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Updated: 16 सितम्बर, 2022 02:31 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के प्रति राजनीतिक हमले की लाइन संघ और बीजेपी तो बदलने से रहे. अब तो गुलाम नबी आजाद के निशाने पर भी राहुल गांधी ही बने रहते हैं, लेकिन देश की राजनीति में बनते बिगड़ते समीकरणों को देखते हुए राहुल गांधी को अपनी पॉलिटिकल लाइन की समीक्षा जरूर करनी चाहिये - संघ और बीजेपी पर हल्ला बोल तो ठीक है, लेकिन तौर तरीके सियासी हालात के हिसाब से जरूर बदल लेना चाहिये.

अगले आम चुनाव (General Election 2024) को ध्यान में रख कर कन्याकुमारी से कश्मीर की यात्रा पर निकले राहुल गांधी की यात्रा के दौरान जो विवाद हो रहे हैं, उससे कोई दिक्कत नहीं है. राजनीतिक विरोधियों का काम ही यही होता है. किसी को भी इस बात से दिक्कत नहीं होनी चाहिये कि राहुल गांदी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान किसी पादरी से मिलते हैं, किसी मौलवी से मिलते हैं या किसी मठ के पुजारी से - राजनीति की भौगोलिक अहमियत को देखते हुए राहुल गांधी और उनकी टीम नफे नुकसान के साथ आगे बढ़ रही है, और बढ़ते भी रहना चाहिये.

लेकिन ये भी ध्यान देना जरूरी है कि राजनीतिक हमलों का काउंटर भी राजनीतिक तौर पर सही ही हो. एक तो पहले से ही मुश्किलें खत्म नहीं हो रही हैं, ऊपर से नयी मुसीबत मोल लेने से तो बचना ही चाहिये. अगर ये सब ध्यान नहीं रखा गया तो कांग्रेस के फायदे के लिए हो रही भारत जोड़ो यात्रा का पूरा फायदा बीजेपी बड़े आराम से उठा लेगी.

कांग्रेस और बीजेपी के बीच राहुल गांधी की यात्रा के दौरान ऐसे दो विवाद हुए हैं जो एक दूसरे के काउंटर में लगते हैं. काफी दिनों तक 'सूट बूट की सरकार' बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला बोलने वाले राहुल की टीशर्ट को लेकर सवाल उठाया गया. राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री के एक सूट को 10 लाख का बताकर हमला बोला था, बीजेपी की तरफ से राहुल गांधी को 41 हजार वाली टीशर्ट के नाम पर घेरा गया. यूथ कांग्रेस नेता श्रीनिवास बीवी ने उसे 'खानदानी' बता कर बचाव करने की कोशिश की, लेकिन बाद में बीजेपी को काउंटर करने का जो तरीका अपनाया गया वो अभी के माहौल में तो मिसफिट लगता है. कम से कम देश के मौजूदा राजनीतिक मिजाज में तो बिलकुल नहीं.

अपनी नयी समझाइश में गुलाम नबी आजाद ने कहा है कि कांग्रेस को बीजेपी की नकल करने से बचना चाहिये. हाल के दिनों में देखा गया है कांग्रेस के सोशल मीडिया कैंपेन खासे आक्रामक हो गये हैं. ये बदलाव जयराम रमेश और पवन खेड़ा के मोर्चा संभालने के बाद से देखा जा रहा है. शुरुआत तो तभी हुई थी जब राहुल गांधी और सोनिया गांधी से प्रवर्तन निदेशालय की पूछताछ चल रही थी, लेकिन भारत जोड़ो यात्रा के दौरान ये कुछ ज्यादा ही देखने को मिल रहा है.

गुलाम नबी आजाद की तरफ से अब मुफ्त की सलाह आयी है कि कांग्रेस को अगर नकल ही करनी है तो वो खुद की नकल करे. या फिर महात्मा गांधी की नकल करे. देखा जाये तो महात्मा गांधी की नकल तो राहुल गांधी पहले से ही कर रहे हैं. महंगाई पर हुई कांग्रेस की जयपुर रैली को याद करें तो राहुल गांधी हिंदुत्व की अपने शब्दों में सप्रसंग व्याख्या करते हुए साबित तो कर ही दिया था कि वो महात्मा गांधी हैं - और बाकी हिंदुत्ववादी बीजेपी के लोग नाथूराम गोडसे.

वैसे भी भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) की अवधारणा तो महात्मा गांधी के ‘दांडी मार्च’ पर ही आधारित है. कांग्रेस नेता जयराम रमेश के मुताबिक यात्रा के लिए पहले चार महीने तक तैयारी की गयी है - और दिग्विजय सिंह के पुराने अनुभव को देखते हुए भारत जोड़ो यात्रा का संयोजक बनाया गया है. 2017 में दिग्विजय सिंह ने 3300 किलोमीटर की नर्मदा परिक्रमा की थी, जो भारत जोड़ो यात्रा से थोड़ी ही कम थी.

