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Updated: 08 जून, 2017 04:36 PM
राहुल लाल
राहुल लाल
  @rahul.lal.3110
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विश्व के सबसे पुराने संसदीय लोकतंत्र ब्रिटेन में आज 8 जून को लोकतंत्र का महापर्व अर्थात् संसदीय चुनाव हो रहे हैं. जैसे-जैसे 8 जून करीब आया एकतरफा चुनाव कांटे की टक्कर की ओर अग्रसर हो गए.

ब्रेक्जिट का फैसला लिए जाने के बाद आज के चुनावों का यूरोपीय यूनियन के ब्रिटेन के साथ संबंध निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका होगी. ब्रिटेन में यह चुनाव ऐसे समय संपन्न हो रहा है,जब पिछले 3 माह में ब्रिटेन में 3 बड़े आतंकी हमले हो चुके हैं. आतंकवाद से दहलते ब्रिटेन के इस चुनाव पर संपूर्ण विश्व की नजरें बनी हुई हैं. लगातार आतंकी हमलों के कारण लग रहा था कि ब्रिटिश चुनाव 8 जून को नहीं हो पाएंगे, लेकिन ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने इसका एलान करते हुए कहा कि हिंसा से लोकतंत्रात्मक प्रक्रिया बाधित नहीं होनी चाहिए. इन आतंकवादी हमलों से ब्रिटिश प्रधानमंत्री टेरीजा मे के लोकप्रियता में पहले की तुलना में गिरावट आई है,यही कारण है कि प्रारंभ में चुनाव थेरेसा मे के पक्ष में पूर्णतः एकपक्षीय लग रहा था, वहीं अब विपक्षी लेबर पार्टी से बढ़त घटती जा रही है.

britain election

ब्रिटेन की सरकारों ने 2005 में हुए आतंकवादी हमलों के बाद से ही सुरक्षा व्यवस्था पर काफी खर्च किया है. एक बार फिर इन 3 माह के 3 आतंकी हमलों ने इस चुनाव के लिए सुरक्षा को अहम चुनावी मुद्दा बना दिया. इन आतंकी हमलों के कारण गृह सुरक्षा और पुलिस बल में कमी भी प्रमुख चुनावी मुद्दा बना. ज्ञात हो जब थेरेसा ब्रिटेन की गृहमंत्री थीं, तब उन्होंने पुलिस बल में कटौती कर दी थी. मैनचेस्टर एवं लंदन आतंकवादी हमलों के बाद थेरेसा के गृहमंत्री के रुप में लिए गए उपरोक्त निर्णय की काफी आलोचना हो रही है. इस मुद्दे पर थेरेसा बचाव करती ही दिखीं. दोनों प्रत्याशियों ने कहा कि आतंकवाद से निपटने के लिए आवश्यकता होने पर मानवाधिकार कानूनों को भी बदला जाएगा. इस चुनाव में 56 भारतीय मूल के लोग भी चुनाव लड़ रहे हैं. 2015 में 10 भारतीय मूल के लोग चुनाव जीतकर ब्रिटिश संसद पहुंचे थे.

आखिर थेरेसा आज ब्रिटेन में मध्यावधि चुनाव क्यों करा रही हैं??

अप्रैल में इन मध्यावधि चुनावों की घोषणा इंग्लैंड की प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए की थी. कंजरवेटिव प्रधानमंत्री थेरेसा बिना किसी राष्ट्रीय चुनाव के पिछले वर्ष सत्ता में आईं. उन्होंने यूरोपीय संघ के जनमत संग्रह के बाद डेविड कैमरुन के त्यागपत्र के बाद 13 जुलाई 2016 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. अभी उनका कार्यकाल 2020 तक था. अब प्रश्न उठता है कि आखिर थेरेसा मध्यावधि चुनाव क्यों करा रही हैं? थेरेसा ने प्रधानमंत्री पद ग्रहण करते हुए पांच साल की स्थायी सरकार का वादा किया था, लेकिन फिर इस वर्ष अप्रैल में अचानक चुनाव की घोषणा कर दी. मुख्य रुप से ब्रेक्जिट वार्ता में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए थेरेसा मे ने यह निर्णय लिया.

