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Updated: 14 जनवरी, 2022 04:09 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के अयोध्या से विधानसभा चुनाव (Ayodhya Assembly Seat) लड़ने की आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है - लेकिन बीजेपी कार्यकर्ताओं में जोश देख कर लगता नहीं कि ये मामला अब महज चर्चाओं तक सीमित रहने वाला है.

यूपी विधानसभा चुनाव की घोषणा के काफी पहले से ही योगी आदित्यनाथ कई बार कह चुके हैं कि पार्टी जहां से कहेगी वो चुनाव लड़ेंगे. योगी के साथ साथ उनके दोनों डिप्टी सीएम केशव मौर्य और दिनेश शर्मा के भी विधानसभा चुनाव लड़ने की चर्चा काफी पहले से रही है. चर्चाओं में मौर्य और शर्मा की सीटों तक के नाम लिये जाते रहे हैं.

योगी आदित्यनाथ के अब तक गोरखपुर से लेकर मथुरा तक से चुनाव लड़ने के कयास लगाये जाते रहे हैं, लेकिन ऐसे वक्त जब बीजेपी में मंत्रियों और विधायकों में पार्टी छोड़ने की होड़ मची हुई हो, नेतृत्व के लिए डैमेज कंट्रोल का कोई कारगर नुस्खा इस्तेमाल करना ही ठीक था - और अगर वाकई दिल्ली में हुई बीजेपी की मीटिंग में सहमति बन चुकी है तो घोषणा औपचारिकता भर ही मानी जानी चाहिये.

अयोध्या से योगी को चुनाव मैदान में उतारने के फायदे तो बहुत हैं, लेकिन ये भी लगता है कि बीजेपी को अब तक के इंतजामों पर सत्ता में वापसी का पक्का यकीन नहीं रहा होगा - वरना, ब्रह्मास्त्र का इस्तेमाल करने का फैसला भला बीजेपी अभी क्यों लेने की सोचती.

अमित शाह लखनऊ रैली में ही लोगों से अपील कर चुके हैं कि वे 2024 में भी नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को प्रधानमंत्री बनाने के लिए योगी आदित्यनाथ की चुनावी जीत सुनिश्चित करें, लेकिन अखिलेश यादव के पक्ष में बनते माहौल और पार्टी से ओबीसी नेताओं की बगावत ने लगता है बीजेपी नेतृत्व को कुछ एक्स्ट्रा प्रयास करने के लिए मजबूर किया है.

चाहें तो इसे 2024 के लिए बीजेपी के नजरिये से 2014 जैसा प्रयोग भी समझ सकते हैं. बीजेपी नेतृत्व अगर योगी आदित्यनाथ को अयोध्या विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाने के फैसले पर अंतिम मुहर लगा देता है तो ये नरेंद्र मोदी के वाराणसी से चुनाव लड़ने जैसा ही प्रयोग समझा जाना चाहिये - क्योंकि योगी आदित्यनाथ जिस गुरु परंपरा से आते हैं, वे अयोध्या आंदोलन के संस्थापकों में से एक रहे हैं.

अयोध्या का असर भी महज अवध क्षेत्र तक ही नहीं देखा जाना चाहिये - अयोध्या से योगी आदित्यनाथ को बीजेपी चाहे तो उत्तराखंड तक भुना सकती है. बेशक उत्तर प्रदेश योगी आदित्यनाथ की कर्मभूमि बना है, लेकिन जन्मभूमि तो उत्तराखंड ही है.

1. अयोध्या मॉडल को स्थापित करना

यूपी चुनाव तो बीजेपी के अयोध्या मॉडल की अग्नि परीक्षा ही है, लेकिन अभी तक तो यही देखने को मिला है कि अयोध्या के नाम अन्य राज्यों में बीजेपी को कोई वोट नहीं दे रहा है. अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद बीजेपी ने झारखंड सत्ता गंवा दी, दिल्ली में दाल नहीं गली और पश्चिम बंगाल में तो लगा जैसे जय श्रीराम की गूंज वोटर तक पहुंच ही नहीं पायी - और ये पश्चिम बंगाल के चुनाव नतीजे ही हैं जो बीजेपी को अंदर तक झकझोर डाले हैं.

लिहाजा अब अयोध्या को महज राम मंदिर का केंद्र नहीं, बल्कि बीजेपी शासन के विकास मॉडल के तौर पर स्थापित करने की कोशिश है - और 2022 तो इसके लिए सिर्फ ट्रायल जैसा है, असली फायदा तो अगले आम चुनाव में उठाने का मकसद है.

yogi adityanathयोगी आदित्यनाथ और अयोध्या को जोड़ कर बीजेपी क्या मोदी की ताकत बढ़ा पाएगी?

