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Updated: 09 जनवरी, 2020 08:11 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल वापसी (Return of Arvind Kejriwal in power) की कोशिश में है - और बीस साल से सत्ता से बाहर बीजेपी AAP को सत्ता से बेदखल करने में जी जान से जुटी है. चुनाव की तारीख की घोषणा से पहले से ही दोनों पक्ष अपनी अपनी जीत के दावे और एक दूसरे की खामियां गिना रहे हैं. दिल्ली में 8 फरवरी को वोट डाले जाएंगे और 11 फरवरी को वोटों की गिनती नतीजे आएंगे.

अरविंद केजरीवाल कह रहे हैं कि वो अपने पांच साल के काम के आधार पर लोगों से वोट मांगने जा रहे हैं. बीजेपी काम के नाम पर केंद्र की मोदी सरकार (PM Narendra Modi and Amit Shah) के काम गिना रही है - और AAP पर चुनावी वादे भी न पूरा करने के आरोप लगा रही है.

इसी बीच एक सर्वे की रिपोर्ट (Survey Report) भी आ गयी है जिसमें केजरीवाल सरकार की वापसी की संभावना जतायी गयी है - और वो भी भारी भरकम बहुमत के साथ. ये सर्वे जनवरी के ही पहले हफ्ते में किया गया है.

अब सवाल ये है कि दिल्ली में चुनाव बाकी राज्यों से कैसे अलग होगा - क्योंकि बीते एक साल के नतीजे तो यही बता रहे हैं कि 8 में से सिर्फ एक मुख्यमंत्री ने चुनाव जीत कर वापसी की है - और दूसरे ने जुगाड़ से सरकार बना ली है.

क्या सर्वे को केजरीवाल सही साबित कर सकते हैं?

IANS-CVOTER की सर्वे रिपोर्ट कहती है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार पूरी मजबूती से फिर से सत्ता में लौटेगी. सर्वे में दावा किया गया है कि अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी 2015 जैसी बड़ी जीत भी दोहरा सकती है.

सर्वे में लोगों से एक सवाल था - 'विधानसभा चुनाव अगर आज होते हैं तो आप किसे वोट देंगे?'

सर्वे रिपोर्ट के अनुसार जनवरी के पहले हफ्ते में चुनाव होते तो आम आदमी पार्टी को 53.3 फीसदी, BJP को 25.9 फीसदी और कांग्रेस को 4.9 फीसदी वोट मिलने की संभावना थी. सर्वे का सैंपल-साइज 13,076 बताया गया है और अवधि साल 2020 का पहला सप्ताह.

ऐसा होने पर, रिपोर्ट का दावा है, अरविंद केजरीवाल की पार्टी को 54-64 सीटें, BJP को 3-13 सीटें और कांग्रेस को 0-6 सीटें मिलने की संभावना बनती. 2015 में AAP ने 70 में से 67 सीटें जीती थीं और बीजेपी के सिर्फ तीन विधायक जीत पाये थे. कांग्रेस जीरो. बाद में राजौरी गार्डन उपचुनाव जीतकर बीजेपी ने अपनी संख्या 4 कर ली और फिर अयोग्य ठहराये जाने के बाद आम आदमी पार्टी के विधायकों की संख्या 62 पहुंच गयी. कपिल मिश्रा की बगावत और अलका लांबा के कांग्रेस में चले जाने के बाद ये संख्या और कम भी हो गयी है.

narendra modi, arvind kejriwal, amit shahक्या अपने बूते AAP को जिता पाएंगे के अरविंद केजरीवाल?

2018 के आखिर में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हए थे - मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम. तेलंगाना में के. चंद्रशेखर राव को छोड़ कर कोई भी मुख्यमंत्री सत्ता में वापसी नहीं कर सका. फिर आम चुनाव के बाद अब तक तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव हो चुके हैं - और सिर्फ हरियाणा में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर दोबारा सरकार बनाने में सफल हो पाये हैं.

फिर ऐसा कौन सा जादू चलने वाला है कि अरविंद केजरीवाल के 2020 में न सिर्फ सरकार बनाने बल्कि पहले की तरह भारी बहुमत हासिल करने की संभावना प्रबल हो चुकी है?

केजरीवाल का काम कितना बोलता है?

दिल्ली में मुकाबला केजरीवाल बनाम मोदी होने जा रहा है - दोनों ही सरकारों के पास बताने के लिए अपने अपने काम हैं. बीजेपी की तरफ से जो सबसे बड़ा काम बताया गया है वो अवैध कालोनियों को नियमित किये जाने का मोदी सरकार का फैसला. कुछ और भी काम और केंद्रीय योजनाएं हैं जिन्हें लेकर आरोप है कि केजरीवाल सरकार के अड़ंगे के चलते उन पर अमल नहीं हो पाया - उनमें से एक आयुष्मान योजना भी है.

केजरीवाल का कहना है कि उनकी सरकार ने सरकारी स्कूल का कलेवर ही बदल डाला है, बीजेपी का आरोप है कि आप ने 20 कॉलेज खोलने के चुनावी वादे किये थे - लेकिन चश्मा लगाकर देखने पर भी वे दूर दूर तक नजर नहीं आते. मोदी-शाह अपनी रैलियों में पानी का मुद्दा भी उठा चुके हैं और आरोप लगा है कि आप सरकार ने चुनाव मैनिफेस्टो के 80 फीसदी वादे पूरे नहीं किये.

