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Updated: 02 मार्च, 2023 09:23 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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बीजेपी के लिए चुनावी साल का आगाज अच्छा हुआ है. शुरुआत तो 2022 में भी काफी अच्छी रही, लेकिन जाते जाते साल ने थोड़ा गम भी बीजेपी की झोली में डाल दिया था - हिमाचल प्रदेश चुनाव में बीजेपी वोट शेयर के लिहाज से सिर्फ 0.9 फीसदी ही पिछड़ी थी, लेकिन सत्ता हाथ से फिसल कर कांग्रेस के पास चली गयी.

2023 में होने वाले नौ राज्यों के विधानसभा चुनावों में से बीजेपी ने तीन में बाजी मार ली है. मतलब, अब सिर्फ दो तिहाई लड़ाई बाकी है. चुनाव तो जम्मू-कश्मीर में भी होने हैं, लेकिन अभी तक उसे लेकर कोई ठोस संकेत नहीं मिले हैं.

त्रिपुरा (North East Election Results) में भी बीजेपी के लिए सत्ता में वापसी की चुनौती कोई मामूली नहीं थी, लेकिन मोदी-शाह की जोड़ी ने गुजरात मॉडल को आगे कर दिक्कतें ही दूर कर दी. गुजरात चुनाव में रिकॉर्ड जीत के बाद त्रिपुरा पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं को समझाया कि हिमाचल प्रदेश की तरफ देखने की जरूरत ही नहीं है - गुजरात मॉडल पर फोकस करो.

और फिर केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने सबको बूथ जीतने का टास्क देकर काम पर लगा दिया. अपने पहले चुनावी दौरे में ही अमित शाह ने लोगों को अयोध्या के राम मंदिर की झांकी दिखा दी थी - साल 2024 के पहले ही दिन लोग अयोध्या पहुंच कर भव्य मंदिर में राम लला का दर्शन कर सकेंगे.

त्रिपुरा के लोगों को तो टिकट बुक कराने की सलाह दी ही, अमित शाह ने राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का नाम लेकर पूछ भी लिया कि वो सुन रहे हैं या नहीं? तो क्या इसीलिए राहुल गांधी ने त्रिपुरा में चुनाव कैंपेन का प्रोग्राम ही नहीं बनाया? लेकिन लंदन जाने से पहले मेघालय में चुनाव प्रचार के लिए तो गये थे.

राहुल गांधी के ऐसे मैदान छोड़ देने मतलब समझना थोड़ा मुश्किल हो रहा है. अगर भारत जोड़ो यात्रा के बाद राहुल गांधी की छवि में निखार आया है, तो त्रिपुरा जैसे महत्वपूर्ण राज्य से दूरी बनाने की वजह क्या हो सकती है? अगर यात्रा से कांग्रेस कार्यकर्ताओं का आत्मविश्वास भी बढ़ा है, तो त्रिपुरा में आजमाया ही जा सकता था.

ये तो ऐसा लगता है जैसे कांग्रेस तैयारी 2024 के आम चुनाव की कर जरूर रही है, लेकिन उसका फोकस कहीं और है - वैसे भी राहुल गांधी के लिए तो पहला चैलेंज विपक्षी खेमे में कांग्रेस का वर्चस्व बनाये रखना ही है.

क्योंकि नगालैंड की चुनावी रैली में ही मल्लिकार्जुन खड़गे ऐलान कर आये थे कि 2024 में कांग्रेस के नेतृत्व में केंद्र में विपक्ष की सरकार बनेगी - और रायपुर में हुए कांग्रेस अधिवेशन में भी कांग्रेस नेतृत्व की तरफ से विपक्षी दलों के नेताओं के लिए एक ही मैसेज था.

बीजेपी को बाकी चीजों से कोई फर्क नहीं पड़ता. पूरी मशीनरी मिशन में जुटी हुई है. और कई सारी चीजें अपनेआप बीजेपी के पक्ष में धीरे धीरे होती जा रही हैं. ममता बनर्जी तो जैसे पहले ही मैदान छोड़ चुकी हैं. पहले सत्येंद्र जैन और अब मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी के बाद अरविंद केजरीवाल अपने आस पास की मुश्किलों से ही जूझ रहे हैं - और ताजातरीन चुनावी नतीजे तो कांग्रेस का हाल समाचार दे ही रहे हैं.

