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Updated: 07 नवम्बर, 2021 01:32 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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उत्तर प्रदेश में राम मंदिर का निर्माण शुरू हो चुका है. और, यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Elections 2022) के मद्देनजर सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) इस मुद्दे को भुनाने में किसी भी तरह की कोताही नहीं बरतना चाहते हैं. दिवाली से एक दिन पहले अयोध्या में मनाए गए दीपोत्सव कार्यक्रम में योगी आदित्यनाथ ने कारसेवा के दौरान हुए गोलीकांड की याद दिलाकर बिना नाम लिए ही समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव समेत पूरे यादव कुनबे को कठघरे में खड़ा कर दिया. इतना ही नहीं सीएम योगी ने इस बात की घोषणा भी कर दी कि अगर अगली कारसेवा होगी, तो गोली नहीं चलेगी. रामभक्तों व कृष्णभक्तों पर पुष्पों की वर्षा होगी. अगले साल की पहली तिमाही में होने वाले यूपी चुनाव को देखते हुए ये सवाल उठना लाजिमी है कि 'रामभक्तों और कृष्णभक्तों पर पुष्पवर्षा' की बात कर योगी ने भाजपा की राह आसान की है या मुश्किल?

Yogi Adityanath Karseva Ram Templeसीएम योगी ने इस बात की घोषणा कर दी कि अगर अगली कारसेवा होगी, तो रामभक्तों व कृष्णभक्तों पर गोली नहीं पुष्पों की वर्षा होगी.

पुष्पवर्षा के साथ सामने आया भाजपा का 'पुराना' एजेंडा

राम मंदिर के मुद्दे पर भाजपा ने कभी अपनी पकड़ कमजोर नहीं पड़ने दी है. इसी साल राम मंदिर निर्माण के लिए निधि समर्पण अभियान के जरिये भाजपा ने यूपी चुनाव के लिए बहुत पहले से ही प्रचार की रणभेरी बजा दी थी. भाजपा और हिंदू संगठनों के कार्यकर्ताओं ने सूबे के हर दरवाजे पर दस्तक देकर राम मंदिर निर्माण के लिए केवल धन संग्रह नहीं किया था. बल्कि, इस कार्यक्रम के जरिये भाजपा ने चुनाव से बहुत पहले ही जमीनी हकीकत को जांचने का एक बड़ा दांव खेला था. उत्तर प्रदेश में राम मंदिर निर्माण के बाद ये मुद्दा कितना असरकारी रह गया है, इसका निष्कर्ष निधि समर्पण अभियान के जरिये संगठन तक पहले ही पहुंच चुका था. कहना गलत नहीं होगा कि सीएम योगी आदित्यनाथ ने अगली कारसेवा पर रामभक्तों व कृष्णभक्तों पर पुष्पवर्षा की बात कहकर इशारा कर दिया है कि भाजपा केवल राम मंदिर पर ही संतोष करने वाली नही है. क्योंकि, राम मंदिर आंदोलन के दौरान लगाए जाने वाले नारों में साफ कर दिया गया था कि ये तो केवल झांकी है, मथुरा-काशी बाकी है.

आसान शब्दों में कहा जाए, तो भाजपा ने अपने पुराने एजेंडे को एक नया कलेवर देते हुए लोगों के सामने पेश कर दिया है. राम मंदिर को लेकर की गई कारसेवा का परिणाम 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अयोध्या में भव्य राम मंदिर के रूप में लोगों के सामने लाने की घोषणा हो चुकी है. वैसे, योगी आदित्यनाथ सीएम बनने से पहले तक कई बार ताजमहल को लेकर भी अपनी सोच स्पष्ट कर चुके थे. वो अलग बात है कि सरकार बनाने के बाद योगी सरकार ने कोर्ट में ताजमहल को मकबरा ही माना था. लेकिन, अब सीएम योगी आदित्यनाथ ने जब खुद कह दिया है कि कृष्णभक्तों पर गोलियां नहीं चलेंगी. तो, इस बयान से समाजवादी पार्टी पर स्वत: ही दबाव बनेगा. क्योंकि, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव खुद को कई बार कृष्णभक्त घोषित कर चुके हैं. भाजपा, संघ और हिंदूवादी संगठनों की ओर से हमेशा ये दावा किया गया है कि मथुरा में शाही ईदगाह मंदिर को तोड़कर बनाई गई है. वो अलग बात है कि मामला कोर्ट में लंबित है. लेकिन, अगर लोगों ने कारसेवा का मन बना लिया, तो उन्हें रोकने का काम योगी सरकार नहीं करेगी. इसका आश्वासन दिया जा चुका है.

