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Updated: 01 अप्रिल, 2023 03:59 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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सारस हो या फिर बंदर, भालू, हिरन या बटेर नेचर का रूल बहुत सिंपल है. जिसे समझाया तो बहुतों ने, लेकिन डार्विन के सर्वोत्तम की उत्तरजीविता या सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट के सिद्धांत ने गागर में सागर भर दिया. अमेठी के आरिफ का दोस्त बना सारस आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है. लोग फेसबुक पर बड़े बड़े पोस्ट लिख रहे हैं. ट्वीट कर रहे हैं. वहीं मीडिया में सारस को आधार बनाकर विस्तृत संपादकीय लिखे जा रहे हैं और जिसका जैसा झुकाव है वो वैसे पक्ष दे रहा है. अच्छा चूंकि सारस ने आरिफ को भी रातों रात फर्श से अर्श पर पहुंचा दिया. बड़े बड़े लोग घर आने लगे फोटो खिंचने लगी तो उसका वन विभाग के आंखों की किरकिरी बनना लाजमी था. अब जबकि सारस कानपूर चिड़ियाघर में चहलकदमी कर रहा है कानून की नजर में दोषी आरिफ है. आरिफ के पास गौरीगंज रेंज के सहायक वन संरक्षक / उप प्रभागीय वनाधिकारी रणवीर मिश्र की तरफ से एक नोटिस भेजा गया है.

Sarus Crane, Arif, Friendship, UP, Yogi Adityanath, Zoo, Bird, Law, Jungleसारस से आरिफ की दोस्ती फिर जुदाई सब कुछ यूपी में चर्चा का विषय बना है

नोटिस में आरिफ से कहा गया है कि, वो गौरीगंज रेंज में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 2,9, 29, 51, 52 का उल्लंघन करने के कारण अभियुक्त नामजद हैं. इसलिए वो प्रभागीय वनाधिकारी के ऑफिस आएं और अपना बयान दर्ज कराएं. यूं तो इस नोटिस और इसके कंटेंट पर बहुत सी बातें हो सकती हैं लेकिन मोटा माटी यही है कि फॉरेस्ट अफसर के सामने हाजिर होकर आरिफ ये बताएं कि एक पक्षी की जान बचाने जैसा 'गंभीर अपराध' उन्होंने क्यों किया?

कुल मिलाकर वन विभाग वाले अफसरों को किसी भी तरह के एक्शन से पहले ये जानना है कि किसी बेजुबान जीव की जान बचाने जैसा अपराध आरिफ ने किया सो किया. लेकिन ऐसा क्या हुआ जिसके चलते उन्होंने अपने अच्छे होने का ढिंढोरा पीटा. बात सही भी है लेकिन क्या सच में दोष आरिफ का है? क्या जो भी सजा मिलनी चाहिए उसका हक़दार आरिफ है?

उपरोक्त सवाल पर लोग अपनी सुविधा के हिसाब से तर्क दे दें. लेकिन इस पूरे मामले में अगर कोई दोषी है तो वो कानपुर चिड़ियाघर में बंद सारस है. कैसे? इस लेख के शुरुआत में ही हमने डार्विन का जिक्र करते हुए बताया था कि जंगल में वही सर्वाइव कर पाता है, जो फिट है. जैसा कि मालूम है जब खेत में काम करते हुये आरिफ को सारस मिला तो वो घायल था.

ऐसे में हम सारस से ये सवाल पूछेंगे कि उसे आरिफ में कोई डॉक्टर दिखा? हकीम-जर्राह-वैध दिखा? आखिर वो क्यों गया उसके पास? क्यों नहीं उसने अपनी चोट के लिए वन विभाग का रुख किया? सारस जान लें जब इतना बड़ा विभाग सरकार ने खोला है तो जाहिर है वहां जानवरों वाला अस्पताल भी होगा. क्यों नहीं सारस ने वहां जाकर ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर को अपने जख्म दिखाए?

