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Updated: 18 अगस्त, 2022 04:00 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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सचिन पायलट (Sachin Pilot) को अशोक गहलोत के खिलाफ नया मुद्दा मिल गया है. राजस्थान में जालोर के तीसरी क्लास के एक छात्र की हेडमास्टर की पिटाई से करीब तीन हफ्ते बाद मौत हो गयी थी. हेडमास्टर पर आरोप है कि मटके से पानी पीने को लेकर उसने बच्चे की बुरी तरह पिटाई कर दी थी. ये मामला तूल तब पकड़ा जब सूजी हुई आंखों वाली बच्चे की तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो गयी.

दलित बच्चे की मौत के बाद बारां से कांग्रेस विधायक पानाचंद मेघवाल ने इस्तीफे की पेशकश कर डाली थी. पानाचंद का कहना है कि वो घटना से आहत होकर इस्तीफे की पेशकश किये थे. माना ये गया कि सरकार की तरफ से हुई लापरवाही के कारण विधायक नाराज थे. विधायक पानाचंद का कहना है कि अब वो अशोक गहलोत सरकार की कार्रवाई से संतुष्ट हैं और दावा है कि सरकार पीड़ित परिवार के साथ है.

चाहे जिन परिस्थितियों में पानाचंद मेघवाल अपना स्टैंड बदलते हुए कहने लगे हों कि सब ठीक ठाक है, लेकिन राजस्थान में अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) की सियासत के जानी दुश्मन सचिन पायलट एक बार फिर आक्रामक हो गये हैं. सचिन पायलट ने जालोर की घटना पर अपनी ही सरकार के एक्शन पर सवाल उठाकर फिर से अशोक गहलोत को कठघरे में खड़ा कर दिया है. पूर्व लोक सभा स्पीकर और कांग्रेस नेता मीरा कुमार ने भी दलितों का मुद्दा उठाकर अशोक गहलोत के सामने वैसा ही सवाल खड़ा कर दिया है. मीरा कुमार ने अपने पिता बाबू जगजीवन राम से जुड़ी 100 पुरानी घटना की याद दिलायी है, जब उनको स्कूल में सवर्णों के घड़े से पानी पीने से रोका गया था. मीरा कुमार ने ट्विटर र लिखा है, 'आज, उसी वजह से 9 साल के एक दलित बच्चे को मार दिया गया.'

जालोर और उदयपुर की घटना की तुलना करने पर भी सचिन पायलट ने आपत्ति जतायी है. सचिन पायलट का कहना है कि उदयपुर में कन्हैयालाल की हत्या एक आतंकी घटना थी, उसकी इस घटना से तुलना नहीं करनी चाहिये.

सचिन पायलट सहित राजस्थान सरकार के कई मंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के अलावा कई विधायक भी इलाके का दौरा कर पीड़ित परिवार से मिल चुके हैं. सचिन पायलट के साथ तो नेताओं का एक बड़ा काफिला ही पहुंचा था.

जालोर की घटना को लेकर सचिन पायलट का वैसा ही हमलावर रुख देखने को मिला जैसे दो साल पहले कोटा के अस्पताल में बच्चों की मौत को लेकर रहा. सचिन पायलट ने कांग्रेस की ही सरकार को फिर से कठघरे में खड़ा कर दिया है और बयान भी मिलता जुलता ही है, 'सरकार हमारी है... जिम्मेदारी से बच नहीं सकते...'

तब तो अशोक गहलोत ने बाजी पलट दी थी और सचिन पायलट को 'निकम्मा, नकारा, पीठ में छुरा भोंकने वाला' बताते हुए अपनी तरफ से किनारे ही लगा दिया था. फिर से वैसा ही हो, ऐसा तो नहीं लगता. सचिन पायलट ने अशोक गहलोत को ऐसे समय और ऐसे मुद्दे पर घेरा है, जब राहुल गांधी (Rahul Gandhi) राजस्थान में बाकायदा सर्वे करा कर अशोक गहलोत, कांग्रेस के मंत्रियों और सरकार के कामकाज पर फीडबैक ले रहे हैं. सर्वे के जरिये ये भी जानने की कोशिश हुई है कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट में ज्यादा लोकप्रिय कौन है - और किसके खिलाफ शिकायतें ज्यादा हैं?