theresa may

ब्रेक्जिट के मुद्दे पर मतदाताओं के फैसले के बावजूद हर पार्टी में विभाजन था. नए चुनाव संसद सरकार में स्थिरता लायेंगे और ईयू के साथ सौदेबाजी में मददगार साबित होंगे. थेरेसा के लिए आज का चुनाव जुआ खेलने जैसा है. यदि वह चुनाव जीत जाती हैं तो घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय मोर्चे पर उनकी स्थिति मजबूत हो जाएगी. इसके साथ ही कंजरवेटिव पार्टी के अंदर मौजूद ईयू विरोधियों के शिकंजे से बाहर निकल पाएंगी. यूरोपीय संघ के नेता ब्रेक्जिट के फैसले के बाद ब्रिटेन पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं. चुनावी जीत पर उन्हें मार्च 2019  में होने वाली वार्ता के लिए घर पर पर्याप्त सुरक्षा उपलब्ध कराएगी. यदि संसदीय चुनाव योजना के अनुसार 2020 में होते तो ईयू के साथ सदस्यता छोड़ने की वार्ता में थेरीजा मे पर बहुत दबाव होता. वार्ता का असर चुनावी बहस और उसके नतीजों पर भी होता. अब अगर वे आज के चुनाव में जीतती हैं तो उन्हें 2019 में ब्रेक्जिट वार्ता के उपरोक्त दबाव से मुक्ति मिल जाएगी. अब अगले चुनाव 2022 में होंगे. यदि ईयू के साथ ब्रेक्जिट वार्ता के कुछ नकारात्मक आर्थिक असर होते हैं, तो उनसे निबटने के लिए उन्हें काफी समय मिल जाएगा.

मतपत्र से ही हो रहा है चुनाव

इधर भारत में ईवीएम का मुद्दा छाया रहा. लेकिन ब्रिटेन में गुरुवार को हो रहे चुनाव मतपत्र से ही हो रहे हैं. पिछले 3 वर्षों से ब्रिटेन में ईवीएम के प्रयोग पर चर्चा चल रही है. लेकिन वहां की खुफिया एजेंसियों और चुनाव आयोग का मानना है कि ईवीएम फुलप्रूफ नहीं है और उसकी हैंकिंग की जा सकती है. साथ ही यहां मतदाताओं की संख्या भी भारत से काफी कम होती है. वहां चुनाव खर्च को लेकर प्रतिबंध भी कठोर हैं. वहां हर उम्मीदवार 8,700 पाउंड्स से ज्यादा खर्च नहीं कर सकता.

ब्रिटिश चुनाव के प्रमुख घटक एवं चुनाव पूर्व सर्वे में क्रमिक रुप से थेरेसा का घटता कद-

ब्रिटेन में हाउस ऑफ कॉमन्स(भारतीय लोकसभा के समान ब्रिटेन में निम्न सदन) की 650 सीटों के लिए आज हो रहे चुनाव में 3,300 से भी ज्यादा उम्मीदवार भाग ले रहे हैं. इन चुनाव में ऐतिहासिक रुप से सबसे ज्यादा महिला उम्मीदवार भाग ले रही हैं. कुल उम्मीदवारों में 30% से ज्यादा महिलाएं हैं.

theresa may

पूरे देश में जो मुख्य पार्टियां हैं, उनमें थेरेसा मे के नेतृत्व में कंजरवेटिव पार्टी(सेंटर राइट) और जेरमी कॉर्बिन के नेतृत्व में लेबर पार्टी (लेफ्ट) हैं. इसके बाद लिबरल डेमोक्रेटस(सेंटर लेफ्ट),यूके इंडिपेंडेंस पार्टी और ग्रीन पार्टी है. द स्कॉटिश नेशनलिस्ट, वेल्श प्लेड सीमारु और नॉर्दर्न आयरलैंड की 4 पार्टियों ने भी 2015 में हुए आम चुनाव में सीटें जीती थीं.

सर्वों की मानें तो कंजरवेटिव्स की जीत के आसार बन रहे हैं. यद्यपि लेबर पार्टी भी छोटी वामपंथियों के समर्थन से सरकार बनाने में सक्षम हो सकती है. मैनचेस्टर आतंकवादी हमले के बाद हुए सर्वे में प्रधानमंत्री थेरेसा की लोकप्रियता में कमी दर्ज की गई थी, लेकिन उनके व्यक्तिगत रेटिंग में सुधार हुआ. युगॉव द्वारा कराए गए सर्वे में कंजरवेटिव प्रधानमंत्री थेरेसा मे की लोकप्रियता 9% से गिरकर 5% तक पहुंच गई है.