अच्छा चलो ठीक है आरिफ ने पक्षी को घायल देखकर मानवता के नाते इलाज कर दिया. लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि सारस मान न मान मैं तेरा मेहमान वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए बिलकुल फैल जाए. मतलब साथ खाना पीना, उठना बैठना, खेलना कूदना आरिफ के साथ जैसा सारस का बर्ताव रहा ऐसा लगा ही नहीं कि आरिफ के साथ कोई पक्षी है. विजुअल्स देखते हुए महसूस यही हुआ कि कोई साला अपने जीजा या कोई सास अपने दामाद की खातिरदारी कर रही है.

चाहे वो वन विभाग के अफसर हों या कुकुरमुत्ते की तरह उग आए वो पशुप्रेमी जो आरिफ को गलत मानते हुए उसकी आलोचना में कसीदे रच रहे हैं उन्हें ये सिंपल सी बात आखिर क्यों नहीं समझ में आ रही कि इस मामले में दोषी आरिफ तो है ही नहीं. सही मायनों में वो सारस अपराधी है जिसने बीते कुछ दिनों से बेचारे आरिफ और उसके परिजनों की जिंदगी में पुदीना कर उन्हें चने के झाड़ पर चढ़ा दिया है.

इलाज हो गया था. चला जाता लेकिन नहीं साहब. उसे वही रहना था. बात बाकी यही है कि भारत का शुमार दुनिया के उन देशों में जहां घर आया मेहमान कभी ख़ाली हाथ नहीं लौटता. बेचारे आरिफ ने भी यही किया लेकिन उसे कहां पता था कि इस मुए सारस के चक्कर में कुछ ऐसा रायता फैलेगा कि नौबत थाना-पुलिस, कोर्ट कचहरी और वन विभाग की आ जाएगी.

मामले में सबसे पहले तो हमें इस बात को नोट करके रख लेना चाहिए कि सारस गेस्ट था. आरिफ होस्ट और मेहमानदारी का तकाजा ही कुछ ऐसा था कि आरिफ ने सारस के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया. वाक़ई जैसा रुख दोस्ती के नाम पर हुए इस गड़बड़ घोटाले में सारस का रहा है वो हमें कई मायनों में विचलित करता है.

जैसे ठाठ हमें कई तस्वीरों में सारस के दिखे हैं अच्छा हुआ आरिफ ने इसे फिनायल नहीं दिया वरना फ्री का खाने की जैसी आदत उसे हो गयी थी यक़ीनन वो उसे भी पी जाता और हमें तब हैरानी बिलकुल न होती जब फिनायल पीने के बावजूद वो बच जाता.

हम सारस को दोषी कह रहे हैं. ऐसा बिल्कुल नहीं है कि हमें आरिफ के साथ उसके घर पर मौजूद रहे सारस का खाना पीना अखर गया. बात ये थी कि जब अधिकारी उसे राय बरेली ले गए तो वो वहां से उड़कर वापस आरिफ के पास आ गया जो इस बात की पुष्टि कर देता है कि दाल में काला नहीं बल्कि पूरी दाल ही काली थी. अगर सारस में गैरत होती तो वो वहीं रहता जहां सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ के अधिकारी उसे रखने को आतुर थे.

सारस का बार बार लगातार आरिफ के घर आना और उसके साथ रहना स्वतः इस बात की पुष्टि कर देता है कि दोष किसी भी एंगल से आरिफ का है ही नहीं. दोस्ती के नाम पर सारस ने उसके साथ धोखा किया और उसे ठगा. क्या कानपुर चिड़ियाघर में मौज से रहने वाला सारस अब इस बात का जवाब दे पाएगा कि उसने फॉरेस्ट डिपाटमेंट को धोखे में रखकर आरिफ की लंका किस रणनीति के तहत लगाई? देश इस मामले में सारस का पक्ष जानना चाहता है. जनता को उम्मीद है कि मामले के मद्देनजर सारस अपनी चोंच खोलेगा और ऊपर वाले को हाजिर नाजिर जानकर सब कुछ तोते की तरह बताएगा.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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