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Updated: 08 जनवरी, 2020 10:07 PM
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BJP की तरफ से अब साफ कर दिया गया है कि फिल्म 'छपाक' के बहिष्कार (BJP distances Boycott Chhapaak Movie trend) का उसका कोई इरादा नहीं है. ये सब 24 घंटे के भीतर ही हुआ है.

दरअसल, दिल्ली बीजेपी के प्रवक्ता तेजिंदर पाल सिंह बग्गा ने ही दीपिका पादुकोण (Deepika Padukone) की आने वाली फिल्म छपाक के विरोध का बिगुल बजाया था. ट्विटर पर बग्गा ने एक पोस्ट कर दीपिका पादुकोण को 'टुकड़े-टुकड़े गैंगट का समर्थक करार देते हुए उनकी फिल्म छपाक का बहिष्कार करने को कहा था. फिर क्या था - लोग ट्विटर पर अपने अपने तरीके से विरोध जताने लगे. देखते ही देखते ये मुद्दा टॉप ट्रेंड में शामिल हो गया?

अब केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के सीनियर नेता प्रकाश जावड़ेकर (Prakash Javdekar cancels Tejinder Bagga appeal) ने बोल दिया है कि बीजेपी दीपिका पादुकोण की फिल्म का बहिष्कार नहीं कर रही है. बीजेपी नेता के इस बयान को कैसे देखा जाये - दिल्ली में चुनावी माहौल को देखते हुए एक भूल सुधार की तरह या किसी और रूप में?

छपाक पर 24 घंटे में ही पीछे हटी बीजेपी

JNU कैंपस में हो रहे विरोध प्रदर्शन वाली जगह दीपिका पादुकोण महज 10 मिनट रुकी होंगी. वहां भीड़ जरूर थी लेकिन ये अवधि इतनी कम रही कि नारेबाजी कर रहे जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार को दीपिका पादुकोण की मौजूदगी का एहसास तक न हुआ. बाद में वो अफसोस भी जता रहे थे कि अगर मालूम होता तो वो दीपिका से बात करते.

दीपिका उसी अंतराल में JNUSU अध्यक्ष आइशी घोष से हाथ जोड़े मुखातिब हुईं - और कैमरों में होने के कुछ ही देर बाद अंतर्ध्यान हो गयीं. काले लिबास दीपिका के दौरे के कई मकसद थे - और सब साफ साफ नजर आ रहा था.

ध्यान देने वाली एक बात ये भी रही कि दीपिका कैंपस में कुछ बोलीं नहीं - बाद में जरूर मीडिया के सवालों का जबाव दीं और नागरिकता संशोधन कानून को लेकर चल रहे छात्रों के विरोध प्रदर्शनों के प्रति समर्थन जताया. कुछ ही देर में दीपिका पादुकोण और उनकी फिल्म के बहिष्कार और समर्थन दोनों तरफ से लोग सोशल मीडिया पर मोर्चा संभाल चुके थे.

तेजिंदर पाल सिंह बग्गा की ही तरह दिल्ली से सांसद रमेश बिधूड़ी ने भी दीपिका पादुकोण के जेएनयू जाने को लेकर आलोचना की और बॉलीवुड एक्टर को टुकड़े-टुकड़े गैंग का समर्थक बताया था.

prakash javadekar, deepika padukoneछपाक के बहिष्कार से बीजेपी को किस बात का डर?

24 घंटे भी नहीं बीते थे कि बीजेपी के सीनियर नेता प्रकाश जावड़ेकर ने बहिष्कार वाले बयान से बीजेपी को अलग करने की कोशिश की तो नये सवाल खड़े हो गये - अगर बीजेपी का यही स्टैंड है तो तेजिंदर पाल सिंह बग्गा और रमेश बिधूड़ी की बातों को क्या समझें?

प्रकाश जावड़ेकर ने कहा, 'भारत की स्वतंत्र नागरिक होने के नाते दीपिका पादुकोण कहीं भी आने -जाने के लिए स्वतंत्र हैं... सिर्फ कलाकार नहीं हिंदुस्तान का हर स्वतंत्र नागरिक कहीं भी आने-जाने और विचारों को व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र है... हम उनकी फिल्म के बहिष्कार का समर्थन नहीं करते हैं... ये हमारी संस्कृति के खिलाफ है.'

प्रकाश जावड़ेकर का बयान आ जाने के बाद तेजिंदर पाल सिंह बग्गा की अपील को रद्द मान लिया जाना चाहिये - लेकिन ये सब यूं ही तो हुआ नहीं होगा. बीजेपी को लगा होगा कि कुछ गलत हो गया है, तभी इस बयान देने के लिए प्रकाश जावड़ेकर को आगे आना पड़ा होगा. प्रकाश जावड़ेकर दिल्ली के प्रभारी हैं जहां अगले महीने 8 फरवरी को विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं - और उसके तीन दिन बाद 11 फरवरी को नतीजे आने हैं.

