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Updated: 23 मई, 2019 08:01 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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अभी लोकसभा चुनावों (Loksabha Election Results 2019) की तारीखों की घोषणा तक नहीं हुई थी, तब से लेकर एक सवाल लोगों के मन में था कि आखिर अमेठी (Amethi election Result) में इस बार क्या होगा. लोग जानना चाह रहे थे कि इस बार भी राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ही लोगों का दिल जीतेंगे, या फिर स्मृति ईरानी (Smriti Irani) को ये सौभाग्य मिलेगा. खैर, अब नतीजे आ चुके हैं. यूपी की अमेठी लोकसभा सीट जितनी अहम थी, इसके नतीजे भी उतने ही दिलचस्प हैं.

अमेठी पर लोगों को काफी कंफ्यूजन था. लोग ये समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर यहां कौन जीतेगा. एग्जिट पोल तक देखने के बाद भी लोगों को कोई अंदाजा नहीं लग पा रहा था कि अमेठी में इस बार क्या होने वाला है. लेकिन जो हुआ, उसने सबको हैरान कर दिया. अमेठी में स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को तकरीबन 50 हजार वोटों के अंतर से हरा दिया. रात 8 बजे तक वे करीब साढ़े तीन लाख वोट हासिल कर चुकी हैं, जबकि राहुल गांधी तीन लाख वोट ही हासिल कर पाए हैं. और अपनी हार स्‍वीकार करते हुए स्‍म‍ृति इरानी को बधाई दे चुके हैं.

अमेठी, चुनाव, लोकसभा चुनाव 2019, राहुल गांधीराहुल गांधी के लिए अपनी पारंपरिक सीट बचाना मुश्किल हो गया था और भाजपा ने पूरी ताकत झोंक दी थी.

पिछली बार क्या था गणित?

इस साल के नतीजे तो आप जान ही चुके हैं, लेकिन पिछली बार के नतीजे भी कुछ कम दिलचस्प नहीं थे. 2014 के लोकसभा चुनाव में अमेठी से राहुल गांधी को 4,08,651 वोट मिले थे और उन्होंने अपनी निकट प्रतिद्वंद्वी स्मृति ईरानी को 1,07,903 वोटों से हराया. दिलचस्प ये है कि राहुल गांधी को सिर्फ 46.71 फीसदी वोट मिले थे. यानी वोट देने वाले आधे से अधिक लोग राहुल गांधी से नाराज थे. हालांकि, अमेठी सीट पर सिर्फ 1998 में भाजपा का उम्मीदवार जीता है, बाकी आज तक ये सीट कांग्रेस के पाले में रही है.

वहीं दूसरी ओर, स्मृति ईरानी पहली बार अमेठी गई थीं. बावजूद इसके उन्हें वोट देने वालों में से करीब एक तिहाई लोगों ने वोट दिया. वैसे भी, लोकसभा चुनाव में 1 लाख वोटों से किसी का हारना जीतना कोई बहुत बड़ी जीत नहीं होती, बल्कि इसे तो मुश्किल से जीता हुआ माना जाता है.

इस बार जो हुआ, वो तो होना ही था

एक ओर राहुल गांधी को लोकसभा चुनाव में आधे से भी कम लोगों ने वोट दिया था, ऊपर से स्मृति ईरानी के साथ-साथ पूरी भाजपा ने राहुल गांधी से अमेठी को छीनने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी. ईरानी लगातार 5 सालों तक इलाके में काम करती रहीं, दूसरी ओर पीएम मोदी ने हथियार बनाने की फैक्ट्री का उद्घाटन कर के लोगों के दिल में एक अलग जगह बना ली.

ऐसे में राहुल गांधी के लिए अपनी सीट बचाना मुश्किल हो गया था, लेकिन ऐसा भी नहीं था कि स्मृति ईरानी को ये सीट आसानी से मिल सकती थी. पूरे चुनाव में स्मृति ईरानी यही कहती रहीं कि हार के डर से राहुल गांधी अमेठी छोड़कर वायनाड भागे हैं. एक ओर स्मृति ईरानी के आगे ढेर सारी चुनौतियां थी, वहीं दूसरी ओर राहुल गांधी को अपनी पारंपरिक सीट को बचाए रखना था. खैर, नतीजों ने साफ कर दिया है कि किसकी कोशिशों में दम था और किसे और मेहनत करने की जरूरत है.

भाजपा के लिए चुनौती रहा परिवार का गणित

यूं तो पूरे उत्तर प्रदेश में जाति का गणित काम करता है. यानी जाति के आधार पर लोग वोट देते आए हैं. लेकिन अमेठी पर ये बात लागू नहीं होती. यहां पर एक परिवार (गांधी परिवार) ही लोगों के लिए जाति बन गया था. यहां के लोग आंख मूंदकर गांधी परिवार को ही जिताते रहे हैं. लेकिन भाजपा ने घर में घुसकर मारने वाली रणनीति के तहत सेंध लगानी शुरू कर दी थी. अब अमेठी में एक परिवार के गणित पर वोट मिलना आसान नहीं था, लेकिन राहुल गांधी ने भी बिना हार माने प्रियंका गांधी को लोगों के बीच भेजकर भाजपा से टकराने की पूरी तैयारी की हुई थी.

भाजपा कभी विकास के मुद्दे पर अमेठी में कांग्रेस पर निशाना साधती रही, तो कभी परिवारवाद के मुद्दे पर. भाजपा ने राहुल गांधी को तौरफा घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी. राहुल गांधी ने भी अमेठी को बचाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी. प्रियंका गांधी को भी मैदान में उतार दिया. खैर, अमेठी के लोग किसके साथ हैं, चुनावी नतीजों ने ये साफ कर दिया है.

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