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Updated: 25 जुलाई, 2020 04:55 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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अशोक गेहलोत (Ashok Gehlot) राजस्थान विधानसभा का सत्र (Assembly Session) बुलाने की मांग पर अड़े जरूर हैं, लेकिन सीरियस नहीं लगते! ऐसा लगता है जैसे बस दिखावा कर रहे हों. विधानसभा सत्र बुलाने को लेकर संवैधानिक प्रक्रिया अपनाने की जगह अशोक गेहलोत की दिलचस्पी टकराव और टाइमपास में ज्यादा लगती है.

राजस्थान की कांग्रेस सरकार का मामला अब मामला पहले विधानसभा स्पीकर के पास पहुंचा, फिर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट - और अब राजभवन (Governor) भी शामिल हो गया है. जनता के राजभवन घेरने के अशोक गेहलोत के बयान के बाद राज्यपाल की सुरक्षा और कानून व्यवस्था को लेकर सवाल उठने लगे हैं.

अब तो राहुल गांधी भी कूद पड़े हैं. कह रहे हैं राज्यपाल को विधानसभा का सत्र बुलाना ही चाहिये, लेकिन राज्यपाल कलराज मिश्र के एक सवाल का जवाब कोई नहीं दे रहा है - जब कांग्रेस अपने पास बहुमत होने का दावा कर रही है तो विधानसभा में बहुमत साबित करने की इतनी हड़बड़ी क्यों है?

सत्र बुलाने को लेकर गेहलोत सीरियस क्यों नहीं लगते

अशोक गेहलोत ने अपने राजनीतिक दांव पेंच में उलझा कर माहौल तो ऐसा बना ही दिया है. जैसे लगता है वो खुद विधानसभा का सत्र बुलाने पर अड़े हुए हैं - और राज्यपाल कलराज मिश्र, न बुलाने पर आमादा हों, लेकिन वास्तव में ऐसा ही है भी क्या?

1. धरना बीच में ही छोड़ राजभवन से लौटे क्यों? होटल से निकल कर अशोक गेहलोत विधायकों के साथ राजभवन गये. राज्यपाल कलराज मिश्र से विधायकों के साथ बातचीत भी की. जब राज्यपाल की तरफ से विधानसभा बुलाने को लेकर कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला तो विधायकों को धरने पर बैठा दिया. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद डोटासरा राजभवन परिसर में विधायकों के साथ जमे भी रहे. कहा तो ये जा रहा था कि टेंट और कुर्सियां डाल कर विधायक धरना देंगे. वे धरने पर तब तक बैठे रहेंगे जब तक राज्यपाल विधानसभा सत्र बुलाये जाने की मंजूरी नहीं दे देते.

फिर अचानक क्या हुआ कि जिन बसों में भर कर विधायक लाये गये थे, उन्हीं बसों से बैरंग होटल लौटा दिये गये?

gehlot with governor and congress mlaअपने समर्थक विधायकों के साथ अशोग गेहलोत राज्यपाल कलराज मिश्र से मिलने पहुंचे, कुछ देर राजभवन में भी धरना भी चला और होटल लौट गये.

अगर तमाशा ही खड़ा करना था तो लंब चौड़ें दावे करने की जरूरत क्या थी? खुद ही धरना भी दिया और खुद ही खत्म भी कर लिया. अब तक ऐसे काम तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ही किया करते रहे. अशोक गेहलोत तो बस उस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं.

क्या अशोक गेहलोत को लगा कि राजभवन में विधायक होटल जितने सुरक्षित नहीं हैं?

ये तो सच है कि होटल में विधायकों से किसी की मुलाकात संभव नहीं है, लेकिन राजभवन में तो कोई भी संपर्क कर सकता है.

2. कैबिनेट ने दोबारा प्रस्ताव क्यों नहीं भेजा? संविधान के आर्टिकल-174 में प्रावधान है कि राज्य कैबिनेट की सिफारिश पर राज्यपाल सत्र बुलाते हैं - और संवैधानिक तौर पर वो इससे इंकार भी नहीं कर सकते.

सीनियर एडवोकेट केटीएस तुलसी का भी मीडिया में बयान आया है - चुनी हुई सरकार अगर सेशन बुलाने की सिफारिश करती है तो राज्यपाल को उसी के अनुसार नोटिफिकेशन जारी करना होता है. अनुच्छेद-163 के तहत राज्यपाल को जब सेशन बुलाने की सलाह और सिफारिश की जाती है तो उसके मुताबिक सेशन बुलाने का प्रावधान है.

अशोक गेहलोत को राज्यपाल की तरफ से जो पत्र भेजा गया है उसमें लिखा है - सत्र किस तारीख से बुलाना है, इसका ना कैबिनेट नोट में जिक्र था, ना ही कैबिनेट ने अनुमोदन किया गया है.