अयोध्या में इंटरनेशनल एयरपोर्ट का काम टेंडर जारी होने से आगे बढ़ चुका है. अयोध्या बायपास को 84 कोसी परिक्रमा मार्ग के साथ साथ दूसरे धार्मिक शहरों से जोड़ने पर काम चल रहा है - ऐसा हो जाने के बाद 84 कोसी परिक्रमा मार्ग के जरिये अयोध्या धार्मिक महत्व वाले 51 शहरों से जुड़ा होगा.

अयोध्या स्टेशन का पहला चरण मार्च, 2022 तक खत्म हो जाने की अपेक्षा है और दूसरा चरण साल के आखिर दिसंबर तक. बताते हैं कि अयोध्या में राम मंदिर बन कर तैयार हो जाने के बाद अयोध्या स्टेशन से 1 लाख श्रद्धालु रोजाना आ जा सकेंगे.

कुछ ही दिन पहले जब योगी आदित्यनाथ अयोध्या के दौरे पर थे, संतों से मुलाकात में बताये कि सरकार अयोध्या को विश्वस्तरीय पर्यटन नगरी के रूप में विकसित करने के लिए कृतसंकल्प है. ऐसा होने पर अयोध्या के संतों को हाई क्लास सुविधाएं मिलेंगी, लेकिन - योगी ने कहा, ये सब संतों के सहयोग और आशीर्वाद से ही संभव हो सकेगा.

कहने का मतलब और समझने की बात ये है कि अयोध्या को बीजेपी सरकार सिर्फ राम और हिंदुत्व के प्रतीक के तौर पर ही नहीं बल्कि विकास के आदर्श मॉडल के तौर पर पेश करने लगी है - वैसे भी गुजरात मॉडल का दम तो पहले ही निकल चुका है.

2. अयोध्या पर हक मजबूत करना

जिस अयोध्या आंदोलन ने बीजेपी को दिल्ली तक पहुंचा दिया, उसी अयोध्या में जमीन खरीदारी को लेकर विपक्षी दलों के नेता घोटाले के आरोप लगाने लगे. मायावती, बीएसपी महासचिव सतीशचंद्र मिश्रा को भेज कर जयश्रीराम के नारे के साथ अयोध्या से चुनाव शंखनाथ कराती हैं.

अरविंद केजरीवाल से पहले ही आदमी पार्टी के नेता अयोध्या पहुंच जाते हैं और तिरंगा यात्रा शुरू करते हैं. दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया राम राज्य को शासन की सबसे बड़ी अवधारणा बताने लगते हैं - और दावा करते हों, ‘हम एक ऐसी सरकार बनाएंगे जो भगवान राम के बताये आदर्शों पर चलती हो. हम श्री रामचंद्र जी का आशीर्वाद लेंगे... तिरंगा फहराएंगे - वास्तविक राष्ट्रवाद सिखाएंगे.’

भला बीजेपी क्यों चाहेगी कि अयोध्या पर बरसों बरस जमे रहने से जो उसका हक बना है, उसमें कोई हिस्सेदारी जताने अचानक प्रकट हो जाये. बीजेपी तो कभी नहीं चाहेगी कि उसके अलावा किसी को भी अयोध्या से कुछ भी राजनीतिक फायदा मिल पाये.

3. उत्तराखंड तक असर की उम्मीद करना

योगी आदित्यनाथ उसी गोरक्षपीठ के महंत हैं जिसका राम जन्मभूमि आंदोलन में अहम योगदान रहा है. बताते हैं कि 1949 में जब अयोध्या में जन्मभूमि स्थल पर मूर्तियां मिली थीं, महंत दिग्विजयनाथ वहीं मौजूद थे. महंत दिग्विजयनाथ का काम ही मंहत अवैद्यनाथ ने आगे बढ़ाया और बाकी बचे काम अपने शिष्य योगी आदित्यनाथ के हवाले कर दिया - जिसके लिए भूमि पूजन का कार्य पूरा करने के बाद वो आगे बढ़ा रहे हैं.

योगी आदित्यनाथ अगर चुनाव मैदान में उतरते हैं तो अयोध्या के लोगों के साथ साथ अयोध्या से जुड़े लोगों की भावनाओं से सीधे कनेक्ट होंगे. योगी आदित्यनाथ बीजेपी के स्टार प्रचारक तो पहले से ही रहे हैं - गोरखपुर से पांच पास सांसद रहे योगी आदित्यनाथ अयोध्या के विधायक के रूप में बीजेपी के लिए ज्यादा फायदेमंद हो सकते हैं.

