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Updated: 15 अगस्त, 2020 01:46 PM
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अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) के राजनीतिक कौशल को देखकर कहा जा सकता है कि कांग्रेस (Congress) का एक बड़ा रणनीतिकार छोटी लड़ाई में फंस गया है. कांग्रेस में कोई अमित शाह (Amit Shah) और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की तरह सोचने वाला है. या उनसे आगे बढ़कर सोचने वाला है, तो वह राजस्थान (Rajasthan) के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही हैं. जिस व्यक्ति को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष होना चाहिए वह मुख्यमंत्री के पद के लिए लड़ रहा है. यकीन मानिए अगर गांधी परिवार अपनी प्रभुसत्ता पर संकट समझने की गलतफहमी दूर कर अशोक गहलोत को कांग्रेस की कमान दे दे तो हिंदुस्तान में कांग्रेस एक बार फिर अपने पैरों पर खड़ी होनी शुरू हो जाए. विधानसभा में ध्वनिमत से विश्वासमत हासिल करने से पहले सब कुछ बोलने के बाद जब पत्रकारों के पास से खबर आई कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत एक बार फिर से पत्रकारों से बातचीत करना चाहते हैं तब किसी को समझ में नहीं आया कि सब कह देने के बाद आखिर क्या बात करना चाहते हैं. प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा को साथ लेकर आए तब भी किसी को समझ में नहीं आया कि मुख्यमंत्री उनको लेकर क्यों आए हैं.

Ashok Gehlot, Rajsthan, CM, BJP, Vasundhara Raje, Sachin Pilotराजस्थान में अशोक गहलोत ने ये सिद्ध कर दिया है कि कांग्रेस में उनकी टक्कर का कोई रणनीतिकार नहीं है

बेवजह की बातचीत कोरोना पर करने के बाद अशोक गहलोत ने माइक गोविंद सिंह डोटासरा की तरफ मोड़ दिया तब भी किसी को समझ में नहीं आया कि गहलोत डोटासरा से क्या कहलवाना चाहते हैं. डोटासरा बोले कि आखिर बीजेपी ने हमारे विश्वास मत पर विभाजन क्यों नहीं मांगा और वोटिंग क्यों नहीं कराई? तब भी वहां मौजूद किसी को यह समझ में नहीं आया कि वह यह बात क्यों बोल रहे हैं.

यह माजरा लोगों को तब समझ में आया जब विश्वास मत पर विपक्ष का रिएक्शन लेने के लिए बीजेपी के नेताओं को खोजना शुरू किया. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया, नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया और उप नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ सिर पकड़कर विधानसभा के अंदर ही बैठे थे और अपने गायब विधायकों के खोजबीन में लगे हुए थे. दरअसल अशोक गहलोत, बीजेपी को दिए दर्द की कराह दुनिया को सुनाना चाहते थे.

अपनी सरकार बचाने और बीजेपी को सरकार गिराने में असफल करने की खुशी से अशोक गहलोत का कलेजा ठंडा होने वाला नहीं था, वह तो दुनिया को बताना चाहते थे कि हमने बीजेपी के घर में घुसकर उसे मारा है. मोदी शाह की जोड़ी को बीजेपी के शीर्ष में आने के बाद यह अब तक का सबसे बड़ा झटका है. जिस तरह से अशोक गहलोत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह को करारा राजनीतिक तमाचा मारा है, उसकी गूंज बीजेपी के गलियारों में लंबे समय तक सुनाई देती रहेगी.

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जीत गए यह कोई बड़ी खबर नहीं है. सबसे बड़ी खबर तो यह है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बीजेपी के घर में घुसकर मारा है. अशोक गहलोत ने विश्वासमत पेश किया और विश्वास मत पर फैसले से ठीक पहले बीजेपी के चार विधायक चुपके से कब निकल गए, सदन का फ्लोर संभाल रहे नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया और उप नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ को पता ही नहीं चला. प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया तो ऐसे रणनीतिकार हैं कि उनको भनक ही नहीं लगी कि पार्टी कब की टूट चुकी है.