और सबसे बड़ी बाद सोनिया गांधी और राहुल गांधी भी सचिन पायलट को ध्यान में रख कर अशोक गहलोत और उनकी राजनीतिक मंशा को समझने की कोशिश कर रहे हैं. प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ यूपी चुनाव के दौरान काम करने के बाद सचिन पायलट गांधी परिवार के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई के विरोध में अशोक गहलोत के बराबर ही टीवी स्क्रीन पर नजर आये हैं - और ये अशोक गहलोत की राजनीतिक सेहत के लिए बिलकुल भी ठीक नहीं लगता.

मौका तो पायलट को गहलोत ही दे रहे हैं

सचिन पायलट ने जालोर में दलित स्कूली छात्र की मौत के मामले में भी अशोक गहलोत सरकार की भूमिका पर सवाल खड़ा किया है. 2020 के शुरू में कोटा के अस्पताल में एक निश्चित अवधि में काफी बच्चों की मौत हो गयी थी. तब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनके समर्थक मंत्री और कांग्रेस नेता बच्चों की मौत को वैसे ही मामूली घटना बता रहे थे, जैसे उससे पहले गोरखपुर अस्पताल में बच्चों की मौत को लेकर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनकी पूरी टीम.

sachin pilot, ashok gehlotराजस्थान मेें 2023 में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं और सचिन पायलट ने ऐसे मौके से अशोक गहलोत को घेरा है जब राहुल गांधी जमीनी हालात का गंभीरता से आकलन कर रहे हैं.

सचिन पायलट ने जालोर के दलित बच्चे की मौत की घटना को भी कोटा अस्पताल की ही तरह पेश किया है. सचिन पायलट की बातें सुन कर लगता तो यही है कि वो दलित परिवार के साथ खड़े हैं - और इंसाफ दिलाने की कोशिश कर रहे हैं. पूरा इंसाफ तो अदालत से मिलेगा, लेकिन तात्कालिक राहत के तौर पर वो मुआवजे की राशि से कुछ ज्यादा अपेक्षा कर रहे हैं. वैसे भी पीड़ित पक्ष के साथ कोई नेता, वो भी सत्ताधारी पार्टी का, मुसीबत की घड़ी में ऐसे खड़ा मिले तो कुछ देर के लिए वो मसीहा क्या भगवान जैसा भी नजर आ सकता है.

दो साल पहले कोटा के अस्पताल में बच्चों की मौत पर कांग्रेस की ही सरकार को लेकर सचिन पायलट का कहना था, 'हमारी प्रतिक्रिया ज्यादा संवेदनशील और ज्यादा सहानुभूतिभरी होनी चाहिये थी.'

तब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनके एक साथी मंत्री ने ठीक पहले की वसुंधरा राजे सरकार के दौरान हुई बच्चों की मौत के आंकड़ों से तुलना करके अपना बचाव कर रहे थे. जिस पर सचिन पायलट का कहना रहा, 'हमें आंकड़ों के जाल में नहीं फंसना है. हम लोगों का जो रिस्पॉन्स रहा है पूरे मामले को लेकर वो किसी हद तक संतोषजनक नहीं है,'

जालोर की घटना को लेकर भी सचिन पायलट बिलकुल उसी लाइन पर चल रहे हैं. कहते हैं, 'जहां तक इस घटना की बात है, ये कहना नाकाफी है कि बाकी राज्यों में ऐसा होता है... किसी राज्य में दलित, आदिवासी, असहाय के साथ ऐसा होता है तो जीरो टॉलरेंस करना पड़ेगा... हम ये नहीं कह सकते कि बाकी राज्यों में हो रहा है तो यहां पर भी हो रहा है.'

