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Updated: 15 फरवरी, 2019 04:14 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले में सीआरपीएफ के 44 जवान शहीद हो चुके हैं. गुरुवार को हुई इस घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया है. ऐसे में अगर आप सरकारी आंड़कों पर नजर डालेंगे तो बेशक आपका भी खून खौल उठेगा. आंकड़ों के अनुसार ये अब तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला है. इससे पहले जब 2016 में उरी में आतंकी हमला हुआ था, तो 17 जवान मारे गए थे. गृह मंत्रालय के आंकड़ों को खंगालें तो पता चलता है कि पिछले 5 सालों में आतंकी हमले 176% बढ़ गए हैं, जिसकी वजह से आतंकियों के साथ-साथ नागरिक और सुरक्षा बलों के जवानों की मौत की संख्या भी बढ़ी है. इन आतंकी हमलों में सिर्फ शहीद होने वाले सुरक्षा बलों की संख्या में ही 93% की बढ़ोत्तरी हुई है.

5 साल यानी 1825 दिन. इस दौरान कुल 1708 आतंकी हमले हुए. यानी सिर्फ 117 दिनों को छोड़ दें तो औसतन रोज एक आतंकी हमला हुआ है. जब हर रोज आतंकी हमले हो रहे हों, तो ऐसी स्थिति को युद्ध क्यों नहीं कहें? आखिर ये स्थिति युद्ध से कम भी तो नहीं है. पिछले 5 सालों में इन हमलों में 138 नागरिक और 339 सुरक्षा बलों के जवान मारे गए हैं. आइए एक नजर डालते हैं गृह मंत्रालय के आंकड़ों पर समझते हैं कि आतंक के लिहाज से पिछले 5 साल कितने भयावह रहे हैं.

176 फीसदी बढ़ गए आतंकी हमले

गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार सिर्फ 2014 में ही जम्मू कश्मीर में 222 आतंकी हमले हुए हैं. इसके अलगे साल 2015 में 208 आतंकी हमले हुए. पिछले 5 सालों में ये पहली बार था, जब आतंकी हमलों में मामूली कमी आई थी, लेकिन 2016 से लेकर 2018 तक आतंकी हमले तेजी से बढ़े. 2016 में ये आतंकी हमले 54.8 फीसदी बढ़ कर 0000 हो गए. 2017 में भी आतंकी हमलों में मामूली बढ़त हुई और ये हमले 6 फीसदी बढ़कर 342 पर जा पहुंचे. सबसे अधिक आतंकी हमलों की घटनाएं 2018 में हुईं, जब इनमें 79.53 फीसदी की बढ़त हुई और कुल हमलों की संख्या 614 पर जा पहुंची.

आतंकी हमला, आतंकवाद, भारतीय सेना, जम्मू और कश्मीरपिछले 5 सालों में आतंकी हमले 176% बढ़ गए हैं.

5 साल (1825 दिन) में 1708 मौतें

इन 5 सालों में नागरिकों की मौतों की संख्या 35.71 फीसदी बढ़ी, जबकि शहीद होने वाले जवानों की संख्या में 93 फीसदी की बढ़ोत्तरी हो गई.

- 2014 में जम्मू-कश्मीर में हुए आतंकी हमलों में 47 जवान शहीद हुए थे, जबकि 28 नागरिकों की भी मौत हो गई. वहीं दूसरी ओर, सुरक्षा बलों के हाथों 110 आतंकी भी मारे गए.

- 2015 में हुए आतंकी हमलों में 39 जवान शहीद हो गए और 17 नागरिकों ने अपनी जान गंवाई. इस साल सबसे कम 108 आतंकी मारे गए थे. हालांकि, इस साल आतंकी हमलों की घटनाएं भी पिछले 5 सालों में सबसे कम रहीं.

- 2016 में आतंकी हमले और अधिक बढ़े, जिसमें 82 जवान शहीद हुए और 15 नागरिक भी मारे गए. इसी साल सुरक्षा बलों ने 150 आतंकियों को भी मार गिराया.

- 2017 में हुए आंतकी हमलों में 80 जवानों के साथ-साथ 40 नागरिक भी मारे गए. इसके अलावा 213 आतकियों को भी मौत के घाट उतारा गया.

- 2018 में आतंकी हमलों की सबसे अधिक घटनाएं हुईं, जिनमें 91 सैनिक मारे गए और 38 नागरिकों की जान चली गई. इस साल सुरक्षा बलों ने आतंकियों से लोहा लेते हुए 257 आतंकवादियों को ढेर किया.

अगर सैनिक, नागरिक और आतंकियों की मौतों को एक साथ देखा जाए तो इन 5 सालों में आतंकवाद ने कुल 1310 लोगों की जान ले ली. इसमें 138 नागरकि, 339 सुरक्षा बल के जवान और 838 आतंकी थे. गृह मंत्रालय के ये आंकड़े पिछले 5 सालों की तस्वीर एकदम साफ कर रहे हैं. इन आंकड़ों से ये साफ होता है कि इस दौरान आतंकी घटनाओं पर लगाम लगना तो दूर रहा, उल्टा ये घटनाएं बढ़ती ही चली गईं और 2018 आते-आते इनमें 176 फीसदी की बढ़ोत्तरी हो गई. 1999 का करगिल युद्ध तो आपको याद ही होगा, उसमें 527 जवान शहीद हुए थे. वहीं पिछले 5 सालों में भारतीय सेना के जवान और नागरिकों के मरने की संख्या 477 है. अब सोचिए, इतनी भयावह स्थिति को युद्ध क्यों ना समझें?

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