क्या प्रकाश जावड़ेकर को दिल्ली चुनाव के चलते बीजेपी का स्टैंड साफ करने के लिए आगे आना पड़ा है?

नागरिकता संशोधन कानून और NRC के विरोधियों को बीजेपी नेतृत्व पाकिस्तान की भाषा बोलने वाला बताता रहा है. जामिया से लेकर जेएनयू तक विरोध कर रहे लोगों के साथ खड़े होने के लेकर बीजेपी कांग्रेस नेताओं को राष्ट्रीय भावना के खिलाफ चलते बताती रही है.

तेजिंदर बग्गा ने भी तो वही किया था जो बाकी बीजेपी नेता विरोध प्रदर्शन का समर्थन करने वालों के बारे में अब तक कहते आ रहे थे - फिर दीपिका पादुकोण के मामले में बीजेपी को सफाई देने की जरूरत क्यों आ पड़ी?

कहीं प्रकाश जावड़ेकर ये समझाने की कोशिश तो नहीं कर रहे हैं कि आगे से तेजिंदर पाल सिंह को गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिये?

मूल मुद्दा तो पीछे ही छूट गया

फिल्म छपाक भी वैसे ही सोशल-कॉज पर आधारित फिल्म है जैसे हाल ही में आयी मर्दानी-2. पहली वाली मर्दानी सेक्स रैकेट और उसके लिए लड़कियों तस्करी पर आधारित थी, वहीं मर्दानी-2 महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध खासकर बलात्कार पर फोकस है.

मर्दानी-2 में मुख्य भूमिका निभाने वाली रानी मुखर्जी का कहना रहा कि कारोबार के हिसाब से वो बहुत ही जोखिमभरी फिल्म रही - क्योंकि उसमें न तो कोई गाना है न ही डांस आइटम. फिर भी फिल्म बेहतरीन बनी है और शुरू से आखिर तक पेस इस तरह मेंटेन है कि एक शॉट भी न छूटे इस कारण नजर नहीं हटती.

छपाक कैसी है अभी किसी को नहीं मालूम है. एसिड अटैक जैसे गंभीर मुद्दे को फिल्म में कैसे दिखाया गया है, अभी देखा जाना बाकी है - लेकिन रिलीज से पहले एक विवाद जरूर हो रहा है. फिल्म के किरदार के नाम को लेकर.

सोशल मीडिया पर नदीम खान के नाम बदलने को लेकर बहस चल रही है. नदीम खान वही शख्स है जिसने लक्ष्मी अग्रवाल पर एसिड अटैक किया था जब दिल्ली के खान मार्केट की बुक शॉप में जा रही थीं. नदीम खान ने लक्ष्मी की तरफ से ठुकराये जाने से खफा होकर बदले की भावना से एसिड अटैक किया था.

सोशल मीडिया पर नदीम खान के साथ एक और नाम ट्रेंड कर रहा है - राजेश. ये दोनों नाम साथ रख कर फिल्म को हिंदू-मुस्लिम विवाद में घसीटने की कोशिश हो रही है. चर्चा चल रही है कि फिल्म में नदीम खान के किरदार को मुस्लिम नाम दे दिया गया है - और लोगों को इसी बात पर आपत्ति है. साथ ही सवाल उठाये जा रहे हैं कि क्या इस शर्मनाक हरकत के बाद हिंदू इस फिल्म को देखेंगे?

सच क्या है ये तो फिल्म के 10 जनवरी को रिलीज होने के बाद सामने आएगा, वैसे खबर है कि राजेश नाम का जो किरदार है वो नदीम खान वाला नहीं है. राजेश फिल्म में मालती का किरदार निभा रहीं दीपिका पादुकोण के दोस्त का नाम है - और वो नाम बशीर खा है जो नदीम खान वाली भूमिका में है.

दीपिका पादुकोण के जेएनयू जाने को मोटे तौर पर दो तरीके से समझा जा सकता है - एक, विरोध प्रदर्शन कर रहे जेएनयू के छात्रों और नकाबपोशों के हमले में घायल छात्रसंघ अध्यक्ष आइशी घोष का सपोर्ट. दूसरा, विवादों से जोड़ कर फिल्म का प्रमोशन क्योंकि कुछ लोग इस नजरिये से भी इसे देख रहे हैं.

सवाल ये उठता है कि कहीं नागरिकता के मुद्दे के सपोर्ट के चक्कर में दीपिका पादुकोण ने एसिड अटैक जैसे मुद्दे को पीछे तो नहीं छोड़ दिया है. ताजा विवाद के बाद तो ऐसा ही लग रहा है जैसे कारोबार से इतर फिल्म बनाने की मूल भावना की तरफ किसी का ध्यान भी नहीं जा रहा है.

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