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Updated: 18 जून, 2018 07:58 PM
अश्विनी कुमार
अश्विनी कुमार
 
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विषय : दिल्ली की मौजूदा दशा पर एक खत राष्ट्रपिता बापू के नाम

प्रिय बापू,

चरणस्पर्श! दिल्ली में सब कुछ चकाचक चल रहा है. गर्मी भी खूब है और राजनीतिक सरगर्मी भी. इन सबके बीच राजनीति थोड़ी विधर्मी-सी जरूर लगने लगी है, लेकिन आप चिंता मत करना, 2019 का चुनावी प्रकोप निकलते ही सब ठीक हो जाएगा. आपने जो आजादी दिलाई थी, उसके 70 साल बीत भी तो गए. अब समय के साथ-साथ राजनीति में थोड़ी आजाद ख्याली और चंचलता तो आएगी ही. आपको शायद पता चला होगा. आपके देश के राजनीतिक कुनबे का नया ‘शरारती बच्चा’ अब थोड़ा बड़ा हो गया है. इन दिनों दिल्ली उसी के नाज-नखरे उठाती है. आपको जानकर बड़ी खुशी होगी कि वो आपकी ही तरह धरने और सत्याग्रह जैसी चीजों में यकीन करता है. कहता है कि बिल्कुल आप पर गया है. अब आप तो खुद चले गए हैं, फिर कौन तय करेगा कि वो किस पर गया है?

आम आदमी पार्टी, महात्मा गांधी, अरविंद केजरीवाल, धरना, सत्याग्रह

‘आम आदमी’ हमेशा की तरह सड़क पर है और ‘पार्टी’ एयरकंडीशन कमरे में धरने पर. ‘पार्टी’ कह रही है कि उसका ये त्याग ‘आम आदमी’ के लिए है. आम आदमी कह रहा है कि हमारा राशन कहां है? हमारे अफसर कहां है? और हमारी सरकार कहां है? बापू इस कशमकश को लेकर आप चिंतित मत होना. ये ‘आम लोग’ होते ही बड़े शिकायती हैं. इनके सौ काम कर दो, कमबख्त अहसान नहीं मानते. एक काम न हो, अहसान फरामोश हो जाते हैं. वैसे भी बापू आपके वक्त से जमाना बहुत आगे निकल चुका है. आप सत्याग्रह और भूख हड़ताल कर-करके अस्थिपंजर हो गए थे. अब स्थिति बदल गई है. अब तो सत्याग्रह से वजन बढ़ने लगे हैं.माफ करना बापू. आपने जो दिल्ली छोड़ी थी, हमने उसमें करीब पच्चीस-एक साल पहले थोड़ी फेरबदल की थी. सन 1991 में संविधान बदलकर और फिर सन 93 में विधानसभा चुनाव कराकर.

हमारी तो मंशा ज्यादा-से-ज्यादा ‘सत्ताकामियों’ को सत्ता में समाहित करने की थी. सोचा नहीं था कि आधा इधर और आधा उधर के चक्कर में दिल्ली कहीं की नहीं रहेगी. ये सारी गड़बड़ी इसी चक्कर में हो गई. लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता. सन 47 वाली गलती से आप भी बखूबी समझ सकते हो बापू. सत्ता में हिस्सा बांट लेना और फिर भी लड़ते-भिड़ते रहना. ‘सत्ताकामियों’ की यही तो फितरत है बापू. सरहद पर तो वैसे भी दो सौतेले ही लड़ते हैं, यहां तो तीन-तीन लड़ रहे हैं. और अब तो तीसरे के समर्थन में ‘चार’ (ममता, चंद्रबाबू, विजयन, कुमारस्वामी) बाहर से भी आ धमके हैं.

वैसे बापू, बुरा मत मानना, संघर्ष का ये शगल आप ही का सिखाया हुआ तो सबक है. आप अंग्रेजों से लड़ते थे. हम आपस में और अपनों से ही लड़ते हैं. आप हथियारों के बिना मौन रहकर लड़ते थे. हम भी सोशल मीडिया पर बगैर हथियार उठाए और मौन रहकर सामने वाले को सौ-सौ घाव दे देते हैं. बापू ये टेक्नोलॉजी की ताकत है, जिसे आप नहीं समझोगे. लेकिन आपको भी ये जानकर गर्व होगा कि आपके बच्चे बिना खड़ग और ढाल के क्या खूब लड़ रहे हैं बापू.

आपकी लड़ाई भी अफसरों से थी. ‘आप’ की लड़ाई भी अफसरों से है. आप अंग्रेज अफसरों से लड़ते थे, ये देसी अफसरों से लड़ रहे हैं. माफ करना बापू, आपको ताने देने या चिंता में डालने का कोई इरादा नहीं है, लेकिन कई बार जेहन में सवाल आता है कि अफसरों के रंग बदल गए उनकी आत्मा क्यों नहीं बदली?

और हां. बापू आप हमारे बीच न होकर भी मौजूद हो. हम आपको भूले नहीं हैं बापू. आपकी हत्या के केस में हम अभी भी ये तय करने की कोशिश में हैं कि आपका हत्यारा देशभक्त था या देशद्रोही? चिंता मत करना बापू. ऊपर वाले ने चाहा, तो इस सवाल का जवाब ढूंढकर हम आपको एक न एक दिन जरूर बताएंगे और इंसाफ भी दिलाएंगे.

आपका, एक देशवासी

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लेखक

अश्विनी कुमार अश्विनी कुमार

लेखक पेशे से टीवी पत्रकार हैं, जो समसामयिक मुद्दों पर लिखते रहते हैं.

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