साल के आखिर में होने वाले पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले बीजेपी के लिए अगला चैलेंज कर्नाटक है. अंदरूनी रिपोर्ट तो बीजेपी नेतृत्व के पास कर्नाटक से भी अच्छी नहीं मिली है, लेकिन त्रिपुरा के नतीजे तो यही बता रहे हैं कि ज्यादा फिक्र की जरूरत नहीं है. जैसे गुजरात मॉडल को आगे कर बीजेपी त्रिपुरा की वैतरणी हंसते हंसते पार कर गयी - कर्नाटक को लेकर भी अपनी मेहनत पर भरोसा रख सकती है.

तीन राज्यों में बीजेपी की बल्ले बल्ले

2024 के आम चुनाव के हिसाब से देखें तो नॉर्थ ईस्ट के नतीजे आने के बाद बीजेपी का पलड़ा अभी से भारी लगने लगा है - क्योंकि कांग्रेस इलाके से लगभग साफ हो गयी है. त्रिपुरा में लेफ्ट के साथ गठबंधन में मजह 13 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस को तीन सीटों पर जीत मिली है. स्टाइक रेट के हिसाब से देखें तो यूपी और बिहार में कांग्रेस के प्रदर्शन के मुकाबले ये नतीजे बेहतर ही लगते हैं.

rahul gandhi, narendra modi2024 को लेकर बीजेपी और कांग्रेस के टारगेट अलग अलग क्यों लगते हैं?

2022 के विधानसभा में उत्तर भारत के सात राज्यों में से पांच राज्यों में बीजेपी सरकार बनाने में सफल रही, लेकिन नॉर्थ ईस्ट में तो पूरा का पूरा किला ही बरकरार रखा है. पंजाब में वैसे भी बीजेपी सत्ता से बाहर रही, लेकिन हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के आगे चूक गयी, फिर भी पिछले साल बीजेपी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में तो सरकार बनाने में सफल ही रही - और गुजरात में तो सबसे बड़ी जीत का रिकॉर्ड ही बना डाला.

त्रिपुरा में 2018 के मुकाबले सीटें कम जरूर आयी हैं, लेकिन इस बार भी बीजेपी ने अपने दम पर ही बहुमत का आंकड़ा हासिल कर लिया है. 60 सीटों वाली त्रिपुरा विधानसभा में बहुमत का नंबर 31 है और बीजेपी को एक ज्यादा यानी 32 सीटें मिली हैं.

बरसों बरस सत्ता में रही सीपीएम के लिए पांच साल बाद भी कुछ बदला नहीं है, लेकिन टिपरा मोथा पार्टी बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती बन कर उभरी है - और ADC यानी ऑटोनामस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल के चुनावों में मिली कामयाबी से मुकाबला करें तो महज दो साल पुरानी पार्टी को प्रद्योत देबबर्मा ने पहले ही विधानसभा चुनाव में अच्छा मुकाम दिलाया है.

आदिवासियों के लिए अलग राज्य की मांग पर अड़े प्रद्योत देबबर्मा की टिपरा मोथा पार्टी के खाते में 13 सीटें आ जाना बहुत बड़ी बात है. टिपरा मोथा ने त्रिपुरा की 20 सुरक्षित और 22 सामान्य सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे.

अलग राज्य की मांग का पूरा होना तो अभी काफी दूर है, लेकिन चुनाव नतीजों ने प्रद्योत देबबर्मा की राह भी आसान कर दिया है. बेहतर तो यही होगा कि सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी की भूमिका में वो बने रहें और लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश करें. वैसे प्रद्योत देबबर्मा का कहना है कि अगर बीजेपी उनकी मांग पर विचार करे तो वो समर्थन दे सकते हैं.

मेघालय में तो बीजेपी के हिस्से में दो ही सीटें आयी हैं, लेकिन ये तो पहले से ही पक्का माना जा रहा है कि वो एनपीपी के साथ सरकार का हिस्सा बनेगी ही. एनपीपी नेता कोनराड संगमा भी पहले ही ऐसे संकेत दे चुके हैं.

