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Updated: 22 जनवरी, 2018 06:10 PM
गिरिजेश वशिष्ठ
गिरिजेश वशिष्ठ
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दिल्ली में आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को अयोग्य करार दिए जाने की खबर से बीजेपी बेहद खुश है. लेकिन वो ये बात भूल रही है कि राजधानी में आम आदमी पार्टी की सरकार फिर भी गिरेगी नहीं बल्कि सेफ ही रहेगी. पर अगर चुनाव आयोग की कार्रवाई आगे बढ़ी, तो बीजेपी के हाथ से दो महत्वपूर्ण राज्यों छत्तीसगढ़ और हरियाणा की सरकार निकल सकती है.

छत्तीसगढ़ के 11 संसदीय सचिवों की विधायकी भी खतरे में पड़ गई है. छत्तीसगढ़ की कुल 90 सीटों में से बीजेपी के पास 49 विधायक हैं. जबकि बहुमत के लिए उनके पास 46 विधायक होने चाहिए. अगर चुनाव आयोग ने 11 विधायकों को अयोग्य करार दे दिया तो पार्टी के पास बहुमत से 8 विधायक कम हो जाएंगे.

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अब बताते हैं हरियाणा के बारे में. हरियाणा में पिछले साल खट्टर सरकार ने चार बीजेपी विधायकों को मुख्य संसदीय सचिव नियुक्त किया था. इसे पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने अमान्य घोषित कर दिया था. जाहिर सी बात है कि बिना सुविधा लिए संसदीय सचिव बने विधायक की सदस्यता जा सकती है, तो सुविधा लेने वालों की क्यों नहीं. हरियाणा विधानसभा में कुल 90 सीट हैं. अभी भाजपा के पास 47 विधायक हैं. ऐसे में अगर चार कम होते हैं तो पार्टी के सदस्यों की संख्या बहुमत के लिए ज़रूरी 46 से सीधे 43 पर आ जाएगी.

इस मामले में राज्यपाल को शिकायत करने की कवायद भी शुरू हो गई है. विधायक श्याम सिंह राणा, कमल गुप्ता, बख्शीश सिंह विर्क और सीमा त्रिखा को खट्टर सरकार ने मुख्य संसदीय सचिव नियुक्त किया था. उधर छत्तीसगढ़ में दिल्ली की खबर आते ही कांग्रेस समेत तमाम विरोधी दलों ने संसदीय सचिवों के खिलाफ जल्द कार्रवाई को लेकर चुनाव आयोग को पत्र भेजा है.

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हालांकि, संसदीय सचिवों की विधायकी ख़त्म करने को लेकर हाई कोर्ट में भी मामला विचाराधीन है. लेकिन तारीख पे तारीख मिलने के चलते मामले की सुनवाई नहीं हो पा रही है. अब चुनाव आयोग पर सीधे आरोप लगे हैं तो उस पर भी फैसला करने को लेकर दबाव है. कई स्वयंसेवी संगठनों ने राज्य के 11 संसदीय सचिवों की विधायकी खत्म करने को लेकर चुनाव आयोग को बहुत समय पहले शिकायत की थी. लेकिन आयोग ने इस शिकायत पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की.

अब जब दिल्ली में आप पर एक्शन हुआ है तो उम्मीद की जा रही है कि आयोग छत्तीसगढ़ में बीजेपी के विधायकों पर भी अपना फैसला सुनाएगा. मई 2015 में छत्तीसगढ़ में 11 संसदीय सचिवों की नियुक्ति कर मुख्यमंत्री रमन सिंह ने उन्हें सभी 13 मंत्रियों के साथ अटैच किया था. छत्तीसगढ़ का केस दिल्ली से ज्यादा सीरियस है. दिल्ली में तो विधायकों ने कोई सुविधा नहीं ली थी. लेकिन छत्तीसगढ़ में सभी संसदीय सचिवों को मंत्रियों की तरह सुविधाएं मुहैया कराई गई है. मसलन उन्हें सरकारी बंगला, दो पीए, पुलिस सुरक्षा, वाहन सुविधा और 11 हजार रुपए मासिक भत्ता के अलावा 73 हजार रुपए वेतन, सरकारी खजाने से दिया जा रहा है. ये सभी संसदीय सचिव अपने विभाग के मंत्रियों से जुड़े काम संभालते हैं.

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लेखक

गिरिजेश वशिष्ठ गिरिजेश वशिष्ठ @girijeshv

लेखक दिल्ली आजतक से जुडे पत्रकार हैं

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