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Updated: 17 जुलाई, 2019 07:05 PM
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कर्नाटक में राजनीतिक हालात एक बार फिर उसी मोड़ पर पहुंच गये हैं जहां मई, 2018 में विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद रहे. फर्क बस इतना है कि तब सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद कांग्रेस की स्थिति मजबूत हो गयी थी, इस बार मामला उल्टा है. कर्नाटक में सत्ताधारी गठबंधन के 16 विधायकों के इस्तीफे के चलते मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी का पक्ष काफी कमजोर हो गया है - क्योंकि नंबर पूरी तरह उनके खिलाफ नजर आ रहा है. सही स्थिति तो सदन के पटल पर ही देखी जा सकेगी, लेकिन फिलहाल तो सुप्रीम कोर्ट के रूख से बीजेपी का ही पलड़ा भारी लग रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने इस्तीफा देने वाले विधायकों पर फैसले का दारोमदार स्पीकर पर छोड़ा तो है, लेकिन उसमें पेंच भी लगा दिया है जिसे विधायक सुरक्षा कवच की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं.

फैसला तो स्पीकर ही लेंगे, लेकिन शर्तें लागू रहेंगी!

संवैधानिक व्यवस्था में सुप्रीम कोर्ट के दखल की एक सीमा तो है, लेकिन प्रक्रिया के अनुपालन में कोर्ई चालबाजी न हो इसे भी सुनिश्चित करने की भूमिका निर्वहन भी जरूरी होता है. कर्नाटक में इस्तीफा देने वाले विधायकों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत का काम हर हाल में संवैधानिक संतुलन बनाये रखना है.

सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कह दिया है कि बागी विधायकों के मामले में स्पीकर खुद फैसला लेने के लिए स्वतंत्र हैं. अदालत ने अब ये भी कह दिया है कि समय सीमा के भीतर फैसले के लिए स्पीकर को बाध्य नहीं किया जा सकता. साथ ही, विधायकों को भी सदन की कार्यवाही का हिस्सा बनने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है. बागी विधायकों के वकील मुकुल रोहतगी अपनी दलीलों के जरिये कोर्ट को ये समझाने में कामयाब रहे कि विधायकों के पास इस्तीफा देने का मौलिक अधिकार है. विधायकों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश से लगता तो यही है.

कर्नाटक विधानसभा में फ्लोर टेस्ट के ठीक एक दिन पहले, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कर्नाटक की मौजूदा राजनीतिक स्थिति की ताजा तस्वीर कुछ ऐसी उभर रही है.

1. स्पीकर के पास फैसले का सर्वाधिकार सुरक्षित : बागी विधायकों के इस्तीफे पर फैसले का पूरा अधिकार अब स्पीकर के पास है. स्पीकर इस मामले में अपने विवेक से फैसला लेंगे. स्पीकर के पास विधायकों को अयोग्य घोषित करने का भी आवेदन पार्टी की तरफ से पड़ा हुआ है.

स्पीकर केआर रमेश ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ऐतिहासिक बताया है और कहा है कि वो जो भी फैसला लेंगे किसी भी रूप में संविधान, अदालत और लोकपाल के खिलाफ नहीं जाएगा.

2. कार्यवाही से दूर रहेंगे बागी विधायक : जिन विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष को अपना इस्तीफा सौंप रखा है, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद विश्वासमत के दौरान सदन की कार्यवाही में हिस्सा लेने की बाध्यता खत्म हो गयी है.

kumaraswamy government about to goसवा साल से भी पहले ही पलटी बाजी!

बागी विधायकों की ओर से पेश सीनियर वकील मुकुल रोहतगी का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब विधायक पार्टी का व्हिप मानने के लिए बाध्य नहीं होंगे. मुकुल रोहतगी के मुताबिक इस्तीफा देने वाले 15 विधायक विधानसभा में उपस्थित नहीं होने जा रहे हैं. मतलब ये कि अब कुमारस्वामी सरकार की किस्मत का फैसला 224 नहीं बल्कि बचे हुए विधायकों के जरिये ही तय होगा.

व्हिप से बागी विधायकों को मिली छूट का असर

सवाल है कि बागी विधायकों को व्हिप से छूट मिलने का क्या क्या असर हो सकता है?

1. अगर स्पीकर ने बागी विधायकों अयोग्य करार दिया : अगर स्पीकर बागी विधायकों को इस आधार पर अयोग्य ठहरा देते हैं कि उनके इस्तीफे से पहले अयोग्य ठहराने की अर्जी मिली हुई है तो भी कुमारस्वामी के लिए सरकार बचाना बहुत मुश्किल होगा.

2. अगर स्पीकर ने बागियों का इस्तीफा मंजूर कर लिया : अगर स्पीकर बागी विधायकों के इस्तीफे मंजूर कर लेते हैं तो कुमारस्वामी सरकार को बचाने के लिए 104 विधायकों की जरूरत होगी. विश्वासमत हासिल करने के लिए चार विधायकों की जरूरत होगी - और वे हैं नहीं.

