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Updated: 01 अप्रिल, 2016 06:14 PM
अशोक प्रियदर्शी
अशोक प्रियदर्शी
  @ashok.priyadarshi.921
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बिहार के कई गांवों में परंपरा रही है कि देवताओं पर प्रसाद के रूप में दारू चढ़ाई जाती है. सदियों से डाकबाबा, गोरैयाबाबा, डीहवाल और मसानबाबा पर देसी दारू चढ़ाने की परंपरा है. लेकिन बिहार में पहली अप्रैल से देसी शराब पर पाबंदी लगा दी गई है. अब अगर देसी शराब उपलब्ध नहीं होगी तो देवताओं पर विदेशी शराब चढ़ा पाना गांववालों के लिए मुश्किल होगा. गांववालों का मानना है कि देवताओं पर दारू नहीं चढ़ पाएगी तो देवता नाराज हो जाएंगे और इसका खामियाजा ग्रामीणों को भुगतना पड़ सकता है.

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देवता की नाराजगी और प्रसन्नता का असर तो गांव तक ही सीमित रहेगा, लेकिन अगर देसी शराब की पाबंदी में लापरवाही साबित हुई तो इसका सीधा असर राज्य सरकार पर पड़ेगा. जाहिर तौर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बड़े उदेश्य को लेकर पहले चरण में देसी शराब की बिक्री पर पाबंदी लगाई है. लेकिन इसे सख्ती से लागू नहीं किया गया तो इसका सीधा असर गांव के गरीबों पर पड़ेगा. देसी दारू का सेवन गांव के गरीब लोग करते थे. इनमें वे लोग भी शामिल हैं जो डीहवाल, डाकबाबा, गौरयाबाबा और मसानबाबा पर दारू चढ़ाने में आस्था रखते हैं.

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 पटना के डीएम संजय अग्रवाल देसी शराब की बोतलें नष्ट करते हुए

लेकिन सरकारी घोषणा के बावजूद अवैध तरीके से शराब की बिक्री होगी तो इसका खामियाजा गरीबों को भुगतना पड़ेगा. पहले जो व्यक्ति 30 रूपए की दारू से काम चला लेते थे उन्हें कालाबाजार में कई गुना अधिक राशि खर्च करनी पड़ेगी. यही नहीं, अवैध तरीके से महुआ शराब के निर्माण पर अंकुश नहीं लगाए जाने का असर भी उन सबों पर ही दिखेगा. अवैध शराब से मौत का खतरा विद्यमान रहता है. सरकारी स्तर पर जो कानून बनाए गए हैं, सरकार की लचर कार्यप्रणाली रही तो इसका खामियाजा भी गरीबों को भुगतना पड़ेगा. जेल जाएंगे, सजा होगी. ऐसी स्थिति में दारू बंद करने का श्रेय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जब मिलेगा तब व्यवस्था की लचर कार्यप्रणाली की जवाबदेही भी नीतीश के जिम्मे होगी.

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बता दें कि राज्य में हर माह करीब 8232394 लीटर देशी शराब की खपत होती थी. जबकि 3677816 लीटर विदेशी और 3658646 लीटर बियर की खपत होती थी. लेकिन अब देसी शराब पर पाबंदी लगा दी गई है. सरकार ऐसा मान रही है कि देसी दारू पर प्रतिबंध लगाए जाने से ग्रामीणों को काफी राहत मिलेगी. जो गरीब अपनी मजदूरी का आधा हिस्सा दारू में खर्च कर देते थे. उनकी वह राशि बचेगी. महिलाओं पर अत्याचार की घटनाएं थमेंगी. बच्चों की पढ़ाई में मदद मिलेगी. लेकिन जब विफलता होगी तो गरीबों का गुस्सा भी सरकार पर होगा. क्योंकि विफलता की कीमत गरीबों को चुकानी पड़ेगी. जाहिर तौर पर यह गुस्सा नीतीश पर भारी पड़नेवाला है. क्योंकि इनकी आबादी बड़ी है.

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अशोक प्रियदर्शी अशोक प्रियदर्शी @ashok.priyadarshi.921

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं

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