वोटिंग के बाद तत्काल मतगणना

ब्रिटेन में रात 10 बजे वोटिंग खत्म होने के तत्काल बाद मतगणना शुरु हो जाएगी. पहला परिणाम गुरुवार रात 11 बजे तक आने की उम्मीद है. हॉटन और संडरलैंड साउथ के परिणाम पहले घोषित होंगे.

बहुमत का जादुई आंकड़ा-

ब्रिटेन में बहुमत का जादुई आंकड़ा 326 का है, जबकि वर्ष 2015 के चुनाव में डेविड कैमरुन ने 331 सीटें जीती थी. अब यह देखना है कि आज के चुनाव के बाद थेरेसा मे कंजरवेटिव के इस आंकड़े को कहां तक पहुंचा पाती हैं? क्या यह 326 से ऊपर जाएगा या नीचे रह जाएगा? अगर थेरेसा 2015 के आम चुनाव की तरह पूर्ण बहुमत हासिल नहीं करती हैं तो पार्टी में तो उनकी किरकिरी होगी ही, साथ ही ईयू में उनका महत्व घटेगा. शुरुआत में कमजोर माने जा रहे जर्मी कॉर्बिन ने जोरदार आक्रामक चुनाव प्रचार चलाया.

britain electionकंजर्वेटिक लीडर थेरेसा मे और लेबर लीडर जेरेमी कोरबिन

विपक्षी लेबर पार्टी के जर्मी कॉर्बिन अगर सत्ता में आएंगे तो विदेश नीति बदल देंगे-

ब्रिटेन आतंकवाद विरोधी वैश्विक प्रयासों में अहम भूमिका निभाता है और इराक व सीरिया में आईएस के खिलाफ हमले के लिए तैनात अमेरिकी गठबंधन का एक प्रमुख सदस्य है. लेकिन ब्रिटेन के विपक्षी दल के नेता जेरमी कॉर्बिन ने कहा है कि अगर उनकी लेबर पार्टी आज के चुनाव में जीतती है, तो वह ब्रिटेन की विदेश नीति बदल देंगे और आतंक के खिलाफ युद्ध को बंद कर देंगे. लेबर पार्टी मानती है कि 2001 के बाद ब्रिटिश सैन्य हस्तक्षेप न केवल हिंसक हमलों के खतरों को रोकने में विफल रहा है, बल्कि इसके चलते स्थिति और बदतर हुई. कॉर्बिन के भाषण से इस बात की बहस तेज हो जाएगी, क्या ब्रिटिश सेना की मदद से अफगानिस्तान, इराक और लीबिया में आतंकवाद से निपटने में मदद मिली है या नहीं.

ब्रिटिश चुनाव का भारत के लिए महत्व-

ब्रिटेन चुनाव न केवल ब्रिटेन-ईयू संबंधों के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि भारत-ब्रिटेन संबंधों पर भी इसके व्यापक प्रभाव होंगे. भारत ब्रिटेन का अहम ट्रेड पार्टनर है, यही कारण है कि "ग्लोबल ब्रिटेन" का नारा देकर प्रधानमंत्री थेरेसा ने पहला विदेश दौरा भारत का ही किया था. इन सबके बावजूद भारत-ब्रिटेन का व्यापार काफी कम है, जिसे बढ़ाने की आवश्यकता है. इसके लिए भारत को सूक्ष्मतापूर्वक ब्रेक्जिट की प्रक्रिया पर नजर रखनी होगी. अगर ब्रिटेन यूरोपीय यूनियन के कस्टम यूनियन में बना रहता है तो भारत को ब्रिटेन की बजाए यूरोपीय यूनियन से डील करनी पड़ेगी.

