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Updated: 08 अक्टूबर, 2020 01:18 PM
मशाहिद अब्बास
मशाहिद अब्बास
 
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भारत की नामचीन और अंतरराष्ट्रीय महिला पहलवान बबीता फोगाट (Babita Phogat) ने हरियाणा के खेल और युवा विभाग में उपनिदेशक पद से इस्तीफा दे दिया है. बबीता ने कहा है कि वह अपरिहार्य कारणों से यह इस्तीफा सौंप रही हैं. उनके सामने कुछ ऐसी परिस्थितियां हैं जिसे टाला नहीं जा सकता था इसी वजह से उनको ऐसा कदम उठाना पड़ा है. इस्तीफा देने के बाद वह चंडीगढ़ स्थित मुख्यमंत्री आवास पर गईं और मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर (Manohar Lal Khattar) से आशिर्वाद भी लिया. जिसके अब तरह तरह के अंदेशे लगाए जा रहे हैं कि आखिर उनका अगला कदम क्या होने वाला है. हालांकि इस बात में कोई शक नहीं है कि बबीता ने अपने राजनैतिक कैरियर के लिए इस सरकारी पद को ठुकराया है. वह पूरी तरह से राजनीति के मैदान में ही रहना चाहती हैं और उनका ये एजेंडा पिछले कुछ महीनों से उन्होंने खुद मजबूत किया है. सबसे ज़्यादा जिस बात की संभावनाए जताई जा रही है उसमें सबसे मजबूत मत यही है कि बबीता हरियाणा के सोनिपत के बरोदा सीट के उपचुनाव में मैदान में उतरने जा रही हैं. इसके अलावा उन पर बिहार चुनाव (Bihar Elections) के प्रचार का भी जिम्मा रहने वाला है, वह अपने और अपनी पार्टी भाजपा के लिए चुनाव प्रचार में पूरी तरह से लीन होना चाहती हैं इसीलिए बबीता ने बिना शोर करते हुए अपना इस्तीफा सौंप दिया है.

Hariyana, Babita Phogat, Resignation, Wrestler, Politics, BJP, Election,पहलवान बबिता फोगाट ने आखिरकार खेल को छोड़कर राजनीति का रुख कर लिया और भाजपा ज्वाइन कर ली

बबीता राजनीति के मैदान में नई नवेली ज़रूर हैं, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में उनको बहुत कुछ सीखने को मिला होगा जिसमें वह दादरी सीट से चुनाव हार गई थी. अब लोगों का मानना है कि पिछली गलतियों से बबीता ने सबक सीखा होगा और इस बार वह बेहतर करेंगी. कुश्ती के मैदान पर हाथ पैर से लोगों को चित करने वाली बबीता पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया पर भी मुखर हैं.वह हरेक मुद्दे पर बेबाकी से अपनी राय रखती हैं. कई बार अपने बयानों से सोशल मीडिया पर ट्रोल भी हो चुकी हैं.

लेकिन वह कभी भी खुद को गलत नहीं समझती हैं और हर बार अपने आपको और कट्टरता के साथ मुखर होकर पेश करती हैं. जोकि उनके पार्टी के एजेंडे पर फिट बैठता है. बबीता ने राष्ट्रमंडल खेलों में भारत का नाम रौशन किया है. वह एक बार राष्ट्रमंडल खेल में रजत तो दूसरी बार स्वर्ण पदक जीत चुकी हैं. इसके अलावा भी ढ़ेर सारी उपलब्धि बबीता के नाम है.बॅालीवुड में दंगल नामक फिल्म इनके ही जीवन पर बनी है जिनमें बबीता और उनकी बहनों के संघर्षों को दिखाया गया है. इनके संघर्ष को देखकर पूरा देश इनकी बहादुरी और हिम्मत को सलाम करने लगा.

बबीता की उपलब्धियां देख हरियाणा सरकार ने उन्हें पहले पुलिस विभाग में नौकरी सौंपी थी जिसे बबीता ने 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले ही छो़ड़ दिया था और भाजपा के टिकट पर चुनावी मैदान में उतर पड़ी, हालांकि उनको कामयाबी नहीं मिल सकी फिर वह खेल से जुड़े विभाग में नौकरी करने की मंशा ज़ाहिर करती हैं जिसे सरकार ने माना भी और उन्हें खेल से जुड़े विभाग में ही नौकरी दी जिसे वह फिर से राजनैतिक कैरियर के लिए ठुकरा चुकी हैं.

बबीता ने हालिया दिनों में खुद को कट्टर साबित करने के लिए कई बार विवादित टिप्पणीयों का भी सहारा लिया था. हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कश्मीर से 35 ए और 370 हटने के बाद विवादित टिप्पणी करते हुए कहा था कि अब कश्मीर से बहु आया करेंगी. इस विवादित बयान का बबीता ने पूरी तरह से समर्थन किया था जिससे वह ट्रोलर्स का शिकार भी हुयी थी. बबीता ने कोरोना वायरस में तब्लीगी जमात के खिलाफ भी अभृद टिप्पणी की थी जिस पर काफी होहल्ला भी हुआ था.

बबीता अपने एजेंडें में प्रधानमंत्री मोदी के सहारे फिट होना चाहती हैं और इसके लिए वह कैसे भी बयान का समर्थन को तैयार रहती हैं. वह आए दिन ट्वीटर पर टोर्ल होती हैं इसके बावजूद वह अपने एजेंडें को और मज़बूत तरीके से अपने ट्वीट के ज़रिए सामने लाती हैं. हालांकि उपचुनाव में बबीता की राह आसान नहीं है. कांग्रेस नेता के निधन से खाली हुयी इस सीट पर कुछ ही दिनों में चुनाव होने हैं और राज्य में किसान आंदोलन लगातार उग्र होता हुआ दिखाई दे रहा है.

हरियाणा जैसे राज्यों में किसानों की भूमिका को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है. किसान आंदोलन का खामियाजा बबीता को सहना होगा लेकिन अगर एक बेहतरीन रणनीति के साथ चुनाव को लड़ा गया तो जीत उतनी भी कठिन नहीं है. हरियाणा में कांग्रेस पार्टी पूरे दमखम के साथ किसान आंदोलन को समर्थन दे रही है और माना यह भी जा रहा है कि कांग्रेस किसी भी कीमत पर यह उपचुनाव जीतना चाहेगी क्योंकि ऐसे समय में कांग्रेस को अपना दमखम दिखाना ज़रूरी है वरना किसान आंदोलन फेल साबित हो जाएगा.

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लेखक

मशाहिद अब्बास मशाहिद अब्बास

लेखक पत्रकार हैं, और सामयिक विषयों पर टिप्पणी करते हैं.

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