कांग्रेस ने तो उनको हटाते वक्त ही बोल दिया था कि वो दिल्ली से आदेश लेते थे. वैसे दिल्ली में तो सोनिया गांधी और राहुल गांधी भी रहते हैं, लेकिन कांग्रेस नेताओं का इशारा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) की तरफ था.

कांग्रेस तो पंजाब में सत्ता से बेदखल हो चुकी है, लेकिन अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के सरकार बना लेने के बाद फिलहाल तो बीजेपी की मुश्किलें बढ़ी हुई ही मानी जाएंगी. बहरहाल, अब ये देखना होगा कि बढ़ती उम्र में राजनीति के इस पड़ाव पर कैप्टन अमरिंदर सिंह बीजेपी के लिए क्या कर पाते हैं - और अगर वो अपने दम पर कुछ नहीं कर पाते तो बीजेपी कैप्टन का क्या इस्तेमाल करती है?

पूरे परिवार और पार्टी के साथ कैप्टन ज्वाइन करेंगे बीजेपी

एक पखवाड़े के अंदर ही कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और फिर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी - और तभी से पंजाब लोक कांग्रेस के बीजेपी में विलय की चर्चा होने लगी थी.

capt. amrinder singh, amit shahआने वाले विधानसभा चुनावों में कैप्टन अमरिंदर सिंह बीजेपी के स्टार प्रचारक बन सकते है

सीनियर बीजेपी नेता अमित शाह के साथ करीब 45 मिनट की मुलाकात के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह बाहर आये तो बीजेपी में अपनी पार्टी के विलय की चर्चाओं को खारिज कर दिया था. बोले, ये सिर्फ अटकलें हैं. मगर, अब पक्की खबर मिली है कि 19 सितंबर को कैप्टन अमरिंदर सिंह अपने परिवार के लोगों और करीब आधा दर्जन समर्थक पूर्व विधायकों के साथ दिल्ली में ही बीजेपी ज्वाइन करेंगे - और ये सब बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और कुछ सीनियर नेताओं की मौजदूगी में होगा.

बताते हैं कि कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ उनके बेटे रणइंदर सिंह, बेटी जयइंदर कौर और नाती निर्वाण सिंह भी बीजेपी में शामिल होंगे. खास मौके को बेहद खास बनाने के लिए जयइंदर कौन ने कैप्टन अमरिंदर सिंह के तमाम करीबियों और समर्थकों को 19 सितंबर को दिल्ली पहुंचने के लिए कहा है. असल में, जयइंदर कौर ही फिलहाल कैप्टन अमरिंदर सिंह का पूरा राजनीतिक कामकाज संभाल रही हैं.

कैप्टन अमरिंदर सिंह 30 अगस्त को प्रधानमंत्री मोदी से मिले थे और 12 सितंबर को अमित शाह से. प्रधानमंत्री मोदी से मिलने के बाद कैप्टन ने ट्विटर पर लिखा कि पंजाब से जुड़े तमाम मुद्दों पर चर्चा करके राज्य और देश की सुरक्षा के लिए साझा तौर पर काम करने का संकल्प लिया... जो हम दोनों के लिए हमेशा सर्वोपरि रहा है - और रहेगा.

अमित शाह से मुलाकात के बाद भी कैप्टन अमरिंदर सिंह ने ट्विटर पर मुलाकात की तस्वीर शेयर करते हुए लिखा कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुडे़ विभिन्न मुद्दों पर चर्चा हुई. पंजाब में बढ़ते नार्को-टेररिज्म के मामले पर भी विचार हुआ - और पंजाब के संपूर्ण विकास के लिए रोड मैप पर भी.

किसान आंदोलन के दौरान भी कैप्टन और अमित शाह की कई बार मुलाकात हुई थी. ऐसा भी समझा गया कि कैप्टन किसान आंदोलन खत्म कराना चाहते थे, जबकि उनके भूतपूर्व नेता राहुल गांधी की बिलकुल इच्छा नहीं थी कि आंदोलन खत्म हो पाये.

तब तो ये भी खबर आयी थी कि कैप्टन ने अपने कुछ भरोसेमंद अफसरों को किसान नेताओं से बातचीत करके आंदोलन खत्म कराने की कोशिश की थी, लेकिन किसानों का गुस्सा इतना बढ़ चुका था कि नेताओं की बात भी कोई सुनने को तैयार नजर नहीं आ रहा था.

और ये कैप्टन अमरिंदर सिंह ही थे जो पंजाब में पनप रहे किसान आंदोलन को अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके दिल्ली रवाना कर दिया था - जो बीजेपी सरकार के लिए सिरदर्द साबित हुआ और आखिरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपनी तपस्या में कोई कमी होने की बात करते हुए तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा करनी पड़ी. सिर पर चुनाव जो थे. कानून वापस लेने का पंजाब में तो कोई फायदा नहीं हुआ, लेकिन यूपी चुनाव तो मैनेज हो ही गया.

