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Updated: 17 अगस्त, 2018 10:47 PM
साहिल जोशी
साहिल जोशी
  @sahil.joshi.58
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वैसे तो वाजपेयी के अनेक भाषण लोगों के जहन मे घर कर बैठे होंगे. उनके भाषण उनकी पहचान तो थे ही, साथ ही उनके उदार मतवादी व्यक्तित्व को उजागर भी करते थे. एक प्रमुख विपक्षी पार्टी के नेता होने के बावजुद सरकारी पार्टी के नेताओ पर अपने दायरे मे रहकर निशाना बनाने का खुलापन था वहीं सरकार में रहते हुए विपक्ष को छोटा ना दिखाने का बड़प्पन भी था. एक पत्रकार के रुप में मैंने उनके कई भाषण कवर किये, सुने, लेकिन कुछ भाषण ऐसे भी सुने जो मुझे लोगों ने बताए. उनके भाषणों में आशा झलकती थी, साथ ही जरुरत पड़ने पर अपने ही लोगों को खरी-खरी सुनाने में भी वो पीछे नहीं रहते. मुंबई से उनका नजदीकी नाता रहा है और इसलिये मैं उनके पांच ऐसे व्यकत्व्यों को बताना चाहता हूं जो मेरे खयाल से उनकी पुरी छवि को उजागर करते हैं.  

atal bihari vajpayeअटल बिहारी वाजपेयी के भाषणों में आशा झलकती थी

कमल खिलेगा..

बीजेपी बनने के बाद उनका ये पहला भाषण जो मुंबई के बीजीपी के पहले अधिवेशन मे दिया गया. स्वर्गीय प्रमोद महाजन ने 28 दिसंबर 1980 में हुए इस पहले अधिवेशन की डॉक्युमेंट्री बनाई थी. ये डॉक्युमेंट्री 2005 मे मुंबई में हुए बीजेपी के 25वें अधिवेशन में दिखाई गई. उसमें वाजपेयी का ये भाषण था. उस वक्त जनता पार्टी टूटकर बीजेपी बनी थी. इमरजेंसी के बाद अपनी पहचान मिटाकर वाजपेयी और सारे जनसंघियों ने समाजवादी और कुछ कांग्रेसियों के साथ जनता पार्टी बनाई थी. 1978 में बनी जनता पार्टी की सरकार का महज दो साल में बुरा अंत हो गया और पहली बार केंद्र में बनी गैर कांग्रेसी सरकार का सपना भी टूट गया था. ऐसे में अपने पुराने जनसंघ ग्रुप के साथ एक नयी शुरुआत थी भारतीय जनता पार्टी के रुप में, सपना टूटने के बाद एक उदासी थी. और ऐसे में अपने कार्यकर्ताओं के सामने उस अंदाज मे भविष्यवाणी करने वाला एक ही नेता हो सकता था अटल बिहारी वाजपेयी. पहले अधिवेशन मे अपना भाषण खत्म करते हुए उनके उद्गार थे ''अंधेरा छंटेगा सूरज निकलेगा कमल खिलेगा.''

सुनने आते हैं लोग...

उम्मीदों के साथ बीजेपी तो बनी लेकिन कमल खिलने के बजाए मुर्झाता नजर आ रहा था. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी दो सीटों पर आकर सिमट गयी थी. खुद वाजपेयी चुनाव हार गये थे. एक तरह से बीजेपी के अस्तित्व का सवाल खड़ा हो रहा था. ऐसे में मुंबई में बाजपेयी की रैली. एक वरिष्ठ पत्रकार ने बताया कि ऐसा पहली बार देखा कि सरकार पर बरसने के बजाय वाजपेयी, विपक्ष के नेता उनको सुनने आये लोगों पर बरस रहे थे. वाजपेयी की रैली के लिये भारी भीड़ इकठ्ठा हुई थी. भीड़ को देखकर उन्होंने एक लंबा ‘पॉज’ लिया और कहा ''सुनने आते हैं लोग वोट देने नहीं आते''. थोड़ी निराशा थोडी शिकायत लेकिन बिना हिचकिचाहट उन्होंने सुना ही दिया कि अगर सुनने आते हो तो वोट देते वक्त क्या हो जाता है. आज के दिनों में स्पीच राइटर्स, पोल्स या फिर डेटा का सहारा लेकर भाषण देनेवाले नेता इस भावुक संबंध को कम ही ला पायेंगे.