बाकी बातें अपनी जगह हैं, लेकिन सवाल ये है कि क्या दिग्विजय सिंह अपनी तरह ही राहुल गांधी को भी कामयाबी दिला पाएंगे? जिस नर्मदा परिक्रमा की बदौलत दिग्विजय सिंह की कांग्रेस में हाई लेवल पर वापसी हुई है, राहुल गांधी को भी 2014 और 2019 में खोया हुआ सम्मान 2024 में हासिल हो सकता है क्या?

भारत जोड़ो यात्रा के दौरान जिस तरीके से संघ और बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस की तरफ से काउंटर स्ट्रैटेजी चलायी जा रही है - कांग्रेस के आगे भी देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बने रहने की गुंजाइश बनी रहेगी या नहीं?

2024 के बाद कांग्रेस का क्या हाल होगा?

जैसे नीतीश कुमार बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर सवाल उठा रहे हैं, मालूम नहीं 2014 वाले 2024 में आएंगे भी या नहीं? अगर बीजेपी की जगह कांग्रेस को रख कर वही सवाल हो तो क्या जवाब हो सकता है?

rahul gandhiराहुल गांधी मुद्दों को लेकर भटकते रहे तो भारत जोड़ो यात्रा का सफर अधूरा रह जाएगा.

बीजेपी केंद्र में सरकार चला रही है और कांग्रेस देश में विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी है. फिर तो सवाल कुछ ऐसे हो सकता है - जो 2014 में केंद्र की सत्ता से बाहर हुए थे, 2024 के बाद सबसे बड़ा विपक्षी दल बने रहेंगे या नहीं?

ये तो है कि 2014 के मुकाबले कांग्रेस ने 2019 में लोक सभा सीटों में सुधार किया था. 2019 में कांग्रेस ने 50 का आंकड़ा पार कर लिया था, जबकि 2014 में तो 44 पर सिमट गयी थी. 2019 में कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा सदमा अमेठी की हार थी. ऐसी हार जिसके बाद राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष का पद भी त्याग दिया - और अब तक स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं.

कुरेद कर पूछे जाने पर भी जवाब नहीं देते. अपनी तरफ से वो जवाब राजनीतिक देते हैं, लेकिन उसमें दार्शनिक भाव कुछ ज्यादा ही महसूस होता है. कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव और उनके फिर से कमान संभालने को लेकर पूछे जाने पर राहुल गांधी कहते हैं, 'मैं कांग्रेस अध्‍यक्ष बनूंगा या नहीं, ये जब पार्टी चुनाव होंगे तब स्‍पष्‍ट हो जाएगा' - और लगे हाथ जोड़ देते हैं, 'मैंने निर्णय ले लिया है, मैं बहुत स्पष्ट हूं... जब पार्टी के चुनाव होंगे तभी जवाब दूंगा.'

और ये सुन कर हर कोई यही समझता है कि वो फिर से कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बनने वाले. अभी तो बिलकुल नहीं. कांग्रेस के भीतर से भी अभी तक ऐसी ही खबरें आ रही हैं. पूछे जाने पर अशोक गहलोत जैसे कांग्रेस नेता कहने लगते हैं कि वो राहुल गांधी को मनाने की पूरी कोशिश करेंगे.

कांग्रेस को किससे खतरा है: हाल फिलहाल ये देखने को मिल रहा है कि बीजेपी की ही तरह कांग्रेस, आम आदमी पार्टी के खिलाफ भी आक्रामक रुख अख्तियार किये हुए है. ये तस्वीर ज्यादा साफ तब नजर आयी जब दिल्ली में बीजेपी के शराब घोटाले के आरोपों के बाद मनीष सिसोदिया के घर पर सीबीआई रेड हुई थी. कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने दिल्ली में आम आदमी पार्टी के दफ्तर के बाहर विरोध प्रदर्शन किया था - और पंजाब को लेकर भी कांग्रेस को वैसे ही हमलावर देखा जा सकता है.

और उधर, अरविंद केजरीवाल भी कांग्रेस को ममता बनर्जी वाले अंदाज में ही प्रोजेक्ट कर रहे हैं. जैसी राय ममता बनर्जी ने यूपीए को लेकर जाहिर की थी, अरविंद केजरीवाल वैसा कांग्रेस को बता रहे हैं - 'कांग्रेस खत्म हो गई है... आपको उनके सवालों को लेना बंद कर देना चाहिये... लोगों को अब उनके सवालों की परवाह नहीं है.' अरविंद केजरीवाल के बयान के जवाब में कांग्रेस की तरफ से उनको सबसे भ्रष्ट और सबसे बड़ा झूठा बताया जाने लगा है.

दिल्ली के बाद पंजाब में भी सरकार बना लेने भर से ऐसा तो नहीं लगता कि 2024 में आम आदमी पार्टी कांग्रेस को नंबर गेम में पछाड़ देगी - लेकिन कहीं कांग्रेस की सीटें 2014 से भी कम आ गयीं तो क्या होगा?