आदिवासी क्षेत्र से आने वाले विधायक गिर्डी से कैलाश मीणा, दरियाबाद से गौतम मीणा ,आसपुर से गोपीचंद मीणा और घाटोल से हरेंद्र निनामा विश्वास मत के समय ध्वनि मत से अशोक गहलोत विश्वास मत हासिल कर रहे थे तो सदन से नदारद थे. बीजेपी ने कहा था कि वह अविश्वास मत पेश करेगी और कांग्रेस को भरोसा था कि हमारे विश्वास मत पर बीजेपी अपनी लाज बचाने के लिए जरूर मत विभाजन मांगेगी. कांग्रेस पूरे देश में बीजेपी की फजीहत करने की पूरी तैयारी में थी मगर तब तक राजेंद्र राठौड़ का ध्यान गया कि विधायक तो अपनी सीट पर है ही नहीं.

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सदन में बोलना शुरू कर दिए था और उनके बोलने के बाद वोटिंग होनी थी. अशोक गहलोत ने बीच में कहा श्री राजेंद्र राठौड़ जी कहां चले गए तब भी किसी को समझ में नहीं आया कि अशोक गहलोत का निशाना कहां पर है. मगर तब कांग्रेस हक्की बक्की रह गई जब बीजेपी ने विश्वास मत पर वोटिंग कराने की मांग नहीं की. दरअसल जिस बात का डर बीजेपी को सता रहा था वह हो चुका था और आदिवासी क्षेत्र से आने वाले 4 विधायकों ने सदन से निकलकर अपना मोबाइल स्विच ऑफ कर लिया था. यह विधायक सदन में तब लौट कर आए जब सदन 21 अगस्त तक के लिए स्थगित हो गया था.

इन विधायकों के गायब होने पर प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने जिस तरह से दलीलें दी व सुनकर लगता है कि वह भी राजनीति का ककहरा सीख रहे हैं. सतीश पूनिया ने कहा कि एक विधायक की गाड़ी और दूसरे की तबीयत ख़राब हो गई थी. बाकी दो यह सोच कर चले गए थे कि कुछ होना तो है नहीं, यहां बैठ कर क्या करेंगे. इलाके में 15 अगस्त की तैयारी करनी थी. पार्टी के साथ समस्या है कि यह चारों ही आदिवासी विधायक हैं अगर पार्टी कार्रवाई करती है तो आदिवासी वोट बैंक प्रभावित होगा और देशभर में जग हंसाई अलग से होगी.

ऐसा नहीं है कि बीजेपी को इसकी सूचना नहीं थी. तभी बीजेपी ने आदिवासी क्षेत्र के विधायकों को गुजरात भेज दिया था. मगर बीजेपी की रणनीति पर वसुंधरा राजे ने पानी फेर दिया. कहा जा रहा है कि विश्वास मत के दौरान वसुंधरा राजे ने कई विधायकों को जमकर फटकारा कि तुम लोग गुजरात क्यों गए थे और जो विधायक गुजरात भेजने के लिए एयरपोर्ट पर जिम्मेदारी संभाल रहे थे उन विधायकों को भी फटकारा कि यह जिम्मेदारी क्यों उठा रखी थी. आज तक आपने यही कहानी शुरू सुनी होगी कि बीजेपी के मोदी शाह की जोड़ी ने कांग्रेस को मात दी.

महाराष्ट्र में भी शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के गठबंधन ने सरकार बना ली थी. मगर बीजेपी में सेंधमारी नहीं कर पाए थे. आज अशोक गहलोत ने बीजेपी के घर में घुसकर सेंधमारी कर यह दिखा दिया कि बीजेपी के घर में घुसकर उन्हें मारना आता है. कहते हैं कि अशोक गहलोत ने बीजेपी के चारों विधायकों को तोड़ने के लिए किसी नेता या व्यापारी का सहयोग नहीं लिया बल्कि राजस्थान के पुलिस अधिकारियों और राज्य सेवा के अधिकारियों का सहयोग लिया जिन पर शक नहीं किया जा सके.

