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Updated: 16 फरवरी, 2019 11:05 AM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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जम्मू कश्मीर के पुलवामा में CRPF की बस पर हमला कर, 42 जवानों को शहीद करने वाले फिदायीन आदिल अहमद डार का वीडियो सामने आया है. वीडियो देखकर इस बात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि आदिल या फिर आदिल जैसे घाटी के अन्य युवाओं के दिमाग में नफरत किस तरह से भरी है. यदि जैश की तरफ से जारी किये गए आदिल के ही इस वीडियो का अवलोकन किया जाए. तो मिलता है कि आदिल इस वीडियो में गजवा-ए-हिन्द यानी भारत में इस्लामिक शासन की बातें कर रहा है. बदले की बातें कर रहा है. घाटी के युवाओं को जैश में आने की दावत दे रहा है. वो देश और देश के आम हिन्दुओं से नफरत की बातें कर रहा है.

सेना, आतंकी हमला, मौत, जम्मू और कश्मीर, जैश ए मुहम्मदअपने वीडियो में आतंकी आदिल आम कश्मीरियों को बरगलाता हुआ नजर आ रहा है

इतनी जहरीली बातों के बीच समाज का एक वर्ग ऐसा भी है जो इन भटके हुए कश्मीरियों के प्रति रहमदिल है. वो वर्ग जो कश्मीर समस्या का समाधान बातचीत से चाहता है. ऐसे लोगों का मानना है कि समय समय पर कश्मीरियों के साथ अन्याय और अत्याचार हुआ है (ये बात अपने में हास्यापद है क्योंकि कोरी लफ्फाजी होने के नाते इसके ऐतिहासिक प्रमाण मिसिंग हैं) तो उन्हें सुधारने का एकमात्र माध्यम शांति है. घाटी में शांति की बात करते दोहरे चरित्र वाले इन लोगों को एक बार घाटी का दौरा करना चाहिए.

इन्हें जान लेना चाहिए कि पुलवामा हमले के बाद घाटी हमेशा की तरह सुलग रही है. कर्फ्यू के बीच आगजनी और हिंसक झड़प की ख़बरें मीडिया में छाई हुई हैं. पत्थरबाजी के समाचार सामने आ रहे हैं. पुलिस और सेना लगातार तनाव मिटाने और स्थिति को नियंत्रित करने के प्रयत्न कर रही है. सवाल उठ सकता है कि पुलवामा हमले के बाद घाटी फिर क्यों सुलग उठी? कारण हैं 42 CRPF जवानों का हत्यारा जैशा का आतंकी आदिल.

घाटी के लोग आदिल के समर्थन में सड़कों पर हैं. एक तरफ जहां पुलवामा हादसे पर पूरा देश आंसू बहा रहा है, एक ही पल में आदिल कश्मीरी नौजवानों का रोल मॉडल बन गया है. घाटी के नौजवान आदिल द्वारा की गयी इस नापाक हरकत को सही ठहरा रहे हैं. घाटी में सेना और पुलिस के प्रति आम कश्मीरियों का ये रवैया देखकर सवाल पुनः उठता है कि क्या ऐसे लोगों के साथ शांति की बातें हो सकती हैं? अमन के समझौते हो सकते हैं? खुला जवाब है नहीं.

सेना, आतंकी हमला, मौत, जम्मू और कश्मीर, जैश ए मुहम्मदअक्सर ही हम ऐसी ख़बरें सुनते हैं जहां घाटी के पत्थरबाज सेना या पुलिस को अपना निशाना बनाते हैं

कश्मीर के ताजा हालात देखकर कहा जा सकता है कि सरकार को यहां किसी भी नीति के निर्धारण की जरूरत नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि जब आम कश्मीरियों में देश के लिए इतनी नफरत भर चुकी है तो उपाय बस एक है. उपाय  है इन्हें दी जाने वाली सभी सेवाएं और सुविधाएं रोक दीं जाएं. जो लोग सड़कों पर देश विरोधी नारे लगा रहे हैं. उनके मुंह हमेशा के लिए बंद कर दिए जाएं. अब वक़्त आ गया है कि आम कश्मीरी को इस बात का एहसास करा दिया जाए कि यदि वो देश का नहीं है तो फिर वो किसी भी सूरत में हमारा नहीं है.

