New

होम -> सियासत

 |  7-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 11 नवम्बर, 2021 05:03 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
  • Total Shares

यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के मद्देनजर बसपा सुप्रीमो मायावती ने ब्राह्मणों पर प्रेम बरसाते हुए 'प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन' करने की घोषणा की थी. जिसके बाद सपा, कांग्रेस और भाजपा में ब्राह्मण वोटबैंक को अपने पाले में लाने के लिए होड़ मच गई थी. यूपी चुनाव में 10 फीसदी ब्राह्मण वोटबैंक को रिझाने के लिए परशुराम की मूर्तियों से लेकर प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन से तक हर संभव दांव खेला जा चुका है. लेकिन, जैसा कि चुनावों को लेकर कहा जाता है कि किसी एक जाति के सियासी समीकरण को सुलझाकर चुनाव में जीत को लेकर आश्वस्त नहीं हुआ जा सकता है. तो, आखिरकार यूपी में ब्राह्मण वोटों को लेकर चल रही जद्दोजहद अब वापस मुस्लिम वोटबैंक के इर्द-गिर्द घूमने लगी है. सियासी दलों ने मुस्लिम वोटबैंक को एकमुश्त वोटर मानने वाली सोच की ओर फिर से रुख कर लिया है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो जैसे-जैसे चुनाव की तारीख करीब आती जा रही है, ऐसा लगने लगा है कि यूपी चुनाव में ब्राह्मण केवल माहौल बनाने के लिए थे, असली वोटबैंक तो मुस्लिम ही है.

Muslim Vote Bank importence in UP Electionयूपी में ब्राह्मण वोटों को लेकर चल रही जद्दोजहद अब वापस मुस्लिम वोटबैंक के इर्द-गिर्द घूमने लगी है.

कांग्रेस को लेकर सलमान खुर्शीद की गवाही

उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा ब्राह्मण मुख्यमंत्री देने वाली कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रमोद तिवारी अपनी पार्टी को 'ब्राह्मण हितैषी' घोषित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं. वहीं, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी लगातार कोशिश कर रही हैं कि सूबे में तीन दशक से ज्यादा समय से सत्ता का वनवास झेल रही कांग्रेस को उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक सम्मानित स्थान पर स्थापित किया जा सके. 'लड़की हूं...लड़ सकती हूं' के नारे के साथ प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश की आधी आबादी को कांग्रेस के साथ जोड़ने की जो मुहिम शुरू की है, उसका फायदा पार्टी को कितना होगा ये यूपी चुनाव के बाद ही पता चलेगा. इन सबके बीच प्रियंका गांधी के साथ लंबे समय से यूपी चुनाव की तैयारियों में जुटे पार्टी के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद अंदरखाने मुस्लिम वोटरों को कांग्रेस के साथ जोड़ने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं. और, यूपी चुनाव से पहले सलमान खुर्शीद की अयोध्या में राम मंदिर को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर लिखी गई किताब 'Sunrise over Ayodhya' के विमोचन की टाइमिंग पर सवाल उठना जायज है.

सलमान खुर्शीद ने इस किताब में (Salman Khurshid Book Controversy) हिंदुत्ववादी राजनीति पर लिखा है कि "मेरी अपनी पार्टी, कांग्रेस में, चर्चा अक्सर इस मुद्दे की ओर मुड़ जाती है. कांग्रेस में एक ऐसा तबका है, जिन्हें इस बात पर पछतावा है कि हमारी छवि अल्पसंख्यक समर्थक पार्टी की है. यह तबका हमारी लीडरशीप की जनेऊधारी पहचान की वकालत करता है. इन्होंने अयोध्या पर आए फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए यह घोषणा कर दी कि अब इस स्थल पर भव्य मंदिर बनाया जाना चाहिए. इस रुख ने सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए आदेश के उस हिस्से की अनदेखी की, जिसमें मस्जिद के लिए भी जमीन देने का निर्देश दिया गया था."

कहना गलत नहीं होगा कि सलमान खुर्शीद ने अपनी किताब के सहारे यूपी समेत सभी राज्यों के मुस्लिम वोटरों के बीच कांग्रेस से करीबी स्थापित करने की कोशिश की है. खुर्शीद ये भी बताने से नहीं चूके हैं कि कांग्रेस की अल्पसंख्यक समर्थक पार्टी की छवि पर शीर्ष नेतृत्व में कोई शक-ओ-शुबह नहीं है. कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व की ओर से हिंदूवादी राजनीति का हमेशा से ही प्रतिकार किया गया है. कांग्रेस में हिंदूवादी विचारों का एक तबका है, जिसे साइडलाइन करने की राहुल गांधी खुद ही नींव भी डाल चुके हैं. आसान शब्दों में कहें, तो सलमान खुर्शीद ने ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद और कैप्टन अमरिंदर सिंह सरीखे नेताओं का कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने को भी जस्टिफाई कर दिया है.

Akhilesh Yadav Priyanka Gandhi Mayawatiमोहम्मद अली जिन्ना से लेकर अयोध्या मामले के सहारे खुद को मुस्लिम समाज का सबसे बड़ा हितैषी बताने की कोशिशें शुरू कर दी गई हैं.