अशोक गहलोत ने विश्वास मत के दौरान कोई भी रिस्क नहीं लिया. सचिन पायलट को भी अपने विधायकों से दूर, निर्दलीय विधायकों के बाद आने जाने वाले रास्ते में कुर्सी लगाकर बैठाया. इस गलियारे के बाद बीजेपी के विधायकों की सीट शुरू होती है. लोग सोच रहे थे कि अशोक गहलोत ने ऐसा क्यों किया मगर हकीकत तो यह थी कि अशोक गहलोत अपने विधायकों को सचिन पायलट से बचा कर रखना चाहते थे. अशोक गहलोत ने प्रियंका गांधी के समझौते पर यकीन नहीं किया और जब तक विश्वास मत हासिल नहीं कर लिया तब तक अपने विधायकों को फेयर माउंट होटल में ही रखा.

यहां तक कि विधायकों के आने में देरी हो गई तो 1:00 बजे के लिए सदन स्थगित करवा दिया मगर विधायकों को सीधे सदन मिलाकर विश्वास मत हासिल किया. हालांकि यह नहीं कहा जा सकता कि यह मोदी शाह की जोड़ी की असफलता है क्योंकि सच्चाई तो यह है कि राजस्थान में बीजेपी का मौजूदा नेतृत्व बेहद लचर और कमजोर है. प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया की पकड़ पार्टी पर नहीं है.

सतीश पूनिया राजनीतिक रूप से चतुर भी नहीं है और उनका ऐसा व्यक्तित्व भी नहीं है कि उससे प्रभावित होकर बीजेपी के विधायक उनकी बात माने. पहली बार विधायक बने हैं और वसुंधरा राजे उन्हें बेहद नापसंद करती हैं. सतीश पूनिया वसुंधरा राजे की राजनीति को समझने में नाकाम रहे हैं. गुलाबचंद कटारिया के साथ भी यही हालत है. वह भावुक है, ईमानदार है ,मगर वसुंधरा राजे के राजनीतिक चालों के आगे वो हमेशा पस्त होते रहते हैं. सदन में प्रतिपक्ष के उपनेता राजेंद्र राठौड़ एक व्यवसाई ज्यादा नजर आते हैं और राजनेता कम नजर आते हैं.

सरकार के खिलाफ बोलते हैं तो कहा जाता है कि अगले ही पल फोन कर माफी भी मांग लेते हैं. अब ऐसी फौज के सहारे अमित शाह और नरेंद्र मोदी ने लड़ाई लड़नी सोची तो या उनकी गलती है. आज की इस घटना के बाद समझ में आ गया कि आखिर क्यों कांग्रेस के विधायक जैसलमेर के सूर्यगढ़ फोर्ट पैलेस से लौटने के बाद कह रहे थे किस पूरे खेल का मैन ऑफ द सीरीज अशोक गहलोत हैं मगर विश्वास मत के दिन मैन ऑफ द मैच वसुंधरा राजे ही बनेगी.

बसपा से कांग्रेस में आने वाले विधायक राजेंद्र गुढ़ा ने तो यहां तक कह दिया था कि, अगर बीजेपी के सभी 72 विधायक सदन में आ गए तो मैं अपना नाम बदल दूंगा. पता नहीं इसमें सच्चाई कितनी है. मगर कहा जाता है कि जब ऐसी बातें आने लगी कि बहुजन समाज पार्टी के विधायकों के कांग्रेस में शामिल होने का फैसला कांग्रेस के खिलाफ जाता हुआ दिखाई दिया. तो सूर्यगढ़ पैलेस में अशोक गहलोत ने उन विधायकों को अपने साथ बुलाया जिनकी निष्ठा डामाडोल हो रही थी और वसुंधरा राजे से बात कराई कि घबराना मत अगर कम होंगे उधर मैं व्यवस्था कर दूंगी. ऐसी बातें कांग्रेस के विधायक कह रहे हैं बाकी सच्चाई का पता नहीं.

