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Updated: 23 जुलाई, 2020 10:33 PM
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राजस्थान की राजनीति में हर वक्त कुछ न कुछ हो जरूर रहा है, लेकिन संकट गहराता जा रहा है. कोरोना महामारी जैसी मुसीबत के दौर में जब सरकार की पहली प्राथमिकता लोक भलाई होनी चाहिये, पूरा सरकारी अमला राजनीतिक जंग में उलझा हुआ है. जिन विधायकों को अपने इलाके के लोगों का मददगार बनना चाहिये, वे पूरा वक्त होटलों में गुजार रहे हैं.

जयपुर के एक होटल के बाहर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) मीडिया के सामने दावा किया कि बहुमत उनके साथ है - और जल्द ही वो विधानसभा का सत्र बुलाकर इसे साबित भी कर देंगे. अशोक गहलोत ने बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तक टारगेट तो सबको किया, लेकिन एक निराशा का भाव भी देखने को मिला. वो शायद सुप्रीम कोर्ट का रूख उम्मीदों के मुताबिक न होने के चलते हुआ हो.

सचिन पायलट (Sachin Pilot) को हाई कोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट की तरफ से भी बड़ी राहत मिली है - स्पीकर सीपी जोशी की याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हाई कोर्ट के अंतरिम आदेश पर रोक लगाने से इंकार कर दिया.

सचिन पायलट को अदालतों से बड़ी राहत मिली है

राजस्थान हाई कोर्ट अपना फैसला तो तय वक्त पर सुना देगा, लेकिन अमल उस पर अमल के लिए भी सुप्रीम कोर्ट की मुहर जरूरी होगी. हाई कोर्ट 24 जुलाई को फैसला सुनाने वाला है और सुप्रीम कोर्ट में 27 जुलाई को सुनवाई होने वाली है.

मतलब साफ है. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने तक यथास्थिति बनी रहेगी. बीच में चाहे छापेमारी चलती रहे या मीडिया में बयानबाजी - स्पीकर सीपी जोशी को भी तब तक इंतजार ही करना पड़ेगा. पहले हाई कोर्ट ने स्पीकर के किसी तरह के एक्शन पर रोक लगा रखी थी, अब तो बात सुप्रीम कोर्ट में पहुंच ही गयी है.

हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ ही स्पीकर सीपी जोशी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. सुप्रीम कोर्ट ने सीपी जोशी के वकील कपिल सिब्बल की दलीलें तो सारी सुनी, लेकिन हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से मना कर दिया.

अदालत का आखिरी फैसला आने से पहले ये तो नहीं कहा जा सकता कि किसकी हार हुई है और किसकी जीत, लेकिन ये तो माना ही जा सकता है कि सचिन पायलट को सुप्रीम कोर्ट की तरफ से बहुत बड़ी राहत मिली है - और ये सीधे सीधे अशोक गहलोत कैंप के खिलाफ जाती है.

ashok gehlot, sachin pilotसचिन पायलट को हाई कोर्ट नहीं जाते तो लड़ाई से बाहर हो चुके होते

सुप्रीम कोर्ट का जोर इस बात पर सबसे ज्यादा दिखा कि असंतोष की आवाज को दबाया कैसे जा सकता है? लोकतंत्र में क्या किसी को चुप कराया जा सकता है?

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महत्वपूर्ण बात ये है कि राजस्थान हाई कोर्ट में भी सचिन पायलट की तरफ से यही स्टैंड लिया गया था - और दावा किया गया कि पार्टी विरोधी कोई काम नहीं किया गया है बल्कि पार्टी के भीतर ही आवाज उठायी है. सवाल तो बनता ही है कि पार्टी में आवाज उठाना पार्टी विरोधी कैसे हो सकता है?

दरअसल, कांग्रेस विधायकों की दो बार हुई बैठक में न तो सचिन पायलट गये और न ही उनके समर्थक विधायक. कांग्रेस की तरफ से इसी बात की शिकायत स्पीकर से की गयी और उसी को आगे बढ़ाते हुए स्पीकर सीपी जोशी ने 19 विधायकों के नाम नोटिस जारी कर दिया. नोटिस में विधायकों को विधायक दल की बैठक में शामिल न होने का कारण पूछा गया और ये भी क्यों न उनको अयोग्य घोषित कर दिया जाये. नोटिस पाने के बाद विधायक हाई कोर्ट चले गये - और कोर्ट ने स्पीकर को फैसला होने तक किसी भी तरह का एक्शन लेने से मना कर दिया.