अयोध्या के आसपास के जिलों अंबेडकरनगर, सुल्तानपुर, बाराबंकी, गोंडा, बहराइच, बलरामपुर और श्रावस्ती जैसे अवध क्षेत्र की 82 सीटों पर योगी आदित्यनाथ के चुनाव लड़ने का कुछ न कुछ असर तो होगा ही - उत्तराखंड चुनाव में भी बीजेपी अपने नये अयोध्याकांड को भुनाने की भी भरपूर कोशिश करेगी. वैसे भी उत्तराखंड योगी आदित्यनाथ की कर्मभूमि रही है.

4. हिंदुओं को एकजुट बनाये रखना

बीजेपी में हाल फिलहाल जो कुछ हुआ है, नेतृत्व के लिए बेहद तनावभरा है. पूरा अमला डैमेज कंट्रोल में लगा है, लेकिन स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह और धर्म सिंह सैनी सहित बगावत करने वाले विधायको की तादाद 14 पहुंच चुकी है - यूपी बीजेपी अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह के ये ट्वीट सबूत हैं.

बीजेपी के साथ साथ संघ की टेंशन भी बढ़ी हुई है. जातीय राजनीति तो हमेशा से ही आरएसएस की सदाबहार समस्या रही है. संघ की सलाह पर बीजेपी धर्म की आड़ भी हिंदू जातियों को एकजुट रखने की कोशिश में ही लेती रही है.

अयोध्या से योगी आदित्यनाथ को चुनाव मैदान में उतार कर धर्म का प्रभाव बढ़ा कर पिछड़ों और दलितों की नाराजगी कम करने की कोशिश भी है - और सबसे जरूरी तो है ओबीसी नेताओं की बगावत के बीच योगी आदित्यनाथ की ठाकुरवादी राजनीति पर उठते सवालों को न्यूट्रलाइज करना.

अब बीजेपी के लिए इससे बड़ी फिक्र क्या हो सकती है कि उसके नेता पार्टी छोड़ कर उस समाजवादी पार्टी की तरफ बढ़ रहे हैं जिसके नेता अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलवाने में गर्व महसूस करते हैं - हो सकता है बीजेपी को उम्मीद हो कि योगी आदित्यनाथ के फिर से प्रत्यक्ष चुनाव लड़ने से लोग कारसेवकों पर पुष्पवर्षा जैसी उनकी बातों से कनेक्ट होने की कोशिश करेंगे.

5. अयोध्या को योगी का सुरक्षा कवच बनाना

पिछड़े वर्ग से आने वाले मंत्रियों और विधायकों के इस्तीफे में ज्यादा गुस्सा योगी आदित्यनाथ के प्रति ही है, बीजेपी के खिलाफ वो कम लगता है. ऐसे विधायक और मंत्री भी योगी आदित्यनाथ के राजनीतिक विरोधियों वाले खेमे का हिस्सा रहे हैं जो उन पर ठाकुरवाद की राजनीति का आरोप लगाते हैं.

मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने से लेकर यूपी में आदर्श आचार संहिता लागू होने तक योगी आदित्यनाथ 42 बार अयोध्या का दौरा कर चुके हैं - और अब अपनी गुरु परंपरा से जुड़े अयोध्या आंदोलन की राम मंदिर निर्माण के रूप में पूर्णाहूति का श्रेय हासिल करेंगे.

जब तक मथुरा को रिजर्व खाते में बचाये रखना है, तब तक काशी में मोदी और अयोध्या में योगी जैसा संदेश देने की शुरुआत तो हो ही गयी है - और योगी के अपने समर्थकों के साथ साथ बीजेपी में भी एक सपोर्ट बेस है जो उनको योगी के उत्तराधिकारी या अगले प्रधानमंत्री के तौर पर देखता है - अयोध्या के मैदान से बीजेपी इसे भी साधने की कोशिश कर रही है.

जो बीजेपी की राजनीति अंदर तक समझ रहा है, उसे तो हकीकत मालूम है, लेकिन जो बीजेपी समर्थक योगी को ही मोदी के उत्तराधिकारी और अगले प्रधानमंत्री के रूप में देख रहा है - भला बीजेपी क्यों न उनका फायदा उठाने की कोशिश करे.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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