ऐसा लगता है जैसे अशोक गहलोत और उनके साथी इधर उधर ध्यान भटका कर निकलने के कोशिश कर रहे हैं, लेकिन सचिन पायलट मुद्दे को पकड़ कर बैठ जाते हैं. सचिन पायलट के कहने का भी वही तरीका होता है जो कोई और कहता. सरकार का बचाव नहीं करता बल्कि सच का साथ देता. मुद्दे पर फोकस रहता.

सचिन पायलट के समर्थकों का दावा है कि राजस्थान में राहुल गांधी के सर्वे के बाद अशोक गहलोत को हटाकर मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है. ये लड़ाई 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के साथ ही शुरू हो गयी थी - और अब तक जारी है.

देखना होगा, अपने समर्थकों की बात सही होने पर यानी मुख्यमंत्री बन जाने पर भी अपने स्टैंड पर कायम रहते हैं या नहीं? पीड़ितों के साथ आगे भी खड़े रहते हैं या नहीं?

सचिन पायलट का कहना है कि हमें ये विश्वास दिलाना होगा कि आप दलितों के साथ अत्याचार करके बच नहीं सकते. सवालिया लहजे में कहते हैं, 'हम वेट करते रहें कि अगला कब ​हादसा हो और हम एक्शन लें.'

सचिन पायलट का मानना है कि 'इस तरह की घटना किसी के साथ हो... हमें अन्याय के खिलाफ बोलना चाहिये.' एक पुराने वाकये की याद दिलाते हुए सचिन पायलट कहते हैं, 'हम जब विपक्ष में थे तो बाड़मेर में डेल्टा मेघवाल कांड हुआ... हम उसे लॉजिकल एंड तक लेकर गये थे... आज सरकार हमारी है... हम जिम्मेदारी से बच नहीं सकते.' लगे हाथ मीरा कुमार की तरह याद भी दिलाते हैं 'आजादी के 75 साल हो गए हैं.'

हालांकि, सचिन पायलट का अभी दलित परिवार के साथ या तब कोटा अस्पताल के पीड़ित परिवारों के साथ खड़ा होना भी वैसा ही लगता है, जैसे CAA-NRC के विरोध प्रदर्शनों के दौरान प्रियंका गांधी वाड्रा यूपी के पीड़ित परिवारों के साथ खड़ी नजर आया करती थीं. ये भी संयोग की बात है कि कोटा के अस्पताल में बच्चों की मौत की घटना भी तभी हुई थी - और यही वजह है कि सचिन पायलट के बयान मानवीय कैटेगरी से थोड़े दूर और स्वार्थ की राजनीति के ज्यादा करीब प्रतीत होते हैं.

अब गहलोत से भी पूछा जाएगा

अब तक तो यही देखने को मिला है कि अशोक गहलोत की शिकायतें आलाकमान के दरबार में महज FIR नहीं बल्कि सबूत ही मान ली जाती रहीं, लेकिन आगे भी ये चीजें यूं ही एकतरफा चलती रहेंगी लगता तो नहीं है - क्योंकि राहुल गांधी ने राजस्थान की सभी 200 विधानसभा क्षेत्रों में सर्वे करा कर जमीनी हालत जानने की कोशिश की है.

सर्वे रिपोर्ट पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और और राहुल गांधी के अलावा कुछ सीनियर नेता विचार करने वाले हैं - और मान कर चलना चाहिये कि अगर फीडबैक मुख्यमंत्री के खिलाफ होता है, तो अशोक गहलोत का सचिन पायलट को 'निकम्मा, नकारा, पीठ में छुरा भोंकने वाला' होने का दावा आगे चल कर पूरी तरह खारिज हो जाएगा.

अशोक गहलोत के खिलाफ अभी होने वाली सारी नकारात्मक चीजें घातक साबित हो सकती हैं. अशोक गहलोत को नहीं भूलना चाहिये कि बेटे को टिकट दिलाने को लेकर उनकी जिद्द राहुल गांधी को बिलकुल भी अच्छी नहीं लगी थी. 2019 में कांग्रेस की हार के बाद अगर प्रियंका गांधी वाड्रा ने CWC में कहा था कि कांग्रेस का हत्यारा इसी कमरे में बैठा है, तो निशाने पर बाकी नेताओं के साथ अशोक गहलोत भी रहे.

ये भी अशोक गहलोत की किस्मत है कि गांधी परिवार प्रवर्तन निदेशालय के चक्कर में फंसा है और कांग्रेस के मात्र दो मुख्यमंत्रियों में से एक हैं. ऐसे में अशोक गहलोत भी छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की तरह गांधी परिवार के परम हितैषी बन कर कांग्रेस नेतृत्व का ध्यान भटकाने की कोशिश कर रहे हैं - लेकिन ये लंबा या हमेशा चलेगा जरूरी तो नहीं है.

अशोक गहलोत ने एक बार फिर सचिन पायलट को अपने पुराने अंदाज में ही कमतर बताने की कोशिश की है. सचिन पायलट का नाम लिये बगैर अशोक गहलोत का कहना है, 'कांग्रेस में कुछ लोग कार्यकर्ताओं को ये कहकर भड़का रहे हैं कि कार्यकर्ताओं का मान सम्मान का ख्याल रखा जाना चाहिये. अरे... ऐसे लोग मुझे सिखाएंगे कार्यकर्ताओं के मान सम्मान के बारे में, जिन्होंने कभी कार्यकर्ताओं को पद पर रहते पूछा ही नहीं.'

उदयपुर चिंतन शिविर से पहले एक बार सचिन पायलट ने सोनिया गांधी से मुलाकात की थी. उसके बाद अशोक गहलोत ने अफसरों की मीटिंग में खुद को किस्मतवाला बताया था - और ऐसे पेश किया था कि ये उनका राजनीतिक कौशल है कि वो मुख्यमंत्री बने हुए हैं... और बने भी रहेंगे, किसी में इतना दम नहीं कि उनको हटा सके.

राजस्थान के मुख्यमंत्री गहलोत ने बीच में मनमानी करने की काफी कोशिशें की, लेकिन आखिरकार करना वही पड़ा तो सचिन पायलट चाहते थे. जो राहुल गांधी ने सचिन पालयट से मुलाकात में प्रॉमिस किया था. ये ठीक है कि अशोक गहलोत ने अजय माकन के फोन न उठाकर गांधी परिवार की अवहेलना की, लेकिन काम तो उनको करने ही पड़े. भले ही वो चीजों को कुछ समय के लिये टाल दें, लेकिन मानना तो वही पड़ेगा जो आलाकमान चाहेगा.

अशोक गहलोत को समझ लेना चाहिये कि सचिन पायलट बड़ी होशियारी से अपनी चाल चल रहे हैं. कभी चुप्पी साध लेते हैं तो कभी उनको पिता समान भी बता देते हैं, लेकिन हरदम घात लगाकर मौके की तलाश में बैठे रहते हैं - और जैसे ही अशोक गहलोत की कमजोर नस मिलती सीधा धावा बोल देते हैं. जोरदार तरीके से.

सबसे महत्वपूर्ण बात है कि सचिन पायलट मानवीय पक्ष को सामने रख कर चल रहे हैं. कोटा के अस्पताल में बच्चों की मौत का मामला भी ऐसा ही रहा. अब अगर सर्वे के नतीजे अशोक गहलोत के खिलाफ राय बना देते हैं, तो पहले जैसी बात नहीं रहेगी. हालांकि, ये तभी हो सकता है जब कांग्रेस नेतृत्व राजस्थान की राजनीति को लेकर गंभीर हो. अगर गांधी परिवार गहलोत के मोह में वैसे ही पड़ गया जैस सिद्ध के मोहपाश में बंधा हुआ देखा गया - तो राजस्थान में भी कांग्रेस का पंजाब जैसा ही हाल होगा और पायलट ने सिंधिया की ही तरह उड़ान भर लेंगे - बीजेपी तो बुला ही रही है. बस सही मौके का इंतजार है. बीजेपी को भी, सचिन पायलट को भी.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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