हाई कोर्ट के अंतरिम आदेश पर रोक लगाने की मांग के साथ सीपी जोशी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे - दलील रही कि हाई कोर्ट का आदेश न्यायपालिका और विधायिका में टकराव पैदा करता है. हाई कोर्ट जो भी फैसला सुनाये और फिर उस पर सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला जो भी, फिलहाल तो सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों को बहुत बड़ी राहत मिली हुई है. अब कम से कम अदालत के अंतिम आदेश आने तक उनके खिलाफ कोई एक्शन तो नहीं ही हो सकता - और यही बात अशोक गहलोत के खिलाफ जा रही है.

नंबर है लेकिन बहुमत साबित करने का मौका नहीं

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का पूरा जोर किसी भी सूरत में विधानसभा सत्र बुलाकर बहुमत साबित करने पर है. एक वजह इसकी ये भी है कि सचिन पायलट की तरफ से दावा किया गया है कि अशोक गहलोत की सरकार अल्पमत में है. हालांकि, अपने घर पर विधायकों को बुलाकर अशोक गहलोत ने मीडिया के सामने पेश कर बहुमत का दावा जरूर किया था.

अशोक गहलोत अब जब भी मीडिया के सामने आते हैं तो ये भी एक सवाल होता है जिस पर उनका कहना होता है कि सत्र भी बुलाएंगे और बहुमत भी साबित करेंगे. अशोक गहलोत का दावा अपनी जगह है लेकिन एक सच ये भी है कि जब किसी काम में वक्त आड़े आने लगे तो पकड़ ढीली होती चली जाती है. सचिन पायलट ने अदालत का रास्ता अख्तियार कर अशोक गहलोत की अपने खिलाफ कम से कम इस चाल में तो पेंच फंसा ही दिया है.

जहां तक नंबर का सवाल है विधानसभा में अभी तक तो ये अशोक गहलोत के पक्ष में ही है - 106/200. बागी हुए सचिन पायलट सहित 19 विधायकों को अलग कर दें तो ये संख्या 87 पहुंच जाती है.

अशोक गहलोत चाहते थे कि स्पीकर 19 विधायकों की सदस्यता खत्म कर दें, ऐसा होता तो सदन की संख्या 200 में से 19 कम यानी 181 रह जाती. ये होने पर बहुमत के लिए 91 विधायकों की ही जरूरत पड़ती जिसके लिए अशोक गहलोत की निर्दलीय विधायकों पर निर्भरता बढ़ जाएगी. बीटीपी के दो विधायकों का समर्थन अशोक गहलोत के लिए उत्साह बढ़ाने वाला रहा है.

लेकिन सचिन पायलट ने कोर्ट जाकर अशोक गहलोत की सारी रणनीतियों में पेंच फंसा दिया है. अब जब तक कोर्ट का आखिरी फैसला नहीं आ जाता न तो स्पीकर कोई कार्रवाई कर सकते हैं और न ही अशोक गहलोत कोई कदम आगे बढ़ा सकते हैं.

ध्यान देने वाली बात ये है कि सचिन पायलट के कोर्ट जाने को लेकर जो विचार विशेषज्ञों के सामने आ रहे थे, सुप्रीम कोर्ट में स्पीकर के वकील भी वैसी ही दलीलें पेश कर रहे थे. स्पीकर के वकील कपिल सिब्बल कह रहे थे कि जब तक स्पीकर कोई एक्शन नहीं लेते कोर्ट दखल दे ही नहीं सकता. विशेषज्ञों की भी राय यही रही कि सचिन पायलट को स्पीकर के एक्शन का इंतजार करने के बाद कोर्ट का रूख करना चाहिये था.

ये ठीक है कि सचिन पायलट के हाई कोर्ट जाने और उसके बाद स्पीकर के सुप्रीम कोर्ट में याचिका के बाद बहस न्यायपालिका और विधायिका के अधिकारों में उलझने लगी है. स्पीकर का कहना है कि जब कोर्ट ही विधायकों के बारे में फैसला लेगा तो वो क्या करेंगे?

कानूनी हार जीत अपनी जगह है, लेकिन ये तो सच है कि इस वक्त सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट ही सचिन पायलट के सबसे बड़े संबल बने हैं. सचिन पायलट और अशोक गहलोत राजनीतिक लड़ाई लड़ रहे हैं, जिसमें कदम कदम पर अशोक गहलोत का पलड़ा भारी है. सचिन पायलट के साथ न तो पार्टी है और न ही विधायकों का ऐसा नंबर जो उनको मुकाबले में खड़ा कर सके. कानूनी रास्ता अख्तियार करने का सचिन पायलट को सबसे बड़ा फायदा यही हुआ है कि अपनी रणनीति बनाने और जरूरी तैयारी करने का खासा मौका मिल गया है - और यही चीज अशोक गहलोत के खिलाफ जा रही है.

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