कैप्टन की नयी भूमिका क्या होगी

खैर, ये तो पक्का हो गया है कि कैप्टन अब पूरी तरह बीजेपी के होकर रह जाएंगे. लिहाजा सवाल ये है कि पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की नयी भूमिका क्या होगी? और सवाल ये भी है कि नयी भूमिका में कैप्टन अमरिंदर सिंह बीजेपी के लिए कितने काम के होंगे?

ये भी कयास लगाये जाने लगे हैं कि पंजाब में बीजेपी कैप्टन अमरिंदर सिंह को पार्टी की कमान भी सौंप सकती है. असल में मौजूदा प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष अश्वनी शर्मा का कार्यकाल जल्दी ही खत्म होने वाला है - और इसीलिए कैप्टन को लेकर ऐसी अटकलें लगायी जा रही हैं.

पंजाब में बीजेपी के लिए जमीन बनानी होगी: कोई जरूरी नहीं कि कैप्टन को बीजेपी सूबे का सरदार बना कर ही इस्तेमाल करे. तरीके और भी हैं. असल में लंबे समय तक बीजेपी पंजाब में गठबंधन की राजनीति में हिस्सेदार रही है, लेकिन पंजाब में भी एनडीए के सहयोगी अकाली दल ने वैसा ही सलूक किया है जैसा बिहार, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश या राजस्थान में हुआ है.

बहुत सारे काम तो बाद में भी होते रहेंगे, लेकिन कैप्टन के सामने जो पहला टास्क होगा वो पंजाब में बीजेपी का नेटवर्क तैयार करना है. और ये नेटवर्क ऐसे तो तैयार होने से रहा. ऐसा करने के लिए कैप्टन अमरिंदर सिंह के जिम्मे दूसरे दलों के नेताओं को तोड़ कर बीजेपी ज्वाइन कराना होगा.

अब ऐसे नेता कांग्रेस के भी हो सकते हैं, आम आदमी पार्टी के असंतुष्ट भी हो सकते हैं. अगर कैप्टन ने वो काम कर डाले जैसी आशंका आम आदमी पार्टी की तरफ से जताये गये हैं, फिर तो बीजेपी के साथ साथ कैप्टन के भी बल्ले बल्ले हो जाएंगे.

कैप्टन अमरिंदर से ऐसी अपेक्षा तो बीजेपी को पंजाब चुनावों के दौरान भी रही होगी, लेकिन जो बीत गया उसका क्या करना - अब से भी हो सके तो अच्छा ही है. कुल मिलाकर कैप्टन के जिम्मे पहला काम बीजेपी के अच्छे दिन लाने का ही है.

क्या कैप्टन अकाली दल की जगह ले पाएंगे: पंजाब में बीजेपी अकाली दल की सहयोगी पार्टी रही है. बड़े भाई की भूमिका में प्रकाश सिंह बादल और सुखबीर बादल ही रहे हैं. एनडीए छोड़ने से पहले तक सुखबीर बादल की पत्नी हरसिमरत कौर बादल केंद्र सरकार में मंत्री हुआ करती थीं.

अब बीजेपी को अपने बूते पंजाब में खड़ा होना है. कैप्टन अमरिंद सिंह पहले से ही पंजाब को लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा उठाते रहे हैं. मान कर चलना होगा कि दिल्ली की ही तरह पंजाब में भी अरविंद केजरीवाल फिर से बीजेपी के निशाने पर आने वाले हैं.

कैप्टन अमरिंदर सिंह ऐसे दौर में बीजेपी ज्वाइन करने जा रहे हैं जब गुजरात और पंजाब के पड़ोस में हिमाचल प्रदेश विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं. ऐसे कैप्टन अमरिंदर सिंह का कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री भगवंत मान के खिलाफ आक्रामक रूप देखने को मिल सकता है - और बीजेपी को भला और क्या चाहिये?

हाल ही में कांग्रेस छोड़ने वाले गुलाम नबी आजाद के हाव भाव भी कैप्टन अमरिंदर सिंह से ही मिलते जुलते पाये गये हैं. अब वो भी अपनी राजनीतिक पार्टी बनाने जा रहे हैं क्योंकि केंद्र शासित क्षेत्र जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराये जाने जैसा माहौल महसूस किया जाने लगा है - कैप्टन की कहानी तो यही बता रही है कि आगे का किस्सा गुलाम नबी आजाद ही सुनाएंगे.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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