204 से पहले मूड बदल गया तो: वैसे तो नीतीश कुमार के विपक्षी खेमे में आ जाने के बाद से कांग्रेस को भी काफी ताकत मिली है, लेकिन विपक्ष को एकजुट करने की जो रणनीति बन रही है वो कांग्रेस नेतृत्व को मंजूर नहीं हुआ तो क्या होगा?

2017 गुजरात चुनाव के बाद और 2018 के आखिर में हुए पांच राज्यों के चुनाव के बीच राहुल गांधी से प्रधानमंत्री पद की दावेदारी को लेकर कई बार सवाल पूछे गये थे. कर्नाटक चुनाव के दौरान जब राहुल गांधी ने कहा कि अगर कांग्रेस सत्ता में आयी तो वो प्रधानमंत्री बन सकते हैं. एक बार ममता बनर्जी या मायावती के प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी को लेकर सवाल हुआ तो राहुल गांधी का कहना था कि उनको कोई आपत्ति नहीं होगी.

जैसे ही मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस ने चुनाव जीता, राहुल गांधी के रंग ढंग अचानक बदल गये. सोनिया गांधी भी कहने लगीं कि बीजेपी को सत्ता में आने ही नहीं देंगे. चुनाव की तारीख नजदीक आयी तो पूछे जाने पर पलट कर वाजपेयी का हवाला देते हुए बोलीं, किसी जमाने में वो भी अजेय समझे जाते थे. 2004 में सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने बीजेपी को हरा कर केंद्र की सत्ता में वापसी की थी.

अब अगर 2024 आते राहुल गांधी विपक्ष की रणनीति को नामंजूर कर दें तो?

मौका हाथ से निकल गया तो कुछ नहीं मिलेगा

राहुल गांधी को ये तो समझ में आता ही होगा कि संघ और बीजेपी के प्रभाव में आ चुके देश के वोटर को वापस लेना बहुत ही मुश्किल टास्क है. जो वोटर कांग्रेस को छोड़ कर बीजेपी के सपोर्ट में खड़ा है, वो तो तभी लौटेगा जब उसे कोई उम्मीद होगी.

लोग अभी जिन चीजों से से परेशान हैं राहुल गांधी को पहले समझना होगा. हो सकता है, समझते भी हों, लेकिन रैली में पहुंचते ही उनको जोश भटका देता हो. वरना, महंगाई के मुद्दे पर हो रही रैली में वो हिंदुत्व की बातें कर हेडलाइन क्यों बदलवा देते?

भारत जोड़ो यात्रा में अगर महंगाई पर भी फोकस रखा गया होता तो बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है. यात्रा से पहले जिस तरह से महंगाई के खिलाफ कांग्रेस नेतृत्व ने ब्लैक प्रोटेस्ट किया था, असर सभी ने देखा. अक्सर तो कांग्रेस की तरफ से कुछ होने पर संबित पात्रा जैसे बीजेपी प्रवक्ता या स्मृति ईरानी जैसे केंद्रीय मंत्री ही सामने आते हैं और अपनी बात बोल कर चले जाते हैं, लेकिन महंगाई पर कांग्रेस के हल्ला बोल पर अमित को मोर्चा संभालते देखा गया - और बाद में काला जादू बताकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रिएक्ट करते देखा गया.

आखिर ये कांग्रेस के अच्छे तरीके से मुद्दे उठाने का असर नहीं तो और क्या था? ये बात राहुल गांधी जितना जल्दी समझ लेते उतना ही कांग्रेस के लिए उतना ही फायदेमंद रहता, लेकिन अब तक ऐसे कोई लक्षण तो दिखे नहीं.

महंगाई तो देश के सामने बेरोजगारी से भी बड़ा मुद्दा लगता है. बेरोजगारी को तो मिल जुल कर परिवार और समाज झेल भी लेगा - लेकिन महंगाई से तो मुकाबला बहुत ही मुश्किल है. अगर परिवार में एक भी व्यक्ति कमा रहा है तो कम से कम परिवार भूखा तो नहीं ही सोएगा. भले ही उस परिवार में कई बेरोजगार क्यों न हों, लेकिन अगर कमाने वाला एक ही है तो महंगाई की मार से खुद तो आधे पेट ही खा सकेगा, बाकियों में से कई को तो भूखे ही रहना पड़ेगा.

अगर राहुल गांधी ऐसे ही मुद्दों को लेकर भटकते रहेंगे फिर कांग्रेस को तो कोई फायदा मिलने से रहा. राजनीतिक विरोधियों की तो ये रणनीति होगी ही कि वो राहुल गांधी का ध्यान भटकाते रहें, लेकिन वो चाहें तो अपने स्टैंड पर कायम रह सकते हैं. जैसे मोदी विरोध के स्टैंड पर राहुल गांधी कायम रहे हैं, एक बार सही मुद्दे उठाकर कर टिक जाते तो कांग्रेस का वास्तव में कल्याण हो जाता.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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