224 विधायकों वाली कर्नाटक विधानसभा में स्पीकर को छोड़ दें तो 223 विधायक बचते हैं. ऐसे में बहुमत का नंबर 112 होता है. कुमारस्वामी के पास कागज पर अब भी 116 विधायकों का सपोर्ट हासिल है - जेडीएस के 37, कांग्रेस के 78 और बीएसपी का 1 एमएलए. सत्ता पक्ष के 16 विधायकों के बागी हो जाने के बाद सदन में नंबर 207 हो जाएगा. ऐसी स्थिति में बहुमत का जरूरी आंकड़ा 104 होगा - लेकिन बगावत के चलते कुमारस्वामी को नेता मानने वाले विधायकों की संख्या 100 पर ही सिमट जा रही है. दूसरी तरफ, बीजेपी के पास 105 विधायक हैं और उसे 2 निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन हासिल है जिससे येदियुरप्पा के पक्ष में कुल 107 विधायक हो जाते हैं. गणित के हिसाब से तो कुमारस्वामी की सरकार बचने की कोई सूरत नजर ही नहीं आ रही है.

तो हफ्ते भर में बन जाएगी बीजेपी की सरकार!

बागी विधायकों को कांग्रेस के व्हिप से जो छूट मिली है उसका सीधा फायदा मौजूदा विपक्ष यानी बीजेपी को मिलता नजर आ रहा है. यही वजह है कि कांग्रेस की ओर से इस पर कड़ी प्रतिक्रिया आ रही है. हालांकि, कांग्रेस नेताओं की राय एक नहीं है.

सीनियर वकील और कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने अदालत के आदेश को अपनी जीत बताया है. मर्ई 2018 में भी अभिषेक मनु सिंघवी ने ही पैरवी की थी और आधी रात को सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट को राजी करने में कामयाब रहे और उसी की बदौलत कुमारस्वामी सरकार अब तक चलती रही.

लेकिन अभिषेक मनु सिंघवी की एक टिप्पणी कि 'कुछ लोगों के लिए गालिब का ख्याल अच्छा है, इसलिए इसको हमारे लिए झटका बता रहे हैं,' तो कांग्रेस नेताओं के खिलाफ ही जा रही है.

कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना की है. कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष दिनेश गुंडूराव भी फैसले पर सवाल खड़ा कर रहे हैं.

अभिषेक मनु सिंघवी ने विधायकों के खिलाफ अयोग्यता की अर्जी की ओर भी सुप्रीम कोर्ट का ध्यान दिलाने की कोशिश की. अभिषेक मनु सिंघवी का कहना रहा कि स्पीकर के सामने बागी विधायकों की पेशी से पहले उन्हें अयोग्य घोषित करने की अर्जी दायर हो चुकी थी. बागी विधायक 11 जुलाई को स्पीकर के सामने पेश हो पाये थे क्योंकि उससे पहले स्पीकर अपने दफ्तर में उपलब्ध नहीं थे. फिलहाल 16 विधायक बागी हैं जिनमें से 15 विधायक सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हुए हैं. स्पीकर के सामने 11 विधायक ही पेश हुए थे. सिंघवी का कहना रहा कि विधायकों के इस्तीफे को अयोग्यता की कार्यवाही को निरर्थक बनाने का आधार नहीं बनाया जा सकता.

मोदी सरकार 2.0 में संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा है कि कांग्रेस और जेडीएस की गठबंधन सरकार विश्वास खो चुकी है - 'उन्हें जाना ही चाहिये और जाएंगे भी.'

पूरे मामले में अपने ब्रह्मास्त्र ऑपरेशन लोटस को अंजाम देने की कोशिश में लगे बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा तो कुमारस्वामी से इस्तीफा भी मांग रहे हैं क्योकि उके हिसाब से गठबंधन सरकार बहुमत गवां चुकी है.

बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव पी. मुरलीधर राव का दावा है कि कर्नाटक में अगले हफ्ते सत्ता बदल जाएगी. मुरलीधर राव के मुताबिक हफ्ते भर में कर्नाटक में बीजेपी सरकार बना लेगी.

देखा जाये तो बीएस येदियुरप्पा ने करीब साल भर बाद ही एचडी कुमारस्वामी को मई, 2018 की अपनी जैसी स्थिति में ला दिया है. कर्नाटक चुनाव नतीजों के बाद येदियुरप्पा के सामने भी बहुमत का टोटा था और वो येन केन प्रकारेण हासिल करने के लिए जूझ रहे थे.

देखना है कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री कुमारस्वामी विधानसभा से पहले ही राज भवन का रूख करते हैं जैसे 2015 में बिहार में जीतनराम मांझी ने किया था, या वैसा कुछ करते हैं जैसा 19 मई, 2018 को इमोशनल अत्याचार के बाद बीएस येदियुरप्पा ने किया था, या फिर विधानसभा में सदन के पटल पर आखिरी दम तक जूझते हैं?

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