New

होम -> सियासत

 |  3-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 16 अगस्त, 2022 04:51 PM
बिभांशु सिंह
बिभांशु सिंह
  @2275062259310470
  • Total Shares

मैं विशुद्ध रुप से समाजवादी विचारधारा की अराधना करता हूं. लेकिन, इसका मतलब ये नहीं कि मैं किसी पार्टी का शुभचिंतक हूं. डा. राम मनोहर लोहिया, लोक नायक जयप्रकाश नारायण, जननायक कर्पूरी ठाकुर और ऐसी विचारधारा के नेताओं की मेरे हृदय में खूब इज्जत हूं. इन्होंने जनसेवा के लिए अति साधारण संसाधन में लड़ाई लड़ी और आज नाम कर दिया. खैर इनमें से किसी लीडर को मुझे जीवित अवस्था में देखने का परम सौभाग्य नहीं मिला, लेकिन, अटल बिहारी के राजनीतिक जीवन के आखिरी कुछ दशक को मैंने काफी नजदीक से देखा है तो मुझे लगता है कि अगर जेपी, लोहिया जैसा कोई सख्स है तो वो अटल बिहारी वाजयेपी हैं.

प्रखर वक्ता, बुलंद और भारी आवाज के  धनी पूर्व पीएम वाजपेयी का जब भी भाषण सुनता हूं तो लगता है सुनता ही रहूं. विपक्षी भी उनकी वाकपटुता का मुरीद था. ईमानदार तो थे ही उससे भी अधिक उनका सिद्धांत अटल था. हिन्दू पृष्ठभूमि की पार्टी में रहने के बावजूद उनके हृदय में धर्मनिरपेक्ष भारत बसता था.

Atal Bihari Vajpayee, Prime Minister, India, Death Anniversary, BJP, Speech, Opposition, Deathअटल जी के जीवन में ऐसी तमाम चीजें थीं जिनसे राजनीतिक दलों और नेताओं को प्रेरणा लेनी चाहिए

आज जब हमलोग, उनकी पार्टी भाजपा, विपक्ष के नेता व सभी राष्ट्रीय व क्षेत्रीय दल जब उनकी पुण्यतिथि मना रहा है तो ऐसे में उनके साथ उस चिमटे को भी वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में याद करना जरुरी है, जिससे उन्होंने खरीद-फरोख्त की सरकार को चिमटे से नहीं छूने की बात कही थी.

दरअसल, 1996 में जब बहुमत साबित होने में विफल उनकी पार्टी की सरकार गिर गयी तो उन्होंने संसद में एक शानदार भाषण दिया था जो उस संसद व देश के लिए यादगार साबित हो गया. उन्होंने कहा था कि पार्टी तोड़कर सत्ता के लिए नया गठबंधन करके सत्ता हाथ में आती है तो मैं ऐसी सत्ता को चिमटे से भी छूना पसंद नहीं करेंगे.

इस दो पंक्ती में न केवल उन्होंने अपनी बात रखी बल्की अपने अटल सिद्धांत का भी भव्य दर्शन करा दिया. लेकिन, आज सियासी गलियारे में सरकार गिराने व बनाने के लिए क्या-क्या दांव खेले जाते हैं, वह सबके सामने है. ये केवल एक पार्टी की नहीं, बल्कि जब जिसे मौका मिलता है, वह इस खेल में कूद जाता है.

ऐसे में अटल जी को याद करने के साथ उस चिमटे को भी याद करनी चाहिए. ताकि, जब एक भी सीट कम पड़े और उसे खरीद कर सरकार बनाने की चाह हो, तो अटल जी का चिमटा याद आ जाए.

ये भी पढ़े -

वीर सावरकर का पोस्टर हटाना मजबूरी है, कोई अपनी जान का रिस्क क्यों लेगा?

हर घर तिरंगा अभियान: मोदी की राजनीतिक धार, बढ़ती लोकप्रियता और नेतृत्व के ताकत की पहचान

नीतीश ने मोदी-शाह को ये तो समझा ही दिया कि हर कोई उद्धव ठाकरे नहीं होता

लेखक

बिभांशु सिंह बिभांशु सिंह @2275062259310470

घुमंतू स्वभाव का हूं। राजनीति, नयी व रोचक बातें खिलने की आदत है। खबर लेखन से जुड़ा हुआ हूं।

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय