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बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 09 अगस्त, 2020 07:15 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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क्या राजस्थान में कांग्रेस सरकार गिराये जाने की साजिश की बातें सरासर झूठ थीं?

क्या मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) ने बीजेपी को सरकार गिराने का आरोप लगा कर सियासी दुश्मनी निभा रहे थे?

क्या अशोक गहलोत ने अपनी सरकार गिराने में सचिन पायलट के शामिल होने जैसे संगीन इल्जाम लगा कर मुफ्त में बदनाम कर दिया?

ऐसे सारे सवालों के जवाब फिलहाल 'हां' में ही मिल रहे हैं - क्योंकि जिस मामले में महीने भर तक राजस्थान पुलिस का स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप जी जान से जुटा रहा वो केस ही क्लोज हो गया है. SOG की गुजारिश पर अदालत ने भी राजस्थान पुलिस को मामला बंद करने की इजाजत दे दी है.

क्या मुख्यमंत्री गहलोत ने ये सब सचिन पायलट (Sachin Pilot) और गजेंद्र सिंह शेखावत (Gajendra Singh Shekhawat) को सबक सिखाने के लिए प्लान किया था?

राजनीति में सब कुछ बिलकुल वैसा तो होता नहीं जैसा ऊपर से साफ साफ नजर आता है - कहीं ऐसा तो नहीं कि अशोक गहलोत ने झूठे खतरे के सच में बदलने की आशंका से पलटी मार ली है?

झूठ की बुनियाद पर बड़ा बखेड़ा!

सरकार गिराने की साजिश की बुनियाद हिलने का शक तो तभी होने लगा था जब स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप ने राजस्थान हाईकोर्ट को बताया कि मामले में राजद्रोह का केस नहीं बनता है - और इसलिए वो राजद्रोह की धाराओं को वापस लेना चाहते हैं.

ये राजद्रोह का ही मामला जिस पर सचिन पायलट को सबसे ज्यादा ऐतराज रहा - और SOG का नोटिस मिलते ही वो आपे से बाहर हो गये. नोटिस मिलने के बाद ही सचिन पायलट कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलने पहुंचे थे, लेकिन उनको अहमद पटेल के पास भेज दिया गया था. बाद में प्रियंका गांधी और सचिन पायलट में भी बात हुई लेकिन नतीजा सिफर रहा. स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप एक ऑडियो क्लिप की जांच कर रहा था और उसी के आधार पर कांग्रेस विधायक भंवरलाल शर्मा के साथ साथ केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के खिलाफ भी केस दर्ज किया गया था. शेखावत ने साफ तौर पर कहा था कि उसमें उनकी आवाज नहीं है. शेखावत की दलील थी कि उनकी अपनी बोली और ऑडियो क्लिप में बातचीत के लहजे में काफी फर्क है. 28 दिन की तूफानी जांच पड़ताल के बाद राजस्थान पुलिस के एसओजी ने तीनों FIR बंद करते हुए सिर्फ इतना ही कहा है - कोई मामला नहीं बन रहा है. स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप के वकील संत कुमार ने कोर्ट को बताया कि मामले में वो कोई कार्यवाही नहीं चाहते और कोर्ट ने मान भी लिया.

फिर अदालत ने इस मामले में गिरफ्तार सभी लोगों को छोड़ने का आदेश दिया - संजय जैन, भरत मालानी और अशोक सिंह. संजय जैन को एंटी करप्शन ब्यूरो ने 5 दिन की रिमांड पर ले रखा है इसलिए वो अभी नहीं छूट पाएंगे.

ये सब होने के बाद बीजेपी हमलावर हो गयी है. बीजेपी का सवाल भी बिलकुल वाजिब लगता है - एक महीने तक बेकसूर लोगों को जेल में रखने की सजा किसे मिलनी चाहिये? SOG ने 10 जुलाई को केस दर्ज किया था. केस के मुताबिक, एक तस्कर का मोबाइल सर्विलांस पर रखे जाने के दौरान पुलिस को एक ऐसी साजिश का पता चला जिसमें राज्य सरकार को गिराने की साजिश रही.

चूंकि साजिश सरकार गिराने की रही लिहाजा केस भी राजद्रोह का दर्ज हुआ और सचिन पायलट सहित कई लोगों को नोटिस भेज दिया गया. नोटिस तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नाम भी गया था जिसे वो राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल भी किये. हालांकि, उनको नोटिस बयान दर्ज कराने के लिए रहा.

ashok gehlotअब तो अशोक गहलोत को साजिश की साजिश का भी खुलासा करना पड़ेगा!

SOG के केस बंद कर देने के बाद कोई शक तो रहा नहीं कि कैसे एक शक की बुनियाद पर न सिर्फ राजस्थान बल्कि दिल्ली तक राजनीतिक तूफान खड़ा करने की कोशिश की गयी. ऐसे दौर में जब सूबे की जनता कोरोना के प्रकोप से जूझ रही है, अशोक गहलोत ने सारी मशीनरी एक झूठ की बुनियाद पर लगा डाली.

जब से ये मामला शुरू हुआ कांग्रेस के अशोक गहलोत गुट के विधायक जयपुर के होटल में भेज दिये गये. अशोक गहलोत ने उन विधायकों के साथ राज्यपाल से मुलाकात की और विधानसभा सत्र बुलाने के नाम पर विधायकों को राजभवन में धरने पर बिठा दिया. राजस्थान पुलिस की टीम मानेसर के होटल से लेकर जगह जगह छापेमारी करती रही - और गिरफ्तार किये गये लोगों के वॉयस सैंपल का दबाव बनाया. संजय जैन ने तो साफ तौर पर इंकार कर दिया. संजय जैन का कहना था कि ये मामला पूरी तरह राजनीतिक है और सैंपल लेने के बाद उसका इस्तेमाल उनको फंसाने के लिए किया जा सकता है. मतलब, संजय जैन का भी शक बिलकुल सही रहा.