अखिलेश यादव का 'जिन्ना प्रेम'

अयोध्या से ब्राह्मण सम्मेलन की शुरुआत करने के लिए बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने विश्वस्त सिपेहसालार सतीश चंद्र मिश्रा को कमान सौंप दी थी. जिसके बाद सपा ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के नायक मंगल पांडेय की जन्मभूमि बलिया को ब्राह्मण सम्मेलन की शुरुआत के लिए चुना था. हालांकि, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव इससे पहले ही ब्राह्मण वोटों को लेकर एक्टिव हो गए थे. अखिलेश यादव के नेतृत्व में सपा की ओर से सत्ता में वापसी पर हर जिले में परशुराम की मूर्तियां लगाने की घोषणा की गई थी. खैर, प्रबुद्ध सम्मेलनों और परशुराम की मूर्तियों से उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण मतदाताओं का वोट सपा को मिलने की गारंटी शायद ही कोई दे सकता हो. लेकिन, ब्राह्मण वोटों की आड़ में भुला दिए गए मुस्लिम वोटबैंक को लेकर चुनाव से कुछ ही समय पहले सपा एक्टिव हो गई है. कहना गलत नहीं होगा कि मुस्लिम वोटों के लिए ही सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मोहम्मद अली जिन्ना की तुलना सरदार वल्लभ भाई पटेल, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू से की है. और, अपने बयान पर कायम रहते हुए लोगों को फिर से किताबें पढ़ने का सुझाव भी दे रहे हैं.

माना जा रहा है कि अखिलेश यादव ने मुस्लिम वोटबैंक को अपने पक्ष में लामबंद करने के लिए ही ये सियासी दांव खेला है. एमवाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण के जरिये सत्ता पाने वाले अखिलेश यादव लंबे समय से मुस्लिम मतदाताओं को लेकर चुप्पी साधे हुए थे. जिसका फायदा कहीं न कहीं कांग्रेस और बसपा जैसी पार्टियों को मिलता दिख रहा था. जिसे देखते हुए अखिलेश यादव ने सूबे के जटिल सियासी समीकरणों के बीच राजनीतिक संतुलन बनाए रखने के लिए मोहम्मद अली जिन्ना के नाम के सहारे सपा को एक बार फिर से मुस्लिम हितैषी पार्टी घोषित करने की कोशिश की है.

मायावती का 'साइलेंट गेम'

बसपा सुप्रीमो मायावती को लेकर तमाम राजनीतिक विश्लेषकों द्वारा दावा किया जा रहा था कि वो भाजपा की बी टीम की तरह व्यवहार कर रही हैं. 2007 के अपने सोशल इंजीनियरंग के हिट फॉर्मूले के साथ यूपी चुनाव में उतरीं मायावती की अब तक की सियासी चाल को देखकर कहना गलत नहीं होगा कि वो चुनाव से पहले बनने वाले ऐसे ही किसी मौके का इंतजार कर रही थीं. मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने के लिए गाहे-बगाहे बयान जारी करने वाली मायावती ने चुनाव से पहले मोहम्मद अली जिन्ना की एंट्री के साथ ही भाजपा और सपा पर यूपी चुनाव को हिन्दू बनाम मुस्लिम करने का आरोप लगा दिया है. मायावती ने भाजपा और सपा को एक ही सिक्के के दो पहलू बताकर मुस्लिम मतदाताओं को बसपा के पाले में लाने की कोशिश की है.

हालांकि, मायावती भी मुस्लिम वोटबैंक को लेकर बहुत ही सधे हुए तरीके से आगे बढ़ रही है. सपा और भाजपा पर चुनावों को सांप्रदायिक रंग देने के आरोपों से कहीं न कहीं बसपा को फायदा ही पहुंचता दिख रहा है. जिन्ना का नाम लेने से अखिलेश यादव से मुस्लिम वोटरों के छिटकने की संभावना बढ़ गई है. क्योंकि, सूबे का मुस्लिम समाज किसी भी हाल में ये संदेश नहीं देना चाहेगा कि वह बंटवारे के सबसे बड़े खलनायक का समर्थन करने वालों को फायदा पहुंचाएंगे. वहीं, भाजपा को पहले से ही मुस्लिम मतदाताओं के बीच हिंदूवादी पार्टी होने का तमगा मिला हुआ है. मायावती भाजपा को घेरने के लिए उस पर मुस्लिमों से सौतेला व्यवहार करने के आरोप लगा रही है. और, सपा को मुजफ्फरनगर दंगों के जरिये कठघरे में खड़ा कर रही हैं.

वैसे, मुस्लिम वोटबैंक में किसी तरह का बिखराव होने की संभावना बहुत कम ही होती है. यूपी चुनाव में अब तक के हुए राजनीतिक घटनाक्रमों पर नजर डाली जाए, तो अब तक मुस्लिम वोटबैंक को लेकर प्रो-एक्टिव नजर आने वाली पार्टियों ने भी इस पर चुप्पी साधे रखी थी. लेकिन, जैसे ही मुस्लिम मतदाताओं में बिखराव की आशंका नजर आने लगी. तुरंत ही मोहम्मद अली जिन्ना से लेकर अयोध्या मामले के सहारे खुद को मुस्लिम समाज का सबसे बड़ा हितैषी बताने की कोशिशें शुरू कर दी गई हैं. इसे देखते हुए कहना गलत नहीं होगा कि यूपी चुनाव में ब्राह्मण केवल माहौल बनाने के लिए थे, असली वोटबैंक तो मुस्लिम ही है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय