मोदी को वोट देने की एक अपील अनुराग कश्यप को 'जबरदस्ती' क्यों लगी?
अनुराग कश्यप का जाहिर 'मोदी विरोध' इस बार गलत ट्रैक पर चला गया. मोदी को वोट देने की अपील वाले एक spam मैसेज को उन्होंने दिल पर ले लिया. और उसे 'जबरदस्ती' करार दे दिया.
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अनुराग कश्यप बॉलीवु़ड के जाने माने निर्माता निर्देशक हैं और वो अपनी फिल्मों के जरिए समाज का सच दिखाने की कोशिश करते हैं. लेकिन अपने सोशल मीडिया अकाउंट से किए जाने वाले पोस्ट को देखकर उनके राजनीतिक रुझान को आसानी से समझा जा सकता है. वो खुले तौर पर प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी का विरोध करते रहे हैं. यहां तक कि उन सेलिब्रिटीज में भी शामिल रहे हैं जिन्होंने हाल ही में बीजेपी को वोट न देने की अपील की थी.
जिस दिन देश में लोकसभा चुनावों के पहले चरण की वोटिंग हो रही थी तभी अनुराग कश्यप ने ट्विटर पर कुछ ऐसा शेयर किया जिसे बहुत अच्छा तो नहीं कहा जाएगा. हां इसके लिए उनकी चर्चा बहुत हो रही है.
एक ट्वीट से अनुराग ने बता दिया कि उनका मकसद क्या है
असल में उन्हें किसी बीजेपी सपोर्टर ने वाट्सएप मैसेज भेजकर बीजेपी के पक्ष में वोट देने की आपील की थी. जिसे उन्होंने ट्विटर पर शेर कर दिया. ये मैसेज भेजने वाले का नाम उन्होंने छिपाते हुए भी सार्वजिनक कर दिया. उन्होंने जिस अंदाज से मैसेज भेजने वाले के नाम पर स्याही लगाई उससे ये साफ पता चल गया कि मैसेज कहीं और से नहीं बल्कि All India Cine Workers Association के अध्यक्ष गौरक्ष धोत्रे ने भेजा था.
Had gotten this three days back ????????. Self explanatory . pic.twitter.com/EV2dFg2qWw
— Anurag Kashyap (@anuragkashyap72) April 11, 2019
अनुराग कश्यप ने लिखा है- तीन दिन पहले मुझे ये मैसेज मिला जो अपने आप में सब कुछ कह रहा है. मैसेज में लिखा है-
'आपसे अनुरोध है कि अगर आप 'मैं मोदी को वोट दुंगा' ये लिखकर हमें नीचे लिखी आईडी पर मेल करेंगे तो बहुत अच्छा होगा. संदेश के साथ अपना नाम और पद भी लिखें. इस अभियान में हम फिल्म इंडस्ट्री के 1000 से ज्यादा लोगों को डिजिटल रूप से जोड़ रहे हैं, जो उन 600 कलाकारों को जवाब दे सकें जो कहते हैं कि वो मोदी को वोट नहीं देंगे. अगर आप फिल्म इंडस्ट्री के कुछ रचनात्मक लोगों तो जानते हैं तो उन्हें भी ये मैसेज फॉर्वर्ड करें.अब तक हमें पूरे भारत से मेल आ रहे हैं जिसमें कई नाम ऐसे भी हैं जिन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है.'
अनुराग ने संदेश भेजने वाले व्यक्ति के नाम पर काली स्याही तो लगाई लेकिन वो इतनी हल्की थी कि वो नाम साप-साफ दिखाई दे रहा था, यहां तक कि वहां लिखा हुआ मोबाइल नंबर भी. इसपर भी अनुराग का खूब मजाक बनाया गया.
सेंसर भी कर गए और सबकुछ दिख भी गया
किसी के निजी संदेश को सार्वजनिक करना अच्छा नहीं माना जाता. भले ही आपको मैसेज पसंद आए या न आए लेकिन उसे पब्लिक प्लैटफॉर्म पर ले आना नैतिकता के दायरे में तो नहीं आता. एक व्यक्ति ने कहा भी कि इस पोस्ट को डालकर आपने भी ये बता दिया है कि अपका रुझान किस तरफ है. तो अनुराग का जवाब था- 'यही फर्क है स्वेच्छा और जबरदस्ती में.'
पर शायद अनुराग कश्यप स्वेच्छा और जबरदस्ती के बीच कन्फ्यूज़्ड हैं. चुनाव के समय हर मोबाइल पर इस तरह के संदेश आते हैं कि फलाने को वोट करके विजयी बनाओ, ढिकाने को वोट करके विजयी बनाओ, लेकिन आप एक को ही चुनते हैं जिसे आप चाहते हैं. संदेश भेजना लोगों का काम है, ये सार्वजनिक अपील होती है उसे स्वीकार करना या न करना आपकी मर्जी होती है. लेकिन ऐसी अपील और संदेशों को आप जबरदस्ती कैसे कह सकते हैं.
आपसे जो कहा गया वो आपने नहीं किया, यहां आपने अस्वीकार्यता दिखा दी. बात यहीं खत्म हो गई. इसे ही स्वेच्छा कहा जाता है. जबरदस्ती उसे कहते हैं जब आपको आपकी इच्छा के विरुद्ध मजबूर किया जाता.
अनुराग कश्यप एक समय मुद्दे की बात किया करते थे. जो सच और अच्छी लगती थी. एक समझदार और जिम्मेदार व्यक्ति से ऐसी ही उम्मीद की जाती है. लेकिन इस ट्वीट को करने के बाद अनुराग कश्यप ने साफ कर दिया है कि ये सब मुद्दे पर आधारित नहीं बल्कि सिर्फ बीजेपी का विरोध है. वो चाहते तो इसे निजी रख सकते थे, वो चाहते तो भेजने वाले का नाम ठीक से मिटा सकते थे, लेकिन उनका इरादा सिर्फ ये बताना था कि ये कर कौन रहा है. संदेश को सार्वजनिक कर अनुराग कश्यप ने सिर्फ अपना मजाक उड़वाया है. उनसे ये उम्मीद नहीं थी.
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