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Updated: 28 जुलाई, 2022 03:14 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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खबर है कि झारखंड के बाद अब बिहार के चार जिलों में करीब 500 सरकारी स्कूलों में रविवार की जगह शुक्रवार को छुट्टी दी जा रही है. सीमांचल के चार जिलों किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया में 30 से 70 फीसदी मुस्लिम आबादी है. जिम्मेदारों का कहना है कि रविवार की जगह शुक्रवार को छुट्टी दिए जाने का फैसला स्थानीय लोगों और मुस्लिम नेताओं के दबाव में लेना पड़ा है. जो लंबे समय से चला आ रहा है. चौंकाने वाली बात ये है कि इन सरकारी स्कूलों में से एक भी मदरसा या उर्दू स्कूल नही हैं.

मोदी का 'विजन इंडिया@2047' बनाम इस्लामिक राष्ट्र बनाने का 'विजन 2047'

इसी साल जनवरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी मंत्रालयों और विभागों को 'गवर्नेंस' को ध्यान में रखते हुए लंबी अवधि के लक्ष्यों की पहचान करने, परिणाम हासिल करने के लिए समयसीमा और उपलब्धियों के साथ 'विजन इंडिया@2047' का दस्तावेज तैयार करने का निर्देश दिया था. वहीं, हाल ही में बिहार के फुलवारी शरीफ में पकड़े गए आतंकी मॉड्यूल से पीएफआई का एक 'विजन 2047' डॉक्यूमेंट जब्त किया गया था. जिसमें पीएफआई ने भारत को 2047 तक इस्लामिक राष्ट्र बनाने के तरीके बताए थे. पीएफआई के इस डॉक्यूमेंट में कहा गया है कि 'अगर मुस्लिम समुदाय के 10 फीसदी लोगों का साथ भी मिल जाए, तो डरपोक बहुसंख्यक समुदाय को घुटनों पर लाया जा सकता है.' इसके साथ ही देश के 9 जिलों में मुस्लिम आबादी 75 फीसदी आबादी से ऊपर है.

Religious Intolerance Face After Jharkhand now Bihar Schools giving Leave On Friday can not turn away on small Pakistans made in Indiaशाहीन बाग, कर्नाटक का हिजाब विवाद अब 'सिर तन से जुदा' के नारों के साथ इस्लामिक कट्टरता दिखाने तक पहुंच चुका है.

भारत में बनते 'मिनी पाकिस्तान'

सीएए के खिलाफ आंदोलन में दिल्ली का शाहीन बाग एक बेहतरीन विरोध मॉडल बनकर उभरा था. इन इलाकों में मुस्लिम आबादी का घनत्व किसी से छिपा नही है. हालांकि, देश की राजधानी होने के चलते यहां झारखंड और बिहार जैसे नियम स्कूलों में लागू नही हो रहे हैं. लेकिन, इन इलाकों के स्कूल भी कब तक बचे रहेंगे? ये कहना मुश्किल ही है. बीते साल ही तमिलनाडु के पेरंबलूर जिले के कड़तूर गांव में मुस्लिम समुदाय ने बहुसंख्यक होने के बाद हिंदू पक्ष को वर्षों से निकाली जा रही रथयात्रा रोके जाने की मांग की थी. जिसे मुस्लिम समुदाय और नेताओं के दबाव में स्थानीय अदालत ने मंजूरी भी दे दी थी. हालांकि, इस रथयात्रा का विरोध 2012 से ही किया जाने लगा था. क्योंकि, तब तक कड़तूर गांव में मुस्लिम आबादी के पास बहुसंख्यक का दर्जा आ चुका था. और, इस्लाम में मूर्ति पूजा शिर्क यानी पाप है. तो, इसका विरोध होना लाजिमी था.

मुस्लिम समुदाय का कहना था कि हिंदुओं के रथयात्राओं को मुस्लिम इलाकों से निकालने पर रोक लगाई जाए. वो तो भला हो मद्रास हाईकोर्ट का जिसने कड़े शब्दों में मुस्लिम समुदाय को फटकार लगाते हुए हिंदुओं को रथयात्रा निकालने का अधिकार दिया. वरना मुस्लिम जमात तो पूरी तैयारी से ही बैठी थी. ठीक उसी तरह जैसे राजस्थान के करौली में हिंदुओं के नवसंवत्सर पर गुजर रही बाइक रैली पर पत्थरबाजी की गई थी. वैसे, मद्रास हाईकोर्ट ने कहा था कि 'किसी एक क्षेत्र में एक धार्मिक समुदाय बहुसंख्यक है, तो वहां अन्य धर्म के त्योहार या जुलूस की इजाजत नही मिलनी चाहिए' का तर्क अगर स्वीकार कर लिया जाए. तो, अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के लोग भारत के अधिकांश इलाकों में अपने त्योहार और जुलूस नहीं निकाल पाएंगे.