भारत-ब्रिटेन रिश्ते पूरी तरह चुनावी नतीजों पर निर्भर करता है, क्योंकि ब्रिटेन की दोनों पार्टियों की राय पूर्णतः अलग-अलग है. लेबर या लिबरल डेमोक्रेटस की जीत से ब्रिटेन यूरोपीय कस्टम यूनियन में बना रह सकता है. ऐसे में भारत-ब्रिटेन वार्ताओं की आवश्यकता नहीं होगी. लेकिन थेरेसा मे के नेतृत्व में कंजरवेटिव यूरोपीय कस्टम यूनियन से भी अलग होने के लिए प्रतिबद्ध है. इस स्थिति में भारत-ब्रिटेन वार्ता अपरिहार्य होगा, जो कदापि आसान नहीं होगी. ब्रिटेन कारों पर आयात कर कम करने के साथ ही वित्तीय सेवाओं और कानूनी फर्मों के भारत में प्रवेश की मांग कर सकता है. पहले भी ये मांगें उठ चुकी हैं लेकिन भारत को अपने हितों का विशेष ध्यान देना होगा.

ब्रिटेन अगर यूरोपीय यूनियन से बाहर होता है तो ब्रिटेन का ईयू से व्यापार कम हो जाएगा. इसके क्षतिपूर्ति हेतु ब्रिटेन भारत से व्यापार हेतु जल्दबाजी में दिख सकता है. भारत को इस समय का लाभ अवश्य उठाना चाहिए तथा अप्रवासन संबंधी मुद्दों को उठाना चाहिए. ज्ञात हो पिछले बार जब भारत ईयू वार्ता टूटी थी तो उस समय ब्रिटेन के गृहमंत्री तथा आज के प्रधानमंत्री थेरेसा मे यह नहीं चाहती थीं कि भारत को अप्रवासन के मामले में कोई रियायत दी जाए, वहीं भारत ने साफ कर दिया था कि यह रवैया भारत के हित में नहीं है. कंजरवेटिव पार्टी अभी भी ईयू से सिर्फ एक लाख अप्रवासियों को ब्रिटेन आने देना चाहती है, जबकि वर्तमान में यह संख्या दो लाख है. इस फैसले से भारत का प्रभावित होना तय है, जबकि लेबर और लिबरल डेमोक्रेटस इस पर ढील देने को तैयार हैं.

भारत और यूरोपीय यूनियन के बीच सबसे बड़ा गतिरोध कृषि क्षेत्र के सब्सिडी को लेकर था,परंतु भारत-ब्रिटेन के बीच ऐसी कोई बाधा कृषि सब्सिडी को लेकर नहीं है. जबकि अप्रवासन को लेकर स्थिति उल्टी है. यह भारत-ब्रिटेन के बीच का मुख्य गतिरोध है,परंतु ईयू के साथ यह भारत के लिए उतना महत्वपूर्ण वार्ता अवरोधक नहीं है.

ब्रिटिश लोकतंत्र का महापर्व के चुनाव परिणाम के बाद ही लोगों की जिज्ञासा खत्म हो सकेगी. नवीनतम सर्वे के अनुसार कंजरवेटिव पार्टी को 41.6% तथा लेबर पार्टी को 40.4% लोगों का समर्थन मिलता नजर आ रहा है. इस दृष्टि से आज का चुनाव कोई भी रुख ले सकता है. क्या इस चुनाव में विजयी होकर थेरेसा मार्गेट थेचर की तरह शक्तिशाली राजनीतिज्ञ बनेंगी या विपक्षी लेबर पार्टी के जर्मी कॉर्बिन अगले ब्रिटिश प्रधानमंत्री होंगे?? इन प्रश्नों का उत्तर आज के चुनाव से ही मिलना है. विश्व के सबसे पुराने संसदीय एवं संवैधानिक लोकतंत्र के इस महापर्व में पूरा ब्रिटेन डूबा है और लगभग 5 करोड़ मतदाता इसमें भाग ले रहे हैं, जिस पर विश्व की नजरें टिकी हैं. क्योंकि इस चुनाव से न केवल ईयू ब्रिटेन अपितु संपूर्ण विश्व प्रभावित होगा. ब्रिटेन सुरक्षा परिषद में वीटो प्राप्त स्थायी सदस्य के अतिरिक्त महत्वपूर्ण जी-7 तथा जी-20 का सदस्य भी है. इसके अतिरिक्त जीडीपी के मामले में दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी है. अत: आज के वैश्वीकरण के युग में ब्रिटिश चुनाव परिणाम भारत समेत पूरी दुनिया को अवश्य प्रभावित करेगा.

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लेखक

राहुल लाल राहुल लाल @rahul.lal.3110

लेखक अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार हैं

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