जिस तरह 2017 में अखिलेश यादव ने चुनावी स्लोगन रखा था - काम बोलता है, केजरीवाल और उनकी टीम बगैर किसी स्लोगन के भी वही बात बता रही है. आम आदमी पार्टी का ताजा स्लोगन है - अच्छे बीते पांच साल, लगे रहो केजरीवाल. याद कीजिये कैसे प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों को समझा दिया - 'अरे काम नहीं आपका कारनामा बोलता है.' लोग मान भी लिये और अखिलेश यादव को बेदखल कर योगी आदित्यनाथ कुर्सी पर काबिज हो गये. अरविंद केजरीवाल के ऊपर भी वैसा ही खतरा मंडरा रहा है.

सरकारी स्कूलों के अलावा मोहल्ला क्लिनिक, महिलाओं को मुफ्त बस यात्रा, मुफ्त पानी और 200 यूनिट बिजली फ्री जैसे काम भी केजरीवाल की उपलब्धियों की फेहरिस्त में हैं, लेकिन सवाल घूम फिर कर वहीं पहुंच जाता है - लोग केजरीवाल की बातों पर यकीन करते हैं या फिर मोदी-शाह की बतायी बातों पर?

आम आदमी पार्टी के साथ प्लस प्वाइंट है कि अरविंद केजरीवाल जैसा बेदाग चेहरा और विरोध की मजबूत आवाज उसके पास है. देखना ये भी होगा कि दिल्ली में नागरिकता कानून और NRC के विरोध में हुई हिंसा की घटनाएं भी चुनाव में कोई भूमिका निभाती हैं क्या? अमित शाह ने आप के साथ साथ कांग्रेस नेताओं राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा पर दिल्ली में दंगे कराने का इल्जाम लगाया है. साथ ही साथ, 1984 के दिल्ली के सिख दंगों की याद भी दिला दी जाती है.

लोकनीति-CSDS की तरफ से कराये गये सर्वे में भी अरविंद केजरीवाल सरकार के कामकाज से लोग काफी हद तक संतुष्ट बताये जा रहे हैं. सर्वे में 86 फीसदी लोगों ने केजरीवाल सरकार के कामकाज से संतोष जताया है. ऐसे लोगों में 53 फीसदी लोग खुद को पूरी तरह संतुष्ट और 33 फीसदी ज्यादातर संतुष्ट बता रहे हैं.

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का लहजा और हाव-भाव भी बदला हुआ नजर आ रहा है. अब तो वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर न तो कोई निजी हमले करते हैं और न ही बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के कितने ही कुरेदने पर कोई गुस्सा दिखाते हैं. वैसे जब भी प्रशांत किशोर किसी का चुनाव कैंपेन हैंडल करते हैं तो ये बदलाव तो आ ही जाते हैं. पहले उद्धव ठाकरे और हाल फिलहाल ममता बनर्जी के बारे में भी यही धारणा बनी है.

अरविंद केजरीवाल ये भी कहते फिर रहे हैं कि इंसान रोज गलतियां करता है - और 'मैं भी इंसान हूं.' कहते हैं, 'इंसान होने के नाते मैं भी रोज गलतियां करता हूं... सोते वक्त सोचता हूं कि ऐसा आगे से नहीं करेंगे.'

2015 में अरविंद केजरीवाल ने लोगों से लगातार माफी मांगी थी - 49 दिनों की अपनी पहली सरकार से इस्तीफा देकर भाग खड़े होने के लिए. तब केजरीवाल के विरोधियों ने आप नेता को भगोड़ा बताना शुरू कर दिया था. ऐसा लगता है केजरीवाल फिर से वही ट्रिक अपना रहे हैं. कहते हैं अगले पांच साल में यमुना नदी को साफ करना है. दिल्ली में 24 घंटे पानी की सप्लाई सुनिश्चित करनी है - टोंटी से ही साफ पानी आना चाहिये.

केजरीवाल सरकार के कार्यकाल का 80 फीसदी हिस्सा तो सिर्फ टकराव में जाया हुआ है. कभी दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर से जंग के चलते तो कभी केंद्र की PM नरेंद्र मोदी सरकार से तकरार के चलते. आप विधायकों को संसदीय सचिव बनाये जाने का भी तो मामला खूब चला ही. नौकरशाहों पर काम न करने के आरोप के साथ साथ चीफ सेक्रेट्री के साथ आधी रात की मारपीट भी तो इसी कार्यकाल का हिस्सा है.

आप शासन का बाकी बचा 20 फीसदी हिस्सा यानी आखिर के एक साल में ही तो लगा कि केजरीवाल सरकार काम पर फोकस कर रही है. अच्छी बात ये जरूर है कि अरविंद केजरीवाल और उनके करीबी सहयोगी मनीष सिसोदिया की छवि बेदाग रही है, लेकिन आम आदमी पार्टी के विधायकों का क्या - आरोपों की एक लंबी फेहरिस्त है. किसी की अश्लील CD सामने आयी तो किसी के साथ कोई और विवाद. केजरीवाल के मंत्री तक भी आरोपों के घेरे में रहे हैं - एक कानून मंत्री तो फर्जी डिग्री के चलते जेल भेजा गया और एक घरेलू हिंसा को लेकर लगातार विवादों में रहा.

ऐसा भी नहीं कि ऐसी चुनौती सिर्फ केजरीवाल के सामने खड़ी हो रही है. 2016 में ममता बनर्जी के सामने भी ऐसे संकट खड़े हो गये थे, लेकिन वो आगे आकर सबकी गारंटी ले बैठीं और दोबारा सत्ता में लौट आयीं - क्या अरविंद केजरीवाल भी खुद को तब की ममता बनर्जी जैसी स्थिति में पा रहे हैं? अगर इस सवाल का जवाब हां में है तो ठीक है, वरना - सर्वे रिपोर्ट पक्ष में होने के बावजूद सारी बातें सवालों के घेरे में लग रही हैं.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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