चक्कर क्या है?

अब तो ऐसा लगता है कि अशोक गहलोत ने एक पुलिस इंसपेक्टर के शक के आधार पर दर्ज केस को आधार बनाकर निजी हित साधने की कोशिश की. सचिन पायलट को किनारे लगाने को तो वो पहले से ही बहाना खोज रहे थे - एक झटके में सचिन पायलट को राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटा दिया गया और डिप्टी सीएम की पोस्ट से भी.

सचिन पायलट के हटते ही गोविंद डोटासरा को नया पीसीसी अध्यक्ष बना दिया गया - और फौरन ही अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत एक्शन में आ गये. कांग्रेस के धरने में शामिल होकर बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को ललकारने लगे - गलत जगह पंगा ले लिया है.

अब तो शक और भी गहराने लगा है - आखिर केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के खिलाफ केस क्यों दर्ज हुआ?

जोधपुर लोक सभा सीट से गजेंद्र सिंह शेखावत बीजेपी के उम्मीदवार थे और वैभव गहलोत कांग्रेस के. गजेंद्र सिंह शेखावत चुनाव जीत कर मंत्री बन गये और वैभव गहलोत हाथ मलते रह गये. बड़ी मुश्किल से राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन का अध्यक्ष बन पाये. सुना गया है कि उसमें भी कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी.

क्या सचिन पायलट को इसलिए टारगेट किया गया क्योंकि वो वैभव गहलोत के रास्ते का रोड़ा बन रहे थे?

क्या गजेंद्र सिंह शेखावत को इसलिए फंसाने की कोशिश की गयी क्योंकि उनसे वैभव गहलोत चुनाव हार गये थे?

ऐसे सवालों का कोई मतलब नहीं होता अगर स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप की जांच टायं टायं फिस्स नहीं हो गयी होती. अगर SOG ने केस बंद न किया होता? या उसमें से राजद्रोह का केस वापस न लिया होता?

क्या इसी झूठ की बुनियाद पर अशोक गहलोत मीडिया के सामने सचिन पायलट को निकम्मा, नकारा और कांग्रेस की पीठ में छुरा भोंकने वाला बोल रहे थे? क्या इसी बुलबुले के बदौलत अशोक गहलोत, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर सरकार गिराने की साजिश का अपडेट दे रहे थे और फिर फोन भी किये थे? क्या इसी बिनाह पर अशोक गहलोत, अमित शाह सहित केंद्र के कई मंत्रियों को सरकार गिराने की साजिश रचने के इल्जाम लगा रहे थे.

हद है, लेकिन चक्कर क्या है?

क्या ऐसा नहीं लगता कि अशोक गहलोत ने किसी खास वजह से यू-टर्न ले लिया हो?

समझौते तो ऐसे ही होते हैं. ये सब परदे के पीछे होते हैं कभी किसी को मालूम नहीं होते, सिवा उनके जो ऐसे मामलों से सीधे सीधे जुड़े हुए हों.

भारी दबाव से तो अशोक गहलोत गुजर ही रहे हैं - अपने गुट के विधायकों को कब तक होटल क्वारंटीन में रखे हुए अपने पक्ष में किया जा सकता है?

दूसरी तरफ पायलट खेमा टस से मस नहीं हो रहा है. ऐसे में जबकि अशोक गहलोत, सचिन पायलट गुट के विधायकों की सदस्यता खत्म कराने की कोशिश में रहे - विधायकों ने मैसेज देना शुरू कर दिया था कि वे विधानसभा सत्र में भाग लेने को तैयार हैं. ऐसा होने पर अशोक गहलोत एक्शन लेना तो दूर सरकार के पक्ष में विधायकों के वोट का खतरा महसूस करने लगे होंगे. क्या अशोक गहलोत के यू-टर्न लेने की इतनी ही वजह हो सकती है? पुलिस तो जांच कर ही रही थी. ऐसा भी नहीं था कि अदालत की तलवार लटक रही हो, एक निश्चित वक्त में रिपोर्ट देने को लेकर. पुलिस तो बड़े आराम से मामला लटका सकती थी.

इस मामले में पुलिस का एक्शन में आना और फिर एक झटके में एक्शन बंद कर देना दोनों ही शक पैदा करता है - ऐसा लगता है जैसे पुलिस राजनीतिक दबाव में खास हिदायतों के दायरे में काम कर रही हो.

देखा जाये तो केंद्रीय एजेंसियों का भी चौतरफा दबाव पड़ ही रहा था. एक एसएचओ की खुदकुशी के मामले में सीबीआई एक विधायक के पीछे पड़ चुकी थी, जिसके बाद राजस्थान सरकार की तरफ से सीबीआई को लेकर सर्कुलर भी जारी हुआ.

अशोक गहलोत के करीबियों के यहां आयकर के छापे, बेटे और भाई को ED का समन और परदे के पीछे अशोक गहलोत के खिलाफ चल रही राजनीतिक कवायद - एक साथ ये सब झेलना भी तो मुश्किल होता है. कहीं अशोक गहलोत भी मायावती और मुलायम सिंह जैसा दबाव तो नहीं महसूस करने लगे थे - और मजबूरन हथियार डालने का फैसला कर लिया?

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#राजस्थान, #अशोक गहलोत, #सचिन पायलट, Ashok Gehlot, Sachin Pilot, Gajendra Singh Shekhawat

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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