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आखिर क्यों हमें हनुमान जी पर चल रहे सियासी ड्रामे को बस एन्जॉय करना चाहिए
हनुमान जी को दलित बताकर योगी आदित्यनाथ ने खुद मुसीबत मोल ली है ऐसे में अब अगर उनके बयान पर और बयान आएं तो हमें आहत नहीं होना चाहिए और एक अच्छे दर्शक का परिचय देते हुए उन्हें बस एन्जॉय करना चाहिए.
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राजनीति की अपनी मजबूरियां हैं. यहां इंसान तो इंसान लोगों का बस चले तो वो अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए भगवान को भी नहीं छोड़ते. ताजा मामला हनुमान जी का है. पिछले दिनों राजस्थान के अलवरमें चुनावी रैली को संबोधित करते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हनुमान जी को लेकर एक बड़ा ही बेतुका बयान दे दिया और उन्हें दलित बता दिया.
योगी आदित्यनाथ का हनुमान जी को दलित बताना भर था, हनुमान जी की जाती, कुल, गोत्र, पंथ, समुदाय, ईष्ट देव शायद ही कुछ ऐसा बचा हो जिसको लेकर चर्चा न हो रही हो, बयान न आ रहे हों. ताजा मामला उत्तर प्रदेश के बहराइच से बीजेपी की सांसद सावित्री बाई फूले का है. पार्टी की विचारधारा से विपरीत जाकर हमेशा ही कुछ तूफानी कर मीडिया की सुर्ख़ियों में रहने वाली सांसद सावित्री बाई फूले ने ने कहा कि हनुमान जी दलित और मनुवादियों के गुलाम थे.
सावित्री बाई फूले के बयान के बाद ये साफ हो गया है कि हनुमान जी पर चल रहा बवाल इतनी जल्दी शांत नहीं होगा
फूले ने एक बयान में कहा है कि, 'हनुमान दलित थे और मनुवादियों के गुलाम थे. अगर लोग कहते हैं कि भगवान राम हैं और उनका बेड़ा पार कराने का काम हनुमान जी ने किया था. उनमें अगर शक्ति थी तो जिन लोगों ने उनका बेड़ा पार कराने का काम किया, उन्हें बंदर क्यों बना दिया? उनको तो इंसान बनाना चाहिए था लेकिन इंसान न बनाकर उन्हें बंदर बना दिया गया. उनको पूंछ लगा दी गई, उनके मुंह पर कालिख पोत दी गई. चूंकि वो दलित थे इसलिए उस समय भी उनका अपमान किया गया.'
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए सांसद ने कहा है कि, 'हम तो यह देखते हैं कि अब देश तो न भगवान के नाम पर चलेगा और न ही मंदिर के नाम पर. अब देश चलेगा तो भारतीय संविधान के नाम पर. हमारे देश का संविधान धर्मनिरपेक्ष है. उसमें सभी धर्मों की सुरक्षा की गारंटी है. सबको बराबर सम्मान और अधिकार है. किसी को ठेस पहुंचाने का अधिकार भी किसी को नहीं है. इसलिए जो भी जिम्मेदार लोग बात करें भारत के संविधान के तहत करें, गैर-जिम्मेदाराना बात करने से जनता को एक बार सोचने पर मजबूर करता है.'
जब भाजपा सांसद से राममंदिर के विषय पर सवाल किया गया तो इस पर भी इन्होंने बड़ा ही नपा तुला जवाब दिया. फूले ने कहा कि बीजेपी इस मुद्दे को उछाल रही है जैसे कोई और मुद्दा है ही नहीं. फूले के अनुसार देश को मंदिर की जरूरत नहीं है, क्या मंदिर बेरोजगारी, दलित और पिछड़ों की समस्याओं को दूर कर सकता है. फूले का मानना है कि यदि मंदिर बनता है तो इससे सिर्फ ब्राह्मणों को फायदा होगा, जिनकी आबादी सिर्फ तीन फीसद है. मंदिर में जो पैसा चढ़ता है उसी का इस्तेमाल कर ब्राह्मण हमारे दलित समुदाय को अपना गुलाम बनाते हैं.
बहरहाल, जब अपने अपने राजनैतिक हित साधने के लिए भगवान पर आरोप प्रत्यारोप का सहारा लिया जा रहा हो. तो हमें भी चुपचाप एक अच्छे दर्शक की भूमिका अदा करनी चाहिए और खामोश रहना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि योगी ने मुसीबत खुद मोल ली है. उन्होंने सोची समझी राजनीति के तहत हनुमान जी को दलित बताया था. और ऐसे ही एक सोची समझी राजनीति के अंतर्गत सावित्री बाई फूले ने भी अपनी राजनीतिक समझ के अनुसार भगवान राम को मनुवादी और हनुमान को एक शोषित दलित बताया है.
अब चूंकि सावित्री बाई फूले को भी सुर्खियां बटोरने की आदत पुरानी है तो हमें ऐसी बातें या इसके बाद कुछ और सुनकर आहत नहीं होना चाहिए. हमें ये मान लेना चाहिए कि जब राजनीति में भगवान को घसीटा ही जा रहा है तो आने वाले वक़्त में भी हम ऐसा बहुत कुछ सुनेंगे जो हमारे तन बदन में आग लगा देगा. हमें याद रखना होगा कि उस वक़्त भी हमें एक अच्छे दर्शक की भूमिका अदा करनी होगी और इस तमाशे को चुपचाप होते देखना होगा.
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