राज्यपाल की आपत्ति का जवाब देते हुए गेहलोत कैबिनेट ने विधानसभा सभा बुलाने की दोबारा सिफारिश क्यों नहीं की?

आधी रात तक कैबिनेट की बैठक चलती रही, लेकिन प्रस्ताव दोबारा क्यों नहीं भेजा गया?

3. बहुमत है तो बहुमत की जरूरत क्यों है? राज्यपाल के पत्र में जिन 6 बिंदुओं पर फोकस है, उनमें एक सवाल है - जब आपके पास बहुमत है तो आप दोबारा क्यों बहुमत हासिल करना चाहते हैं?

ये तो सबको पता है कि अशोक गेहलोत दोबारा बहुमत हासिल करना क्यों चाहते हैं? लेकिन जब लिखित तौर पर पूछा गया है तो औपचारिक तौर पर जवाब भी तो देना होगा. कांग्रेस का हर नेता अशोक गेहलोत के पास 100 से ज्यादा विधायकों के सपोर्ट होने का दावा कर रहा है, लेकिन कोई ये नहीं बता रहा है कि सदन में बहुमत साबित करने की जरूरत क्यों आ पड़ी है?

न तो बीजेपी ने ऐसी कोई मांग की है, न गवर्नर की तरफ से ऐसा कुछ कहा जा रहा है, फिर भी बहुमत साबित करने का क्या तुक है, बताना तो पड़ेगा ही.

क्या अशोक गेहलोत इसलिए बहुमत साबित करना चाहते हैं क्योंकि सचिन पायलट ने कह दिया है कि सरकार अल्पमत में है इसलिए?

अशोक गेहलोत की नजर में जब सचिन पायलट 'निकम्मा और नकारा' हैं तो उनकी बात को इतनी गंभीरता से लेने की क्या जरूरत है?

ये तो टाइमपास पॉलिटिक्स है

अशोक गेहलोत ने सबसे पहले सचिन पायलट को ये कहते हुए लपेटा कि वो बीजेपी के साथ मिल कर कांग्रेस की सरकार गिराने की साजिश रच रहे हैं. फिर कहने लगे सचिन पायलट खुद भी डील में शामिल हैं. तभी एक ऑडियो क्लिप वायरल हो जाती है - और अशोक गेहलोत की टीम की तरफ से बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के खिलाफ केस दर्ज कर लिया जाता है. फिर अशोक गेहलोत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर शिकायत करते हैं कि उनकी सरकार गिराने की साजिश रची जा रही है, साथ में मध्य प्रदेश का उदाहरण भी देते हैं. फिर राज्यपाल को भी ये कहते हुए विवाद में घसीट लेते हैं कि विधानसभा का सत्र नहीं बुलाया गया तो जनता राजभवन घेर लेगी.

हर तरफ सिर्फ टकराव और विवाद खड़ा करने की ये कोशिश नहीं तो और क्या लगती है?

ये टाइमपास पॉलिटिक्स नहीं तो और क्या है?

स्पीकर सीपी जोशी की तरफ से सचिन पायलट सहित 19 कांग्रेस विधायकों को नोटिस दिया जाता है, लेकिन मामला जब राजस्थान हाई कोर्ट पहुंच जाता है तो ऐसी कोई भी दलील नहीं पेश की जाती जिससे अदालत संतुष्ट हो, लिहाजा यथास्थिति बनाये रखने का फैसला आता है. हालांकि, आखिरी फैसला सुप्रीम कोर्ट को लेना है.

सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई के दौरान बार बार एक ही सवाल उठता है कि क्या जनता को चुने हुए प्रतिनिधियों को असहमत होने, विरोध करने या अपनी बात कहने से रोका जा सकता है? स्पीकर जोशी की याचिका मंजूर तो हो जाती है, लेकिन उनकी पैरवी कर रहे कपिल सिब्बल ये नहीं समझा पाते कि क्यों हाई कोर्ट की रोक पर रोक लगायी जाये?

अदालतों में पहले से ही अशोक गेहलोत का पक्ष कमजोर नजर आ रहा है और अब राजभवन घेरने की बात कह गेहलोत ने नया मोर्चा खड़ा कर लिया है . राज्यपाल ने जो सवाल पूछे हैं जवाब तो देना ही होगा. राज्यपाल के सवाल भी ऐसे हैं कि जवाब देना मुश्किल हो रहा होगा - अगर राज्यपाल की सिक्योरिटी मुख्यमंत्री नहीं सुनिश्चित करेगा और सूबे में कानून व्यवस्था का क्या होगा?

अब तक तो यही देखने को मिलता रहा है कि राज्यों में सत्ता की जोर आजमाइश में राज्यपाल के केंद्र के इशारे पर काम करने के आरोप लगते रहे हैं, यहां तो अशोक गेहलोत ही निशाने पर आ गये हैं - अब बचाव के अलावा कोई रास्ता भी नहीं बचा रखा है!

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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