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Updated: 02 अगस्त, 2021 10:06 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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सपा प्रमुख अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) अगले साल होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP assembly elections 2022) में भाजपा के सामने मुख्य प्रतिद्वंदी के तौर पर उभरने की कोशिशों में जुटे हुए हैं. सत्ता के गलियारों में भी इस बात की चर्चा है कि अखिलेश यादव ही वो इकलौते शख्स हैं, जो सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के सामने कड़ी चुनौती पेश कर सकते हैं. कांग्रेस की महासचिव और यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी ने 'ऑफ द रिकॉर्ड' सपा (SP) के साथ गठबंधन करने के लिए खुद को ओपन माइंडेड बताकर इस बात को काफी हद तक सही भी साबित कर दिया है. माना जा रहा है कि मिशन 2024 के लिए कांग्रेस उत्तर प्रदेश में सपा प्रमुख अखिलेश यादव के साथ गठबंधन कर सकती है. हालांकि, अखिलेश यादव ने गठबंधन को लेकर लगातार अपने पुराने बयान को दोहरा रहे हैं. लेकिन, न्यूज एजेंसी पीटीआई को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कांग्रेस और बसपा से पूछा कि वे पहले ये तय करें कि कि उनकी लड़ाई भाजपा से है या सपा से. अखिलेश यादव के इस बयान से संकेत मिल रहा है कि वो उत्तर प्रदेश में भाजपा को हराने के लिए गठबंधन कर सकते हैं. अखिलेश यादव की छोटे दलों से गठबंधन की बात के अनुसार कहा जा सकता है कि कांग्रेस (Congress) के साथ सपा का गठबंधन मूर्तरूप में आ सकता है. लेकिन, 2019 में सपा और बसपा (BSP) के बीच बढ़ी कड़वाहट के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती (Mayawati) का गठबंधन में शामिल होना मुश्किल है. आइए समझते हैं कि आखिर अखिलेश यादव के हालिया बयान के क्या मायने हैं?

अखिलेश यादव का ये दांव काफी कुछ वैसा ही है, जैसा पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चला था.अखिलेश यादव का ये दांव काफी कुछ वैसा ही है, जैसा पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चला था.

क्या ममता बनर्जी की रणनीति अपना रहे हैं अखिलेश?

अखिलेश यादव ने कांग्रेस और बसपा से किसके पक्ष में होने का सवाल पूछ कर उन्होंने राजनीति के इस खेल में एक तरह से दोनों ही पार्टियों पर मानसिक तौर पर बढ़त बना ली है. अखिलेश यादव का ये दांव काफी कुछ वैसा ही है, जैसा पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चला था. बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी ने कांग्रेस और वामदलों के गठबंधन को पार्श्व में ढकेलने की नीयत से अधिकांश विपक्षी दलों को एक चिट्ठी लिखकर समर्थन की मांग की थी. हालांकि, ममता बनर्जी को पहले से ही कई विपक्षी दलों का साथ मिला हुआ था. लेकिन, इस चिट्ठी के सहारे उन्होंने कांग्रेस और वामदलों के गठबंधन को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था. इस चिट्ठी के सामने आने के बाद अगर कांग्रेस और वामदल बैकफुट पर नहीं आते, तो भी ममता बनर्जी को फायदा मिलना तय था. वहीं, कांग्रेस और वामदलों के बीच चुनाव में कदम पीछे खींच लेने से ममता बनर्जी को क्या फायदा हुआ, ये सबके सामने है.

अखिलेश यादव ने भी अपने हालिया इंटरव्यू के सहारे उत्तर प्रदेश में भी पश्चिम बंगाल जैसा माहौल रचने की कोशिश की है. सीधी सी बात है कि अखिलेश यादव ने कांग्रेस और बसपा से किसकी तरफ होने का सवाल उठाकर ममता बनर्जी की रणनीति अपनाने के संकेत दे दिए हैं. इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि सपा प्रमुख आने वाले समय में कांग्रेस और बसपा पर इस तरह के सियासी हमलों को और तेज करेंगे. भाजपा के सामने सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी बनने के लिए अखिलेश यादव ने जिस आक्रामक तरीके से विपक्ष पर दबाव की रणनीति बनाई है, वो भविष्य में उन्हें लाभ ही देगी. अखिलेश यादव के इस बयान से साफ है कि वो कांग्रेस और बसपा से गठबंधन के पक्ष मे नही हैं. वो जनता के बीच ये संदेश पहुंचाना चाहते हैं कि बसपा सुप्रीमो मायावती और यूपी कांग्रेस प्रभारी प्रियंका गांधी सपा के सामने खड़े होकर भाजपा को जिताने की कोशिश कर रही हैं.

छोटे दल के रूप में कांग्रेस और बसपा का स्वागत करेगी सपा

सपा प्रमुख अखिलेश यादव स्पष्ट कर चुके हैं कि वो सूबे में सिर्फ छोटे राजनीतिक दलों के साथ गठबंधन करेंगे. अखिलेश यादव के इस बयान के अनुसार, अगर कांग्रेस और बसपा खुद को छोटे दल मानकर सपा के साथ आने की कोशिश करेंगे, तो पार्टी को गठबंधन से इनकार नहीं होगा. वैसे, भाजपा और योगी आदित्यनाथ के सामने सबसे ताकतवर विपक्षी पार्टी के तौर पर सियासी हवाएं भी सपा के ही पक्ष में बह रही हैं. तीन दशक से सत्ता से वनवास झेल रही कांग्रेस के पास उत्तर प्रदेश में बड़ा संगठन नहीं बचा है. एक पार्टी के तौर पर कांग्रेस लगातार सिमटती ही जा रही है. प्रियंका गांधी के नाम पर उत्तर प्रदेश में संगठन को फिर से मजबूत बनाने की कोशिश की जा रही है. लेकिन, इसके सपा जितना ताकतवर होने की संभावना नगण्य हैं. प्रियंका गांधी का गठबंधन के लिए खुद को ओपन माइंडेड बताना पहले ही दर्शा चुका है कि कांग्रेस ने खुद को छोटा दल मान लिया है. इस स्थिति में कांग्रेस बस सीटों की सम्मानजनक संख्या तय होने तक ही सपा से दूर है.

रही बात बसपा की तो, मायावती के साथ सपा का गठबंधन होना असंभव सी बात नजर आती है. दरअसल, 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान सपा-बसपा गठबंधन से मायावती को भरपूर फायदा मिला था, इसके बावजूद उन्होंने इस गठबंधन को तोड़ दिया. सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी 'बुआ' से मिले इस धोखे पर खून के घूंट पीकर रह गए थे. जिस तरह से राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ महागठबंधन बनाने की कवायद जारी है. उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि सपा का कांग्रेस के साथ गठबंधन होने पर मायावती के अलग-थलग पड़ने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी. जन भाजपा विरोधी वोटों के सहारे मायावती सत्ता में वापसी के सपने देख रही हैं, वो चूर होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा. यूपी विधानसभा चुनाव 2022 से पहले जनता के सामने बसपा जितनी कमजोर लगेगी, उससे सपा को ही फायदा मिलेगा. हां, बसपा अगर खुद को छोटा दल मान लेती है, तो सपा के दरवाजे उसके लिए भी खुले हैं.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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