किताब का उत्तर किताब से...

आजकल जब पाबंदी लगाना एक आम बात बनती जा रही है तब पाबंदी के खिलाफ खुलकर बोलना आसान नहीं था. वो भी तब जब ऐसा बोलना राजनीतिक दृष्टि से हानिकारक हो सकता है. मामला 2003 का है, एनसीपी के कई नेताओं से समर्थित संभाजी ब्रिगेड ने लेखक जेम्स लेन की किताब का मामला उठा लिया था. किताब में छत्रपति शिवाजी महाराज पर आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर किताब पर पाबंदी की मांग ने जोर पकड़ लिया था और महाराष्ट्र विधानसभा में इसपर काफी गहमा गहमी भी थी. इतना ही नहीं विधानसभा चुनाव का मुद्दा भी वो होने जा रहा था, एक ऐसा भावनात्मक मुद्दा जिसपर वोट मांगना भी आसान था. महाराष्ट्र बीजेपी के नेता कांग्रेस एनसीपी की हां में हां मिला रहे थे. जाहिर है इसपर कुछ भी अलग कहना राजनीतिक आत्महत्या हो सकती थी. ऐसे में किसी उद्घाटन समारोह में वाजपेयी मुंबई आये और इस मुद्दे पर दो टूक अपनी बात कह दी. वो भी पॉज के साथ.. ''किताब का विरोध करना है तो दूसरी किताब लिखिए..पाबंदी से सवाल हल नहीं होते''

atal bihari vajpaye'सुनने आते हैं लोग वोट देने नहीं आते'- अटल बिहारी वाजपेयी

राम लक्ष्मण..

साल 2005 मुंबई में बीजेपी का 25वां राष्ट्रीय अधिवेशन, चुनाव हारने के बाद पार्टी थोड़ी सुस्त चल रही थी बीजेपी बीट पत्रकारों के लिये ठंडा हो गया था खासकर टीवी के लिये. हारे हुए की अहमियत कम होना दुनिया का नियम ही है. अधिवेशन के बाद शाम को मुंबई में शिवाजी पार्क पर रैली थी. वाजपेयी संबोधित करनेवाले थे हमारे राजनीतिक संपादक बीजेपी अधिवेशन को मिल रहे चैनल के रिस्पान्स को देखकर रैली कवर करने में ज्यादा इच्छुक नहीं थे. मेरे जैसे जूनियर के गले में शाम की रैली का कवरेज आ गया. ''अब अटलजी के पास नया कहने के लिये कुछ नहीं है तुम ही कवर कर लो''. वाजपेयी काफी रुक रुक कर बोल रहे थे. धीमे लेकिन दृढतापुर्वक. और भाषण के अंत में उन्होंने धमाका कर दिया, कह दिया “आडवाणी जी और प्रमोद महाजन बीजेपी के राम लक्ष्मण होंगे”. पूरे दिन में ना किसी बीजेपी नेता, ना ही किसी पत्रकार को ये सुगबुगाहट थी कि वाजपेयी ये कह देंगे. मंच पर मौजूद बाकी दावेदारों को समझ नहीं आया कैसे रिएक्ट करना है. ना ही बीजेपी को अच्छे से समझने वाले पत्रकारों को.

मैंने उन्हें हमेशा एक राजनेता की तरह देखा, जिसे सुनने में बड़ा मजा आता था. आप उनके विचार से इत्तेफाक रखें या ना रखें लेकिन कभी ऐसा नहीं लगा कि वो झूठ बोल रहे हैं या कोई कटुता है. इनके मुंबई के ये चार बयान उनकी सहजता को ही दिखाते हैं और यही वजह है कि लोगों ने वोट दिया हो या ना दिया हो लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी उन्हें हमेशा अपने लगे.

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लेखक

साहिल जोशी साहिल जोशी @sahil.joshi.58

लेखक इंडिया टुडे टीवी में सीनियर एडिटर हैं

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