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Updated: 24 जून, 2018 04:36 PM
अरविंद मिश्रा
अरविंद मिश्रा
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साल 2014 के लोक सभा चुनावों में नरेंद्र मोदी के अगुवाई में एनडीए को न केवल पूर्ण बहुमत मिला बल्कि देशवासियों ने प्रचंड जीत के साथ नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद पर आसीन भी करवाया. लेकिन समय बीतता गया और सरकार की कुछ नीतियों के खिलाफ इसके कुछ सहयोगी दलों ने अपनी नाराज़गी भी प्रकट की और कुछ छोड़कर चले भी गए. सबसे पहले आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा न देने को लेकर तेलगू देशम पार्टी इससे अलग हो गई. अभी हाल में ही जम्मू-कश्मीर सरकार से भाजपा ने खुद ही अपने आप को अलग कर लिया.

लेकिन इस एक हफ्ते के अंदर भाजपा के अन्य सहयोगी दलों ने भी इसे आंखें दिखाना शुरू कर दिया है. चाहे महाराष्ट्र में शिवसेना हो, बिहार में जेडीयू हो या फिर त्रिपुरा में इंडीजीनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) हो, ये सारे भाजपा से नाराज़ चल रहे हैं.

amit shah

आईपीएफटी:

सबसे पहले बात त्रिपुरा की जहां भाजपा के सहयोगी इंडीजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) भाजपा से नाराज़ चल रही है. आईपीएफटी जिसने इसी साल 18 फरवरी को हुए विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा के साथ गठबंधन किया था और 60 सदस्यीय विधानसभा में कुल आठ सीट जीती थी, अलग राज्य की मांग को लेकर 23 अगस्त को पूरे राज्य में प्रदर्शन करने का ऐलान किया है.

बकौल आईपीएफटी के उपाध्यक्ष अनंत देबबर्मा, 'हम अलग राज्य और नागरिकता (अधिनियम) बिल 2016 को वापस लेने की अपनी मांगों के समर्थन में 23 अगस्त को पूरे त्रिपुरा में धरना-प्रदर्शन करेंगे.'

लेकिन सत्तारूढ़ भाजपा इसकी मांग को खारिज करते आया है और कहा है कि छोटे राज्य का बंटवारा करना व्यावहारिक नहीं होगा.

जेडीयू:

हालांकि जेडीयू ने अगस्त 2017 में फिर से भाजपा का दामन थामा था लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बीच-बीच में भाजपा के प्रति अपनी नाराज़गी जाहिर करते रहे हैं. लेकिन विश्व योग दिवस के दिन जहां पूरा देश योग करने में मशगूल था, जेडीयू इसका भागीदार नहीं बना. इतना ही नहीं भाजपा और जेडीयू के बीच 2019 के लोक सभा के सीटों के बंटबारे को लेकर भी विवाद चल रहा है. सूत्रों के अनुसार जेडीयू जल्द से जल्द सीटों के बंटवारे के मुद्दे पर एनडीए के सहयोगियों से बातचीत शुरू करना चाहता है लेकिन भाजपा इस पर ध्यान नहीं दे रही है.

जेडीयू के एक नेता के अनुसार ‘हम चाहते हैं कि सभी सहयोगी बैठक करें और दलों के हिसाब से सीटों का बंटवारा हो. यह काम मौजूदा जमीनी हकीकत के आधार पर होना चाहिए.’ ‘उन्हें (भाजपा) यह समझना होगा कि यह 2014 नहीं बल्कि 2019 है.’

पिछले लोक सभा 2014 के चुनाव में एनडीए ने बिहार की 40 में 31 सीटें जीती थीं. इनमें से 22 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी. हालांकि उस वक़्त जेडीयू एनडीए का हिस्सा नहीं थी और उसे सिर्फ दो सीटें ही मिली थीं.

वहीं जेडीयू के प्रवक्ता के सी त्यागी ने भी इंडिया टुडे को बताया कि जीडीयू का भाजपा के साथ गठबंधन केवल बिहार में है न कि दिल्ली में.

शिवसेना:

वैसे तो शिवसेना भाजपा का पुराने सहयोगियों में से एक है लेकिन कुछ सालों से दोनों के बीच रिश्ते बेहद खराब रहे हैं. एक दूसरे के खिलाफ दोनों में वाक-युद्ध चलते रहते हैं लेकिन गठबंधन में शिवसेना बरकरार है. इस बीच शिवसेना ने अपने मुख पत्र सामना में मोदी सरकार पर हमला करते हुए लिखा है कि भाजपा सरकार सिर्फ जुमलों की सरकार है और ये 2019 में खत्म हो जाएगी. इसके अनुसार मोदी सरकार ने किसानों के लिए कुछ भी नहीं किया है. सामना ने लिखा है, '' किसानों की आमदनी दोगुनी नहीं हुई है, लेकिन उनके बीच आत्महत्या की संख्या ज़रूर दोगुनी हो गई है.''

यही नहीं इससे पहले सामना ने अपने लेख में जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को लेकर भाजपा पर हमला करते हुए लिखा था कि 'अराजकता फैलाने के बाद भगवा दल जम्मू-कश्मीर में सत्ता से बाहर हो गया और उसने जो लालच दिखाया है उसके लिए इतिहास उसे कभी माफ नहीं करेगा.'

अरविन्द केजरीवाल को समर्थन:

जब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल अपने कुछ मंत्रियों के साथ एलजी के घर पर धरने पर बैठे थे तब शिवसेना और जेडीयू के नेता उन्हें अपना समर्थन देने भी पहुंचे थे और और केंद्र की मोदी सरकार के रुख की आलोचना की थी.'

जेडीयू नेता पवन वर्मा ने कहा था कि 'एलजी के आवास पर मुख्यमंत्री व उनके मंत्री धरना दे रहे हैं, इनमें भूख हड़ताल पर बैठे एक की हालत खराब होने उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है, चार राज्य के मुख्यमंत्री उनसे नहीं मिल सकते क्योंकि एलजी उन्हें अनुमति नहीं देते...धिक्कार है. पवन कुमार वर्मा ने कहा कि इस मामले में समाधान ढूंढने के लिए पहल होनी चाहिए.

शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने कहा था कि 'चाहे बिहार, बंगाल, गुजरात या दिल्ली जो भी राज्य हो उनका यह स्टैंड एक ही जैसा रहता है. उन्होंने कहा कि यहां जो कुछ हो रहा है, वह लोकतंत्र के हित में नहीं है'

हालांकि भाजपा के सहयोगियों की नाराजगी नई नहीं है और समय-समय पर ये प्रकट भी होता रहा है, लेकिन अब चूंकि 2019 का लोक सभा चुनाव सर पर है और भाजपा विरोधी पार्टियां इसके विरुद्ध लगातार एक नए फ्रंट तैयार करने में प्रायसरत हैं ऐसे में भाजपा के सहयोगियों की नाराज़गी अगर दूर नहीं की गई तो भाजपा के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती हैं.

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लेखक

अरविंद मिश्रा अरविंद मिश्रा @arvind.mishra.505523

लेखक आज तक में सीनियर प्रोड्यूसर हैं.

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