चुनावों के दौरान अमित शाह का कहना रहा, ‘हमने मेघालय में गठबंधन तोड़ा ताकि भारतीय जनता पार्टी सभी सीटों पर चुनाव लड़ सके - और एक मजबूत पार्टी के रूप में उभर सके’ - लेकिन त्रिपुरा जैसा करिश्मा वो वहां नहीं दिखा सके.

नगालैंड में जरूर बीजेपी 12 सीटें जीतने में सफल रही है. बाकी चीजें अपनी जगह हैं, लेकिन तीनों राज्यों के चुनाव नतीजों ने वहां की चार लोक सभा सीटों पर बीजेपी की दावेदारी मजबूत तो कर ही दी है. हो सकता है, मेघालय में कोनराड संगमा बीजेपी को एक ही लोक सभा सीट दें, लेकिन त्रिपुरा और नगालैंड में तो बीजेपी अपने मन की कर ही सकती है.

उपचुनावों के नतीजे कांग्रेस के लिए राहत देने वाले हैं

कांग्रेस छोड़े हुए लंबा वक्त बीत चुका है, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया हमेशा ही राहुल गांधी को लेकर सीधी टिप्पणी से बचते रहे हैं. भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने दाढ़ी और बाल बढ़ा लिये थे, लेकिन लंदन में भाषण देने से पहले पूरा लुक बदल लिया था.

जब ज्योतिरादित्य सिंधिया का ध्यान राहुल गांधी की तरफ दिलाया गया तो बोले, 'मैं उनके लुक पर कुछ नहीं बोलूंगा... लेकिन त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आ रहे हैं... उनसे कांग्रेस पार्टी का लुक स्पष्ट हो जाएगा.'

नॉर्थ ईस्ट के तीन राज्यों में कांग्रेस भले ही फिसड्डी साबित हुई हो, लेकिन तीन उपचुनावों के रिजल्ट कांग्रेस के पक्ष में आये हैं - और उसमें भी महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में मिली जीत तो ज्यादा ही महत्वपूर्ण मानी जानी चाहिये है.

2021 में लेफ्ट के साथ गठबंधन के बावजूद कांग्रेस को पश्चिम बंगाल चुनाव में एक भी सीट हासिल नहीं हुई थी, लेकिन सागरदिखी सीट पर हुआ उपचुनाव कांग्रेस ने जीत लिया है. जाहिर है, ममता बनर्जी के लिए तो ये नतीजा गुस्सा दिलाने वाला ही है.

ममता बनर्जी ने आरोप भी लगाया है कि ये रिजल्ट कांग्रेस और बीजेपी के बीच अनैतिक गठबंधन का नतीजा है. ममता बनर्जी का ये भी दावा है कि सागरदिखी सीट पर बीजेपी का वोट कांग्रेस के खाते में ट्रांसफर हो गया है.

लेकिन कांग्रेस के लिए बंगाल से भी ज्यादा महत्वपूर्ण महाराष्ट्र की कस्बा पेठ सीट पर हुए उपचुनाव का नतीजा है. और ये महाराष्ट्र में महाविकास आघाड़ी का जोश बढ़ाने वाला भी है. जब से महाराष्ट्र में बीजेपी ने एकनाथ शिंदे के साथ सरकार बनायी है - ये ऐसा दूसरा वाकया है जब जीत शिंदे और बीजेपी के हिस्से से छिटक कर विरोधी खेमे में चली गयी है.

पांच राज्यों की छह सीटों पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस को तीन सीटों पर जीत से भी बड़ा झटका महाराष्ट्र कस्बा पेठ सीट का रिजल्ट है. कस्बा पेठ के नतीजे ने चिंचवाड़ उपचुनाव में बीजेपी की जीत को भी फीका कर दिया है.

कस्बा पेठ सीट पर बीजेपी को 27 साल बाद हार का मुंह देखना पड़ा है - और वो भी कांग्रेस के हाथों. 2019 में बीजेपी के टिकट पर लोक सभा पहुंचने से पहले गिरीश बापट पांच बार कस्बा पेठ सीट से विधायक रह चुके हैं.

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#चुनाव, #नरेंद्र मोदी, #राहुल गांधी, Narendra Modi, Rahul Gandhi, North East Election Results

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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