हमें उन्हें इस बात का एहसास कराना होगा कि जब सूरत ऐसी हो तो वो हमारे लिए किसी नासूर से ज्यादा कुछ नहीं हैं. एक ऐसा नासूर जिसे अब तक तो हमने पाला मगर अब हम उसके परमानेंट इलाज के लिए अपनी कमर कस चुके हैं. गौरतलब है कि अलगाववाद और इस्लामिक कट्टरपंथ के चलते जिस तरह के समीकरण घाटी में स्थापित हुए हैं, वहां हिंसा का जवाब हिंसा और नफरत का जवाब बस नफरत है.

ऐसा इसलिए भी क्योंकि यदि कोई देश से नफरत कर रहा है तो फिर देश को भी पूरा अधिकार है कि वो उससे उतनी ही शिद्दत से नफरत करे. बात कड़वी हो सकती है. मगर अब जबकि हमारे 42 जवान इस अलगाववाद के चलते अपने प्राणों की आहुति दे चुके हैं. समय आ गया है कि सेना और पुलिस के अलावा इस देश का एक आम नागरिक भी कश्मीर के उपद्रवी लोगों को ईंट का जवाब पत्थर से दें.

सेना, आतंकी हमला, मौत, जम्मू और कश्मीर, जैश ए मुहम्मदबुरहान वानी की मौत के बाद से ही कश्मीर का युवा आतंकवाद की तरफ आकर्षित हुआ है

हो सकता है कि मानवाधिकार के पुरोधा हमारे द्वारा कही इस बात को सिरे से खारिज करें. शायद वो ये कहें कि हिंसा पर हिंसा का मार्ग अपनाना मानवाधिकार का हनन है. ऐसे लोगों को याद रखना होगा कि कहीं न कहीं वो खुद उस मानसिकता का परिचय दे रहे हैं जो इन आतंकियों, जिहादियों और उपद्रवियों की मानसिकता से कहीं ज्यादा घिनौनी है. कहा जा सकता है कि दोहरे चरित्र के ये लोग अपनी मीठी मीठी बातों से केवल और केवल अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं और देश को पीछे ले जा रहे हैं.

ज्ञात हो कि किसी आतंकी की मौत पर आम कश्मीरियों का विरोध करना और उनके समर्थन में आकर बवाल काटना कोई नई बात नहीं है. कश्मीर के माहौल का अवलोकन किया जाए तो एक आतंकी की मौत पर आम लोगों का हमदर्दी रखना वहां नया ट्रेंड बनता नजर आ रहा है. घाटी में इन सब की शुरुआत क्यों हुई इसके लिए हमें थोड़ा पीछे जाना होगा और हिजबुल कमांडर बुरहान वानी की मौत को देखना होगा.

सेना, आतंकी हमला, मौत, जम्मू और कश्मीर, जैश ए मुहम्मद घाटी में लगातार आम युवाओं द्वारा सेना और सुरक्षा बलों को निशाना बनाया जा रहा है

बुरहान वानी की मौत के बाद कश्मीर की अलगाववादी राजनीति में आश्चर्यजनक परिवर्तन देखने को मिले. अब तक जो लोग दबे छुपे ढंग से आतंकवाद और आतंकियों का समर्थन करते थे, खुल कर सामने आए. उन्होंने बुरहान वानी जिंदाबाद, गो बैक इंडिया, आजादी के खोखले नारों से कश्मीर की फिजा को और दूषित कर दिया.

बुरहान की मौत से लेकर आतंकी आदिल के मारे जाने तक, घाटी कई अहम परिवर्तनों की साक्षी बनी है. ऐसा ही एक परिवर्तन है किसी दहशतगर्द की मौत पर घाटी के लोगों का उसे अपना रोल मॉडल मान लेना और उसकी शान में कसीदे पढ़ना शुरू कर देना. अंत में हम बस ये कहते हुए अपनी बात को विराम देंगे कि पाकिस्तान पर सरकार जब एक्शन लेना चाहे तब ले. मगर उससे पहले उसे उन लोगों को सबक सिखाना चाहिए जो भारत विरोधी हैं.

अब तक बहुत सारी शांति वार्ताएं हो चुकी हैं. अब सीधी अंगुली से काम नहीं चलेगा. अब वक़्त आ गया है जब हमें अंगुली टेढ़ी करनी है फिर घी निकाना है. बाक़ी बात रोल मॉडल की चल रही है तो हमें ये भी समझना होगा कि जिस कश्मीर को फ़िरोज़ अहमद डार, अय्यूब पंडित, औरंगजेब और नजीर अहमद वानी जैसे देशप्रेमियों को अपना रोल मॉडल बनाना था अगर वो आतंकियों की तरफ आकर्षित हुए हैं और इनके लिए भारत के टुकड़े टुकड़े करने में जान लड़ा रहे हैं तो इसे किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा.   

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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