कहना गलत नहीं होगा कि सीएम योगी ने सोची समझी रणनीति के साथ कृष्णभक्त अखिलेश यादव के काडर वोटबैंक पर भी डोरा डाल दिया है. मुस्लिम-यादव यानी एमवाई समीकरण के सहारे सरकार बनाने वाले अखिलेश यादव ने पहली बार संगठन में सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले को जगह दी है. सोशल इंजीनियरिंग का ये फॉर्मूला सपा के लिए दोधारी तलवार साबित हो सकता है. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अखिलेश यादव की सरकार के दौरान और हाल-फिलहाल तक संगठन से लेकर टिकट बंटवारे तक में यादव समाज को भरपूर तवज्जो दी जाती रही है. सपा की ओर से चला गया सोशल इंजीनियरिंग का ये दांव यादव वोटबैंक के कुछ हिस्से को छिटकने के लिए मजबूर कर ही देगा. और, इस यूपी चुनाव में भाजपा की नजर इसी फ्लोटिंग मतदाता पर ही है. कृष्णभक्तों पर गोली की जगह पुष्पवर्षा की बात कहकर योगी आदित्यनाथ ने एक तरह से इन मतदाताओं को 'बूस्टर डोज' दे दिया है.

राम मंदिर पर सपा का बैकफुट पर आना मजबूरी है

राम मंदिर का निर्माण शुरू होने के बाद कारसेवकों पर सपा सरकार के दौरान हुआ गोलीकांड की याद दिलाना भाजपा के लिए यूपी चुनाव में एक बड़ा दांव कहा जा सकता है. क्योंकि, 1990 में कारसेवकों पर गोली चलवाने वाले सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के ही समाजवादी कुनबे का भविष्य यानी पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अब योगी आदित्यनाथ और भाजपा के सामने कड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं. ये इकलौता ऐसा मुद्दा है, जिस पर पूरा समाजवादी कुनबा अपने आप ही बैकफुट पर आ जाता है. क्योंकि, राम मंदिर और कारसेवकों पर गोलियां चलवाना एक ऐसा मुद्दा है, जिसका जवाब अखिलेश यादव से लेकर सपा के तमाम रणनीतिकारों के पास आज भी नहीं है. राम मंदिर बहुसंख्यक मतदाताओं की भावना से जुड़ा मुद्दा है. और, अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह यादव इस मामले पर बहुत पहले ही अपनी स्थिति स्पष्ट कर चुके थे. यहां तक कि बीते साल अखिलेश यादव भी अयोध्या पहुंचने के बाद रामलला के दर्शन करने नहीं जा सके. और, अल्पसंख्यक वोटों के छिटकने के डर से राम मंदिर का निर्माण हो जाने पर परिवार समेत आने की बात कहकर इसे टाल दिया.

भाजपा का मुस्लिम मतदाताओं को लेकर रुख बहुत साफ है. पार्टी को पता है कि 'सबका साथ, सबका विकास' के साथ सबका विश्वास जोड़ देने के बाद भी मुस्लिम वोटबैंक कभी भी उसकी ओर नहीं आएगा. जिसके चलते भाजपा बहुसंख्यक वोटों पर अपनी पकड़ ढीली पड़ने का कोई मौका किसी भी विपक्षी पार्टी को नहीं देना चाहती है. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अगर राम मंदिर यूपी चुनाव में कोई मुद्दा न होता, तो अखिलेश यादव से लेकर अरविंद केजरीवाल तक कोई भी नेता अयोध्या में हाजिरी लगाने नहीं जाता. वहीं, राम मंदिर के भावनात्मक मुद्दे को भुनाने के लिए भाजपा को कोई खास मेहनत नहीं करनी है. क्योंकि, भाजपा के हिंदुत्व के एजेंडे में राम मंदिर ही नहीं, कृष्ण जन्मभूमि और काशी विश्वनाथ मंदिर भी शामिल हैं. चुनाव प्रचार के दौरान सपा को राम मंदिर और इस गोलीकांड के सवालों से हर कदम पर दो-चार होना पड़ेगा. इस मामले पर शांत रहकर अखिलेश यादव बहुसंख्यक वोटों को खोएंगे और बोलने पर अल्पसंख्यक वोटों के छिटकने का खतरा भी बना रहेगा.

योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या में यादव कुनबे पर नाम लिए बिना तंज कसते हुए कहा था कि ये उसी ताकत का असर है कि जो 31 वर्ष पहले गोलियां चला रहे थे, वो आज आपकी ताकत के सामने झुके हैं. और, कुछ दिन इसी तरह आप ले चले, तो अगली कार सेवा के लिए वे और उनका खानदान लाइन में लगेगा. कहना गलत नहीं होगा कि भाजपा के हिंदुत्व एजेंडे की वजह से ही एक बड़े वोटबैंक पर उसका पकड़ बनी हुई है, जो राम मंदिर से भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ है. सीएम योगी ने ये इशारा कर दिया है कि भाजपा की वजह से ही सपा समेत तमाम राजनीतिक दल राम नाम का जाप कर रहे हैं. वैसे, अगर अगली कारसेवा होती है, तो भाजपा को पुष्पवर्षा करने मौका मिलेगा या नहीं, ये तो यूपी चुनाव के नतीजे तय करेंगे. लेकिन, कहना गलत नहीं होगा कि कृष्ण जन्मभूमि के लिए कारसेवा के दरवाजे खोलने के साथ योगी आदित्यनाथ ने अखिलेश यादव को हर तरीके से बैकफुट पर धकेलने का बड़ा दांव खेला है. जिसका जवाब सपा अध्यक्ष को आज नहीं तो कल देना ही पड़ेगा.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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