धार्मिक असहिष्णुता के पैरोकारों का क्या?

'चिकन नेक' को दबोचने जैसे बयान देने वाले शरजील इमाम और उमर खालिद जैसे मुस्लिम युवाओं के पक्ष में नेताओं से लेकर एक बड़ा बुद्धिजीवी वर्ग खड़ा नजर आता है. इनमें से कुछ उमर खालिद और शरजील इमाम को मुस्लिम होने की वजह से प्रताड़ित किए जाने का आरोप लगाते हैं. तो, अल्पसंख्यकों के अधिकार छीनने की कोशिश बताता है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो इस्लाम की धार्मिक असहिष्णुता का धर्मनिरपेक्षता यानी सेकुलर होने के नाते बचाव किया जाता है. तर्क दिए जाते हैं कि हिंदुओं में तो हर दिन ही कोई न कोई त्योहार होता है. तो, बहुसंख्यक वर्ग की धार्मिक भावनाओं को सीमित किया जाना चाहिए. लेकिन, इस्लाम को लेकर इन्ही पैरोकारों के मुंह में ताला लग जाता है.

भारत में अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की राजनीति का इतिहास बहुत पुराना है. देश के संसाधनों पर अल्पसंख्यकों का पहला हक बताने जैसी बातें भारत के कथित धर्मनिरपेक्ष ढांचे को बचाने के लिए की जाती रही हैं. जबकि, मुस्लिम समुदाय का एक वर्ग धर्मनिरपेक्षता को खूंटी पर टांगकर सामने आने के बेताब है. पैगंबर टिप्पणी विवाद के बाद देशभर में 'सिर तन से जुदा' के नाम पर हो रही हत्याओं पर हिंदुओं के आवाज उठाते ही उन्हें सांप्रदायिक घोषित किया जाने लगता है. जबकि, अपनी जान बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की शरण में जाने वाली नुपुर शर्मा को मौखिक टिप्पणियों के जरिये इन हत्याओं का दोषी करार दे दिया जाता है.

इस्लाम में धार्मिक सहिष्णुता ही सबसे बड़ा 'शिर्क'

इस्लाम में धामिक असहिष्णुता की जड़ें किस कदर गहरी हैं, इसका अंदाजा पाकिस्तान में पतंगबाजी पर लगाई गई रोक से लगाया जा सकता है. भारत के साथ ही पाकिस्तान में भी हिंदू और सिखों में बसंत पंचमी के त्योहार पर पतंग उड़ाने का चलन रहा है. लेकिन, पाकिस्तान में हिंदू और सिख अल्पसंख्यकों से पतंगबाजी का ये अधिकार भी पतंग पर बैन लगाकर छीन लिया गया. क्योंकि, यह धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देने वाला कदम है. जबकि, पाकिस्तान तो इस्लाम के आधार पर बना मुस्लिम राष्ट्र है. वैसे, अगर भारत की ही बात करें, तो कश्मीर में 'निजाम-ए-मुस्तफा' स्थापित करने के नारों से लेकर कर्नाटक में हुए हिजाब विवाद तक सारी घटनाएं इसी धार्मिक असहिष्णुता की ओर इशारा करती हैं.

हां, ये अलग बात है कि कश्मीर में 'निजाम-ए-मुस्तफा' की मांग आबादी के लिहाज से की जाती है. और, कर्नाटक के स्कूल-कॉलेजों में हिजाब पहनने और तमिलनाडु में हिंदुओं के त्योहारों पर रोक लगाने की मांग संविधान द्वारा प्रदत्त धार्मिक आजादी का हवाला देकर की जाती है. क्या इस बात से इनकार किया जा सकता है कि आज मुस्लिम आबादी के बहुसंख्यक होने की वजह से सरकारी स्कूलों में रविवार की जगह शुक्रवार को हो रही छुट्टी आगे चलकर कड़तूर जैसा विवाद नहीं बनेगी. क्या छुट्टी से शुरू हुई अराजकता स्कूलों में नमाज अदा करने की जगह, कैंटीन में हलाल मीट, गर्मी की छुट्टी रमजान के महीने में करने, पाठ्यक्रम से राम, कृष्ण, बुद्ध, गुरुनानक, जीसस से जुड़े चैप्टर हटाने की मांग तक नही जाएगी?

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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