इस पूरे घटनाक्रम में अशोक गहलोत के दिल का चोर भी सामने नजर आया.  जब वह सदन में विश्वासमत पर बोलते हुए सफाई देने लगे कि वसुंधरा राजे और हमारे बीच तो बात होती ही नहीं है. इस तरह से पूरे मसले को पेश कर रहे थे कि वसुंधरा जी और हमारे बीच रिश्ते काफी खराब है. हालांकि कहते कहते यह भी कह गए वसुंधरा जी आपने जो मेरे लिए किया है उसका मैं ख्याल रखूंगा. यह बात मैं इसलिए कह रहा हूं कि अशोक गहलोत ने कहा कि वसुंधरा जी राजस्थान में एक बार आप मुख्यमंत्री बनिए और एक बार मैं मुख्यमंत्री बनता हूं. मगर इस बार कुछ लोग बीच में मुख्यमंत्री बनना चाह रहे थे.

यानी इशारों इशारों में कहा कि अगली बार आप के मुख्यमंत्री बनने में मदद करूंगा. इस बार मुख्यमंत्री के पद की रेस में पीछे रह गए सचिन पायलट के लिए एक बड़ा धक्का था कि अगली बार भी कोई उम्मीद नहीं है. हालांकि ऐसा माना जा रहा है कि अशोक गहलोत ने पिछले डेढ़ साल में जो गलतियां की है वह दोहराएंगे नहीं. अशोक गहलोत, सचिन पायलट को भले ही राजनीतिक रूप से राजस्थान में मजबूत नहीं होने देंगे मगर उन्हें बहला-फुसलाकर साथ रखने की अपनी रणनीति पर भी काम करेंगे.

दरअसल, कांग्रेस में कोई नेता बीजेपी के नेताओं की तरह सोचने वाला और 24 घंटा मेहनत करने वाला कोई बचा है तो वह अशोक गहलोत ही बचे हैं. एक तरह से कहा जा रहा था कि अशोक गहलोत दूसरी बार मुख्यमंत्री रहते हुए चुनाव हारने के बाद राजनीतिक रूप से खत्म होने लगे थे और सचिन पायलट नाम का सितारा राजस्थान की राजनीति में उदय होने लगा था. अच्छे-अच्छे राजनीति के जानकार अशोक गहलोत का मर्सिया लिखने लगे थे.

तभी अशोक गहलोत को गुजरात में अहमद पटेल को राज्यसभा में भेजने की जिम्मेदारी मिली. स्थिति बेहद संकटपूर्ण थी क्योंकि बीजेपी ने कांग्रेस के 14 विधायकों का इस्तीफा करा लिया था. मगर हार नहीं मानने वाले अशोक गहलोत ने हिम्मत नहीं हारी और अमित शाह के मुंह से अहमद पटेल की जीत खींच लाए. तब पहली बार हाशिए पर चल रहे अशोक गहलोत ने अपनी राजनीति का लोहा एक बार फिर से देश की राजनीति में मनवाया था.

उसके बाद गुजरात चुनाव के प्रभारी के तौर पर कांग्रेश जीतते जीतते हार गई मगर कांग्रेस को फिनिशिंग लाइन पर पहुंचाकर अशोक गहलोत ने दोबारा अपनी राजनीतिक सूझबूझ का डंका बजाया. इस बार तो बीजेपी को ऐसे शिकस्त दी है कि ठीक से कराह भी नहीं पा रहे हैं. तभी तो राजस्थान की जनता कहती है कि अशोक गहलोत का काटा पानी नहीं मानता.

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